2014 के बाद पहली बार BJP मोदी के नाम पर नहीं लड़ेगी चुनाव, प्रधानमंत्री की धूमिल होती छवि से हो सकता है बड़ा नुकसान
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अजय प्रकाश का विश्लेषण
क्या वर्ष 2014 के बाद से भाजपा द्वारा लड़े जान वाले किसी एक चुनाव के बारे में सुना है कि यह चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में या उनके नाम पर या उनके काम पर नहीं लड़ा जायेगा। आप अगर याद करने की कोशिश करेंगे तो यकीन मानिए आप याद नहीं कर पाएंगे, क्योंकि 2014 से लेकर अब तक देशभर में जितने भी विधानसभा, लोकसभा, राज्यसभा और यहां तक कि विधान परिषद और उससे भी नीचे जिला पंचायत, जिला परिषद तक के चुनाव हुए हैं, यहां तक कि ग्राम प्रधानी के चुनाव भी भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर ही लड़े हैं, मगर यह पहले दफा होगा जब पांच राज्यों का चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर नहीं लड़ा जाएगा। यह बात खुद भारतीय जनता पार्टी ने साफ कर दी है।
भाजपा में सर्वसम्मति से यह तय हुआ है कि आने वाले पांच विधानसभा चुनाव यानी राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मणिपुर और तेलंगाना के चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर नहीं लड़े जाएंगे। हालांकि खुलकर यह कहने का साहस अभी पार्टी का कोई नेता नहीं कर सका है।
भाजपा नेता अरुण सिंह ने मीडिया में यह बात कही है कि इस बार राज्यों के चुनाव लोकल मुद्दों और स्थानीय नेताओं को आगे करके लड़े जायेंगे। हालांकि उन्होंने खुलकर यह कहने का साहस नहीं किया है कि प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर यह चुनाव नहीं लड़े जायेंगे, मगर इशारा कर दिया है कि पांच राज्यों के चुनाव मोदी के नाम पर नहीं लड़े जायेंगे।
अरुण सिंह ने कहा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेताओं के नाम पर लड़े जाएंगे। बहाना यह लिया गया है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मणिपुर और तेलंगाना राज्यों के चुनाव में कोई पार्टी का मुख्यमंत्री फेस नहीं होगा। जाहिर तौर पर भाजपा का किसी भी राज्य में कोई भी मुख्यमंत्री फेस नहीं होता है, तो इसको बताने की जरूर इसलिए पड़ी, क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के कद के सामने भारतीय जनता पार्टी या ऐसे उसका कोई भी नेता अभी साहसपूर्वक खड़ा नहीं हो सकता। ऐसे में सर्वसम्मति के बहाने से पार्टी ने यह तो किया है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेताओं को आगे करके लड़ा जाएगा।
सवाल यह है कि आखिरकार ऐसा 2014 से लेकर 2023 के बीच क्या घटा है, ऐसा क्या हुआ है जिसकी वजह से प्रधानमंत्री मोदी की अपनी ही पार्टी मोदी के नाम पर चुनाव नहीं लड़ना चाहती है। उसकी वजह बहुत साफ है। पार्टी की अंदरुनी जानकारियों के हिसाब से बताएं तो कहा जा रहा है कि मोदी के नेतृत्व में पार्टी की छवि धूमिल हुयी है। पार्टी का मुख्य चेहरा यानी पीएम मोदी की छवि पिछले नौ सालों में लगातार धूमिल होती गई है।
केंद्र की मोदी सरकार ने जिस तरह के लोक लुभावने नारे दिए, वह नारे पूरे नहीं हुए हैं और दूसरी बड़ी बात की महंगाई और बेरोजगारी का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। पार्टी का अंदरुनी और आरएसएस के लोग भी इस बात को समझते हैं कि मीडिया को खरीदकर, अखबारों में जीडीपी बढ़ाकर दिखाने के चाहे जितने आंकड़े आप छाप लें, लेकिन सच यह है कि जीडीपी लगातार घट रही है। लोगों की कमाई घट रही है और महंगाई बढ़ रही है। वैश्विक स्टार पर हम चाहे जितनी एकता और मजबूत भारत की बात कर लें, लेकिन प्रधानमंत्री के 9 सालों में भारत न सिर्फ अपनी चौहद्दियों पर कमजोर हुआ है, बल्कि अंदरुनी स्थितियों में भी जाति और धर्म की लड़ाइयां बढ़ी हैं, जिसकी वजह से आर्थिक स्थितियां कमजोर हुई हैं। विदेशी निवेश बढ़ नहीं रहा है, अलबत्ता कोरोना के बाद उसके पहले और उससे भी पहले बहुत सारे विदेशी निवेशकों ने अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं।
यह सारा सच पार्टी के सामने है, इसलिए किसी विपक्ष की जरूरत नहीं है इस आंकड़े को गिनाने के लिए। साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी को लेकर अब भाजपा के भीतर छवि बदल रही है। भाजपा का नेतृत्व जो प्रधानमंत्री मोदी की वजह से बिल्कुल बौना हो गया है, उनमें से कोई एक व्यक्ति साहसपूर्वक सामने नहीं आया है, इसलिए मैं भी उनका नाम लेने की कोई जरूरत महसूस नहीं करता कि फलां नेता ने कहा है, ढिमका नेता ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर अगला विधानसभा नहीं लड़ा जाएगा, बल्कि सामूहिक रूप से पार्टी की चिंतन बैठक में यह बात तय हुई है।
अब तक तो विपक्ष, देश के बुद्धिजीवी मानते थे कि पीएम मोदी की छवि लगातार धूमिल होती जा रही है, मगर अब समाज के लोग भी मानने लगे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी का नेतृत्व देश को एक असफल नेतृत्व की तरफ ले जा रहा है। इसीलिए पार्टी के भीतर भी इसको लेकर सुगबुगाहट चल रही है और उसके परिणाम के तौर पर अगर आप नतीजा देखना और समझना चाहते हैं तो वह आगामी विधानसभा के चुनाव हैं, जो राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मणिपुर और तेलंगाना में होने वाले हैं। इन सभी जगह पर चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर नहीं लड़ा जाएगा।
यह चुनाव इस मुद्दे पर भी भाजपा लड़ेगी कि तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्यों में सत्तासीन पार्टियां कितनी मुस्लिमपरस्त हैं। मध्य प्रदेश और मणिपुर में भाजपा खुद सत्तासीन है, तो खासकर मणिपुर में आखिर कैसे मोदी के नाम पर वोट मांगे जा सकते हैं। जब मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है वहां चुनाव होने हैं, अगर जलते वक्त भी चुनाव होता है तो जाहिर तौर पर मणिपुर की जनता बीजेपी को कहीं देखना नहीं चाहेगी। मणिपुर जल रहा है और प्रधानमंत्री मोदी हाथ हिलाकर बाय-बाय करते हुए अमेरिका पहुंच गये हैं।