Gujrat Election 2022 : अपनी घटती सीटों से नहीं, कांग्रेस की बढ़ती सीटों से परेशान है भाजपा
Gujrat Election 2022 : गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 में अब जब कुछ ही वक्त बचा है तो राज्य की सत्तारूढ़ भाजपा में सत्ता को बचाए रखने और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में सत्ता छीनने की लड़ाई अब बिल्कुल सतह पर आ गई है। इस बार के चुनाव में इन दोनों दलों से इतर आम आदमी पार्टी इन दोनों दलों के समीकरण को कई जगह बिगड़ती दिख रही है, जिससे मुकाबले में कांटे की टक्कर देखी जा रही है।
गुजरात मॉडल की ब्रांडिंग के चलते पूरे भारत की सत्ता हथियाने वाली भारतीय जनता पार्टी के लिए गुजरात विधानसभा का चुनाव कितना महत्त्वपूर्ण है, वह इसी से समझा जा सकता है कि भारत के इतिहास में पहली बार देश के किसी प्रधानमंत्री को अपनी राजनैतिक पार्टी को विजय दिलाने के लिए अपने गृह राज्य में ही डोर टू डोर चुनावी कैंपेन के लिए उतरना पड़ रहा है, जिसके चलते भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में डेरा डाले हुए हैं।
वैसे इन दिनों अपनी भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त चल रहे कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भी आने वाले दिनों गुजरात के चुनाव प्रचार के लिए सक्रिय होने वाले हैं। प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी, दोनों की ही गुजरात में कई सभाएं प्रस्तावित हैं। बीते कई चुनाव में आमने सामने की भिडंत कर चुकी भाजपा और कांग्रेस के लिए इस बार आम आदमी पार्टी खासी सिरदर्द बनने वाली है। आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल एक खास रणनीति के तहत पिछले कई समय से गुजरात में निरंतर आते जाते रहे हैं और पिछले कई समय से वोटरों को लुभाने में लगे हुए हैं।
इस बार के विधानसभा चुनाव में गुजरात में किस राजनीतिक दल के सत्तारूढ़ होने के मंसूबे पूरे होंगे, यह अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन लेकिन गुजरात का पिछले चार चुनाव का लेखा-जोखा इस विधानसभा चुनाव में भाजपा को चैन की नींद नहीं सोने दे रहा है। पिछले चार बार के चुनावी लेखा-जोखा देखें तो भारतीय जनता चुनाव दर चुनाव पिछड़ती नजर आ रही है।
शुरुआत, 20 साल से पहले वहां से करते हैं जब 2002 में गोधरा कांड के बाद गुजरात की विधानसभा समय से पहले ही भंग कर दी गई थी। गोधरा कांड का फायदा उठाने के लिए इस विधानसभा को भंग किया गया था और उसमें भाजपा सफल भी रही। गुजरात में गोधरा कांड के बाद भाजपा सबसे ज्यादा सीट लेने में सफल रही। उस समय बीजेपी को सबसे ज्यादा 127 सीटें आई थी, जबकि कांग्रेस 51 सीटों पर सीमित रही थी।
2007 चुनाव की बात करें तो उस समय बीजेपी को पिछली बार से दस कम 117 सीटें आई थीं तो कांग्रेस आठ सीटों की बढ़त के साथ 59 सीटों पर सिमट कर रह गई। उस चुनाव में अन्य दलों को भी दो-दो सीटें मिली थी। 2012 के चुनाव की बात करें तो उस समय भाजपा की दो सीटें कम हुई थी तो कांग्रेस की दो सीटें बढ़ी थीं। इस चुनाव में बीजेपी 115 सीट लाई थी और कांग्रेस 61 सीटों पर विजयी रही थी तब भी अन्य पक्षों को दो-दो सीटें मिली थी।
2017 की बात करें तो इस साल 2017 में प्रचंड मोदी लहर थी। केंद्र में भी नरेंद्र मोदी की सरकार थी और गुजरात में भी भाजपा की सरकार थी। मतलब डबल इंजन फुल स्पीड में राजनीतिक पटरी पर सरपट दौड़ रहा था, लेकिन इस चुनाव में बीजेपी 99 सीट पर सिमट कर रह गई थी। उस समय पाटीदार फेक्टर भी असर करता था। जबकि कांग्रेस ने आठ सीटों की बढ़ोतरी के साथ 77 सीटों पर विजय रही थी। तब भी छोटी पार्टियों को दो-दो सीटें मिली थी।
इस तरह अगर गुजरात के पिछले 4 चुनाव की बात करें तो भाजपा को 127 सीटों से शुरू होकर 117, 115 से होते हुए 99 सीटों पर फिसलन भरा सफर तय करना पड़ा था। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस ने सबसे बुरी 51 सीटों की स्थिति से अपने को लगातार मजबूती देते हुए 59, 61 से 77 सीटों तक अपनी पकड़ बनाई थी।
वैसे इस विधानसभा चुनाव में भाजपा नेताओं का दावा डेढ़ सौ सीटें जीतने का है, लेकिन पूरे गुजरात की बात करें तो अब तक के सारे चुनावो में 1990 में गुजरात में भाजपा और जनता दल ने साथ में चुनाव लड़ा था तब भी यह गठबंधन सबसे ज्यादा सीट 137 जीतने में सफल रही थी। इसमें भी जनता दल की 70 और भाजपा की 67 सीटें आई थी। तब कांग्रेस 33 सीट पर सिमट गई थी। कुल मिलाकर भाजपा और जनता दल मिलकर भी इस चुनाव में डेढ़ सौ के पार नहीं पहुंच पाई थी, जिसका दावा भाजपा का शीर्ष नेतृत्व केवल अपने दम पर कर रहा है।
दूसरी तरफ कांग्रेस जो कि हर चुनाव में अपनी सीटें बढ़ाने में कामयाब रही लेकिन अंततः कांग्रेस से कई विधायक टूटकर बीजेपी में शामिल होते रहे। 2022 के चुनाव में बीजेपी की हालत अच्छी न जानकर बीजेपी ने कई जीतने वाले कांग्रेसी नेताओं को अपने खेमे में किया है और जिसमें आदिवासी विस्तार में अपनी छवि रखने वाले मोहन सिंह राठवा का भी समावेश होता है।
ज्यादातर ट्राईबल एरिया में भाजपा कमजोर दिख रही है, इसलिए भाजपा ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं जिसमें उन्होंने आदिवासी वोटों को टारगेट करके मोहन सिंह राठौर को भाजपा में शामिल किया है, जबकि कांग्रेस में से आए कई नेताओं को टिकट नहीं भी दिया गया है। लेकिन सारे चुनावी खेल में 2022 के वर्ष में आम आदमी पार्टी के आगमन से भाजपा और कांग्रेस के सारे दांव पेंच धरे के धरे रह गए हैं। आप के दखल के बाद इस साल त्रिकोणीय जंग में कांटे की टक्कर देखी जा रही है।