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राजनीति

I love Mohammad : एक शांतिपूर्ण जुलूस में कानून का उल्लंघन किये बिना पैगम्बर के प्रति सम्मान दर्शाने पर यूपी के कई जिलों में क्यों फैली साम्प्रदायिक हिंसा !

Janjwar Desk
4 Oct 2025 5:10 PM IST
I love Mohammad : एक शांतिपूर्ण जुलूस में कानून का उल्लंघन किये बिना पैगम्बर के प्रति सम्मान दर्शाने पर यूपी के कई जिलों में क्यों फैली साम्प्रदायिक हिंसा !
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‘आई लव मोहम्मद' का पूरा मामला मुसलमानों को आतंकित करने और उन्हें हाशिए पर पटकने के लिए उपयोग किया जा रहा है। अपने पैगम्बर के प्रति स्नेह की इस प्रकार की अभिव्यक्ति पूरी तरह अभिव्यक्ति की आजादी के लोकतांत्रिक अधिकार की सीमाओं के अंदर है। जैसे पाकिस्तान में कुछ तालिबानी तत्व दावा करते हैं कि भारत के साथ हर भिड़ंत गजवा...है, वहीं हमारे प्रधानमंत्री भी मसलों को उसी दिशा में ले जा रहे हैं। क्रिकेट में पाकिस्तान पर विजय के बाद उन्होंने कहा कि यह आपरेशन सिंदूर का ही हिस्सा है...

'आई लव मोहम्मद' का नारा कैसे है साम्प्रदायिक हिंसा का नया बहाना, बता रहे हैं वरिष्ठ लेखक राम पुनियानी

साम्प्रदायिक हिंसा भारतीय राजनीति का अभिशाप है। यह सौ वर्ष से अधिक पुरानी है। इसके अधिकांश अध्येताओं का मत है कि यह सामान्यतः योजना बनाकर की जाती है। इस हिंसा के बाद साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के हालात बन जाते हैं। अध्येताओं का यह मत भी है कि 'दंगों के नतीजे में होने वाले धार्मिक ध्रुवीकरण से धर्म की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों का लाभ होता है और कांग्रेस को नुकसान।' उनका मानना है कि इन दंगों के नतीजे में 'बहुधर्मी प्रकृति वाले कांग्रेस जैसे दलों को चुनावों में नुकसान होता है, साम्प्रदायिक दलों को लाभ होता है और उनकी शक्ति बढ़ती है।' इसी उद्देश्य से चुनावी लाभ के लिए हिंसा करने के नए-नए बहाने गढ़े जाते हैं।

बहानों की इस लंबी फेहरिस्त में आए दिन नए-नए मुद्दे जोड़ दिए जाते हैं। मस्जिद के सामने तेज संगीत बजाना, मंदिरों में गौमांस फेंकना और अफवाहें फैलाना नफरत बढ़ाने की इस प्रवृत्ति के केंद्र में रहते हैं। इसमें मुस्लिम राजाओं का दानवीकरण, उनके द्वारा मंदिर तोड़े जाने, तलवार की नोंक पर इस्लाम फैलाने, उनके अधिक बच्चे पैदा करने के कारण हिंदुओं के देश में अल्पमत में हो जाने जैसे मुद्दे नफरत फैलाने की इस प्रक्रिया में जोड़ दिए गए हैं। पिछले कुछ दशकों में हमने इसमें गाय, गौमांस सेवन, लव जिहाद और कई अन्य जिहाद जिनमें कोरोना जिहाद, भूमि जिहाद और हाल ही में जोड़ा गया पेपरलीक जिहाद मुख्य हैं, जुड़ते देखे हैं।

इस सबके साथ इन दिनों हम ‘आई लव मोहम्मद' के सीधे-सादे नारे को लेकर हिंसा भड़काने के नजारे देख रहे हैं। इसकी शुरुआत कानपुर से हुई जब "मिलाद-उन-नबी" के दिन पैगम्बर मोहम्मद के जन्म दिवस के अवसर पर निकाले गए जुलूस में शामिल ‘आई लव मोहम्मद' बैनर पर कुछ लोगों द्वारा इस आधार पर आपत्ति की गई कि इस धार्मिक उत्सव में यह नई परंपरा जोड़ी जा रही है। वहां मौजूद पुलिसकर्मियों में से कुछ ने इस तर्क को सही मानते हुए ऐसे बैनर पकड़े लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली। एक शांतिपूर्ण जुलूस में लोगों द्वारा अपने पैगम्बर के प्रति सम्मान दर्शाना पूरी तरह वाजिब था और किसी भी कायदे-कानून का उल्लंघन नहीं था। इस मुद्दे पर उत्तर प्रदेश के कई जिलों में हिंसा फैल गई।

कानपुर की घटना पहली थी और यह उत्तर प्रदेश के बरेली, बाराबंकी और मऊ जिलों में और उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर जिले के काशीपुर और कई अन्य स्थानों पर दुहराई गई।

इसकी प्रतिक्रिया में पोस्टर फाड़े गए, उसके बाद हिंसा हुई और माहौल विषाक्त हो गया। एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राईट्स (एपीसीआर) द्वार एकत्रित की गई जानकारी के अनुसार अब तक आई लव मोहम्मद वाले मुद्दे पर 1324 लोगों के विरूद्ध 21 एफआईआर दर्ज की गई हैं और 38 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। बरेली में कुछ दिनों तक इंटरनेट बंद रहा और एक स्थानीय मुस्लिम नेता मौलाना तौकीर रजा खान को उनके घर में ही एक सप्ताह तक नजरबंद रखा गया। उन्होंने आरोप लगाया कि बिना जांच-पड़ताल के मुसलमानों को बड़े पैमाने पर प्रताड़ित किया जा रहा है। उन्होंने कानपुर की घटना पर एक ज्ञापन सौंपे जाने का आव्हान किया, पर वे स्वयं इसके लिए नहीं पहुंचे। नतीजे में अफरातफरी हुई और बड़े पैमाने पर मुसलमानों को गिरफ्तार किया गया।

इस घटनाक्रम से मुसलमानों के प्रति नफरत भी सामने आ गई है। बड़े नेताओं ने इशारों-इशारों में बात की और छुटभैये नफरत और हिंसा फैलाने में जुट गए। मोदी लगातार, बार-बार ऐसा करते रहे हैं, खासतौर पर चुनाव के आसपास। इस बार उनका अभियान घुसपैठियों के मुद्दे पर केन्द्रित है। यह सब मुसलमानों, खासकर बिहार और असम के मुसलमानों के लिए बहुत तकलीफदेह बन गया है। एसआईआर के कदम को उचित ठहराने का एक आधार यह भी था और इसे बिहार के बाद, जहां 47 लाख मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर दिया गया है, सारे देश में किए जाने की योजना है।

इस बार उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक हिंसक घटनाएं हुईं और वहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ऐसे वक्तव्य दिए जो एक राज्य के मुख्यमंत्री को शोभा नहीं देते। उन्होंने कहा कि वे ‘गजवा-ए-हिंद' का नारा बुलंद करने वालों के नर्क के टिकिट कटवा देंगे। यह ‘गजवा-ए-हिंद' की बात कहां से आ गई? भारतीय मुसलमानों का एक वर्ग ‘आई लव मोहम्मद' का नारा लगा रहे हैं, ना कि गजवा... गजवा का नारा, जो तालिबानी किस्म के लोगों द्वारा लगाया जाता है। मगर हिंदू दक्षिणपंथी पूरे मुस्लिम समुदाय को इसके लिए कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। वैसे भी गजवा ए हिंद का कुरान में कोई जिक्र नहीं है। एक हदीस, जिसके असली होने में संदेह है, में इस शब्द का जिक्र है मगर उसमें भी हिंद से आशय बसरा से है भारत से नहीं। पाकिस्तान में कई कट्टरपंथी यह दावा करते हैं कि भारत के खिलाफ हर युद्ध गजवा है।

योगी ने यह भी कहा कि ‘आई लव मोहम्मद' वाले पोस्टर अराजकता के हालात बनाने के लिए लगाए जा रहे हैं। उन्होंने हिंदुओं से हिंदू विरोधी और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से सावधान रहने को कहा...(इंडियन एक्सप्रेस, मुंबई संस्करण, 29 सितंबर पृष्ठ 6)। यह भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति नफरत पैदा करने का निकृष्टतम उदाहरण है। इस नारे से अराजकता कैसे उत्पन्न हो सकती है? यह नारा किस तरह से राष्ट्रविरोधी है, यह समझ के परे है। उनके वक्तव्य लोकतांत्रिक मर्यादाओं के विपरीत हैं, जिनके अंतर्गत हमें अपनी भावनाएं शांतिपूर्ण ढंग से व्यक्त करने का अधिकार है।

‘आई लव मोहम्मद' का पूरा मामला मुसलमानों को आतंकित करने और उन्हें हाशिए पर पटकने के लिए उपयोग किया जा रहा है। अपने पैगम्बर के प्रति स्नेह की इस प्रकार की अभिव्यक्ति पूरी तरह अभिव्यक्ति की आजादी के लोकतांत्रिक अधिकार की सीमाओं के अंदर है। जैसे पाकिस्तान में कुछ तालिबानी तत्व दावा करते हैं कि भारत के साथ हर भिड़ंत गजवा...है, वहीं हमारे प्रधानमंत्री भी मसलों को उसी दिशा में ले जा रहे हैं। क्रिकेट में पाकिस्तान पर विजय के बाद उन्होंने कहा कि यह आपरेशन सिंदूर का ही हिस्सा है।

ऐसे हालातों में मुस्लिम समुदाय को किस तरह की प्रतिक्रिया करनी चाहिए? इस तरह के शांतिपूर्ण जुलूस निकालना एकदम उचित है। इसके विपरीत हैं रामनवमी के जुलूस, जिनमें डीजे पर तेज संगीत बजता है और मस्जिदों पर भगवा झंडा लहरा दिया जाता है! हमारे कई हिंदू उत्सवों का सशस्त्रीकरण किया जा रहा है! इरफान इंजीनियर और नेहा दाभाड़े ने अपनी पुस्तक ‘वेपनाईजेशन ऑफ हिंदू फेस्टिविल्स' में अपनी मैदानी जांच-पड़ताल के माध्यम से बताया है कि विशेषकर रामनवमी के जुलूस के जरिए मस्जिदों और मुस्लिम बहुल इलाकों के आसपास अफरातफरी का माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसी सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि मुस्लिम उत्सवों का दानवीकरण किया जा रहा है। "मिलाद-उन-नबी" को ‘आई लव मोहम्मद' के माध्यम से दानवीकरण किया जाना इसका एक दुःखद उदाहरण है।

मुस्लिम उत्सवों के प्रति ऐसी नफरत भरी प्रतिक्रिया से, जैसा हाल के समय में हो रहा है, दिलों में घृणा बढ़ती है, समुदायों का ध्रुवीकरण होता है और बंधुत्व के मूल्यों का अवमूल्यन होता है जो भारतीय संविधान का अभिन्न अंग है। साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा जिस तरह के वक्तव्य दिए जा रहे हैं, वे संवैधानिक नैतिकता के विपरीत हैं। मुस्लिम समुदाय को हिंदू साम्प्रदायिक तत्वों को हिंसा प्रारंभ करने का कोई बहाना उपलब्ध नहीं कराना चाहिए, जिसके जरिए वे उन पर आक्रमण कर सकें या उनका और अधिक दानवीकरण कर सकें।

(मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे लेख का हिंदी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया ने किया है, लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सेंटर फॉर स्टडी ऑफ़ सोसाइटी एंड सेकुलरिज्म के अध्यक्ष हैं।)

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