Modi Sarkar : मोदी राज के 7 साल में रचे गए वो शब्द जिन्होंने देश को झोंक दिया आर्थिक अवसाद और धर्मांधता की आग में
(2014 से घृणा और झूठ की नई शब्दावली की रचना कर रही मोदी सरकार)
दिनकर कुमार का विश्लेषण
Modi Sarkar : जिस नाजी जर्मनी के साथ आरएसएस-भाजपा का गर्भनाल जुड़ा हुआ है उसके नेता हिटलर (Hitler) के प्रचार सचिव गोयबल्स का मानना था कि अगर एक झूठ को सौ बार चिल्लाकर बोला जाए तो वह सच से भी अधिक ताकतवर बन जाता है। अपने आदर्श के मूलमंत्र का अनुकरण करते हुए मोदी-शाह और उनके गिरोह के तमाम नेता 2014 से घृणा और झूठ की नई शब्दावली की रचना करते रहे हैं। वे जान बूझकर झूठ बोलते हैं, मुस्लिमों के खिलाफ जहर उगलते हैं, अपनी आलोचना करने वालों को सीधे देशद्रोही कहकर संबोधित करते हैं और ऐसा करते हुए वे संदेश देते हैं कि हम तो जो मन में आएगा बोलेंगे ही चूंकि हमारे पास सत्ता है, तुम लोगों को जो उखाड़ना हो उखाड़ लो। बिकी हुई मीडिया उनके सुर में सुर मिलाती रहती है और व्हाट्सएप विश्वविद्यालय के जाहिल इन झूठों को विद्युत रफ्तार से प्रसारित कर पूरे देश के जनमानस में चौबीस घंटे चरस बोने में जुटे रहते हैं।
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने आरोप लगाया है कि साल 2014 में नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार बनने से पहले 'लिंचिंग' (Lynching) शब्द सुनने में नहीं आता था। राहुल ने ट्वीट करते हुए हैशटैग 'थैंक्यू मोदी जी' लिखा। उन्होंने लिखा, ''2014 से पहले 'लिंचिंग' शब्द सुनने में भी नहीं आता था।
ऐसे अनेक शब्द हैं जो मोदी राज (Modi Govt) में ही वजूद में आए हैं और जो घृणा एवं विध्वंस के परिचायक बन चुके हैं। इन शब्दों का इस्तेमाल लोकतंत्र को पंगु बनाने, मुसलमानों और असहमत लोगों को सबक सिखाने और इतिहास को विकृत करने के लिए किया जाता रहा है। ऐसे ही कुछ शब्दों की बानगी पेश है:
मॉब लिंचिंग
मोदी राज में देश के कई हिस्सों में धर्म के नाम पर मॉब-लिंचिग (Mob Lynching) की घटना घटित हुई हैं। इन लिंचिंग की घटनाओं मे मुख्यत: गौरक्षा के नाम पर लिंचिग हुई हैं। दादरी के मोहम्मद अख्लाक (Mohd. Akhlaq) को बीफ़ खाने के शक में भीड़ द्वारा ईंट और डंडों से पीटकर मार डालने की घटना से लेकर अलवर के रकबर खान को गाय की तस्करी करने के शक में मार डालने की घटना तक अनेक घटनाएं सामने आ चुकी हैं। 50 प्रतिशत लिंचिंग मुसलमानों की हुई जबकि 20 प्रतिशत मामलों में शिकार हुए लोगों की धर्म जाति मालूम नहीं हो सकी। वहीं 11 फीसदी दलितों को ऐसी हिंसा का शिकार होना पड़ा। गोरक्षकों ने हिंदुओं को भी नहीं छोड़ा। 9 फीसदी मामलों में हिंदुओं को भी शिकार बनाया गया। जबकि आदिवासी एवं सिखों को भी 1 फीसदी मामलों में शिकार होना पडा़। संघी गिरोह खुलकर लिंचिंग को प्रोत्साहन देता रहा है और हत्यारों को सम्मानित करता रहा है।
अर्बन नक्सल
मोदी राज में लिबरल और वामपंथी बुद्धिजीवियों को दुश्मन माना जाता रहा है चूंकि वे मोदी सरकार के कुकर्मों पर सवाल उठाते रहे हैं। ऐसे बुद्धिजीवियों को दंडित करने के लिए कभी पेगासस (Pegasus) की मदद ली जाती है तो कभी उनको फर्जी मामलों में फंसाकर जेल में बंद कर दिया जाता है। ऐसे विचारकों का चरित्र हनन करने के लिए अर्बन नक्सल (Urban Naxal) का सम्बोधन मोदी गिरोह ने तैयार किया है।
रामजादे हरामजादे
संघी-भाजपाई (RSS-BJP) खुद को राम की संतान मानते हैं और शेष को हराम की औलाद समझते हैं। इस फर्क को समझाने के लिए संघी भाजपाई नेता भाषणों में खुद को रामजादे कहते हैं और दूसरों को हरमजादे कहते हैं। ऐसा कहते हुए स्वाभाविक रूप से उनके निशाने पर मुसलमान होते हैं।
श्मशान कब्रिस्तान
मुसलमानों के खिलाफ नफरत ही संघी गिरोह की राजनीति की ईंधन है। संघी नेता अपने भाषणों में धार्मिक चरस बोने के लिए अक्सर 'श्मशान-कब्रिस्तान' शब्दों का प्रयोग करते हैं। उनका मकसद साफ होता है कि सिर्फ उनके समर्थकों को ही जीने का अधिकार है, शेष लोगों को जीने का कोई अधिकार नहीं है।
अवार्ड वापसी गैंग
भीड़ हत्या के खिलाफ जब देश के शीर्ष लेखकों ने साहित्य अकादमी पुरस्कार को लौटा दिया तो इसे अपना अपमान मानकर मोदी गिरोह ने ऐसे लेखकों की खिल्ली उड़ाने के लिए जिस सम्बोधन का ईजाद किया उसे अवार्ड वापसी गैंग कहा गया।
अच्छे दिन
2014 के आम चुनावों में नरेंद्र मोदी का पसंदीदा नारा था: अच्छे दिन आने वाले हैं। असल में यह नारा इस देश के लिए एक दुःस्वप्न साबित हुआ। बाद में भाजपाई पिंड छुड़ाने के लिए कहने लगे कि यह चुनावी जुमला था। पिछले शासन के तहत कथित भ्रष्टाचार, निराशा और भ्रम से बचाने का वादा कर मोदी सरकार इसी नारे के सहारे सत्ता तक आई और उसके बाद इस नारे का इस्तेमाल एक मज़ाक के रूप में होने लगा।
देशद्रोही
अगर सबसे उत्साही मोदी अनुयायियों पर विश्वास किया जाए, तो भारत बर्बाद हो चुका है। यह देशद्रोही व्यक्तियों से भरा हुआ है। मोदी के मंत्री गिरिराज सिंह के अनुसार लगभग 69% भारतीय देशद्रोही हैं।
सिंह की देशद्रोही की प्रारंभिक परिभाषा है - जिन्होंने 2014 के चुनाव में मोदी का समर्थन नहीं किया था। बाद में इस शब्द के तहत राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, कॉलेज के प्रोफेसरों, मीडिया कर्मियों, बॉलीवुड सितारों और यहां तक कि मृतक सैनिकों के परिजनों को भी शामिल किया गया।
इस बीच सिंह ने अब उदारतापूर्वक उन लोगों को शामिल किया है जो उनके आका की राजनीतिक रैलियों में शामिल नहीं होते हैं।
फेक न्यूज
भारत में अब हर दिन एक मूर्ख दिवस है। लेकिन 1 अप्रैल के विपरीत, यह अब मज़ेदार नहीं है।
विकृत तस्वीरें, छेड़छाड़ किए गए वीडियो, निर्मित उद्धरण - भाजपा के कुख्यात आईटी सेल ने पूरे भारत में इसका बीड़ा उठाया है, केवल अन्य राजनीतिक संगठनों के लिए विधिवत पालन करना और आगे बढ़ाना। यहां तक कि वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने भी राष्ट्रीय टेलीविजन पर अपनी बात रखने के लिए फर्जी खबरें फैलाना शुरू कर दिया है।
सर्जिकल स्ट्राइक
जम्मू-कश्मीर के उरी में अपने सैन्य अड्डे पर एक आतंकवादी हमले में अपने सैनिकों की मौत के शोक में पाकिस्तान के साथ सीमा पार आतंकवादी ठिकाने पर भारतीय सेना के पिन-पॉइंट हमले ने एक देश को शोक में डाल दिया। सितंबर 2016 के ऑपरेशन ने बॉलीवुड में अपनी जगह बना ली है। सरकार अब कहती है कि उसने पिछले पांच वर्षों में ऐसी तीन सर्जिकल स्ट्राइक की हैं।
किसी भी आश्चर्यजनक, उच्च प्रभाव वाले कदम को अब जल्दी से "सर्जिकल स्ट्राइक" करार दिया जाता है।
नोटबंदी
"यह एक सर्जिकल स्ट्राइक है जो प्रधानमंत्री ने काले धन, आतंकवाद के वित्तपोषण और नशीली दवाओं के धन पर किया है।"
वह नवंबर 2016 में भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर थे, जिन्होंने मोदी द्वारा उस महीने की शुरुआत में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों पर प्रतिबंध लगाने के बाद कहा था।
इस नाटकीय कदम का उद्देश्य काला धन का सफाया करना, डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना, वित्तीय समावेशन की सहायता करना, जम्मू-कश्मीर में पथराव की घटनाओं को कम करना, आतंकवाद को कम करना, प्रदूषण पर अंकुश लगाना था। , विमुद्रीकरण अंततः सर्जिकल स्ट्राइक जैसा ही था। सैन्य कदम सीमा पार आतंकवादी ठिकानों को बर्बाद करने के लिए था। आर्थिक कदम ने भारत की अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से को बर्बाद कर दिया।