Uniform Civil Code लागू करेंगे धामी, लेकिन क्या राज्य बना सकता है ऐसा कोई कानून, जानिए क्या है नियम
Uniform Civil Code लागू करेंगे धामी, लेकिन क्या राज्य बना सकता है ऐसा कोई कानून, जानिए क्या है नियम
Uniform Civil Code : पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) उत्तराखंड के 12वें मुख्यमंत्री के रूप में कल यानि बुधवार 23 मार्च को शपथ लेंगे। उत्तराखंड (Uttarakhand) में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार खत्म होने से पहले उन्होंने कहा था कि सरकार बनते ही राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) लागू किया जाएगा और इसका मसौदा तैयार करने के लिए कानूनी विशेषज्ञों, वरिष्ठ नागरिकों और बुद्धिजीवियों की हाईलेवल कमेटी का गठन किया जाएगा। अब शपथ ग्रहण से पहले उन्होंने उसी वादे को दोहराया है। धामी ने कहा कि वह भाजपा के सारे वादों को पूरा करेंगे जिनमें यूनिफॉर्म सिविल कोड भी शामिल है।
धामी ने सोमवार 21 मार्च को भाजपा (BJP) विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद कहा कि हम तमाम प्रतिबद्धों को पूरा करेंगे जो हमने जनता से चुनाव से पहले किए थे। यूनिफॉर्म सिविल कोड भी इनमें से अहम है, जिसे हम पूरा करेंगे।
आइए जानते हैं क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड और क्या कहते हैं कानून व संविधान के जानकार-
यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ प्रत्येक नागरिक को एक समान कानून का अधिकार है। यह एक प्रकार का पंथ निरपेक्ष कानून है। कानून (Law) सभी धर्मों और जातियों के लोगों पर एक समान रूप से लागू होगा। विवाह, तलाक व जमीन जायदाद के बंटवारे में भी सभी धर्मों के लिए एक ही कानून है। यानि यह किसी जाति-पंथ के सभी निजी कानूनों से ऊपर होता है। हालांकि कानून के जानकारों की यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने को लेकर रायें बंटी हुई हैं।
संविधान विशेषज्ञ व लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य कहते हैं कि केंद्र और राज्य दोनों को इस तरह का कानून लाने का अधिकार है क्योंकि शादी, तलाक, विरासत और संपत्ति के अधिकार जैसे मुद्दे संविधान की समवर्ती सूची में आते हैं। लेकिन पूर्व केंद्रीय कानून सचिव पीके मल्होत्रा का मानना है कि केंद्र सरकार ही संसद में जाकर ऐसा कानून ला सकती है।
पीडीटी आचार्य कहते हैं कि राज्य विधानसभा उस राज्य में रहने वाले समुदाय के लिए कानून बना सकता है। इसका मतलब है कि स्थानीय विविधताओं को राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून के माध्यम से पहचाना जा सकता है। वह बताते हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड में व्यक्तिगत कानून-विवाह, तलाक, उत्तराधिकार संपत्ति के अधिकार शामिल हैं।
लेकिन पीके मल्होत्रा कहते हैं कि संविधान का अनुच्छेद 44 पूरे भारत में सभी नागरिकों को संदर्भित करता है इसलिए केवल संसद ही ऐसा कानून बनाने में सक्षम है। गोवा में समान नागरिक संहिता होने के सवाल पर मल्होत्रा कहते हैं कि उनकी समझ के अनुसार गोवा के भारत का हिस्सा बनने से पहले से ही कानून अस्तित्व में था।
कानूनी मामलों के जानकार व सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता रविंद्र गड़िया इस मसले को लेकर कहते हैं कि 'हमारे संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन सूचियां हैं। संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। शादी-विवाह, उत्तराधिकार कानून आदि समवर्ती सूची में आते हैं। समवर्ती सूची में कानून राज्य भी बना सकता है और केंद्र भी बना सकता है। बहुत सारे मुद्दे ऐसे हैं जिनपर राज्य कानून बना सकता है लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड में हिन्दू मैरीज एक्ट, क्रिश्चियन मैरीज एक्ट आदि नहीं होंगे बल्कि एक कानून होगा। सवाल यह है कि क्या सारे केंद्रीय कानूनों को हटा देंगे। दूसरा यह कि क्या आप ऐसा कानून बना लेंगे जो उन सब कानूनों की भरपाई कर लेगा। प्रैक्टिकली दिक्कत यही है। अगर आप कहेंगे कि हम हिंदू मैरीज एक्ट या मुस्लिम मैरीज एक्ट में संशोधन कर लेंगे तो फिर वह यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट कैसे रह जाएगा। यूनिफॉर्म सिविल कोड आप बनाएंगे भी राज्य के स्तर पर तो वह लगभग-लगभग एक पॉलिसी स्टेटमेंट होगा जो आखिरकार अप्रूवल के लिए आपको राष्ट्रपति के पास भेजना पड़ेगा।'
संविधान के अनुच्छेद 44 में यह प्रावधान है कि राज्य भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड (एक समान नागिरक संहिता) को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा। मुख्यमंत्री धामी ने शनिवार को कहा था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड के पैनल में कानूनी विशेषज्ञ, सेवानिवृत्त लोग, बुद्धिजीवी और अन्य हितकारक शामिल होंगे। धामी ने एक वीडियो संदेश में कहा कि समिति के दायरे में शादी, तलाक, जमीन जायदाद और उत्तराधिकार से जुड़े मुद्दे शामिल होंगे।
समान नागरिकता संहिता भाजपा के लगातार चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा रही है। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में एक भाजपा सांसद निशिकांत दुबे को लिखे पत्र में कहा था कि 22वां विधि आयोग इस मुद्दे पर विचार कर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा। 31 जनवरी को लिखे पत्र में रिजिजू ने कहा था कि ये विषय बेहद गंभीर और संवेदनशील है।
पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी लोकसभा में 10 मार्च को पूछे गए एक सवाल के जवाब में जानकारी दी थी कि 22वां विधि आयोग इस मामले पर विचार कर सरकार को रिपोर्ट देगा। इससे पहले भी 21वां विधि आयोग इस मुद्दे पर विचार कर चुका है। लेकिन रिपोर्ट देने से पहले ही रविशंकर प्रसाद का कार्यकाल समाप्त हो गया था। विस्तृत शोध और दो वर्षों में कई परामर्शों के बाद 21वें विधि आयोग ने भारत में पारिवारिक कानूनों में सुधार पर एक परामर्श पत्र जारी किया था। कानूनी पैनल जटिल मुद्दों पर सरकार को सलाह देता है।