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राजनीति

मायावती ने फिर खेला सोशल इंजीनियरिंग वाला कार्ड, क्या 2007 जैसा परिणाम दोहरा पाएंगी ?

Janjwar Desk
16 Jan 2022 11:42 AM IST
UP Politic : अखिलेश से नाराज आजम खान पर मायावती भी मेहरबान, मायावती के ट्वीट से सियासी अटकलों का बाजार गरम
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UP Politic : अखिलेश से नाराज आजम खान पर मायावती भी मेहरबान, मायावती के ट्वीट से सियासी अटकलों का बाजार गरम 

UP Election 2022 : मायावती ने बसपा की पहली सूची में दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण उम्मीदवारों को तवज्जो दी है। साथ ही पहले की तुलना में ज्यादा जाट उम्मीदवार सियासी मैदान में उतारे हैं।

लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव 2022 ( UP Election 2022 ) होने में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। पहले चरण की चुनावी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यही वजह है कि सभी पार्टियां इसकी तैयारी में जुट गई हैं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद लगभग राजनीति के हाशिये पर जा चुकी बसपा ( BSP ) ने शनिवार को जारी 53 उम्मीदवारों की सूची में एक बार फिर दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण उम्मीदवारों को तवज्जो दी है। बसपा सुप्रीमो मायावती ( BSP Supremo Mayawati ) की इस रणनीति को 2007 की सोशल इंजीनियरिंग ( Social Engineering ) के जरिए फिर से अपने खोए हुए जनाधार को पाने की कोशिश माना जा रहा है।

53 में से 14 प्रत्याशी मुस्लिम

यही वजह है कि मायावती ने ​पहले चरण वाली सीटों पर जमकर मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है। बसपा ने पहले चरण के मतदान को लेकर पश्चिमी यूपी में करीब 26 फीसद टिकट मुस्लिम उम्मीदवारों को दिए हैं। बसपा की ओर से आज जारी 53 उम्मीदवारों की सूची में 14 मुस्लिम प्रत्याशी हैं। खास बात यह है कि सपा और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन के तीन मुस्लिम प्रत्याशियों के सामने बसपा ने मुस्लिम कैंडिडेट ही उतारा है। यह सीटें धौलाना, कोल और अलीगढ़ हैं। 53 सीटों में से जिन 14 सीटों पर मायावती ने मुस्लिम उम्मीदवारों की फील्डिंग की है उनमें अलीगढ़, कोल, शिकारपुर, गढ़मुक्तेश्वर, धौलाना, बुढ़ाना, चरथावल, खतौली, मीरापुर, सीवाल खास, मेरठ दक्षिण, छपरौली, लोनी और मुरादनगर खास शामिल है।

दलित और अति पिछड़ों को मिला सबसे ज्यादा टिकट

बसपा हमेशा से दलितों की पार्टी रही है। कांशीराम ने बहुजन समाज को अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए एक मंच दिया था। बाद में मायावती ने समीकरण बदला और पार्टी को बहुजन से सर्वजन तक लेकर गईं। 53 उम्मीदवारों में करीब 34 फीसदी दलित व पिछड़े उम्मीदवारों को टिकट आवंटित किया है। गड़ेरिया वर्ग से भी दो उम्मीदवारों को उतार कर निचली जाति को सत्ता में भागीदारी का बड़ा संदेश देने की कोशिश की गई है। पार्टी ने 18 दलित समाज के उम्मीदवारों पर भरोसा जताया है। वैसे भी इस वोट बैंक पर मायावती अपना अधिकार हमेशा से मानती आई हैं। दलित समाज का वोट भी उन्हें हर चुनाव में मिलता रहा है।

ब्रहा्मण और जाट वोट बैंक को साधने की कोशिश

इस बार मायावती ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट मतदाताओं को साधने का भी पूरा प्रयास किया है। पार्टी की ओर से 10 जाटों को टिकट दिया गया है। इस इलाके में जाट वोटरों की संख्या काफी ज्यादा है। ये मतदाता किसान आंदोलन के बाद भाजपा से नाराज हैं। बसपा अब उन्हें अपनी तरफ जोड़ना चाहती है। बसपा सुप्रीमो मायावती दोबारा सत्ता पाने के लिए 2007 में हुए विधानसभा चुनाव की तरह ही इस बार भ्ज्ञी ब्राह्मण वोट बैंक को अपने पक्ष में करना चाहती हैं। इसके लिए मायावती ने अपने विश्वस्त और उत्तर प्रदेश के प्रमुख ब्राह्मण चेहरे सतीश मिश्रा को जिम्मेदारी सौंपी है। पहली सूची में उन्होंने 15 सवर्णों को टिकट दिए हैं इनमें 9 ब्राह्मण चेहरे शामिल हैं। यूपी में करीब ब्राह्मण किसी भी पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने का दम रखते हैं। इसलिए मायावती ब्राह्मण वोट बैंक को साधकर अपने पक्ष में करना चाहती हैं ताकि लखनऊ तक पहुंचने का रास्ता सुगम हो सके।

कुल मिलाकर मायावती 2007 में भी इस तरह के सोशल इंजीनियरिंग का इस्तेमाल कर चुकी हैं। तब बसपा ने सोची समझी रणनीति के तहत उम्मीदवारों की घोषणा चुनाव से लगभग एक साल पहले ही कर दी थी। तब पार्टी ने करीब 86 ब्राह्मणों को टिकट दिया था। जिसका फायदा मायावती को मिला और बसपा ने 2007 के विधानसभा चुनावों में 30 फीसदी वोट पाकर 206 सीटें जीती थीं। इसमें 41 ब्राह्मण उम्मीदवार भी शामिल थे। मायावती ने 15 ब्राह्मण विधायकों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल करके मंत्री भी बनाया था। इस बार भी बसपा सुप्रीम मायावती ने अपने जन्मदिन के अवसर पर पहचे चरण में 58 सीटों में 53 पर पार्टी प्रत्याशियों की सूची जारी की है। शेष 5 सीटों पर उम्मीदवार जल्द घोषित किए जाएंगे। मायावती ने 15 सवर्ण, 15 दलित और 14 मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेला है। अब सवाल यह है कि क्या वे 2007 वाला प्रदर्शन अपने इस फार्मूले पर दोहरा पाएंगी।

2007 में भाजपा और कांग्रेस दोनों कमजोर थी

दरअसल, 2007 में बसपा को सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले तहत ब्राह्मणों का वोट इसलिए मिल गया था, क्योंकि उस समय यूपी में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही कमजोर थीं। ब्राह्मण परंपरागत तरीके से कांग्रेस और भाजपा का ही वोट बैंक रहा है। यूपी में नब्बे के दशक में दलित और पिछड़ा वर्ग की राजनीति के उभार से कांग्रेस काफी कमजोर हो गई थी, जबकि यहां भाजपा का पहले से ही बहुत ज्यादा जनाधार नहीं था। ब्राह्मण मतदाताओं पर भाजपा की अच्छी पकड़ 2014 के बाद हुई है। 2019 लोकसभा में तो 82 फीसदी ब्राह्मणों ने भाजपा को वोट किया था।

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