बांदा दलित महिला हत्याकांड में चौंकाने वाले खुलासे, आटाचक्की में सिरकटी लाश मिलने के बाद परिवार ने लगाये थे गंभीर आरोप
बांदा दलित महिला हत्याकांड में फैक्ट फाइंडिंग टीम ने किये चौंकाने वाले खुलासे, आटाचक्की में सिरकटी लाश मिलने के बाद परिवार ने लगाये थे गंभीर आरोप
बांदा । यूपी के बांदा जनपद के पतौरा में दलित महिला की बलात्कार के बाद सर काटकर नृशंसतापूर्ण तरीके से हत्या की घटना सामने आयी थी, जिसे पुलिस द्वारा दुर्घटना बताया गया था। इस मामले में अब जातिगत अत्याचार की प्राथमिक फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट सामने आयी है, जिसमें कई खुलासे किये गये हैं। दलित महिला के साथ जघन्यता की यह वारदात 30 अक्टूबर को घटित हुयी थी।
दलित महिला के बलात्कार के बाद नृशंसता से मारे जाने के बाद जो फैक्ट-फाइंडिंग टीम गठित हुयी उसके द्वारा तैयार रिपोर्ट अलग अलग समूहों के वकीलों और मानवाधिकार संरक्षकों के एक दल के द्वारा एकत्रित किए गए तथ्यों पर आधारित है, जिन्होंने विभिन्न स्रोतों, जैसे पीड़ित के परिवार का बयान, गवाह, गाँव में पड़ोसियों का बयान और केस से जुड़े अतिरिक्त मीडिया स्रोतों और कानूनी दस्तावेज आदि से जमा किए हैं। इस रिपोर्ट में स्थापित तथ्यों एक सक्षम जांच समिति द्वारा एक स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की अवश्यकता को इंगित करते हैं। इस फैक्ट-फाइन्डिंग के लिए फील्ड विज़िट 23 नवंबर से लेकर 26 नवंबर 2023 तक की गई थी और इसमें मृतक के घर और गाँव तथा बांदा न्यायालय का दौरा शामिल था। मृतका का नाम गोपनीय रखा गया है।
घटनाक्रम के मुताबिक एक चालीस साल की दलित महिला के साथ कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार किया गया और बेरहमी से उनका सर काट दिया गया। वे आरोपी के आटे की मिल में नग्न पाई गईं। उनका कटा हुआ हाथ उनके शरीर पर रखा और उनका कटा हुआ सर पास में पड़ा पाया गया। यह प्रथमदृष्ट्या, एक जातिगत अत्याचार, सामूहिक बलात्कार और हत्या का मामला था, जो कि उच्च जाति से संबंध रखने वाले “शुक्ला परिवार” द्वारा किया गया था, जहाँ महिला और उनके पति काम करते थे।
जांच प्रक्रिया में भी कई कमियाँ पाई गईं। जांच दल का आरोप है कि यह स्पष्ट रूप से पुलिस द्वारा दुर्भावनापूर्ण इरादे और जानबूझकर की गई लापरवाही की ओर इशारा करता है जिसका उद्देश्य जांच को भटकाना और इस जघन्य अपराध के आरोपियों को बचाना मालूम होता है। आरोपी क्षेत्र के प्रभावशाली सामाजिक एवं राजनीतिक व्यक्ति हैं जिनका कथित तौर पर सत्तारूढ़ दल से करीबी संबंध भी है।
फैक्ट फाइंडिंग टीम की खोजों का सार
1. इस अपराध से दो तरह के बयान निकल कर आ रहे हैं- एक तरफ मृतका के परिवार वाले आरोप लगा रहे हैं कि उसका सामूहिक बलात्कार तथा हत्या हुई, और दूसरी तरफ आरोपियों का कहना है कि उसकी मौत आटा चक्की में एक हादसे से हुई। पुलिस की जांच में बिना किसी निष्पक्ष और उचित पड़ताल के आँखें बंद करके आरोपी के बयान को मान लिया गया है।
2. अपराध के स्थान की तस्वीरों, मृतका के शरीर की स्थिति और आटाचक्की के आसपास या शरीर पर खून के जमाव या छीटों के न होने से ये पता चलता है कि आटा चक्की में फँसकर मरने की कहानी गलत है।
3. एफआईआर में इस कथित अपराध की गंभीरता को दर्शाते बहुत सारे महत्त्वपूर्ण खंडों का उल्लेख नहीं है जैसे कि आईपीसी की धारा 376A और 376D। ऐसा लगता है कि पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने के वक़्त ऐसे जानबूझ कर किया गया था।
4. नामित तीन में दो आरोपियों को अब तक गिरफ्तार नहीं किया है और ऐसा लगता है कि वे इस जांच को प्रभावित करने में सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं। चूंकि अपराध के स्थान का स्वामित्व अभियुक्तों के पास है और फैक्ट-फाइंडिंग टीम द्वारा ली गई तस्वीरों से यह पता चलता है कि उसे पुलिस द्वारा उचित रूप से सील नहीं किया गया है, तो अपराध स्थल के साथ छेड़छाड़ और सबूत मिटाने की आशंका है। तीसरे आरोपी को सुनियोजित तरीके से कमतर अभियोगों के तहत गिरफ्तार किया गया है, जो जन दबाव को कम करने, मामले को कमजोर करने तथा जाँच और प्रचलित घटनाक्रम को नया रुख देने के लिए लिया गया कदम प्रतीत होता है।
5. अभी तक की गई जांच को देखकर लगता है कि इसे पुलिस द्वारा आरोपियों के “हादसे” वाले कथन के हिसाब से तोड़ा-मरोड़ा गया है और यहाँ तक कि आरोपियों और जांच निकाय के बीच मिलीभगत भी दिखाई देती है, जिससे कि अपराध की जघन्यता और आरोपियों की भूमिका को कमतर साबित किया जा सके।
पीड़िता की सामाजिक प्रोफाइल
पीड़िता का नाम : (अज्ञात रखा गया है)
उम्र: 40 साल
पति और शिकायतकर्ता का नाम: सोहन बाबू, उम्र 46 वर्ष
बच्चे और गवाह : प्रियंका (20), नीरज (16), रोहित (10)
मृतक की जाति : चमार (अनुसूचित जाति)
अभियुक्त/कथित अपराधियों के नाम: राजकुमार शुक्ला, बउवा शुक्ला, रामकृष्ण शुक्ला, 2 अज्ञात
कथित अपराधियों की जाति: ब्राह्मण
जांच अधिकारी : नितिन कुमार, डीएसपी, सर्किल कार्यालय (सीओ) नरैनी।
रिपोर्टिंग अधिकारी: अंकुर अग्रवाल, एसपी बांदा।
घटना
31 अक्टूबर 2023 को उत्तर-प्रदेश के बांदा के पतौरा गांव में जातिगत अत्याचार का एक भयानक मामला हुआ, जहां 40 वर्षीय दलित महिला ‘स’ के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और बेरहमी से उनकी हत्या कर दी गई और उनका सिर और बायां हाथ कथित तौर पर राज कुमार शुक्ला, बउवा शुक्ला और राम कृष्ण शुक्ला द्वारा काट दिया गया। कथित अपराधी न केवल गांव के शक्तिशाली और प्रभावशाली ब्राह्मण परिवारों से हैं, बल्कि कथित तौर पर सत्तारूढ़ राजनीतिक दल, भारतीय जनता पार्टी के सदस्य भी हैं, जिसने अपराध की गंभीरता के बावजूद न्याय तक पहुंच को असंभव बना दिया है।
मृतका और सोहन वर्मा ग्राम पतौरा, जिला बांदा, उत्तर प्रदेश के निवासी हैं और चमार (अनुसूचित) जाति से हैं। उनके तीन बच्चे हैं, प्रियंका (18), नीरज (15) और रोहित (10)। दिनांक 31.10.2023 को सुबह लगभग 8 बजे वे दोनों बउवा शुक्ला की आटा चक्की पर प्लास्टर का काम करने गये थे। जहां मृतिका और उसका पति रहते हैं वहाँ से आटा चक्की बमुश्किल 100-200 मीटर की दूरी पर है। वे दोपहर करीब 12 बजे वापस आये। दोपहर करीब एक बजे मृतका का पति सोहन वर्मा किसी काम से (सब्जी खरीदने) नरैनी गया था। दोपहर करीब 2:00-2:30 बजे बउवा शुक्ला ने मृतका के फोन नंबर पर फोन किया और प्लास्टर का काम करने के लिए आने को कहा।
लगभग एक घंटे के बाद, ग्रामीणों में से एक और आटा चक्की के करीब रहने वाले रामबहोरी बाबा, प्रियंका के पास गए और उससे उसकी माँ के बारे में पूछा और पूछा कि “वह कहाँ है?” जब प्रियंका ने जवाब दिया कि वह आटा चक्की पर गयी है तो रामबहोरी बाबा ने प्रियंका को तुरंत वहां जाने को कहा। जब वह पहुँची तो उसने देखा कि चक्की का दरवाजा बंद है। हालाँकि उसने किसी से दरवाज़ा खोलने के लिए बहुत आवाज दी, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया। जब उन्होंने आख़िरकार दरवाज़ा खोला, तो उसने अंदर पाँच-छह लोगों को देखा, जिनमें से दो तुरंत भाग गए। बाकी तीन थे राजकुमार शुक्ल, बउवा शुक्ल और रामकृष्ण शुक्ल। पहले तो उन्होंने उसे और अंदर नहीं जाने दिया और धक्का दे दिया जिससे वह गिर पड़ी। जब उसने दोबारा कोशिश की तो उसने अपनी मां का शव फर्श पर देखा और उसे सदमा लगा। उसके ब्लाउज और पेटीकोट गायब थे। उसका बायाँ हाथ कटा हुआ और उसकी छाती पर रखा हुआ था। शुरू में, उसे अपनी माँ का सिर नहीं मिल रहा था। उनका सिर कटा हुआ था और शरीर से कुछ दूरी पर पड़ा था।
उसने जो देखा उसके बाद वह बाहर आई और रोने लगी। घटनास्थल के आसपास और भी ग्रामीण एकत्र हो गए। उसने अपने पिता को फोन किया और उन्हें बताया कि क्या हुआ था। कुछ देर बाद पुलिस मौके पर पहुंची। प्रियंका का कहना है कि उन्होंने उनके साथ कुत्ते को देखा लेकिन कुत्ते को नहीं छोड़ा गया और उसे पुलिस कार/वैन में रखा गया। उसने सर्कल अधिकारी नितिन कुमार (जो पुलिस उपाधीक्षक हैं और एफआईआर में नामित जांच अधिकारी भी हैं) को यह कहते हुए सुना "पंचनामा कराओ, जल्दी करो"। पुलिस के बाद उसके पिता मौके पर पहुंचे। बाद में, उसका भाई नीरज (जो हिंदी में लिख सकता है), और उसके मामा (मां के भाई), 31.10.2023 को रात लगभग 10 बजे प्राथमिकी दर्ज करने के लिए नरैनी गए। पुलिस को हस्तलिखित पत्र देने का प्रयास किया गया। नीरज 10वीं कक्षा में पढ़ता है और अपने चाचा के साथ रहता है। चूँकि नीरज नाबालिग था, और उसके पिता, मृतिका का पति, उनके साथ नहीं थे, पुलिस ने उन्हें अगली सुबह नीरज के पिता के साथ आने के लिए कहा। अगले दिन 01.11.2023 को दोपहर 3:50 बजे एफआईआर दर्ज की गई।
पुलिस जांच
जब ‘स’ का परिवार समर्थन जुटाने और पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करने के लिए संघर्ष कर रहा था, तो मामले की जांच कर रहे डीएसपी, नरैनी के सीओ नितिन कुमार कथित तौर पर गांव पहुंचे और ग्रामीणों को आश्वस्त किया कि यह घटना आटा चक्की में फँसने की वजह से हुई एक दुर्घटना थी। यहां तक कि उन्होंने मीडिया को भी इस बारे में जानकारी दी और ऐसा लगता है कि कथित अपराधियों को आसानी से बाहर निकालने के लिए गवाहों की जांच शुरू होने से पहले ही वे इस "दुर्घटना" की असंभव कहानी को दोहराते जा रहे थे।
दिनांक 02.11.2023 को पुलिस अधीक्षक अंकुर अग्रवाल ने बांदा पुलिस के ट्विटर हैंडल के माध्यम से जानकारी दी कि प्रारंभिक जांच के बाद यह पाया गया कि यह घटना दुर्घटनावश एस के आटा चक्की में फंस जाने के कारण हुई थी। ये मीडिया ब्रीफिंग न केवल जांच की निष्पक्षता के बारे में आशंकाएं पैदा करती हैं, बल्कि पीड़ित के लिए निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का हनन करती है और इसके अलावा पुलिस मीडिया ब्रीफिंग पर गृह मंत्रालय की 2010 परामर्श का भी उल्लंघन करती हैं।
पुलिस द्वारा बाद की जांच को देखकर भी ये आशंकाएं पैदा होती हैं। ग्रामीणों के मुताबिक, प्रशासन बिना पोस्टमार्टम कराए ही शव को ठिकाने लगाना चाहता था और लोगों के दबाव के कारण ही शव का पोस्टमार्टम अगले दिन कराया गया। जिस जल्दबाजी से शव का पोस्टमार्टम कराया गया, उसे लेकर परिजन और ग्रामीण संदेह में हैं। पोस्टमार्टम के तुरंत बाद, पुलिस ने कथित अपराधियों द्वारा बताई गई उसी कहानी को दोहराया, कि घटना एक दुर्घटना थी। इसके अलावा, फैक्ट-फाइन्डिंग के दौरान जमा की गई गवाही के आधार पर, पुलिस ने 03.11.2023 तक अपराध स्थल को सील नहीं किया, जो कि 31.10.2023 को घटना होने के 3 दिन बाद है।
एफआईआर में तीन कथित अपराधियों पर भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 302 और 376 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी पीओए) की धारा 3(2)(v) के तहत मामला दर्ज किया गया है। एफआईआर की धाराओं में परिलक्षित अपराध की गंभीरता के बावजूद, पुलिस ने कथित अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया, जो न केवल बेदाग घूम रहे थे बल्कि प्रभावशाली ढंग से जांच की दिशा पर दबाव डाल रहे हैं और जांच को गुमराह कर रहे हैं। पोस्टमार्टम हाउस में आरोपी राजकुमार शुक्ला मौजूद था और उसने एक मीडिया रिपोर्टर को बयान दिया कि महिला और उसका पति उसके बटाईदार (भूमिहीन किरायेदार) थे और यह घटना एक दुर्घटना का मामला था।
इसके बाद जो हुआ, जिसकी ज्यादा रिपोर्टिंग भी नहीं की गई, वह घटना से भी अधिक क्रूर है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा निष्पक्ष जांच की जानबूझकर की गई उपेक्षा के कारण गांव और निचली अदालत में निराशाजनक प्रभाव पड़ा है। आरोपियों और कानून-प्रवर्तन एजेंसियों के दबाव के बावजूद, अपराध की गंभीरता के कारण जनता एकजुट हुई और उन्होंने तीनों आरोपियों की तत्काल गिरफ्तारी की मांग की।
लगभग दो सप्ताह तक कोई कार्रवाई न होने के बाद जब सहानुभूतिपूर्ण सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया तो उन्हें शांत करने के लिए, पुलिस ने 16.11.2023 को एक आरोपी राजकुमार शुक्ला को गिरफ्तार कर लिया गया, ऐसा परिवार और ग्रामीणों का आरोप है। लेकिन, जैसा कि गिरफ्तारी ज्ञापन से पता चला है, एफआईआर में उल्लिखित धाराओं के तहत आरोपी को गिरफ्तार करने के बजाय, आरोपों को कमजोर करने के दुर्भावनापूर्ण इरादे से, आरोपी को आईपीसी की धारा 304A, 287, धारा 201 (यानी, लापरवाही के कारण मौत का कारण) और एससी/एसटी पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत गिरफ्तार किया गया।
एफआईआर के अंदर अपराधों को बदलने से यह हुआ कि ‘हत्या’ और ‘बलात्कार’ के मामले में सजा, जो सजा न्यूनतम आजीवन कारावास होती, वह ‘लापरवाही के कारण मौत’ के मामले में घटकर अधिकतम 2 साल की कैद हो गई है और पूरा अपराध जमानती हो गया है। इसके अलावा, अन्य दो आरोपियों को गिरफ्तार करने और पुलिस हिरासत की मांग करने के बजाय (जिससे पुलिस को मामले की सच्चाई सामने लाने के लिए आरोपियों से आगे पूछताछ कर पाती), पुलिस आरोपी के वकीलों की न्यायिक हिरासत की मांग से सहमत दिख रही है, जो एक बार फिर दर्शाता है कि पुलिस परिवार की कहानी की पड़ताल नहीं करना चाहती है।
पुलिस जांच की स्थिति पर उपलब्ध साक्ष्य
❖ 01.11.2023 को गिरवां पुलिस स्टेशन, ग्राम पतौरा, जिला बांदा, उत्तर प्रदेश द्वारा आईपीसी की धारा 302 (हत्या के लिए सजा) और 376 (बलात्कार के लिए सजा) और एससी/एसटी पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v ) (अनुसूचित जाति के सदस्यों के खिलाफ किए गए उन अपराधों के लिए सजा जो आईपीसी के तहत 10 साल या उससे अधिक के कारावास के लिए दंडनीय है) के तहत एफआईआर संख्या 296/2023 दर्ज की गई थी।
आपराधिक कृत्य की गंभीरता कम करना
हालांकि जानकारी के मुताबिक एफआईआर में तीन लोगों को आरोपित किया गया है, लेकिन एफआईआर में सामूहिक बलात्कार की धारा (धारा 376D) और पीड़िता की मृत्यु कारित करने की सज़ा की धारा (धारा 376A) का उल्लेख नहीं किया गया है। खंड 376A और 376D दोनों में 20 साल या उससे अधिक की कैद से लेकर मौत तक की सजा हो सकती है।
❖ 01.11.2023 को दो डॉक्टरों के पैनल द्वारा पोस्टमार्टम किया गया और पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार इसकी वीडियोग्राफी की गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतक के कपड़े जब्त कर लिए गए हैं, जिसमें एक फटी हुई साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज का एक टुकड़ा (फटा हुआ) शामिल है। जननांगों की जांच में कहा गया है - कोई असामान्यता नहीं पाई गई (NAD), और 2 वजाइनल स्वैब स्लाइड संरक्षित की गई हैं। मृत्यु का कारण मृत्यु पूर्व चोटों से लगा सदमा और रक्तस्राव है।
पोस्ट्मॉर्टेम रिपोर्ट में दर्ज चोटें
➢ शरीर 3 भागों में है।
➢ गर्दन कुचली हुई और खोपड़ी के आधार से कटी हुई (C2 स्तर पर) है।
➢ ठुड्डी के ठीक नीचे 8 सेमी x 3 सेमी आकार का फटा हुआ घाव, दोनों तरफ का जबड़ा दिखाई दे रहा है।
➢ बायां बांह कुचला हुआ और बायीं कोहनी के स्तर पर कट हुआ है... पूरा अग्रबाहु और हाथ समेत।
➢ ....बाईं ओर का फ्रैक्चर
➢ बाईं बांह के मध्य भाग पर 8 सेमी x 3 सेमी आकार की खरोंच मौजूद है।
➢ 1 सेमी x 0.5 सेमी आकार का फटा हुआ घाव बायीं भौंह के पार्श्व ...... के ठीक ऊपर मौजूद है।
❖ फैक्ट-फाइन्डिंग के दौरान एकत्र की गई गवाही के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि 02.11.2023 को, पुलिस बेटी प्रियंका, पति, सोहन वर्मा और बेटे, नीरज (संभवतः आपराधिक प्रक्रिया, 1973 संहिता की धारा 161 के तहत) के बयान लेने आई थी।
❖ 02.11.2023 को बांदा पुलिस ने एक ट्वीट में कहा कि “प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि मौत आटा चक्की में फंसने के कारण हुई है। पोस्टमार्टम में शरीर पर कोई अंदरूनी चोट नहीं मिली है। जांच जारी है।"
घटना के महज 3 दिन और एफआईआर दर्ज करने के 2 दिन के भीतर ही पुलिस ने सार्वजनिक रूप से यह कह दिया है कि यह घटना एक दुर्घटना है, न कि सामूहिक बलात्कार और हत्या का मामला। यह स्पष्ट नहीं है कि इस बिंदु पर जांच की स्थिति क्या थी जिससे पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची और यहां तक कि इस आधार पर उसने एक सार्वजनिक बयान भी जारी किया। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, ये मीडिया ब्रीफिंग न केवल जांच की निष्पक्षता के बारे में आशंकाएं पैदा करती हैं, बल्कि मीडिया को पुलिस ब्रीफिंग पर गृह मंत्रालय की 2010 कर परामर्श का भी उल्लंघन करती हैं, जिसमें कहा गया है कि पुलिस अधिकारियों को अपनी ब्रीफिंग आवश्यक तथ्यों तक ही सीमित रखनी चाहिए और प्रेस के पास चल रही जांच के बारे में आधी-अधूरी, काल्पनिक या अपुष्ट जानकारी के साथ जल्दबाजी में नहीं जाना चाहिए।
पहले 48 घंटों में, घटना के तथ्यों और जांच शुरू हो जाने के अलावा कोई अनावश्यक जानकारी जारी नहीं की जानी चाहिए।
❖ दिनांक 09.11.2023 को सूचक सोहन वर्मा द्वारा पुलिस उप महानिरीक्षक, उत्तर प्रदेश को एक पत्र लिखा गया था, जिसमें पुलिस जांच में कमियों को सूचीबद्ध किया गया था। उनका कोई जवाब नहीं आया है।
❖ घटना की सूचना मिलने के 17 दिन बाद दिनांक 17.11.2023 को पुलिस ने राजकुमार शुक्ला को गिरफ्तार कर लिया। राजकुमार शुक्ला की गिरफ्तारी की जनरल डायरी में ये दर्ज किया गया है कि यह गिरफ्तारी आईपीसी की धारा 302, 376 (जिसके तहत मूल रूप से एफआईआर दर्ज की गई थी) के बजाय आईपीसी की धारा 304A, 287 और 201 और पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत की गई है। अन्य दो आरोपियों की अभी भी गिरफ्तारी नहीं हो सकी है.
विलंब
एफ़आईआर के एक अभियुक्त राजकुमार शुक्ला की गिरफ़्तारी एफ़आईआर दर्ज होने के 17 दिन बाद हुई है और इस संबंध में इस देरी के कारण के बारे में पुलिस द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों में कोई स्पष्टीकरण उपलब्ध नहीं है। इसके बावजूद कि अपराध एक आटा चक्की में हुआ था जो कि आरोपी के ही स्वामित्व और नियंत्रण में है, आरोपियों द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़/नष्ट करने की प्रबल संभावना के बावजूद पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए त्वरित कार्रवाई नहीं की।
अपराध की धाराओं का न्यूनीकरण
17.11.2023 दोपहर 12:11 बजे की जनरल डायरी प्रविष्टि में एफआईआर 296/2023 के अपराधों को आईपीसी की धारा 304A, 287 और 201 और पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v) के रूप में दिखाया जा रहा है, न कि आईपीसी की धारा 302, 376, जिसके तहत मूल रूप से एफआईआर दर्ज की गई थी।
हालांकि कानूनी और प्रक्रियात्मक तौर पर पुलिस के पास जांच पूरी करने और अपने निष्कर्ष पर पहुंचने की स्वतंत्रता है कि किसी घटना पर कौन सी धाराएं लागू होती हैं और एफआईआर में उल्लिखित धाराओं पर टिके रहने का कोई कानूनी आदेश नहीं है, लेकिन फिर भी इस बात का कोई विश्वसनीय स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि जांच की दिशा को हत्या और बलात्कार से बदलकर लापरवाही से मौत, मशीनरी के संबंध में लापरवाहीपूर्ण आचरण और अपराध के सबूतों को गायब करना आदि की ओर क्यों मोड़ दिया गया। जनरल डायरी प्रविष्टि से ऐसा प्रतीत होता है कि जांच अधिकारी ने गिरफ्तारी के समय आरोपी व्यक्तियों द्वारा दी गई कहानी को आंख मूंदकर स्वीकार कर लिया है और तदनुसार अपराधों को बदल दिया है।
उल्लेखनीय है कि जहां पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v) के साथ जोड़े गए हत्या और बलात्कार के अपराध में कम से कम आजीवन कारावास की सजा है, वहीं लापरवाही से मौत का अपराध (खंड 304A आईपीसी) अधिकतम 2 वर्ष की अवधि के लिए कारावास से दंडनीय है। इसके अलावा, धारा 287 आईपीसी (मशीनरी के साथ लापरवाहीपूर्ण आचरण) और धारा 201 आईपीसी (अपराध के सबूतों को गायब करना, या अपराधी को बचाने के लिए गलत जानकारी देना) दोनों गैर संज्ञेय और जमानती अपराध हैं और अधिकतम 6 महीने की सजा के साथ दंडनीय हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अपराध की प्रकृति और गंभीरता को कम करने और आरोपियों को छोटे अपराधों के लिए फंसाने का प्रयास किया जा रहा है।
कहानी बदलना और जांच को गुमराह करना
25.11.2023 और 28.11.2023 को अभियुक्त राजकुमार शुक्ला की ओर से दाखिल जमानत अर्जी पर सुनवाई के लिए मामला बांदा जिला न्यायालय की विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी, अत्याचार निवारण अधिनियम) श्रीमती अनु सक्सेना के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। राज्य ने जमानत का विरोध करते हुए 28.11.2023 को जवाब दाखिल किया। हालाँकि, ऐसा लगता है कि न केवल अपराध के आरोपों को कमजोर करने बल्कि "अपराध" को ही बदलने का प्रयास किया जा रहा है।
जमानत याचिका पर अपने जवाब के पैरा 2 और 3 में, पुलिस ने तर्क दिया है कि, "... जांच के दौरान संकलित साक्ष्यों के आधार पर अपराधों को हत्या और बलात्कार से बदलकर लापरवाही और मशीनरी के साथ लापरवाह आचरण के कारण मौत में बदल दिया गया है।" पुलिस का दावा है कि वह पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों के बयान, राज्य मेडिको-लीगल विशेषज्ञ की राय और स्लाइडों की जांच के आधार पर वैज्ञानिक साक्ष्य आदि पर भरोसा करके इस इस निष्कर्ष पर पहुँची है जो कि अभियुक्तों के हितों के हक में है।
हालांकि किसी और सबूत का उल्लेख नहीं किया गया है, ऐसा लगता है कि पुलिस ने आरोपी के बयानों को जैसा का तैसा स्वीकार कर लिया है। घटना के बारे में शिकायतकर्ता की कहानी की जांच करने के इरादे की स्पष्ट कमी दिखाई देती है।
राज्य ने आगे तर्क दिया है कि जब पुलिस मौके पर पहुंची तो आटा चक्की चल रही थी और उन्होंने गिरफ्तार आरोपी को आटा चक्की के बाहर पाया। राज्य का तर्क है कि आरोपी द्वारा आटा चक्की अवैध रूप से चलाई जाती है और इस कारण जिस क्षेत्र में मोटर और शाफ्ट रखे जाते हैं उसे जानबूझकर अंधेरे में रखा जाता है ताकि वहाँ कुछ दिखाई ना दे । राज्य की दलील यह है कि इसके कारण आरोपी ने आटा चक्की और मशीनरी चलाने में लापरवाही बरती है और इसी लापरवाही के परिणाम स्वरूप मृतक की हत्या हुई है। तदनुसार, एफ.आई.आर आईपीसी की धारा 302 और 376 के तहत एक को आईपीसी की धारा 304A, 287 और 201 के साथ-साथ पीओए अधिनियम की धारा 3(2)(v) में परिवर्तित कर दिया गया है।
फैक्ट-फाइन्डिंग के दौरान एकत्र की गई गवाही के अनुसार, परिवार ने उस स्थान के आसपास, जहां शव या सिर पाया गया था, या दीवारों पर या आटा चक्की पर उस तरह का रक्तपात या खून के छींटे नहीं देखे, जैसा कि अपेक्षित था, अगर उस स्थान पर ही यह दुर्घटना हुई होती । परिवार द्वारा खींची गई घटना की तस्वीरें इस बात की पुष्टि करती हैं। उपरोक्त बातें कथन पर गंभीर संदेह पैदा करती हैं कि यह घटना आटा चक्की में हुई एक दुर्घटना थी और ऐसा शक होता है कि आरोपी द्वारा एक फर्जी अपराध स्थल बनाया गया है । उदाहरण के लिए, कटा हुआ बायां हाथ मृतक की छाती पर पाया गया था।
अन्य दृष्टिगत कमियाँ और कारण जो यह दर्शाते हैं कि जाँच को जानबूझकर कमजोर करने की कोशिश की गई है :
i. अभियुक्त की मेडिकल जांच:
सीआरपीसी की धारा 53A के अनुसार, साथ ही डीजीपी, उत्तर प्रदेश द्वारा दिनांक 17.01.2013 को जारी 2013 के परिपत्र संख्या 3, 8 पैरा 4(ix) के अनुसार, सीआरपीसी की धारा 53A के तहत एक चिकित्सा परीक्षा तुरंत आयोजित की जानी चाहिए। आरोपी को बलात्कार के अपराध में गिरफ्तार किया गया है। चूंकि आरोपी को आईपीसी की धारा 376 के तहत गिरफ्तार नहीं किया गया है, इसलिए ऐसा लगता है कि आरोपी की चिकित्सकीय जांच करने की आवश्यकता को दरकिनार कर दिया गया है। यह स्पष्ट नहीं है कि पुलिस ने किसी आरोपी की मेडिकल जांच करायी है या नहीं।
ii. पीड़िता की मेडिकल जांच
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलता है कि योनि स्वैब स्लाइड को संरक्षित कर लिया गया है। यह स्पष्ट नहीं है कि पुलिस ने फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट के आधार पर या केवल चिकित्सा विशेषज्ञों की राय के आधार पर बलात्कार के अपराध को खारिज कर दिया है। निष्पक्ष जांच से ही पता चल सकता है कि क्या यह सामूहिक बलात्कार का मामला है, जैसा कि पीड़िता के परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया है।
iii. अपराध स्थल और साक्ष्यों को सील करना और संरक्षित करना:
जिस परिसर में अपराध हुआ है, उस परिसर की फैक्ट-फाइन्डिंग टीम ने तस्वीरें लीं जो इस बात को उजागर करती हैं कि पुलिस ने किस तरीके से उस क्षेत्र को सील किया और उसकी घेराबंदी की है। वहीं परिसर के मुख्य द्वार को पुलिस ने सील भी नहीं किया गया है। वास्तव में, फैक्ट-फाइन्डिंग टीम को दी गई गवाहों की गवाही के आधार पर पुलिस ने 03.11.2023 तक, यानी 31.10.2023 को हुई घटना के 3 दिन बाद तक अपराध स्थल को सील नहीं किया था। इससे आशंकाएं पैदा होती हैं कि आरोपी व्यक्तियों द्वारा साक्ष्यों से छेड़छाड़ और उन्हें नष्ट किया गया है, विशेष रूप से चूंकि आटा चक्की और परिसर का स्वामित्व आरोपी व्यक्तियों के पास है। एसओसी का मुख्य प्रवेश द्वार सील कर दिया गया, मगर आटा चक्की का मुख्य दरवाजा सील नहीं किया गया।
फैक्ट फाइंडिंग टीम बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच, चिंगारी संगठन, दलित डिग्निटी एण्ड जस्टिस सेंटर, विद्या धाम समिति, युवा मानव अद्धिकार दस्तावेजीकरण मंच शामिल थे। फैक्ट-फाइन्डिंग दल में दलित डिग्निटी एण्ड जस्टिस सेंटर से जुड़ीं एडवोकेट रश्मि वर्मा, बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच से जुड़े एडवोकेट कुलदीप बौद्ध, विद्या धाम समिति के राजा भैया, चिंगारी संगठन से मोबिना खातून युवा मानव अद्धिकार दस्तावेजीकरण मंच से एडवोकेट वंशिका मोहता और युवा मानव अद्धिकार दस्तावेजीकरण मंच के विपुल कुमार शामिल थे।