दुनिया में सबसे ज्यादा 22 करोड़ से ज्यादा बालिका वधुएं भारत में, हर साल 15 लाख बच्चियां बना दी जाती हैं दुल्हन
यूपी के देवरिया के एक मंदिर में कराई जा रही थी दस वर्षीय बालिका और दस साल के बालक की शादी (file photo)
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
As per a new report brought out by UNICEF, maximum cases of child marriages are observed in South Asia. यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में जितने बाल विवाह होते हैं, उनमें से 45 प्रतिशत से अधिक दक्षिण एशिया के देशों में होते हैं। इस पूरे क्षेत्र में पारंपरिक तौर पर भी बाल विवाह को स्वीकार किया जाता है, पर कोविड 19 के बाद इस सन्दर्भ में स्थिति और गंभीर हो गयी है। इसका कारण आर्थिक तंगी का बढ़ता प्रकोप और बड़े पैमाने पर महामारी के दौरान स्कूलों का बंद होना है। हालां कि ऑनलाइन शिक्षा का प्रबंध किया गया था, पर गरीब परिवारों के लिए हरेक बच्चे के लिए स्मार्टफोन का प्रबंध करना असंभव था। बढ़ती बेरोजगारी ने इस पूरे क्षेत्र में आर्थिक असमानता बढ़ा दी है और अधिकतर आबादी बालिकाओं को बोझ समझती है इसलिए जल्दी से जल्दी शादी कर उसे घर से बाहर करना चाहती है।
भारत, पकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, नेपाल और मालदीव्स में सम्मिलित तौर पर बालिका वधुवों की संख्या लगभग 29 करोड़ है, और इस स्थिति को रोकने के लिए सरकारी प्रयास विफल रहे हैं। यूनिसेफ की दक्षिण एशिया की निदेशक नोला स्किनर ने इसे एक दुखद तथ्य बताया है। बाल विवाह के कारण बालिकाएं शिक्षा से दूर हो जाती हैं, अपने स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पातीं और अपने भविष्य से समझौता करती हैं। बाल विवाह या फिर बालिका वधु बालिकाओं के लिए एक दुखद स्थिति है, इससे केवल एक बालिका पर ही नहीं बल्कि पूरे समाज पर प्रभाव पड़ता है।
दक्षिण एशिया के हरेक देश में क़ानून के अनुसार बालिकाओं के शादी की निचली उम्र सीमा तय की गयी है और इससे कम उम्र में विवाह दंडनीय अपराध है। पर, इस क़ानून की समाज द्वारा धज्जियां उडाई जाती हैं। भारत, बंगलादेश और श्रीलंका में बालिकाओं के विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष, नेपाल में 20 वर्ष, अफ़ग़ानिस्तान में 16 वर्ष और सिंध प्रांत को छोड़कर पूरे पाकिस्तान में 16 वर्ष तय की गयी है। सिंध प्रांत में न्यूनतम उम्र 18 वर्ष है। शुरू से ही इस क़ानून की खुलेआम अवहेलना की जाती रही है, पर कोविड 19 के बाद की आर्थिक त्रासदी ने बाल विवाह की दर को तेजी से बढ़ा दिया है। इस पूरे क्षेत्र में बालिकाओं को एक आर्थिक भार की तरह देखा जाता है और जल्दी से जल्दी शादी कर उन्हें पति के हवाले कर दिया जाता है। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान महिलाओं और बालिकाओं की स्थिति बदतर होती जा रही है, ऐसे में बालिकाओं की जल्दी से जल्दी शादी की जा रही है।
कोविड 19 के दौर में ऑनलाइन शिक्षा का प्रचालन शुरू हो गया और इसने सामान्य समाज में भी अमीर और गरीब के साथ शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बीच गहरी खाई खींच दी। इसके लिए स्मार्टफोन या लैपटॉप की जरूरत थी और इन्टरनेट कनेक्शन की भी। यह सब शहरी क्षेत्र में अमीर और मध्यम वर्ग के परिवार में सहज उपलब्ध रहते हैं, पर गरीबों के पास नहीं। इस कारण गरीबों का एक बड़ा तबका, विशेष तौर पर बालिकाएं, शिक्षा से मरहूम हो गईं। शिक्षा से दूर होते ही बालिकाओं को पूरी तरीके से घर के काम में लगा दिया जाता है, या फिर कच्ची उम्र में की शादी कर दी जाती है। कोविड 19 के दौर के बाद हमारे देश में भी बाल विवाह की परंपरा फिर से व्यापक तरीके से शुरू हो गई।
दुनिया में सबसे अधिक बाल विवाह भारत में होते हैं और यूनिसेफ के वर्ष 2021 के अनुमान के अनुसार देश में बालिका वधुओं की संख्या 22 करोड़ से अधिक है और हरेक वर्ष कम से कम 15 लाख बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह को कानूनों से नियंत्रित करना कठिन है। इस नियंत्रित करने के लिए सामाजिक सुरक्षा के साथ ही बेहतर शिक्षा की जरूरत है। इसके साथ ही कानूनों और उनके अनुपालन को सख्त करने की आवश्यकता है।