महिलाओं पर बदजुबानी करने वाले उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने मांगी माफी

जनज्वार ब्यूरो। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालते ही अपने विवादित बयान "फटी जीन्स" को लेकर चौतरफ़ा विवादों में घिरे तीरथ सिंह रावत ने मीडिया से हुई अनौपचारिक बातचीत के वक्त लोगों से माफ़ी मांगी है। उन्होंने कहा कि उनका ये बयान संस्कारों से जुड़ा मात्र था और अगर उनके इस बयान से किसी का दिल दुखा हो तो वो इसके लिए माफी मांगते हैं। अगर किसी को फटी जीन्स पहननी है तो वह पहने।
बीते दिनों देहरादून में हुए एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की फटी जीन्स पर दिया गया विवादित बयान इंटरनेट मीडिया पर लगातर ट्रोल हुआ और उसपर हज़ारों प्रतिक्रियाएं भी आयी। अब मुख्यमंत्री को कौन बताए 'बातों के तीर वापस नहीं आते'।
एक बार जिस बयान से उन्होंने महिलाओं की भावनाओं को बुरी तरह आहत किया और महिलाओं के पहनावे पर अपनी संकुचित मानसिकता बयां करने के 3 दिन बाद उन्हें याद आया कि उससे किसी की भावना आहत भी हुई होगी।
बेहयाई की हदों को पार करते हुए मुख्यमंत्री रावत का महिलाओं को संस्कारों का पाठ पढ़ाना पहली दफा नहीं हुआ है, मुख्यमंत्री कई बार अलग-अलग गोष्ठियों में महिलाओं पर तंज कसते हुए नज़र आए हैं। बीते दिनों भरी महफ़िल में वे अपने कॉलेज के समय को याद करते हुए अपने साथ पढ़ने वाली एक लड़की का मजाक उड़ाते हुए भी नजर आए थे। जहां बिना बाजू का कपड़ा पहनना उन्हें संस्कारों के खिलाफ नज़र आया था उनकी ये कॉलेज के वक्त की सोच पढ़ाई करने और सत्ता में आने के बाद भी जस की तस है, ज़ाहिर बात है कुर्सी रुतबा बढ़ा सकती है संकुचित सोच नहीं।
आरएसएस से संस्कारों का पाठ पढ़ने वाले मुख्यमंत्री रावत शायद महिलाओं पर तंज कसना बखूबी सीख चुके हैं और इसीलिए ऐसे बयान देते वक्त उन्हें अपने घर की महिलाओं की भी सुध नहीं होती। बीते दिनों उनके दिए विवादित बयान ने न सिर्फ महिला समाज की भावनाओं को आहत किया है बल्कि साथ ही उनके स्वयं के घर की महिलाएं निर्दोष होने के बावजूद लोगों की ट्रोलिंग का शिकार हो रहीं हैं।
उनकी एक एक फोटो और कपड़े पर गौर कर उनपे तंज कसा जा रहा है। उनकी बेटियों के कपड़ों पर भी सवाल उठ रहे हैं। जो व्यक्ति स्वयं अपनी बेटियों को विवादों के घेरे में लाने वाले बयान देने से नहीं हिचकिचाता वो अपने राज्य के महिला अधिकारों की कितनी रक्षा करेगा इसका अंदाज़ा लगाना बहुत आसान है।
माननीय मुख्यमंत्री महिलाओं की फटी जीन्स को बहुत अहम मुद्दा मानते हैं इसके अलावा उन्हीं महिलाओं की स्वास्थ्य व्यवस्था, शिक्षा की उन्हें कोई सुध नहीं है। बता दें कि उत्तराखंड मात्र ऐसा राज्य है जहां एक भी प्रसव आईसीयू केंद्र नहीं है लेकिन ये बात मुख्यमंत्री को फटी जीन्स से कम ज़रूरी लगती है।
जहां संस्कारों से पहले महिलाओं को बचाने के लिए राज्य में गर्भवती महिलाओं का प्रसव हर अस्पताल में पूरी तरह से निशुल्क करने पर ध्यान देना चाहिए वहां उनका ध्यान सत्ता में आते ही लड़कियों की फटी जीन्स पर गया, आख़िर आरएसएस से शिक्षित हुए हैं, ये मुददे तो अहम होंगे ही। गांव में प्रसव पीड़ा से तड़प रही गर्भवती को डेढ़ सौ किलो मीटर तक चलकर अस्पताल पहुंचने वाली महिलाओं पर इनके संघ ने शायद कभी सोचना ही नहीं सिखाया।
आंगनबाड़ी और आशा वर्करों की मांग पूरी करने, मासिक धर्म में उन्हें अनिवार्य अवकाश देने जैसा ख्याल तो इनके सपनों में भी नहीं आता होगा जबकि ये भी उसी मासिकधर्म से होने वाली प्रजनन प्रक्रिया से जन्मे हैं।
वैसे इनसे इससे ज़्यादा उम्मीद की भी नहीं जा सकती, क्योंकि फटी जीन्स तो सिर्फ़ एक मुद्दा है असल में तो इनकी पितृसत्तात्मक मानसिकता महिलाओं के बाहर पढ़ने, पुरुषों को टक्कर देते हुए काम करने में लज्जित होती है, ऐसे नेताओं का बस चले तो ये साफ शब्दों में कह दें कि महिलाएं बस घर के अन्दर चूल्हा चौका संभालेंगी और यही काम महिलाओं के अधिकारों और संस्कारों को सही ठहरा सकता है, इसके अलावा उनका घर से बाहर निकलना भी संस्कारों के खिलाफ है।
खैर माफी मांगकर इन्हें लग रहा होगा कि इनके पाप धूल गए लेकिन जिस संकुचित मानसिकता के चलते इन्होंने जो बातें कह दीं उसके निशान अब नहीं मिटने वाले। फ़िर भी अगर माननीय मुख्यमंत्री वाकई में अपने बयान से शर्मिंदा हैं तो उन्हें चाहिए कि वो महिलाओं के हित और उनके विकास को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं की पदोन्नति में अतिरिक्त लाभ, हर विभागीय कार्यालय में बाल केंद्रो का खोलें ताकि वो आराम से काम भी कर सकें। महिलाओं को ट्रांसफर में ज्यादा वरीयता, छात्राओं के लिए पूरी तरह ब्याज रहित शिक्षा लोन जैसे मुद्दों पर ध्यान दें और राज्य में को महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बनाने पर जोर दें।










