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सिक्योरिटी

अमेरिकी नौसेना ने भारत की अनुमति के बिना लक्षद्वीप के पास चलाया अभियान, लुंज-पुंज मोदी सरकार

Janjwar Desk
11 April 2021 5:36 AM GMT
अमेरिकी नौसेना ने भारत की अनुमति के बिना लक्षद्वीप के पास चलाया अभियान, लुंज-पुंज मोदी सरकार
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photo : social media

क्या बिना भारत की अनुमति के दूसरे देश का जहाज़ आ सकता है? फ़्रीडम ऑफ़ नेविगेशन को अंतरराष्ट्रीय क़ानून में मान्यता मिली हुई है, लेकिन इस क़ानून में कई शर्तें भी हैं और विवाद इसी को लेकर है कि क्या भारत के विशिष्ट आर्थिक ज़ोन में बिना उसकी अनुमति के किसी अन्य देश का जहाज़ जा सकता है....

जनज्वार डेस्क। मोदी सरकार की कमजोर और दिशाहीन विदेश नीति का खामियाजा देश को भुगतना पड़ रहा है। पहले चीन लद्दाख और अरुणाचल की भूमि पर कब्जा कर भारत की संप्रभुता को चुनौती देता रहा है। अब अमेरिका ने भी लुंजपुंज मोदी सरकार को अंगूठा दिखाना शुरू कर दिया है। अमेरिकी नौसेना की ओर से भारत के एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन में एक ऑपरेशन की खबर है। अमेरिका की नौसेना ने ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी है। अमेरिकी नौसेना ने बताया कि यूएसएस जॉन पॉल जोन्स (डीडीजी 53) ने लक्षद्वीप समूह के लगभग 130 समुद्री मील पश्चिम में किया गया है।

यूएस नेवी ने कहा कि अतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप भारत की पूर्व सहमति के अनुरोध के बिना ही यह आपरेशन किया गया है। यह अमेरिकी ऑपरेशन भारत की मैरीटाइम सिक्योरिटी पॉलिसी के खिलाफ है। अमेरिकी नौसेना की सातवीं फ्लीट उसका सबसे बड़ा बेड़ा है।

अमेरिकी बयान में कहा गया कि "भारत को अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र या महाद्वीपीय इलाक़े में सैन्य अभ्यास या युद्धाभ्यास के लिए पूर्व सहमति की आवश्यकता है, यह दावा अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत असंगत है।"

बयान में यह भी कहा गया कि "फ़्रीडम ऑफ़ नैविगेशन ऑपरेशन के अनुसार अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत अधिकारों, स्वतंत्रता और समुद्र के वैधानिक इस्तेमाल को बरकरार रखा गया है और भारत के अत्यधिक समुद्री दावों को चुनौती दी गई है।"

सातवें बेड़े ने यह भी कहा अमेरिकी नौसना हर दिन इंडो-पैसेफ़िक क्षेत्र में काम करती है। सभी ऑपरेशन अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार किए गए हैं और दर्शाते हैं कि जहाँ भी अंतरराष्ट्रीय क़ानून के अनुसार अनुमति होगी, वहाँ अमेरिका उड़ान भरेगा, जहाज़ लेकर जाएगा और कार्रवाई करेगा।

बयान में ये भी कहा गया है कि "अमेरिका नियमित और सामान्य तौर पर फ़्रीडम ऑफ़ नेविगेशन ऑपरेशन करता हैं। ऐसा उन्होंने पहले भी किया है और भविष्य में भी करते रहेंगे। फ्रीडम ऑफ नेविगेशन ऑपरेशन न तो एक एक देश के बारे में हैं और न ही राजनीतिक बयान देने के बारे में।"

अमेरिका का यह बयान इसलिए भी चिंता की बात है, क्योंकि भारत-अमेरिका करीबी स्ट्रैटजिक पार्टनर हैं और दोनों देश चीन के समुद्री विस्तार का विरोध करते रहे हैं। भारत और अमेरिका की नौसेनाएं एक साथ अभ्यास भी करती रही हैं। इस साल फरवरी में क्वाड ग्रुप में शामिल देशों की मीटिंग में भारत और अमेरिका ने इंडो-पैसिफिक रीजन में आपसी सहयोग बढ़ाने की बात भी कही थी।

एक अधिकारी ने कहा कि किसी भी तटीय देश की एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन की सीमा समुद्र तट से 200 नॉटिकल मील यानी 370 किमी की दूरी तक होती है। ऐसे में इस क्षेत्र में किसी सैन्य गतिविधि के लिए भारत की इजाजत की जरूरत होती है। इस तरह की हरकत अंडमान निकोबार में साल 2019 में चीनी जहाज द्वारा की गई थी।

अब तक इस मामले में नौसेना और विदेश मंत्रालय से कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की गई है। हालांकि अमेरिकी नौसेना की ओर से कहा गया है कि हम रूटीन और नियमित तौर पर फ्रीडम ऑफ नेविगेशन ऑपरेशन करते हैं। अमेरिकी नौसेना की ओर से कहा गया कि हमने पहले भी ऐसा किया है और भविष्य में भी ऐसा करते रहेंगे।

क्या बिना भारत की अनुमति के दूसरे देश का जहाज़ आ सकता है? फ़्रीडम ऑफ़ नेविगेशन को अंतरराष्ट्रीय क़ानून में मान्यता मिली हुई है। लेकिन इस क़ानून में कई शर्तें भी हैं और विवाद इसी को लेकर है कि क्या भारत के विशिष्ट आर्थिक ज़ोन में बिना उसकी अनुमति के किसी अन्य देश का जहाज़ जा सकता है?

अमेरिका का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून के तहत उसे ये अधिकार है, लेकिन भारत का सामुद्रिक क़ानून इसकी अनुमति नहीं देता। भारत का कहना है कि बिना उसकी अनुमति के कोई विदेशी जहाज़ भारत के विशिष्ट आर्थिक ज़ोन से नहीं गुज़र सकता है।

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