मेरियन बायोटेक कफ सिरप DOK-1 MAX पीने से उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत से भारतीय दवा बाजार सवालों के घेरे में
अब भारतीय कफ सिरप पीने से उज्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत, गांबिया भी लगा चुका है 66 बच्चों की मौत का आरोप
वरिष्ठ पत्रकार अशोक मधुप की टिप्पणी
गांबिया और उज़्बेकिस्तान में भारत में बने कफ़ सिरप को लेकर सवाल खड़े होने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी ड्रग इंस्पेक्टरों को कफ़ सिरप पर निरंतर निगरानी रखने के निर्देश दिए हैं, किंतु गांबिया और उज़्बेकिस्तान में कफ सिरप से मौत की खबरों से भारत के दवाई बाजार और उसकी प्रतिष्ठा को बड़ा धक्का लगा है।
भारतीय कफ सिरप से मौत की सूचनांए आने के बाद भारत ने अपने स्तर से जांच शुरू करा दी, किंतु यह भी जांच का विषय है कि भारत में बढ़ती दवाइयों की शाख और विदेशी बाजार में उसकी प्रतिष्ठा को खत्म करने का कोई अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र तो नहीं है।
उज्बेकिस्तान सरकार ने आरोप लगाया है कि भारत में बना कफ सिरप देने की वजह से उनके देश में 18 बच्चों की मौत हुई। उज्बेक हेल्थ मिनिस्ट्री ने हाल में कहा कि नोएडा के मेरियन बायोटेक में बना कफ सिरप डोक −1 मैक्स (DOK-1 MAX) पीने से बच्चों की जान गई। उधर वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) जांच में उज्बेकिस्तान सरकार का सहयोग करेगा। भारत ने भी उज्बेक सरकार के आरोपों की अपने स्तर से जांच का फैसला किया है।
फैक्ट्री को सील कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी ज़िलों में थोक एवं फुटकर विक्रेताओं के यहां से नियमानुसार कफ़ सिरप के सैंपल लेने के निर्देश दिए हैं, ताकि किसी कंपनी के कफ़ सिरप मानक के अनुसार न हों तो सुधार करवाया जा सके।
सबसे पहल गांबिया ने भारत के बने कफ सिरप को लेकर आरोप लगाया था कि उसके पीने से उसके देश में 70 बच्चों की मौत हो गई। गाम्बिया के बाद उज्बेकिस्तान ने भारत निर्मित कफ़ सिरप पर संदेह जताया है। यह सिरप नोयडा में बना था। ऐसे में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग अलर्ट हो गया है, क्योंकि सर्दी के मौसम में अलग-अलग कंपनियों के कफ़ सिरप की खपत बढ़ गई है।
गाम्बिया ने अक्टूबर में अपने यहां हुई 70 बच्चों की मौतों का जिम्मेदार भारत में बने चार कफ सिरप को ठहरा चुका है। डबलूएचओ (WHO )ने भी इन कफ सिरप के इस्तेमाल पर अलर्ट जारी किया था। हालांकि भारत ने कहा था कि हमने कफ सिरप की जांच की थी। इनकी क्वालिटी सही पाई गई। इसके बाद गाम्बिया सरकार ने एक बयान जारी कर कहा था कि उनके देश में हुई बच्चों की मौतों से भारतीय सिरप का कोई संबंध नहीं है।
गांबिया में 70 बच्चों की मौत के प्रकरण की सबसे बड़ी बात है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बिना जांच हुए अक्तूबर में ही हरियाणा की कंपनी मेडेन फ़ार्मास्यूटिकल लिमिटेड की ओर से बनाए गए चार कफ़ सिरप को लेकर अलर्ट जारी किया गया था। इसमें प्रोमेथाजिन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ़ सिरप, मकॉफ़ बेबी कफ़ सिरप और मैग्रीप एन कोल्ड सिरप शामिल हैं।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने कहा- देश के सर्वोच्च दवा नियामक और यूपी राज्य दवा नियंत्रक द्वारा नोएडा में दवा निर्माण कंपनी की जांच की। रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। वहीं, भारतीय दूतावास ने उज्बेकिस्तान से उनकी जांच का ब्योरा मांगा है, ताकि भारत में जांच के दौरान उनके पहलुओं को ध्यान में रखा जाए।
WHO ने यह बताया गया कि कफ सिरप में प्रयोग होने वाला इथिलीन ग्लाइकॉल जानलेवा साबित हो सकता है? डब्लूएसओ के मुताबिक इथिलीन ग्लाइकॉल कार्बन कंपाउंड है। इसमें न खुश्बू होती है और न ही कलर। ये मीठा होता है। बच्चों के सिरप में सिर्फ इसलिए मिलाया जाता है, ताकि वो आसानी से पी सकें। इसकी मात्रा के असंतुलन से ये जानलेवा हो सकते हैं। कई देशों में यह प्रतिबंधित है।
उधर उज़्बेकिस्तान सरकार ने माना कि बच्चों को ये कफ सिरप बिना डॉक्टरी सलाह के लोकल मेडिकल स्टोर से दिया गया था। पेरेंट्स ने सर्दी-जुखाम के इलाज के लिए दो से सात दिन तक दिन में चार बार बच्चों को ये कफ सिरप दिया। डोज की मात्रा 2.5 से 5 मिलीलीटर थी, जो कि बच्चों के लिए मानक खुराक से ज्यादा है।
प्रश्न यह है कि गांबिया की जांच में आ गया कि मौत कफ सिरप से नही हुई। उज़्बेकिस्तान सरकार ने माना कि बच्चों को ये कफ सिरप बिना डॉक्टरी सलाह के लोकल मेडिकल स्टोर से दिया गया था। प्रश्न यह है कि फिर भारत के कफ सीरप को क्यों दोषी ठहराया गया। दोषी ठहराया जाना चाहिए था, जांच के बाद। जांच से पहले अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इस प्रकार की रिपोर्ट का आना किसी षडयंत्र का सूचक है।
लगता है कि कोई भारत निर्मित दवाओं की शाख खराब करना चाह रहा है। भारत की दवाएं आज पूरी दुनिया में निर्यात की जा रही है। इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि साल 2013-14 के अप्रैल-जुलाई माह में दवा उद्योग का निर्यात 20,596 करोड़ रुपए था जो 2022-23 की इसी अवधि में 50,714 करोड़ रुपए हो गया। यानि दवाओं के निर्यात में 146 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई। ऐसा नहीं है कि भारतीय दवाओं को लेकर दुनिया की निर्भरता कोरोना काल में ही बढ़ी है, बल्कि इससे पहले भी दुनिया के तमाम देश जिनमें कई विकसित राष्ट्र भी शामिल हैं भारत से बड़े स्तर पर दवा आयात करते रहे हैं। यही कारण है कि वर्ष 2030 तक भारतीय फार्मा बाजार के 130 अरब अमेरिकी डॉलर तक बढने की उम्मीद व्यक्त की जाती है। वहीं 2025 तक भारत में चिकित्सा उपकरणों के उद्योग के 50 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की क्षमता है।
लगता है कि भारत के बढ़ते विदेशी दवा बाजार से कुछ उन देशों को परेशानी है, जिनका इस बाजार पर अधिकार था। इसीलिए वे येन केन प्रकरेण भारत की छवि को खराब कर इस दवा बाजार पर कब्जा बरकरार रखना चाहेंगे। इस अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र पर देश के नेतृत्व को नजर रखी होगी। इसके लिए ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि सरकार से पहले स्वास्थ्य विभाग अपनी छवि को बचाने के लिए सक्रिय हो जाए।
उधर देश को अपने यहां के नकली दवा के व्यापारियों पर भी नजर रखनी होगी। पिछले दिनों नोयडा में एक ऐसी नकली दवा की कंपनी पकड़ी गई तो चीन को नकली कैंसर की दवा भेजती थी। इस फैक्ट्री से एक करोड़ के आसपास की दवा भी बरामद हुई। हमें अपने यहां की नकली दवा की फर्मों के खिलाफ अभियान चलाना होगा, इस पर सख्ती से रोक लगानी होगी। अन्यथा ये हमारे बढ़ते विदेशी दवा बाजार को प्रभावित करेगी। विदेशों में बढ़ती भारतीय दवाओं की शाख को बट्ट़ा लगाएंगी।