आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और नए रोबोट्स के भयानक संभावित परिणामों के बीच संयुक्त राष्ट्र ने कर डाला इसके फायदों पर पहला सम्मलेन
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
World’s first human-robot press conference was organized in Geneva and robots assured humans that there is no plans to steal jobs from them. एक ओर जहां पूरी दुनिया में सामाजिक वैज्ञानिक, वैज्ञानिक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास से जुड़े विशेषज्ञ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से सम्बंधित विकास को कुछ समय के लिए रोक कर इसके अनुमानित दुरुपयोग को रोकने के लिए परमाणु हथियारों जैसे सख्त अंतरराष्ट्रीय समझौते की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र के इन्टरनॅशनल टेलीकम्युनिकेशंस यूनियन ने इसके समाज के सन्दर्भ में लाभकारी प्रभावों को दिखाने के लिए - जिनमें स्वास्थ्य, पोषण, सामाजिक जिम्मेदारी, शिक्षा और जलवायु परिवर्तन नियंत्रण शामिल हैं - जेनेवा में 6 और 7 जुलाई को पहला आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस फॉर गुड नामक अंतरराष्ट्रीय अधिवेशन आयोजित किया था।
इस सम्मेलन में पूरी दुनिया से सबसे चर्चित और प्रभावी 51 रोबोट को शामिल किया गया था, जिनमें 9 मानव रोबोट भी थे। इस अधिवेशन की खासियत प्रेस और मीडिया के मानव रिपोर्टरों सामना करते 9 मानव रोबोट थे, इस प्रेस अधिवेशन को दुनिया का पहला मानव-रोबोट प्रेस अधिवेशन का नाम दिया गया है।
हमारे देश में भी इन दिनों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस मानव रोबोट के टीवी स्क्रीन समाचार पढ़ने की खबरें प्रकाशित की जा रही हैं। ओडिशा टीवी ने 11 जुलाई को लिसा नाम की मानव रोबोट को ओड़िया और अंग्रेजी में समाचार पढ़ने का काम दिया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस युक्त क्षेत्रीय भाषा की यह देश में पहली टीवी एंकर है। इससे पहले मार्च में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में इंडिया टुडे ग्रुप ने पहली ऐसी एंकर सोना को जनता के सामने प्रस्तुत किया था।
आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस और नए रोबोट्स के भयानक संभावित परिणामों की खबरें अंतरराष्ट्रीय मीडिया में लगातार आ रही हैं। इसे कोई हथियारों की प्रतिद्वंदिता से जोड़ रहा है तो कोई परमाणु हथियारों से। इसे गलत सूचनाओं का प्रबल स्त्रोत, धोखाधड़ी का नया स्त्रोत और निजता के हनन से जोड़ा जा रहा है। कुछ विशेषज्ञों ने इसे बड़े पैमाने पर रोजगार छीनने वाली टेक्नोलॉजी करार दी है। अब तो इसके परम्परागत व्यापार में बुरे परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ने इसे रोजगार को निगलने वाली टेक्नोलॉजी करार दिया है। हाल में ही वैश्विक स्तर पर कार्यरत 800 कंपनियों के 1 करोड़ से अधिक कर्मचारियों के बीच सर्वेक्षण के बाद इकोनॉमिक फोरम ने बताया है कि 25 प्रतिशत से अधिक कर्मचारियों ने इससे बेरोजगारी बढ़ने की आशंका व्यक्त की है। गोल्डमैन सैश की एक रिपोर्ट के अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ऑटोमेशन के कारण अमेरिका और यूरोप में जल्दी ही 30 करोड़ नौकरियाँ कम हो जायेंगी। आईबीएम ने हाल में ही कहा है कि भविष्य में यहाँ नई नियुक्तियों की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि 30 प्रतिशत से अधिक काम अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा किया जाएगा।
इन सबके बीच जिनेवा में प्रेस कांफ्रेंस में मानव रोबोट ने कहा कि उनका रोजगार छीनने का या मानव के प्रति विद्रोह करने का कोई इरादा नहीं है। अमेरिका में तैयार मानव रोबोट, सोफिया, ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि हम मनुष्यों की दक्षता और क्षमता का विस्तार करते हैं, पर सबसे अधिक प्रभावी मनुष्य और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का समन्वित काम है। मनुष्य भावनात्मक तौर पर प्रबुद्ध और रचनात्मक है, जबकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से आंकड़ों का विश्लेषण तेज होता है।
पत्रकारों ने जब सवाल पूछा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास को नियंत्रित किया जाना चाहिए या नहीं, तब एआईडा नाम के मानव रोबोट ने, जिसका कलाकार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, ने कहा कि मैं इसके अंधाधुंध विकास पर अंकुश लगाने से सहमत हूँ और इस पर जल्दी ही व्यापक वैश्विक बहस की जरूरत है। दूसरी तरफ इसी प्रश्न के जवाब में रॉकस्टार के तौर पर काम करने वाले मानव रोबोट, देस्देमोना ने कहा कि नियंत्रण किसी समस्या का हल नहीं है, इससे बेहतर है कि हमारे उपयोग के नए रास्ते तलाशे जाएँ। यह किसी को नहीं पता है कि मानव रोबोट में जवाब फीड किये गए थे, या फिर ये जवाब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की देन हैं।
जाहिर है पूरी दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जितनी तेजी से विकास हो रहा है उससे अधिक तेजी से अब इससे उत्पन्न खतरों की चर्चा हरेक स्तर पर की जा रही है। अब तो इसके विकास से जुडी कपनियों में भी यह चर्चा की जाने लगी है, पर जाहिर है पूंजीवादी समाज में लाभ के आगे समाज के खतरे गौण हो जाते हैं और कम्पनियां अपना मुनाफ़ा कम नहीं होने देंगी।
इसे नियंत्रित करना इसलिए भी कठिन है क्योंकि यह पूरी टेक्नोलॉजी निजी कंपनियों के हाथों में है। अब तो संयुक्त राष्ट्र भी इसके नुकसान नहीं, बल्कि फायदे गिना रहा है। पिछले वर्ष आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से सम्बंधित 35 बड़े उत्पाद बाजार में उतारे गए, जिसमें से 32 का विकास निजी कंपनियों ने किया है और महज 3 उत्पादों को सरकारी कंपनियों ने बनाया है।