आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को पूंजीवाद बता रहा सभी समस्याओं का निदान, वैज्ञानिक दे रहे गंभीर चेतावनी
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
The claims made by AI companies regarding climate protection are misguided – AI would be responsible for rising energy use and spread of disinformation. क्लाइमेट एक्शन अगेंस्ट डिसइनफार्मेशन नामक वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के एक समूह ने दुनिया को सचेत किया है कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के बारे में टेक कंपनियों के पर्यावरण सुरक्षा के दावे भ्रामक और गलत हैं और इसके बढ़ाते उपयोग के कारण तापमान वृद्धि करने वाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में तेजी से बढ़ोत्तरी होगी और साथ ही तापमान वृद्धि के विज्ञान और प्रभाव से सम्बंधित भ्रामक जानकारियों का तेजी से विस्तार होगा। यह चेतावनी 'द एआई थ्रेट्स टू क्लाइमेट चेंज' नामक रिपोर्ट के माध्यम से दी गयी गई है। क्लाइमेट एक्शन अगेंस्ट डिसइनफार्मेशन के साथ ग्रीनपीस, फ्रेंड्स ऑफ़ द अर्थ, चेक माय एड्स और केरोस जैसी पर्यावरण सुरक्षा में संलग्न संस्थाएं भी जुड़ी हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाली टेक कम्पनियों के साथ ही तमाम सरकारें और संयुक्त राष्ट्र भी पर्यावरण संरक्षण के नाम पर इसे बढ़ावा दे रहा है। वैज्ञानिकों का एक वर्ग भी प्रचारित कर रहा है कि पर्यावरण संरक्षण के काम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बहुत मदद कर सकता है। इससे वनों के काटने की दर, प्रदूषण उत्सर्जन, मौसम की सटीक जानकारी इत्यादि विषयों पर जल्दी और सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इस समय भी अफ्रीका में सूखे का आकलन और ध्रुवों पर बर्फ के पिघलने की दर का अध्ययन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से किया जा रहा है।
गूगल के एआई प्रोग्राम, जिसे पहले बार्ड के नाम से और अब जेमिनी के नाम से जाना जाता है, पर्यावरण संरक्षण में एआई के योगदान की वकालत करता रहा है। जेमिनी की मदद से पर्यावरण के क्षेत्र में अनेक अध्ययन भी किये जा रहे हैं। वर्ष 2023 में गूगल के सस्टेनेबिलिटी विभाग ने प्रचारित किया था कि पर्यावरण संरक्षण में केवल आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस को बढ़ावा देकर वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन वर्ष 2030 तक 10 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।
इसके बाद आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस से जुड़े अनेक वैज्ञानिकों ने गूगल के इस दावे को हास्यास्पद और भ्रामक बताया है। इन वैज्ञानिकों के अनुसार पर्यावरण संरक्षण में एआई के अत्यधिक उपयोग के बाद इससे सम्बंधित डेटा सेंटर्स की संख्या दुगुनी करनी पड़ेगी और इस कारण उर्जा की खपत बढ़ेगी। इस उर्जा के उत्पादन के कारण ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन ऊर्जा संरक्षण की तमाम प्रौद्योगिकी को अपनाने के बाद भी 80 प्रतिशत तक बढ़ जाएगा। अमेरिका में एआई के बढ़ते उपयोग के कारण उर्जा की मांग बढ़ती जा रही है, जिसे पूरा करने के लिए बंद किये जाने वाले कोयले से चलने वाले ताप-बिजली घर अभी तक चलाये जा रहे हैं।
एक अध्ययन के अनुसार अगले तीन वर्षों में यानि 2027 तक एआई से सम्बंधित डेटा सेंटर्स में बिजली आपूर्ति के कारण ग्रीनहाउस गैसों का जितना उत्सर्जन होगा, उतना उत्सर्जन पूरे नीदरलैंड से उत्पन्न होता है। एआई से सम्बंधित डेटा सेंटर्स अत्यधिक जटिल होते हैं और इनमें बिजली की खपत अधिक होती है। कम्पूटर द्वारा किसी विषय पर सामान्य तरीके से जानकारी हासिल करने की तुलना में एआई द्वारा उसी जानकारी को हासिल करने में बिजली की खपत 10 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार एआई द्वारा बिजली की खपत में पारदर्शिता जरूरी है और इससे झूठी और भ्रामक जानकारी के प्रसार का नियंत्रण भी जरूरी है। यह समस्या इसलिए गंभीर है, क्योंकि एक्स जैसे प्लेटफॉर्म धड़ल्ले से जलवायु परिवर्तन के विज्ञान और प्रभावों पर गलत जानकारियाँ प्रचारित कर रहे हैं। एआई की मदद से डीपफेक वीडियो और चित्रों द्वारा बहुत बड़े पैमाने पर भ्रामक जानकारी फैलाई जा सकती है।
समस्या यह है कि तापमान वृद्धि समेत सभी पर्यावरणीय समस्याएं पूंजीवाद की देन हैं और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस भी पूंजीपतियों की धरोहर है। पूंजीवाद इसे दुनिया के सभी समस्याओं का निदान बताकर पेश कर रहा है, और दुनिया के सरकारें भी इसे बढ़ावा दे रही हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों की चेतावनी कौन सुनेगा?
सन्दर्भ:
1. The AI Threats to Climate Change. Climate Action against Disinformation (2024) – foe.org/wp-content/uploads/2024/03/AI_Climate_Disinfo_v4-030124.pdf
2. How AI can speedup Climate Action. Google’s Sustainability Department (2023) – bcg.com/publications/2023/how-ai-can-speedup-climate-action
3. AI data Centres could use more electricity than the Netherlands by 2027. Data Central Dynamics (2024) – datacentredynamics.com/en/news/ai-data-centres