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विमर्श

Democracy In India : भाजपा ने गैर कानूनी गतिविधि बना दिया देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए काम करना, उसकी काट निकालना सबसे जरूरी

Janjwar Desk
22 Jan 2022 2:25 PM GMT
Democracy In India :  भाजपा ने गैर कानूनी गतिविधि बना दिया देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए काम करना, उसकी काट निकालना सबसे जरूरी
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 भाजपा ने गैर कानूनी गतिविधि बना दिया देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए काम करना

Democracy In India : भाजपा ने देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिए काम करने को एक गैर कानूनी गतिविधी जैसा बना दिया है जिसकी काट खोजना इस देश को बचाने के लिए सबसे पहला काम है....

हिमांशु कुमार का विश्लेषण

Democracy In India : पिछले लेख में हमने देखा था कि किस तरह सारी दुनिया में जब अमेरिका और पश्चिमी ताकतों ने अपना आर्थिक साम्राज्य फैलाने के लिए नब्बे के दशक में एक तरफ तो उदारीकरण, वैश्वीकरण और निजीकरण (Liberalisation, Globalization and Privatization) का सहारा लिया। वहीं दुनियाभर में खनिज और तेल से भरे इलाकों पर कब्ज़ा करने के लिए मुस्लिम आतंकवाद (Islamic Terrorism) का फर्जी जिन्न खड़ा किया। पश्चिमी ताकतों ने ओसामा को खड़ा किया तालिबान और अलकायदा (Taliban And Al Qaeda) को हथियार दिए। इसके बाद इन्हें दबाने के नाम पर अमेरिकी सेनाएं (US Forces) इन इलाकों में भेजकर तेल के इलाके पर अपना कब्ज़ा मजबूत कर लिया।

आपको याद होगा कैसे अमेरिका की अगुआई में ब्रिटेन और पश्चिमी सैन्य ताकतों ने झूठ फैलाया कि इराक़ के पास रासानियक हथियार (Chemical Weapons) हैं और अपनी सेनाएं वहाँ घुसा दी थीं। एक सार्वभौम देश में घुसकर वहाँ के राष्ट्रपति को फांसी पर लटका दिया गया। बाद में खुद ब्रिटेन की संसद ने अपने भूतपूर्व प्रधानमंत्री को इस अपराध का दोषी माना था। सद्दाम हुसैन (Saddam Hussain) के देश में अमेरिका और ब्रिटेन को एक तेज़ाब की शीशी तक नहीं मिली थी लेकिन इराक़ को बर्बाद कर दिया गया था। इसी तरह ओसामा जो एक अंग्रेज़ी बोलने वाला पढ़ा लिखा अमेरिकी नागरिक था उसे अमेरिका ने खुद ही पैसे देकर सोवियत संघ (USSR) के खिलाफ लड़ने भेजा, उसे हथियार दिए, अलक़ायदा बनवाया और बाद में उससे लड़ने के नाम पर अपनी सेनायें अफगानिस्तान में घुसा दीं। अफगानिस्तान (Afghanistan) से बड़े पैमाने में खनिज लूटने के बाद अब अमेरिकी सेनाएं वापस हुईं हैं।

इस सब लूट को करने के लिए अमेरिका ने दुनियाभर में लोगों की सोच को भरमाने का काम किया। अमेरिका ने मुसलमानों को आतंकवादी के तौर पर बदनाम करने का एक प्रोजेक्ट चलाया। इसे इस्लामोफोबिया (Islamaphobia) का प्रोजेक्ट माना जाता है। इसमें टीवी राष्ट्रवादी पूंजीवादी मीडिया जिसमें सीएनएन, फॉक्स टीवी वगैरह शामिल थे। इसके अलावा हॉलीवुड की फ़िल्में इस तरह की बनाई गईं।

इसी का हिस्सेदार भारत भी बना। भारत में भी दुनियाभर की पूंजी आ रही थी। भारत का बजट भी विश्व बैंक और आईएमएफ (World Bank And IMF) की सुविधा और निर्देशों के आधार पर तैयार होते थे। जंगलों, खदानों, तेल के भंडार और बन्दरगाहों पर बड़े बड़े पूंजीपति कब्जे कर रहे थे।

इसी समय भारत में भी मुसलमानों को आतंकवादी कहने का दौर शुरू हो गया था। एक तरफ तो हिन्दुत्ववादी संगठन (Hindutva Organisations) से जुड़े लोग जैसे असीमानंद, शंकराचार्य दयानन्द पांडे, प्रज्ञा ठाकुर मालेगांव समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद जैसे काण्ड करके मुसलमानों को बदनाम कर रहे थे। वहीं सरकारी एजेंसियां भी निर्दोष मुस्लिम नौजवानों को जेलों में भरने का काम कर रही थीं। बॉलीवुड में मुसलमानों को आतंकवादी बताने वाली फ़िल्में बन रही थीं टीवी सीरियल भी ऐसे ही बनाये जा रहे थे। लेकिन इसी दौर में इस सब के खिलाफ भी काम हो रहा था।

देशभर में ऐसी सामाजिक संस्थाएं और सामाजिक संगठन थे जो इस सब को समझते थे। देशभर के बुद्धिजीवी इन संगठनों से जुड़े हुए थे। ऐसे संगठन और संस्थाएं देश के लोगों को इस सब के बारे में बता रहे थे और इस पूरी सरकारी और पूंजीवादी षड्यंत्र पर से पर्दा उठा रहे थे।

यह संस्थाएं एक तरफ तो इस इस्लामोफोबिया के खिलाफ अदालतों में जा रही थीं और निर्दोष मुस्लिम नौजवानों को रिहा कराने में लगी थीं। वहीं बहुत सारी संस्थाएं और संगठन मुसलमानों के खिलाफ चलाये जा रहे इस झूठे प्रचार तंत्र के असर को कम करने के लिए सच्चाई बताने वाले कार्यक्रम कर रही थीं।

मैं खुद ऐसे अनेकों अभियानों और कार्यक्रम का हिस्सा रहा हूँ जहां हमने मुसलमानों को आतंकवादी बताने वाले इस झूठे प्रचार का पर्दाफाश किया और बताया कि कैसे यह पूंजीवादी ताकतें अपनी लूट की तरफ से जनता का ध्यान भटकाने के लिए फर्जी आतंकवाद का हव्वा खड़ा कर रही हैं और अपनी लूट को आगे बढ़ा रही हैं। एचआरएलएन, पीयुसीएल, अनहद, सहमत, और अनेकों ऐसे संगठन थे जो मानवाधिकार के पक्ष में और साम्रदायिक नफरत के खिलाफ काम कर रहे थे और इन साजिशों का पर्दाफाश कर रहे थे। शबनम हाशमी, तीस्ता सीतलवाड़, हर्षमंदर, कविता श्रीवास्तव और हज़ारों लोग देश भर में इस तरह का अभियान चला रहे थे। बिनायक सेन, सुधा भारद्वाज अभय साहू हम जैसे लोग आदिवासी इलाकों में संसाधनों की लूट के खिलाफ अभियान चला रहे थे।

इसके अलावा हम लोग जनता को कानूनी अधिकार, लोकतंत्र, मानवाधिकार, आदिवासियों का संवैधानिक अधिकार के बारे में कार्यक्रम और प्रशिक्षण शिविर चला रहे थे। इस सबसे पूंजीपति और सरकारें घबरा रही थीं। उनके इरादों को हम लोग फेल करते जा रहे थे। जगह जगह लोग ज़मीनें बचाने के लिए आन्दोलन कर रहे थे। पूंजीपतियों के काम में अडचनें आ रही थीं।

तब इन संस्थाओं और संगठनों की ताकत खत्म करने का सरकारी प्रयास शुरू हुआ। पहले एफसीआरए कानून को कड़ा किया गया। अनेकों नए नियम बना कर हजारों संस्थाओं की मान्यता समाप्त की गई। फिर संस्थाओं को कलेक्टर के आधीन करने का नियम बनाया गया। जिस कलेक्टर के गलत कामों के खिलाफ संस्थाएं लड़ रही थीं उन्हें उसी से अब अपना एफसीआरए जारी रखवाने के लिए इजाज़त लेनी थी।

इसके बाद भाजपा (BJP Govt) का शासन आया। भाजपा को मालूम था कि बहुत सारी संस्थाएं धर्मनिरपेक्षता (Secularism) और राष्ट्रीय एकता (National Unity) बढाने का काम करती हैं। भाजपा सरकार ने इन सभी संस्थाओं की आर्थिक मदद बंद करवाई। इनके कार्यकर्ताओं की संख्या बहुत कम हो गई और काम सिकुड़ता चला गया। बार बार धर्मनिरपेक्ष संगठनों पर रेड डालना उन्हें जांच के नाम पर परेशान करना शुरू किया गया। इस संगठनों को देशद्रोही और आतंकवादी समर्थक कहना शुरू किया गया।

हाल के कुछ वर्षों में भाजपा सरकार ने सामाजिक संस्थाओं की कमर पूरी तरह तोड़ दी है। अब देश में कोई बड़ी संस्था नहीं बची है जो धर्म निरपेक्षता के अभियान को देश के स्तर पर चलाने की ताकत रखती हो। भाजपा सरकार ने इसके लिए बाक़ायदा मेहनत की है।

अब सामजिक संस्थाएं इनकम टैक्स विभाग द्वारा तय किये गए छह तरह के कामों के अलावा किसी भी ऐसे काम के लिए अगर मदद या दान लेंगी तो उन पर इनकम टैक्स लगाया जाएगा। पहले सामाजिक संस्थाओं की आय टैक्स फ्री होती थी। और इनकम टैक्स के माध्यम से सरकार ने जो काम तय किये हैं उनमें जनता को उनके अधिकारों के बारे में बताना मना है। धर्म निरपेक्षता जाति पांति के खिलाफ काम करना मना है ।महिला अधिकारों के बारे में पितृसत्ता पूंजीवाद साम्प्रदायिकता के खिलाफ काम करना मना है।

इसके अलावा सरकार ने अब संस्थाओं को एसोसिएशन की केटेगरी से हटाकर व्यक्ति की केटेगरी में डाल दिया है। और संस्था के हर सदस्य को किसी भी कानूनी कार्यवाही के लिए बराबर का जिम्मेदार बना दिया है। पहले सिर्फ संस्था का मुख्य कार्यकारी कानूनी कार्यवाही झेलता था अब संस्था के प्रत्येक सदस्य के खिलाफ कार्यवाही की जा सकती है। इसके साथ साथ संस्था को लोक सेवक की श्रेणी में डाल दिया गया है। और लोक सेवक सरकारी नीतियों और कार्यक्रम की आलोचना नहीं कर सकता। संस्था के सदस्यों के सोशल मीडिया एकाउंट के लिंक मांगे जा रहे हैं।

यानी अब कोई संस्था सरकारी नीति या कार्यक्रम की आलोचना नहीं कर सकती। चाहे सरकार आदिवासियों की ज़मीन छीने चाहे मानवाधिकारों का उल्लंघन करे अब संस्थाएं उसका विरोध करेंगी तो उनका रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है। संस्थाओं को जीएसटी के दायरे में लाया गया है। एफसीआरए से मिली मदद से जिन सस्थाओं ने अपने आफिस ट्रेनिंग बिल्डिंग आदि बनाये हैं उन्हें सरकार राजसात कर सकती है।

इस सबका परिणाम यह हुआ है कि अब सामाजिक काम करने वाली संस्थाएं संगठन अपनी गतिविधियों को चलाने में मुश्किल का सामना कर रही हैं। वे प्रतिभागियों को किराया देने, कार्यक्रम के लिए हाल बुक करने में असमर्थ हैं। इसके अलावा अब सार्वजनिक भवनों और स्थानों में सरकार की नीतियों के खिलाफ कोई भी सेनिनार सम्मलेन या गोष्ठी करने के लिए किराए पर मिलना मना हो गया है। इसके अलावा सरकार के खिलाफ कोई कार्यक्रम होता है तो भाजपा और संघ के गुंडे पुलिस की मदद से उस पर हमला करते हैं।

भाजपा ने देश में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता (Democracy And Secularism) के लिए काम करने को एक गैर कानूनी गतिविधी जैसा बना दिया है जिसकी काट खोजना इस देश को बचाने के लिए सबसे पहला काम है।

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