PM मोदी के महिलाओं पर प्रवचनों के बीच उनके मंत्रिमंडल में शामिल नारी शक्ति की संख्या जान चौंकिये मत, सबसे अधिक लैंगिक असमानता वाले देशों में शुमार भारत !
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Despite Nari Shakti slogans, India is placed as low as on 129th spot among 146 countries in Gender Gap Index 2024, published by World Economic Forum : नारी शक्ति नमन पर प्रवचन देने वाले प्रधानमंत्री मोदी के तथाकथित विकसित भारत में महिलायें पिछड़ती जा रही हैं। वर्ल्ड इकनोमिक फोरम द्वारा प्रकाशित ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2024 में शामिल कुल 146 देशों में मोदी की गारंटी वाला भारत शर्मनाक तरीके से 129वें स्थान पर है। वर्ष 2023 की तुलना में भारत दो स्थान पीछे पहुँच चुका है। वर्ष 2014 में जब मोदी जी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने थे, तब इस इंडेक्स में भारत कुल 142 देशों में 114वें स्थान पर था। फरवरी 2024 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित मानव विकास इंडेक्स 2023-2024 में लैंगिक समानता के संदर्भ में भी 193 देशों की सूची में भारत का स्थान 108वां था।
इसके बाद भी इस इंडेक्स का हवाला देते हुए प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो ने 14 मार्च 2024 को एक प्रेस रिलीज़ जारी करके लैंगिक समानता के सन्दर्भ में मोदी सरकार की तारीफ़ के पुल बांधे थे। प्रेस रिलीज़ के शुरू में ही “नारी शक्ति प्रगति की राह पर” लिखा गया था और अन्दर बताया गया था किमहिला समानता इंडेक्स में वर्ष 2014 में भारत 127वें स्थान पर था, और प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व में अब भारत 108वें स्थान पर पहुँच गया है। दूसरी तरफ, जेंडर गैप इंडेक्स में वर्ष 2014 से 2024 के बीच भारत 114वें स्थान से 129वें स्थान पर लुढ़क गया तब पीआईबी, सत्ता, मेनस्ट्रीम मीडिया और बीजेपी प्रवक्ता मौन हैं।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा जेंडर गैप इंडेक्स को शिक्षा, स्वास्थ्य, राजनीति और अर्थव्यवस्था में भागीदारी के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया जाता है। प्रधानमंत्री मोदी हमेशा दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था, 5 खरब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था और पांचवीं से तीसरी की ओर जाती सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का सपना दिखाते हैं, पर तथ्य यह है कि लैंगिक अंतर के सन्दर्भ में दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्था में भारत सबसे नीचे है और यहाँ तक की दक्षिण एशिया में भी यह पांचवें स्थान पर है। दक्षिण एशिया में बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और भूटान से भी पीछे भारत का स्थान है, यह केवल पाकिस्तान से आगे है।
मोदी जी अपने हरेक भाषण में नारी शक्ति को याद करते हैं, संसद में महिला आरक्षण बिल पास होने का सारा श्रेय खुद लेते हैं, दरबारी मीडिया चुनावों के बीच लगातार यह बताता रहा की मोदी जी के तथाकथित प्राथमिकता वाले सामाजिक वर्गों में महिलायें, किसान, युवा सबसे आगे हैं। मोदी जी के महिलाओं पर प्रवचनों के बीच अपने 74 मंत्रियों वाले मंत्रिमंडल महज 7 महिलाओं को शामिल कर, कैबिनेट मंत्रियों में महज 2 महिलाओं को शामिल कर खुद ही नारी शक्ति का आह्वान खोखला साबित कर दिया।
मोदी जी के पिछले मंत्रिमंडल में ही 10 महिलायें शामिल थीं। महिला पहलवानों के मामलों और मणिपुर में महिलाओं पर लगातार हो रही हिंसा पर कार्यवाही तो दूर, कोई वक्तव्य भी नहीं देकर महिलाओं के बारे में मोदी जी ने यह तो बता दिया कि वे बस नारी शक्ति पर प्रवचन ही दे सकते हैं। भारतीय मेनस्ट्रीम मीडिया को छोड़कर पूरी दुनिया यह चर्चा लगातार की जाती है कि किस तरह मोदी-राज में महिलायें लगातार पिछड़ती जा रही हैं। वर्ष 2024 के आम चुनावों में 74 महिलायें जीत कर संसद में पहुँची थीं, जबकि 2019 के आम चुनावों में 78 महिलाओं ने जीत हासिल की थी।
वर्ष 2023 में कुल 52 देशों में संसदीय चुनाव हुए थे, जिसमें जीत हासिल करने वाली महिलाओं की संख्या 27.6 प्रतिशत थी, वैश्विक स्टार पर महिला सांसदों की औसत संख्या 26.9 पर्तिशत है, पर नारी शक्ति नमन वाले देश में यह संख्या वैशिक औसत की लगभग आधी, यानि 13.6 प्रतिशत ही है।
जेंडर गैप इंडेक्स में आइसलैंड शीर्ष स्थान पर है, और इसके बाद के देश क्रम से हैं – फ़िनलैंड, नॉर्वे, न्यूज़ीलैण्ड, स्वीडन, निकारागुआ, जर्मनी, नामीबिया, आयरलैंड और स्पेन। दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में जर्मनी 7वें स्थान पर, यूनाइटेड किंगडम 14वें स्थान पर, दक्षिण अफ्रीका 18वें, फ्रांस 22वें, ऑस्ट्रेलिया 24वें, मेक्सिको 33वें, कनाडा 36वें, अमेरिका 43वें, ब्राज़ील 70वें, संयुक्त अरब अमीरात 74वें, इटली 87वें, दक्षिण कोरिया 94वें, जापान 118वें और सऊदी अरब 126वें स्थान पर है। भारत का स्थान इस इंडेक्स में शामिल कुल 146 देशो में 129वां है, जबकि पड़ोसी देशों में सबसे आगे 99वें स्थान पर बांग्लादेश, चीन 106वें स्थान पर, नेपाल 117वें स्थान पर, श्रीलंका 122वें स्थान पर, भूटान 124वें स्थान पर और पाकिस्तान 145वें स्थान पर है।
इस इंडेक्स में अंतिम स्थान पर सूडान है, इससे ऊपर के देश क्रम से हैं – पाकिस्तान, चाड, ईरान, गिनी, माली, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, अल्जीरिया, नाइजर और मोरक्को। यह इंडेक्स 0 से 1 के बीच देशों को लैंगिक समानता की दृष्टि से अंक देता है – 0 यानि सबसे खराब प्रदर्शन और 1 यानि सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन। किसी भी देश को ना तो 0 अंक और ना ही 1 अंक दिया गया है। पहले स्थान पर स्थित आइसलैंड को 0.935 अंक दिए गए हैं, जबकि अंतिम स्थान पर सूडान के 0.568 अंक हैं – भारत के अंक 0.641 हैं।
महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और अर्थव्यवस्था में मौके के सन्दर्भ में भारत इंडेक्स के 146 देशों में 142वें स्थान पर है, यानि दुनिया में कुल 4 देश ऐसे हैं जो हमसे भी खराब स्थिति में हैं। महिलाओं की शिक्षा के सन्दर्भ में हम 112वें स्थान पर हैं, स्वास्थ्य में लैंगिक समानता के सन्दर्भ में भी 142वें स्थान पर हैं। भारत महिलाओं के राजनैतिक सशक्तीकरण में 65वें स्थान पर है, पर यह भागीदारी ग्रामपंचायत और पार्षद के स्तर पर ही नजर आती है। इंडेक्स के अनुसार भारत में केंद्र में महिला मंत्रियों की संख्या औसतन 6.9 प्रतिशत और महिला संसद सदस्यों की संख्या 17.2 प्रतिशत रहती है – मोदी जी के नए मंत्रिमंडल में यह संख्या इससे भी बहुत कम है।
भारत दुनिया के उन देशों के साथ खड़ा है जहां अर्थव्यवस्था में महिलाओं की स्थिति बदतर है। यहाँ जब पुरुष 100 रुपये कमाते हैं तब महिलायें 40 रुपये ही कमा पाती हैं। अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी सबसे कम 31.1 प्रतिशत बांग्लादेश में है। इसके बाद सूडान में 33.7 प्रतिशत, ईरान में 34.3 प्रतिशत, पाकिस्तान में 36 प्रतिशत, भारत में 39.8 प्रतिशत और मोरक्को में 40.6 प्रतिशत है।
हमारे देश की ऐसी हालत तब है, जब प्रधानमंत्री अपने आप को लगातार महिलाओं का मसीहा साबित करते हैं, लगभग हरेक भाषण में नारी शक्ति, बेटी बचाओ, बेटी पढाओ, उज्ज्वला योजना और तीन तलाक बिल की चर्चा करना नहीं भूलते। अफ्रीका में एक देश है, टोंगा. टोंगा दुनिया के सबसे पिछड़े देशों में शुमार है. दूसरी तरफ भारत है, जहां की बढ़ती अर्थव्यवस्था के चर्चे दुनिया में हैं, पर हैरान करने वाला तथ्य यह है कि दुनिया में भारत और टोंगा, दो ही ऐसे देश हैं, जहां पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चो के सन्दर्भ में लड़कियों की मृत्यु दर लड़कों की तुलना में अधिक है। इसका सीधा सा मतलब है कि पांच वर्ष से कम उम्र में लड़कियों की मौत लड़कों से अधिक होती है। इस विश्लेषण को लन्दन के क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ने दुनिया के 195 देशों के आंकड़ों के आधार पर किया है।
ऑस्ट्रिया के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एप्लाइड सिस्टम्स द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पांच वर्ष से कम उम्र की जितनी लड़कियां मरतीं हैं, उनमें से 22 प्रतिशत मौतें केवल इसलिए होती हैं कि वे लड़कियां थीं इसलिए घर-परिवार और समाज ने उन्हें पूरी तरह से उपेक्षित किया। जाहिर है, पूरी दुनिया में किये गए तमाम अध्ययन यही बताते हैं कि हमारे देश में लड़कियों की उपेक्षा इस हद तक की जाती है कि वे जिन्दा भी नहीं रह पातीं। इन सबके बाद भी समाज का और सरकार का रवैया नहीं बदल रहा है।
सन्दर्भ:
1. Global Gender Gap 2024: Insight Report (June 2024), World Economic Forum - https://www.weforum.org/publications/gender-gap-report-2024/
2. Human Development Report 2023/2024, United Nations Development Programme – www.undp.org
3. Iqbal N, Gkiouleka A, Milner A, et al, Girls’ hidden penalty: analysis of gender inequality in child mortality with data from 195 countries, BMJ Global Health 2018;3:e001028
4. https://www.theguardian.com/global-development/2018/may/15/discrimination-deaths-girls-under-five-india-lancet-study