वैश्विक तापमान वृद्धि क्या है– खतरे में भविष्य | Global Warming – Endangered future
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Global Warming – Endangered future | जर्नल ऑफ़ पेडियाट्रिक्स एंड पेरिनेटल एपिडेमियोलॉजी के हाल में ही प्रकाशित विशेष अंक (Special issue of Journal of Pediatrics & Perinatal Epidemiology) के शोधपत्रों से स्पष्ट होता है कि तापमान वृद्धि और वायु प्रदूषण (air pollution and global warming) के कारण प्रजनन क्षमता के साथ ही गर्भ, नवजात और शिशु सभी प्रभावित हो रहे हैं| ऐसा पूरी दुनिया में हो रहा है क्योंकि इसमें प्रकाशित शोधपत्रों को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, डेनमार्क और इजराइल जैसे देशों के वैज्ञानिकों ने अलग-अलग अध्ययन कर प्रकाशित किया है| इजराइल के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि तापमान बढ़ने के कारण शिशुओं का वजन बढ़ता है, जिससे बाद में उनमें मोटापा (Obesity) की समस्या आती है| अनुमान है कि दुनिया में 18 प्रतिशत से अधिक बच्चे मोटापा के शिकार हैं| तह अध्ययन लगभग 2 लाख शिशुओं पर किया गया है|
अमेरिका में कैलिफ़ोर्निया के वैज्ञानिकों ने बताया है कि तापमान बढ़ने के कारण जंगलों में आग लगाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और इस आग के धुंए से जो वायु प्रदूषण फैलता है उसके कारण शिशुओं के जन्म में समस्या (birth defects) बढ़ जाती है, और असामान्य प्रसव की घटनाएं अधिक होती हैं| तापमान बृद्धि के साथ वायु प्रदूषण में बढ़ोत्तरी से असमान्य प्रसव की घटनाएं 28 प्रतिशत तक बढ़ जाती हैं| इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने लगभग 20 लाख बच्चों के जन्म का अध्ययन किया| डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर बताया है कि तापमान बृद्धि के समय शिशुओं के अस्पताल में भरती होने की घटनाएं बढ़ जाती हैं|
अमेरिका के टेक्सास के वैज्ञानिकों के अनुसार जीवाश्म इंधनों के जलने से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण प्रजनन क्षमता कम (Reduced fertility) हो जाती है| इससे पहले इजराइल के चिकित्सा विशेषज्ञों ने वर्ष 1973 से 2011 तक के 7500 बृहत् अध्ययनों के आधार पर बताया कि यूरोप, नार्थ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैण्ड के पुरुषों में स्पर्म कंसंट्रेशन में 54.2 प्रतिशत और स्पर्म काउंट में 59.3 प्रतिशत की कमी आ गयी है| वैज्ञानिकों के अनुसार इसका कारण तापमान बृद्धि है| यह अध्ययन जर्नल ऑफ़ ह्यूमन रिप्रोडक्शन अपडेट (Journal of Human Reproduction Update) में प्रकाशित किया गया था| ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों के दल ने लगभग 10 लाख गर्भवती महिलाओं का अध्ययन का बताया है कि तापमान बृद्धि के कारण समय से पहले जन्म की घटनाएं (premature birth) बढ़ जाती हैं|
इन सबके बीच अमेरिका की संस्था नासा ने नेशनल आर्गेनाईजेशन फॉर एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (NASA & National Organization for Atmospheric Administration) के साथ मिलकर वर्ष 2021 के तापमान का आकलन प्रस्तुत किया है, जिसमें वर्ष 2021 को 6वां सबसे गर्म वर्ष घोषित किया गया है, और बताया गया है कि पृथ्वी का औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है| इससे दो दिन पहले यूरोपियन क्लाइमेट एजेंसी, कॉपरनिकस, (European Climate Agency, Copernicus) के अनुसार पृथ्वी के तापमान की वैज्ञानिक माप के बाद से वर्ष 2021 पांचवां सर्वाधिक गर्म वर्ष रहा है, और पिछले सात वर्ष सबसे गर्म सात वर्ष रहे हैं| यह हालत तब दर्ज की गयी, जबकि पिछले वर्ष पृथ्वी को ठंढा रखने वाला लानीना अत्यधिक प्रभावकारी था| वर्ष 2000 से 2021 तक के वर्ष तापमान के आकलन के बाद से 22 सबसे गर्म वर्षों में शुमार रहे हैं| वर्ष 2021 तक पृथ्वी के औसत तापमान में 1.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हो चुकी है, जबकि पेरिस समझौते के तहत इस शताब्दी के अंत तक तापमान बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना है| यहाँ ध्यान रखने वाला तथ्य यह है कि तापमान के आकलन के लिए नासा और कूपरनिकस, दोनों अलग तरीकों का उपयोग करते हैं, इसी कारण इनके परिणाम भिन्न रहते हैं| पर, दोनों आकलन यही बताते हैं कि पृथ्वी के गर्म होने का सिलसिला बढ़ता जा रहा है और पिछले 10 वर्षों में से 8 मानव इतिहास के सबसे गर्म वर्ष हैं|
पिछले वर्ष उत्तरी अफ्रीका, दक्षिणी एशिया, अमेरिका और दक्षिण अमेरिका में रिकॉर्ड तापमान दर्ज किये गए, और तापमान बढ़ने के कारण उत्तरी ध्रुव से बर्फ पिघलने की दर लगातार बढ़ती जा रही है, जिसके कारण सागर तल में बृद्धि हो रही है| उत्तरी ध्रुव पर जो कुछ होता है, वह उत्तरी ध्रुव पर सिमटा नहीं रहता बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित करता है| पिछले वर्ष दुनिया की एक-चौथाई, या लगभग 1.8 अरब आबादी का सामना अभूतपूर्व तापमान से हुआ| इस समय वायुमंडल में जो कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता है, ऐसी सांद्रता पिछले 40 लाख वर्षों में नहीं मापी गयी, और ऐसा तापमान पिछले 2000 वर्षों में नहीं देखा गया| दुनिया में तापमान का वैज्ञानिक परिमापन 141 वर्ष पूर्व शुरू किया गया था, और पिछले चार दशक लगातार अपने पिछले दशकों के तापमान का रिकॉर्ड तोड़ते रहे हैं| यह सब तापमान बृद्धि के प्रभावों के स्पष्ट उदाहरण हैं| पिछले वर्ष 25 देशों में - जिसमें कनाडा, अमेरिका, चीन, नाइजीरिया और ईरान सम्मिलित हैं – तापमान के रिकॉर्ड ध्वस्त होते रहे| पेरिस समझौते के तहत इस शताब्दी के अंत तक दुनिया के औसत तापमान की बृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकनी है, पर नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार इस दशक में ही किसी वर्ष कुछ समय के लिए तापमान बृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाएगा और वर्ष 2030 से 2040 के बीच दुनिया का औसत तापमान पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो चुका होगा|
जाहिर है दुनिया गर्म होती जा रही है, वायु प्रदूषण निर्बाध गति से बढ़ता जा रहा है – पर दुनिया की सरकारों के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है| वैज्ञानिक लगातार बता रहे हैं कि इसका असर प्रजानन से लेकर बच्चों और किशोरों पर पड़ रहा है| बच्चे दुनिया का भविष्य हैं और भविष्य निश्चित तौर पर असुरक्षित है|