भूखे और कुपोषित भारत को प्रधानमंत्री मोदी दिखा रहे विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का सपना
file photo (4 बच्चों और पति की मौत के बाद भीख मांगकर दो बेटियों के साथ गुजारा करती मुसहर महिला को नहीं मिलता किसी सरकारी योजना का लाभ)
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
Hunger and malnutrition is increasing all over the world, but India is really a VISHVAGURU in this field. वैश्विक स्तर पर सामाजिक अस्थिरता, गृहयुद्ध और पूंजीवादी नीतियाँ भूख और कुपोषण को बढा रही हैं। सीरिया, यमन, सूडान, म्यांमार, नाइजीरिया, तंजानिया और अफ़ग़ानिस्तान जैसे देशों में सामाजिक अस्थिरता और गृहयुद्ध के कारण भूखमरी बढ़ती जा रही हैं। दूसरे अनेक देश अपनी चरम पूंजीवादी नीतियों के कारण एक बड़ी आबादी को भूखमरी की तरफ धकेल रहे हैं। भारत भी ऐसे ही देशों में शामिल है।
वर्ष 2023 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में शामिल कुल 121 देशों में भारत का स्थान 107वां था – यानि दुनिया के महज 14 देशों में भुखमरी और कुपोषण की दर हमसे भी अधिक है। यही भूखा भारत प्रधानमंत्री का न्यू इंडिया है, जिसे वे विश्वगुरु बताते हैं। इसी कुपोषित भारत को प्रधानमंत्री जी तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का सपना दिखा रहे हैं।
हाल में ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में भूखे और कुपोषित लोगों की संख्या लगभग 74 करोड़ है, और वर्ष 2019 के बाद से कोविड 19, जलवायु परिवर्तन के घातक प्रभावों और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इस संख्या में लगभग 12 करोड़ लोग जुड़ गए हैं। दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य, जिसपर दुनिया के अधिकतर देशों ने हस्ताक्षर किये हैं, के अनुसार वर्ष 2030 तक दुनिया को भूख और कुपोषण से मुक्त करना है – जाहिर है इस लक्ष्य तक पहुँचना दुनिया के लिए असंभव है।
यदि भूख और कुपोषण कम करने के लिए सख्त कदम नहीं उठाये गए तो वर्ष 2030 तक दुनिया में खतरनाक स्तर तक कुपोषित लोगों की संख्या लगभग 60 करोड़ रहेगी। इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र की 5 संस्थाओं – फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन, वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम, वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन, यूनिसेफ और इंटरनेशनल फण्ड फॉर एग्रीकल्चर डेवलपमेंट - ने सम्मिलित तौर पर तैयार किया है। इस रिपोर्ट का शीर्षक है – एनुअल स्टेट ऑफ़ फ़ूड सिक्यूरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड 2023।
फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन के महानिदेशक क्यू दोंग्यु के अनुसार तापमान वृद्धि के घातक प्रभावों की तरह भूख और कुपोषण इस दौर का न्यू नार्मल है और पूरी दुनिया इसकी व्यापक चपेट में है। वर्ष 2022 में दुनिया की 11.3 प्रतिशत आबादी खाद्यान्न असुरक्षा से जूझ रही थी और लगभग एक-तिहाई आबादी के पास भोजन तक लगातार और प्रभावी पहुँच नहीं है। खाद्यान्न असुरक्षा का सबसे अधिक प्रभाव शिशुओं पर पड़ता है – वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर 5 वर्ष से कम उम्र के कुल शिशुओं में से 5 करोड़ बच्चों का वजन लम्बाई के अनुसार कम था और 15 करोड़ शिशुओं का विकास बाधित था। यह चरम पूंजीवाद की ही देन है, जिसके कारण वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न से जुडी कंपनियों का मुनाफ़ा बढ़ता जा रहा है और दूसरी तरफ दुनिया भूक्खी और कुपोषित है।
दरअसल चरम पूंजीवादी व्यवस्था में बड़ी अर्थव्यवस्था से किसी भी देश में आर्थिक असमानता बढ़ती है, और यही हमारे देश में भी हो रहा है। हमारे देश में अमीर लगातार और अमीर और गरीब पहले से अधिक गरीब हो रहे हैं। हमारे देश में रोजगार के अवसर घट रहे हैं, छोटे और मझोले कारोबार लगातार बंद होते जा रहे हैं और कृषि संकट में है। मध्यम वर्ग और गरीबों की हरेक शाम पर्याप्त भोजन जुटाने की क्षमता लगातार कम होती जा रही है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2021 के अनुसार दुनिया के 116 देशों के सबसे भूखे लोगों की सूची में मोदी जी के सपनों का न्यू इंडिया 101वें स्थान पर काबिज था और 2020 में कुल 107 देशों में हमारा स्थान 94वें था। हरेक ऐसे इंडेक्स के प्रकाशित होते ही प्रधानमंत्री समेत मंत्रियों और संतरियों द्वारा देश की महान खानपान परंपरा और विरासत, प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की भूखमरी में देन, किसान आन्दोलनों के कारण भुखमरी और वैश्विक इंडेक्स में भारत के साथ सौतेला व्यवहार लम्बे प्रवचन सुनाये जाते हैं और साथ ही मीडिया, बीजेपी आईटी सेल और सोशल मीडिया पर सम्बंधित फेकन्यूज़ और दुष्प्रचार की भरमार रहती है। यही इस सरकार की चारित्रिक विशेषता है, जमीनी हकीकत से कोसों दूर केवल दुष्प्रचार से अपना विकास और देश का विनाश करना।
पिछले कुछ महीनों से दुनिया में खाद्य संकट और भुखमरी पर जब भी चर्चा की गयी, उसे हमेशा रूस-यूक्रेन युद्ध से जोड़ा गया और चरम पर्यावरणीय आपदाओं पर कम ही चर्चा की गयी। ऑक्सफेम की एक रिपोर्ट, “हंगर इन अ हीटिंग वर्ल्ड” के अनुसार बाढ़ और सूखा जैसी स्थितियों के कारण दुनिया में भुखमरी बढ़ रही है और इसका सबसे अधिक असर उन देशों पर पड़ रहा है जो जलवायु परिवर्तन की मार से पिछले दशक से लगातार सबसे अधिक प्रभावित हैं।
ऑक्सफेम की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन दुनिया में असमानता बढ़ा रहा है। जलवायु परिवर्तन अमीर और औद्योगिक देशों द्वारा किये जा रहे ग्रीनहाउस गैसों के कारण बढ़ रहा है, पर इससे सबसे अधिक प्रभावित गरीब देश हो रहे हैं। इसीलिए, ऐसी परिस्थितियों में यदि अमीर देश गरीब देशों की मदद करते हैं तब उसे आभार नहीं कहा जा सकता, बल्कि ऐसी मदद अमीर देशों का नैतिक कर्तव्य है।
संयुक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में पिछले वर्ष की तुलना में 19.3 करोड़ अधिक लोग भुखमरी की चपेट में आ गए – इसका कारण गृह युद्ध और अराजकता, जलवायु परिवर्तन और आर्थिक संकट है। गृहयुद्ध और अराजकता के कारण 24 देशों में लगभग 14 करोड़ आबादी, आर्थिक कारणों से 21 देशों में 3 करोड़ आबादी और चरम पर्यावरणीय आपदाओं के कारण अफ्रीका के 8 देशों में 2 करोड़ से अधिक आबादी भुखमरी की श्रेणी में शामिल हो गयी। वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की एक-तिहाई से अधिक आबादी आर्थिक तौर पर इतनी कमजोर है कि पर्याप्त भोजन खरीद नहीं सकती।