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विमर्श

विश्व बैंक के लैंगिक समानता संबंधी इंडेक्स में फिसड्डी भारत, चीन और नेपाल से भी पीछे

Janjwar Desk
4 March 2021 12:39 PM IST
विश्व बैंक के लैंगिक समानता संबंधी इंडेक्स में फिसड्डी भारत, चीन और नेपाल से भी पीछे
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इस इंडेक्स में हमारे देश में महिलाओं की आजादी, कार्यक्षेत्र और शादी के मामले में भारत को पूरे 100 अंक दिए गए हैं। महिलाओं के वेतन के सन्दर्भ में भारत को केवल 25 अंक, मातृत्व में 40 अंक, उद्यमिता में 75 अंक, संपत्ति में 80 अंक और पेंशन में 75 अंक दिए गए हैं।

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

विश्व बैंक ने हाल में ही "वीमेन, बिज़नेस एंड द लॉ इंडेक्स 2021" प्रकाशित किया है, जिसमें दुनिया के 190 देशों का आकलन महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण की तरफ बढाते कानूनों के आधार पर किया गया है। इन 190 देशों के सन्दर्भ में इस इंडेक्स में भारत 123वें स्थान पर है। इसी इंडेक्स में नेपाल 89वें और चीन 116वें स्थान पर है। यहाँ तक की महिलाओं के अधिकारों को कुचलने के सन्दर्भ में हमेशा सुर्ख़ियों में रहने वाले सऊदी अरब का स्थान भी इंडेक्स में 94वां है।

इस इंडेक्स का आधार महिलाओं की आजादी, कैरियर को चुनने का अधिकार, कार्य क्षेत्र में आजादी, शादी और मान बनाने का अधिकार, संपत्ति पर अधिकार, उद्यमिता और पेंशन से सम्बंधित क़ानून हैं। पिछले 7 वर्षों से विश्व बैंक लगातार इस इंडेक्स को वार्षिक तौर पर प्रकाशित करता रहा है। इस इंडेक्स में भारत को कुल 74.4 अंक मिले है और स्थान 123वां है।

सबसे ऊपर के दस देश हैं – बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, आयरलैंड, लाटविया, लक्सम्बर्ग, पुर्तगाल और स्वीडन। इन सभी देशों के 100 अंक मिले हैं। इस इंडेक्स में सबसे नीचे के 10 देश/क्षेत्र हैं – वेस्ट बैंक और गाजा, यमन, कुवैत, सूडान, क़तर, ईरान, ओमान, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान और गिनी-बिस्साऊ।

इस इंडेक्स के अनुसार दुनिया में लैंगिक समानता बढ़ रही है, हालांकी इसकी रफ़्तार धीमी है। अब राष्ट्रीय श्रम में और उत्पादन में महिलाओं की भागेदारी पहले से अधिक है और महिलाओं को देशों की संसद में अधिक स्थान मिल रहा है। फिर भी पुरुषों को जितने कानूनी अधिकार मिले हैं, उसकी तुलना में महिलाओं को औसतन तीन-चौथाई अधिकार ही मिले हैं। वर्ष 2019 की तुलना में कुल 27 देश ऐसे हैं, जिनमें महिलाओं के अधिकार बढे हैं, इन देशों में भारत नहीं है। सबसे अधिक प्रगति मध्य-पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और ओईसीडी के अमीर देशों में देखा गया है।

अनेक देशों में सामान वेतन और मातृत्व से सम्बंधित क़ानून बनाए गए हैं पर संपत्ति पर अधिकार से सम्बंधित किसी देश में नहीं बनाए गए हैं। पिछले 50 वर्षों के दौरान लैंगिक समानता में सबसे अधिक प्रगति दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और औद्योगिक देशों में दर्ज की गई है।

इस इंडेक्स में हमारे देश में महिलाओं की आजादी, कार्यक्षेत्र और शादी के मामले में भारत को पूरे 100 अंक दिए गए हैं। महिलाओं के वेतन के सन्दर्भ में भारत को केवल 25 अंक, मातृत्व में 40 अंक, उद्यमिता में 75 अंक, संपत्ति में 80 अंक और पेंशन में 75 अंक दिए गए हैं। वैसे लैंगिक समानता से सम्बंधित किसी इंडेक्स में भारत का फिसड्डी होना कोई नई बात नहीं है।

वर्ष 2017 में विश्व बैंक की महिला श्रमिकों से सम्बंधित रिपोर्ट में कुल 131 देशों में से 120वें स्थान पर था, जबकि कुल स्नातकों में से 42 प्रतिशत महिलायें हैं। वर्ष 2020 के ह्युमन डेवलपमेंट इंडेक्स में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ने कुल 189 देशों में से भारत को 131वें स्थान पर रखा था।

पुरुष प्रधान समाज को यह तथ्य समझ पाना थोड़ा कठिन है कि महिलायें विकास का दूसरा नाम हैं। मानवाधिकार, महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता केवल महिलाओं को ही आगे बढ़ने में मदद नहीं करते बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था और देश को आगे बढ़ने में मदद करते हैं।

हाल में ही बीजेएम ओपन नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार जिन देशों में महिलाओं को अधिक अधिकार दिए गए हैं और जिन देशों में लैंगिक बराबरी है, उन देशों में लोगों का स्वास्थ्य अधिक अच्छा रहता है और वह देश सतत विकास की तरफ तेजी से बढ़ता है। इस शोधपत्र के लिए दुनिया के 162 देशों के वर्ष 2004 से 2010 तक के आंकड़ों का अध्ययन किया गया है। इसके लिए लैंगिक समानता, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।

इससे पहले भी लैंगिक समानता पर अनेक शोध किये गए हैं। महिलाओं की भागीदारी बढाने पर किसी भी देश का पर्यावरण विनाश रुक जाते है और देश पर्यावरण अनुकूल विकास की तरफ बढ़ता है। जिन देशों में लैंगिक समानता है, वहां शिशु मृत्यु दर कम हो जाती है।

सबसे बड़ी बात है की लैंगिक समानता के मामले में जो देश आगे हैं, वही देश हैप्पीनेस इंडेक्स में भी ऊपर हैं, यानि वहां के लोग अधिक खुश हैं। फ़िनलैंड, स्वीडन, नोर्वे, डेनमार्क, नीदरलैंड और आइसलैंड कुछ ऐसे ही देश हैं, जहां पूरी तरह से लैंगिक समानता है और सामाजिक विकास और पर्यावरण के किसी भी इंडेक्स में यही देश सबसे आगे भी रहते हैं।

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