भारत में हर इंसान की उम्र वायु प्रदूषण के कारण औसतन 5.2 वर्ष हो जाती है कम
आज हो चुके हैं राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के 4 साल पूरे और 6897.06 करोड़ रुपये खर्च, मगर लक्ष्य अब भी आधा-अधूरा
महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
सरकारों को वायु प्रदूषण का कोई प्रभाव नहीं दिखता है, केंद्र में पर्यावरण मंत्रालय में बैठा हरेक मंत्री संसद को बताता है कि वायु प्रदूषण से कोई मरता नहीं, किसी की आयु कम नहीं होती और कोई बीमार भी नहीं पड़ता। फिर भी लगातार अंतराल पर वायु प्रदूषण के भयानक प्रभाव से सम्बंधित रिपोर्ट प्रकाशित होती रहती हैं, और भारत सरकार के मंत्री ऐसी रिपोर्टों को बिना देखे और बिना पढ़े सिरे से नकार देते हैं।
जाहिर है, ये सभी रिपोर्टें विदेशी संस्थानों द्वारा प्रकाशित होतीं हैं, क्योंकि अपने देश में सरकार के विरुद्ध जाकर किसी रिपोर्ट के प्रकाशित करने की हिम्मत न तो यहाँ के वैज्ञानिकों में है और ना ही यहाँ के किसी संस्थान में। प्रदूषण नियंत्रण से सम्बंधित देश की सर्वोच्च वैज्ञानिक संस्था, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, केवल वही बता सकता है जैसा मंत्री जी या प्रधानमंत्री जी चाहते हैं। प्रधानमंत्री जी तो पर्यावरण के नाम पर पांच हजार वर्षों की परंपरा याद करते हैं।
ऐसे ही रिपोर्टों की कड़ी में नयी रिपोर्ट यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो के एनर्जी पालिसी इंस्टिट्यूट द्वारा प्रकाशित की गई है, जो एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स पर आधारित है। इसके अनुसार भारत में पिछले दो दशक के दौरान वायु प्रदूषण में 42 प्रतिशत की बृद्धि हो गई है। कोविड 19 के दौर के पहले भी यह समाज को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख कारण था और यदि तेजी से इसे रोकने के प्रयास नहीं किये गए तब कोविड 19 के दौर के बाद भी स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला यही सबसे बड़ा कारण रहेगा। भारत की एक-चौथाई से अधिक आबादी जिस वायु प्रदूषण के स्तर में रहती है, वह स्तर दुनिया में कहीं नहीं मिलता।
भारत की पूरी आबादी जिस वायु प्रदूषण के स्तर में रहती है, वह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा सुझाए गए मानकों से अधिक है और देश की 84 प्रतिशत से अधिक आबादी ऐसे माहौल में रहती हैं जहां वायु प्रदूषण का स्तर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों से अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में हरेक व्यक्ति की आयु वायु प्रदूषण के कारण औसतन 5.2 वर्ष कम हो जाती है। दिल्ली के वायु प्रदूषण की खूब चर्चा की जाती है, पर इससे आगे कुछ नहीं होता। दिल्ली के बारे में रिपोर्ट बताता है कि यदि यहाँ वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुरूप हो तब यहाँ के निवासियों की आयु में 9.4 वर्षों की बृद्धि हो जायेगी, और यदि केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वायु प्रदूषण मानकों के अनुरूप प्रदूषण का स्तर हो तब भी औसत आयु में 6.5 वर्षों की बृद्धि हो जायेगी।
उत्तर प्रदेश और हरियाणा में भी वायु प्रदूषण के कारण लोगों की आयु 8 वर्ष कम हो रही है, जबकि बिहार और पश्चिम बंगाल के लिए यह समय 7 वर्ष का है। रिपोर्ट के अनुसार यदि भारत में औसत वायु प्रदूषण में 25 प्रतिशत की भी कमी की जा सके तब भी भारतीयों का जीवन 1.6 वर्ष बढ़ जाएगा, जबकि दिल्ली के लोगों का जीवन 3.1 वर्ष बढ़ जाएगा। पूरे उत्तर प्रदेश में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक है, पर राजधानी लखनऊ सबसे प्रदूषित है। यहाँ के निवासियों का जीवन 10.3 वर्ष केवल वायु प्रदूषण के कारण कम हो रहा है।
दुनिया में वायु प्रदूषण लगभग हरेक जगह है और दुनिया में लोगों की औसत आयु 2 वर्ष केवल वायु प्रदूषण के कारण कम हो रही है। सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र दक्षिण एशिया है और इसके बाद दक्षिण पूर्व एशिया का स्थान है। दक्षिण एशिया में भारत से भी अधिक प्रदूषित बांग्लादेश है, जहां लोगों की आयु 6.2 वर्ष कम हो रही है, राजधानी ढाका के लिए तो यह समय 7.2 वर्ष का है। नेपाल में लोगों की आयु में 4.7 वर्ष और पाकिस्तान में 2.7 वर्ष की कमी आ रही है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि भारत में शीघ्र ही प्रभावी कदम उठाये जाते हैं तो करोड़ों लोगों का जीवन स्तर सुधार जा सकता है। पर, हमारी सरकार तो ऐसी रिपोर्टों को बिना पढ़े ही खारिज करने में माहिर है, और उम्मीद तो यही है कि इस रिपोर्ट के साथ भी ऐसा ही कुछ होगा।