Microplastics in Lungs and Blood: हमारे फेफड़े तक पहुंच चुका है प्लास्टिक, क्या प्लास्टिक का कोई विकल्प नहीं?
Microplastics in Lungs and Blood: हमारे फेफड़े तक पहुंच चुका है प्लास्टिक, क्या प्लास्टिक का कोई विकल्प नहीं?
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
Microplastics in Lungs and Blood: पहली बार वैज्ञानिकों को जिन्दा व्यक्ति के फेफड़े की गहराई में प्लास्टिक के बहुत छोटे कण यानि माइक्रोप्लास्टिक (Microplastic) मिले हैं| यूनाइटेड किंगडम के हलयॉर्क मेडिकल स्कूल की फेफड़ा विशेषज्ञ लौरा सदोफ्स्की ( Laura Sadofsky of Hull York Medical School) के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के दल ने फेफड़े के ऑपरेशन से गुजरते 13 मरीजों के फेफड़ों से हटाये गए उत्तकों का बारीकी से अध्ययन किया और इनमें से 11 मरीजों के फेफड़े के उत्तकों में माइक्रोप्लास्टिक मिले| इस अध्ययन के लिए उत्तकों में मौजूद 0.003 मिलीमीटर आकार तक के कणों का अध्ययन किया गया और फिर प्लास्टिक के प्रकार की जांच के लिए स्पेक्ट्रोस्कोपी का सहारा लिया गया| सबसे अधिक सांद्रता पालीप्रोपैलीन (Polypropylene) की थी, जो पैकेजिंग और पाइप में मिलता है, दूसरे स्थान पर पानी की प्लास्टिक की बोतलों में मिलाने वाला पीईटी यानि पेट (PET) था| यह अध्ययन साइंस ऑफ़ टोटल एनवायरनमेंट (Science of Total Environment) नामक जर्नल में प्रकाशित किया जाने वाला है|
जाहिर है प्लास्टिक से हम कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, यह पाइप से आने वाले पानी के साथ भी शरीर में पहुँच रहा है और बोतलबंद पानी के साथ भी| लौरा सदोफ्स्की के अनुसार फेफड़े में माइक्रोप्लास्टिक की सांद्रता और उनके कणों के आकार आश्चर्यजनक है इस दल को अनुमान नहीं था कि फेफड़े के अंदरूनी हिस्से में इनकी सांद्रता इतनी अधिक हो सकती है| फेफड़े के अंदरूनी हिस्सों में हवा जाने का मार्ग बहुत संकुचित होता है और अबतक माना जाता था कि इसमें बड़े कण प्रवेश नहीं कर सकते, पर इस अध्ययन के बाद यह धारणा भी बदलने की जरूरत है|
इस अध्ययन के बाद लौरा सदोफ्स्की का कहना है कि वायु प्रदूषण के प्रति पहले से अधिक गंभीरता से सोचने की जरूरत है| फेफड़े में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषित वायु के साथ ही पहुँच सकते हैं और इनका स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है किसी को नहीं मालूम| वायु प्रदूषण के बारे में तो स्पष्ट है कि यह शरीर के हरेक अंग को प्रभावित करता है| इससे पहले मार्च 2022 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पहली बार माइक्रोप्लास्टिक मानव रक्त में मिले थे| मानव रक्त के साथ माइक्रोप्लास्टिक पूरे शरीर में फैलाते हैं और विभिन्न अंगों में जमा हो जाते हैं| इस अध्ययन को एनवायरनमेंट इंटरनेशनल (Environment International) नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है| एम्स्टर्डम स्थित वृजे यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डिक वेठाक (Prof Dick Vethaak of Vrije University) के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के दल ने 22 व्यक्तियों के रक्त के नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक की जांच की और इसमें से 17 नमूनों में ये मौजूद थे| सबसे अधिक नमूनों में बोतलों का प्लास्टिक, पीईटी, मिला, इसके बाद पैकेजिंग का प्लास्टिक पालीस्टाइरीन और फिर प्लास्टिक बैग के प्लास्टिक पालीईथीलीन की उपस्थिति थी| रक्त के कई नमूनों में तीनों प्लास्टिक मौजूद थे| इन वैज्ञानिकों के अनुसार रक्त में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक रक्त के साथ शरीर के हरेक अंग में जा सकते हैं और इनमें एकत्रित हो सकते हैं, पर अभी यह अध्ययन किया जाना शेष है कि क्या ये प्लास्टिक रक्त के साथ मस्तिष्क में भी प्रवेश करते हैं या नहीं| माइक्रोप्लास्टिक लाल रक्त कोशिकाओं के सतह पर जमा होते हैं और इससे इनमें ऑक्सीजन का परिवहन बाधित होता है| इससे पहले एक अध्ययन में बताया गया था कि माइक्रोप्लास्टिक पाचन तंत्र में जमा होते हैं और शीशों के मल में वयस्क लोगों की अपेक्षा प्लास्टिक की सांद्रता 10 गुना तक अधिक रहती है| इसका कारण शिशुओं के दूध पीने की प्लास्टिक की बोतल है, जिससे प्लास्टिक रिश्ता है और पाचन तंत्र तक पहुँच जाता है|
प्लास्टिक के छोटे टुकडे जो हवा में तैरते हैं और सांस के साथ हमारे अन्दर जाते हैं, उनपर खतरनाक रसायनों, हानिकारक बैक्टीरिया और वाइरस का जमावड़ा भी हो सकता है| कुछ मामलों में इसके असर से कैंसर भी हो सकता है| प्लास्टिक का मानव शरीर में आकलन कठिन काम है, शायद इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार बताता है की प्लास्टिक हरेक जगह है, मानव अंगों में भी है, पर इससे कोई नुकसान नहीं होता| प्लास्टिक का कचरा महासागर के जीवों से लेकर गायों के पेट तक पहुँच रहा है| इन सबकी खूब चर्चा भी की जाती है| पर. एक नया अनुसन्धान यह बताता है कि एक औसत मनुष्य भोजन और सांस के साथ प्रतिवर्ष लगभग सवा लाख प्लास्टिक के टुकड़े को अपने शरीर के अन्दर पहुंचा रहा है| यह अनुसंधान एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है|
इस शोधपत्र के मुख्य लेखक यूनिवर्सिटी ऑफ़ विक्टोरिया के वैज्ञानिक डॉ किएरन कॉक्स हैं| इस दल ने खाद्य पदार्थों में मौजूद प्लास्टिक से सम्बंधित प्रकाशित अनेक शोधपत्रों के अध्ययन, वायु में मौजूद प्लास्टिक की सांद्रता और मनुष्य के प्रतिदिन के औसत खाद्य पदार्थ के आधार पर यह बताया कि उम्र और लिंग के आधार पर औसत मनुष्य प्रतिवर्ष 74000 से 121000 के बीच प्लास्टिक के टुकड़ों को ग्रहण करता है| कुल मिला कर हालत यह है कि प्रतिदिन एक सामान्य मनुष्य प्लास्टिक के 142 टुकड़े खाद्यपदार्थों के साथ और 170 टुकड़े सांस के साथ अपने शरीर के भीतर डालता है| इस शोधपत्र के अनुसार यदि कोई केवल बोतलबंद पानी ही पीता है, तब उसके शरीर में प्रतिवर्ष 90000 प्लास्टिक के अतिरिक्त टुकड़े जाते हैं|
वर्ष 2021 में ब्राज़ील के वैज्ञानिकों ने बताया था कि शरीर के उत्तकों में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद हैं| इन वैज्ञानिकों ने 20 व्यक्तियों के ऑटोप्सी के नमूनों की जांच की थी और इनमें से 13 नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक मौजूद था और अधिकतर नमूनों में थैली वाला पालीईथीलीन मिला| पार्टिकल एंड फाइबर टेक्नोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार गर्भवती चूहों के फेफड़े से गर्भ में पल रहे शिशु के ह्रदय, मस्तिष्क और दूसरे अंगों तक माइक्रोप्लास्टिक आसानी से पहुँच जाता है| इस अध्ययन को रुत्गेर्स यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर फोएबे स्ताप्लेतों की अगुवाई में किया गया है, और इस अध्ययन के अनुसार जिन गर्भस्थ शिशुओं में माइक्रोप्लास्टिक या नैनोप्लास्टिक पहुंचता है, उन शिशुओं का वजन सामान्य शिशुओं की तुलना में कम रहता है| अध्ययन के दौरान जब गर्भवती चूहे को माइक्रोप्लास्टिक के माहौल में रखा गया तब महज 90 मिनट के भीतर यह प्लास्टिक प्लेसेंटा तक पहुँच गया|
वर्ष 2019 और 2020 के दौरान किये गए अनेक अध्ययनों में गर्भवती महिलाओं के प्लेसेंटा में और गर्भ में पल रहे शिशुओं में नैनोप्लास्टिक पाए गए हैं| अक्टूबर, 2020 में डबलिन के ट्रिनिटी कॉलेज के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार जिन शिशुओं को प्लास्टिक की बोतल से दूध पिलाया जाता है, उनके शरीर में दूध के साथ लगातार नैनोप्लास्टिक जाता है|
मानव शरीर में प्लास्टिक की उपस्थिति के बारे में सबसे पहले अमेरिकी वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी| वर्ष 1998 में अमेरिका में कुछ फेफड़ा कैंसर विशेषज्ञों ने एक शोधपत्र प्रकाशित कर बताया था कि लगभग 100 मरीजों के नमूनों ने प्लास्टिक और कपड़ों के रेशे पाए गए हैं| इन वैज्ञानिकों के अनुसार 97 प्रतिशत कैंसर उत्तकों में और 83 सामान्य उत्तकों में इनकी उपस्थिति देखी गयी है|
आश्चर्य यह है कि वर्ष 1998 से आजतक मानव शरीर में प्लास्टिक की उपस्थिति का कभी समग्र तौर पर अध्ययन नहीं किया गया है और ना ही शरीर में मौजूद प्लास्टिक का स्वास्थ्य पर प्रभाव का विस्तृत आकलन किया गया है| इन सबके बीच हाड-मांस का बना मनुष्य प्लास्टिक के ढाँचे में तब्दील हो रहा है|