CAA लागू करने की बात से सुलगा पूर्वोत्तर, विभाजनकारी कानून के सहारे बंगाल में वोटों की फसल काटना चाहती है मोदी सरकार
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
इस देश के लोकतंत्र, अमन-चैन और भाईचारे को तबाह करने के संघ और कारपोरेट के एजेंडे को लागू कर रही मोदी सरकार ने जनवरी में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लागू करने का संकेत दिया है। यह बात भी आईने की तरह साफ हो गया है कि देशव्यापी सीएए आंदोलन को कुचलने और सार्वजनिक सम्पत्तियों को ठिकाने लगाने के लिए ही मोदी सरकार ने कोरोना का बहाना बनाकर देश भर में बर्बर लॉकडाउन लागू किया था, जिसकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था रसातल में पहुंच चुकी है।
फिर किसानों को कारपोरेट का गुलाम बनाने के लिए मोदी सरकार किसान बिल लेकर आई। किसान बिल पर हो रहे आंदोलन का भी उस पर कोई असर होता दिखाई नहीं दे रहा है। इस आंदोलन में जब देश उलझा हुआ है तब वह धड़ल्ले से जन विरोधी फैसले ले रही है। खिलजी की तरह दिल्ली को बर्बाद करने के लिए नए संसद भवन की आधारशिला रख रही है तो दूसरी तरफ संविधान को गर्त में फेंक कर धर्म पर आधारित नागरिकता कानून लागू करने की हठधर्मिता दिखा रही है।
मोदी सरकार बहुचर्चित नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के नियम तैयार कर रही है। गृहमंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में यह जानकारी दी है। पिछले साल सरकार ने दोनों सदनों में नागरिकता संशोधन बिधेयक को पास करा लिया था, जिसके अगले दिन 12 दिसंबर को राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर करके इसे अंतिम स्वीकृति दे दी थी।
हालांकि अभी तक नियम तैयार करने की प्रक्रिया पूरी न हो पाने से नागरिकता कानून अप्रभावी बना हुआ है। नियम तैयार होने के बाद इसकी अधिसूचना जारी हो जाएगी और देशभर में नागरिकता कानून लागू हो जाएगा। इसी बीच कानून को लेकर पूर्वोत्तर से एकबार फिर विरोध के स्वर उठने लगने लगे हैं।
कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) के नेतृत्व में 18 संगठनों के एक समूह ने शुक्रवार को ऊपरी असम के शिवसागर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया और पूरे राज्य में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ आंदोलन तेज करने की धमकी दी।
ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने 'रणहुंकार' अभियान शुरू करके सीएए के विरोध को फिर से तीव्र करने का फैसला किया है। आंदोलन का उद्देश्य अधिनियम को निरस्त करने के लिए दबाव बनाना है।
आसू के महासचिव शंकर ज्योति बरुवा ने कहा, "सरकार को असम विरोधी नागरिकता सन्नशोधन कानून को रद्द करना पड़ेगा। पिछले साल सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान निर्दोष छात्रों सहित असम के पांच नागरिकों की जान जा चुकी है। पांच शहीदों के परिवार के लिए हम न्याय मांगते रहेंगे। "
संसद के उच्च सदन राज्यसभा द्वारा पारित किए जाने के बाद असम में छात्र संगठनों ने सीएए के खिलाफ विरोध शुरू किया था। विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए और पांच लोग मारे गए थे। कोरोना के कारण आंदोलन फरवरी में स्थगित किया गया था।
विवादास्पद अधिनियम, जिसके खिलाफ 2019 में देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ था, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से गैर-मुस्लिमों के लिए भारतीय नागरिकता का प्रावधान करता है। विभिन्न छात्र समूहों, साथ ही राजनीतिक दलों ने, अधिनियम का विरोध किया है, यह दावा करते हुए कि यह भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को नुकसान पहुंचाता है और इस प्रकार असंवैधानिक है।
इस बीच असम में राजनीतिक दलों और संगठनों के एक सीएए विरोधी फोरम ने विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ एकजुट लड़ाई का आह्वान किया है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले नए कानून को रद्द करने के लिए भाजपा नीत सरकार पर दबाव बनाने का संकल्प लिया गया है।
"हमने सीएए विरोधी आंदोलन की वर्षगांठ पर इस आंदोलन को तीव्र करने का फैसला किया है। हम न केवल असंवैधानिक कानून के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए अपनी प्रतिज्ञा को नवीनीकृत कर रहे हैं, बल्कि सभी सीएए-विरोधी ताकतों से एकजुट लड़ाई लड़ने के लिए अपील कर रहे है, "सीएए विरोधी फोरम के मुख्य समन्वयक देबेन तामुली ने संवाददाताओं से कहा।
भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने पिछले सप्ताह पश्चिम बंगाल में कहा कि नागरिकता (संशोधन) अधिनियम अगले साल जनवरी से लागू होने की संभावना है। केंद्र सरकार और भाजपा पश्चिम बंगाल में बड़ी संख्या में शरणार्थी आबादी को नागरिकता देने की इच्छुक है। साथ ही अप्रत्याशित रूप से उन्होंने घोषणा की कि संभावना है कि अगले साल जनवरी से सीएए के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करना शुरू हो जाएगा।
अगले साल पश्चिम बंगाल और असम के विधानसभा चुनाव हैं। इन दोनों राज्यों में शरणार्थियों को नागरिकता देने का मुद्दा अहम रहा है क्योंकि इन दोनों राज्यों की सीमाएं बांग्लादेश से मिलती हैं। ऐसे में विशेषज्ञ मान रहे हैं कि इन चुनावों से पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम को पूरी तरह लागू करा दिया जाएगा।
दूसरी तरफ असम में एनआरसी का मुद्दा फिर गरमा गया है। दरअसल, असम में पिछले साल राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर या एनआरसी की सूची प्रकाशित की गई थी। जिसमें 19 लाख से अधिक लोगों को बाहर कर दिया गया, ये ऐसे लोग हैं जो अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए। अब इस सूची को असम सरकार ने अंतिम सूची के बजाय सप्लीमेंट्री सूची बताया है।
हाल में एक याचिका की सुनवाई के जवाब में असम सरकार ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय को जानकारी दी कि पिछले साल प्रकाशित हुई एनआरसी सूची, एक सप्लीमेंट्री लिस्ट थी और एनआरसी की अंतिम सूची आना बाकी है। स्टेट समन्वयक की ओर से अदालत को बताया गया कि 31 अगस्त 2019 को छपी सूची में दस हजार नाम फर्जी तरीके से हटा अथवा जोड़ दिए गए। अब इस सूची से 4800 से अधिक अयोग्य नामों हो हटाया जाएगा।
नार्थ ईस्टर्न स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसु) समेत कई संगठनों ने शुक्रवार को नागरिकता संशोधन कानून के संसद से पास होने की वर्षगांठ को काला दिवस के रूप में मनाया। नार्थ ईस्टर्न स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन में पूर्वोत्तर के सात राज्यों के आठ छात्र संगठन शामिल हैं।
सीएए का मकसद नागरिकता अधिनियम,1955 में संशोधन करते हुए पाकिस्तान,बांग्लादेश और अफगानिस्तान के हिन्दू,सिख,बौद्ध,जैन,पारसी और ईसाई धर्मावलम्बी अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता प्रदान करना है। दूसरे शब्दों में इस कानून की वजह से भारत के तीन पड़ोसी देशों के गैर-मुस्लिम प्रवासियों के लिए भारत की नागरिकता हासिल करना आसान हो जाएगा।
नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता के लिए आवश्यकताओं में से एक यह है कि आवेदक को पिछले 12 महीनों तक रहने केसाथ ही पिछले 14 वर्षों में से 11 के दौरान भारत में निवास करना चाहिए।
संशोधन इन छह धर्मोंऔर उपरोक्त तीन देशों से संबंधित आवेदकों के लिए एक विशिष्ट शर्त के रूप में 11 वर्ष से 6 वर्ष तक की दूसरी आवश्यकता को शिथिल करता है। नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत, एक व्यक्ति जो भारत में पैदा हुआ है, या जिसका भारतीय माता-पिता है, या एक निर्दिष्ट अवधि में भारत में रहता है, भारतीय नागरिकता के लिए पात्र है।
अवैध प्रवासी भारतीय नागरिक नहीं बन सकते। अधिनियम के तहतएक अवैध प्रवासी एक विदेशी है जो: (i) वैध यात्रा दस्तावेजों जैसे पासपोर्ट और वीजा के बिना देश में प्रवेश करता है, या (ii) वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करता है, लेकिन अनुमत समय अवधि से परे रहता है। अवैध प्रवासियों को जेल या विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत निर्वासित किया जा सकता है।
हालांकि, 2015 और 2016 में, सरकार ने 1946 और 1920 अधिनियमों के प्रावधानों से अवैध प्रवासियों के निर्दिष्ट समूहों को छूट दी। वे अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई थे, जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत पहुंच गए थे।इसका मतलब यह है कि अवैध प्रवासियों की इन विशेष श्रेणियों को वैध दस्तावेजों के बिना भारत में रहने के लिए निर्वासित या जेल नहीं भेजा जाएगा।
नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिए नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 संसद में पारित किया गया, ताकि इन लोगों को भारत की नागरिकता के योग्य बनाया जा सके।
सीएए के खिलाफ दिल्ली के शाहीनबाग में मुस्लिम महिलाओं के नेतृत्व में आंदोलन शुरू हुआ जो पूरे विरोध प्रदर्शनों का केंद्र बन गया। जामिया हिंसा, अलीगढ़ विश्वविद्यालय हिंसा और दिल्ली दंगे भी इसी कड़ी की घटनाएं हैं।
सर्वोच्च न्यायालय में नागरिकता संशोधन कानून को चुनौती देने वाली 140 से अधिक याचिकाएं दायर हैं पर अभी उनपर सुनवाई नहीं हुई है। अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता कमेटी के अमेरिकी राजदूत सैम ब्राउनबैक ने गुरुवार को कहा कि नागरिकता संशोधन कानून जैसे मुद्दों पर अमेरिका भारत पर लगातार करीबी नजर बनाए हुए है।