ईरान में पानी को लेकर चल रहा जन आंदोलन, 2019 में सैनिकों ने मार डाले थे 1100 लोग
(इस वर्ष भी सेना और प्रशासन ने आंदोलन को कुचलने की पूरी तैयारी की है। क्षेत्र में इन्टरनेट की सेवा को रोक दिया गया है)
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
जनज्वार। इस समय जब यूरोप का बड़ा क्षेत्र, अमेरिका के कुछ हिस्से, न्यूज़ीलैण्ड, चीन और भारत बाढ़ की विभीषिका झेल रहा है, तब ईरान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित खुजेस्तान प्रांत में पानी के लिए जन-आन्दोलन किया जा रहा है। ईरान का यह क्षेत्र पेट्रोलियम समृद्ध इलाका है, पर यहाँ पानी की भयंकर किल्लत है। इस वर्ष मार्च से यह क्षेत्र भयंकर सूखे की चपेट में है, और पानी का भयंकर अकाल है। लगभग एक सप्ताह पहले से खुजेस्तान प्रान्त के अनेक हिस्सों में पानी, आर्थिक पिछडापन और गरीबी की मांगों के साथ जन-आन्दोलन किये जा रहे है। एम्नेस्टी इन्टरनॅशनल के अनुसार ईरान की सरकार इन आन्दोलनकारियों की मांगें सुन भी नहीं रही है और इस आन्दोलन का दमन कर रही है।
ईरान सरकार के अनुसार खुजेस्तान में स्थिति सामान्य है और किसी तरह के हिंसा की खबर नहीं है। ईरान के सर्वेसर्वा अयातुल्ला खामेनी के अनुसार इस क्षेत्र में पानी की कमी से सरकार वाकिफ है, और इसका समाधान किया जा रहा है। खामेनी के अनुसार इस क्षेत्र के निवासी पूरी तरह से राष्ट्रवादी हैं और 1980 के दशक के ईरान-इराक युद्ध में ईरान का खूब साथ दिया था।
राष्ट्रपति हसन रूहानी के अनुसार आन्दोलन इन लोगों का मौलिक अधिकार है। पर, ऐम्नेस्टी इन्टरनेशनल के अनुसार इन आन्दोलनों को कुचलने के लिए सैनिक स्वचालित हथियारों का उपयोग कर रहे हैं, जबकि आन्दोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण है। अब तक सैनिकों द्वारा लगभग 10 व्यक्ति मारे जा चुके हैं, जिसमें एक किशोर भी शामिल है।
पानी की मांग को लेकर ईरान में वर्ष 2019 में देशव्यापी आन्दोलन किये गए थे। आन्दोलन शांतिपूर्ण थे, पर सैनिकों ने लगभग 1000 नागरिकों को मार डाला था। वर्ष 2019 में अकेले खुजेस्तान में 304 आन्दोलनकारियों को सैनिकों ने मारा था। इस वर्ष भी सेना और प्रशासन ने आंदलन को कुचलने की पूरी तैयारी की है। इस क्षेत्र में इन्टरनेट की सेवा को रोक दिया गया है और बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश वर्जित है। जाहिर है, यह सब कदम केवल इसलिए उठाये गए हैं कि जन-आन्दोलन और इसके दमन की खबरें बाहर नहीं आ सकें।
मृदु पानी की घटती उपलब्धता, बेतहाशा बढ़ती जनसँख्या, जल संसाधनों का अवैज्ञानिक उपयोग और बदलते जलवायु और तापमान बृद्धि के कारण जल संसाधनों पर प्रभाव के कारण पानी पर असर पड़ रहा है। पैसिफिक इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष पीटर ग्लिक के अनुसार, पानी सबके लिए जरूरी है और धीरे-धीरे इसकी उपलब्धता कम होती जा रही है इसलिए लोग अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। पैसिफिक इंस्टिट्यूट 1980 के दशक से पानी से सम्बंधित हिंसा के प्रकाशित आंकड़े को एकत्रित कर रहा है और आंकड़ों के अनुसार दशक-दर-दशक पानी से सम्बंधित हिंसा में मारे जाने वाले और प्रभावित होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।
वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टिट्यूट के अनुसार दुनिया में भारत समेत 17 देश ऐसे हैं जहां पानी की भयानक कमी है, इनमें से 12 देश मध्य-पूर्व में स्थित हैं। भारत में पिछले दशक के दौरान प्रकाशित खबरों के अनुसार 31 लोग पानी से सम्बंधित हिंसा में मारे गए, जबकि इसके पहले के दशक में केवल 11 ऐसी मौतें हुई थीं।
इन आंकड़ों के बीच वर्ष 2019 में भारत समेत विश्व के 92 देशों के 1100 से अधिक वैज्ञानिकों ने भू-जल की समस्याओं से दुनिया को आगाह किया था। काल ऑफ़ एक्शन के नाम से संयुक्त राष्ट्र में भेजे गए इस पत्र के अनुसार पूरी दुनिया में भूजल खतरे में है और इसका विवेकहीन इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे नयी समस्याएं उठ खडी होंगीं क्योंकि दुनिया की लगभग तीन अरब आबादी इसपर पूरी तरह से निर्भर है, और दुनिया भर में कृषि में जितने पानी का उपयोग किया जाता है उसमें से 70 प्रतिशत से अधिक का आधार भूजल ही है। अमेरिका में भूजल जितना नीचे पहुँच गया है, उतना नीचे कभी नहीं रहा। इस दल के एक सदस्य आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिक अभिजित बनर्जी के अनुसार भारत में भी यही हाल है।
वर्तमान में विश्व में उपलब्ध मृदु जल के भण्डार में से 99 प्रतिशत भूजल के तौर पर उपलब्ध है। लगभग 15 प्रतिशत नदियाँ और झीलें पूरी तरह से भूजल पर आधारित हैं और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक अधिकतर नदियाँ भूजल पर आश्रित होंगीं क्योंकि दुनियाभर के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। ऐसे में यदि भूजल भी उपलब्ध नहीं होगा या फिर प्रदूषित होगा तब मानवता के सामने एक बड़ी समस्या होगी।
जाहिर है, पानी एक बड़ी समस्या बनकर उभर रहा है और इसके चलते हिंसा हो रही है। पानी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा है, ऐसे में क्या पानी की इस चुनौती को दुनिया गंभीरता से लेगी या फिर जलवायु परिवर्तन की तरह इसपर केवल चर्चा ही होती रहेगी?