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विमर्श

Placenta previa- Symptoms and causes: इन वजहों से मां बनने में प्लेसेंटा प्रीविया वाली समस्या आ रही, जानिए इससे कैसे बचें और कब क्या कदम उठाएं

Janjwar Desk
29 Dec 2021 3:11 PM IST
Placenta previa- Symptoms and causes: इन वजहों से मां बनने में प्लेसेंटा प्रीविया वाली समस्या आ रही, जानिए इससे कैसे बचें और कब क्या कदम उठाएं
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Placenta previa- Symptoms and causes: मां...एक ऐसा शब्द जिसमें दुनिया की हर खुशी छुपी है। कहते हैं कि दुनिया की सबसे सुरक्षित और पवित्र कोई जगह है तो वह है मां की कोख। वाकई में मां बनना हर शादीशुदा महिला के लिए एक सपना होता है। लेकिन आजकल मां बनना इतना आसान नहीं रहा।

मोना सिंह की रिपोर्ट

Placenta previa- Symptoms and causes: मां...एक ऐसा शब्द जिसमें दुनिया की हर खुशी छुपी है। कहते हैं कि दुनिया की सबसे सुरक्षित और पवित्र कोई जगह है तो वह है मां की कोख। वाकई में मां बनना हर शादीशुदा महिला के लिए एक सपना होता है। लेकिन आजकल मां बनना इतना आसान नहीं रहा। आज की भागदौड़ की जिंदगी और व्यस्त दिनचर्या की वजह से काफी कठिनाई भी हो रही है। कई बार कामकाज में व्यस्त रहने या फिर शादी लेट होने से भी बच्चे करने की प्लानिंग में भी देरी हो रही है। इस वजह से गर्भावस्था से जुड़ी कई प्रकार के जटिलताएं सामने आ रहे रही हैं। उन्हीं में से एक है प्लेसेंटा प्रीविया या लो-लाइंग प्लेसेंटा। आइए जानते हैं कि ऐसी स्थिति से कैसे निपटा जा सकता है। क्या करना चाहिए और क्या नहीं?

क्या है प्लेसेंटा प्रीविया?

गर्भावस्था में निषेचित अंडा या फर्टिलाइज्ड एग फैलोपियन ट्यूब से होते हुए गर्भाशय में प्रत्यारोपित होता है। इस प्रक्रिया में सामान्य रूप से एग (Egg) गर्भाशय के सबसे ऊपर प्रत्यारोपित होता है, लेकिन कई बार यह गर्भाशय के निचले हिस्से से जुड़ जाता है। और प्लेसेंटा का विकास गर्भाशय ग्रीवा या गर्भ द्वार पर होना शुरू हो जाता है। प्लेसेंटा मां के शरीर का वह हिस्सा होता है जिससे गर्भस्थ शिशु को ऑक्सीजन और पोषण मिलता है। प्लेसेंटा शिशु के अपशिष्ट को भी उससे दूर करता है। प्लेसेंटा का एक सिरा गर्भनाल या अंबिलिकल कॉर्ड से और दूसरा सिरा बच्चे से जुड़ा होता है। सामान्य गर्भावस्था में प्लेसेंटा गर्भाशय के ऊपर की तरफ या बगल में जुड़ी रहती है। जबकि प्लेसेंटा प्रीविया की स्थिति में यह गर्भाशय ग्रीवा या सर्विक्स और गर्भद्वार को आंशिक या पूरी तरह से ढक लेती है, इस स्थिति को प्लेसेंटा प्रीविया या लो लाइंग प्लेसेंटा कहते हैं।

प्लेसेंटा गर्भाशय की दीवार से चिपकी हुई संरचना नहीं होती है। लेबर पेन यानी प्रसव के दौरान गर्भाशय ग्रीवा या गर्भद्वार के खुलने के समय गर्भाशय की दीवार से अलग हो जाती है। और शिशु के जन्म के साथ ही बाहर आ जाती है। प्लेसेंटा प्रीविया की स्थिति में जब लेबर के दौरान गर्भाशय द्वार खुलता है तो उस समय प्लेसेंटा को गर्भाशय से जोड़ने वाली रक्त वाहिकाएं फटने लगती और भारी मात्रा में रक्तस्राव होता है, क्योंकि प्लेसेंटा गर्भद्वार पर जुड़ा होता है।

प्लेसेंटा के गर्भद्वार पर होने से बच्चे के योनि मार्ग से निकलने का रास्ता बंद हो जाता है। ऐसे में मां और बच्चे दोनों की जान के लिए खतरा हो सकता है। ऐसी स्थिति में वेजाइनल डिलीवरी या नॉर्मल डिलीवरी नहीं हो पाती और c-section या सीजेरियन डिलीवरी अनिवार्य हो जाती है।

ऐसी स्थिति में गर्भावस्था के 4 महीने या उसके बाद दर्द या दर्द रहित रक्तस्राव हो सकता है। इलाज के लिए डॉक्टर की मदद लेना अनिवार्य होता है।

जानें, प्लेसेंटा प्रीविया के प्रकार

कंपलीट प्लेसेंटा प्रीविया : इस स्थिति में प्लेसेंटा गर्भाशय ग्रीवा (cervix) या गर्भद्वार को पूरी तरह से ढक लेता है।

पार्शियल प्लेसेंटा प्रीविया : इस स्थिति में प्लेसेंटा गर्भाशय ग्रीवा को हल्का सा ढक लेता है।

मार्जिनल प्लेसेंटा प्रीविया : इसमें प्लेसेंटा गर्भद्वार या गर्भाशय ग्रीवा के बिल्कुल किनारे पर होता है लेकिन गर्भाशय ग्रीवा या गर्भद्वार को पूरी तरह से कवर नहीं करता।


इसके लक्षण क्या हैं?

गर्भावस्था के दौरान किए जाने वाले अल्ट्रासाउंड विशेषकर 20वें सप्ताह में किए जाने वाले स्कैन से प्लेसेंटा प्रीविया की स्थिति का पता चलता है। लेकिन प्लेसेंटा प्रीविया की सही स्थिति की जांच के लिए टीवीएस या ट्रांसवेजाइनल अल्ट्रासाऊंड की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही साथ यदि प्रेगनेंसी के दूसरे तिमाही (चौथी से छठे महीने) में और तीसरी तिमाही (सातवें से नौवें महीने) में ब्लीडिंग हो, आम तौर पर यदि साढ़े 4 महीने के बाद योनि से लाल रंग का खून आना शुरू हो जाए तो प्लेसेंटा प्रीविया हो सकता है।

कुछ मामलों में ब्लीडिंग कम या ज्यादा हो सकती है। अक्सर इसमें दर्द नहीं होता लेकिन कभी-कभी दर्द या ऐंठन महसूस हो सकती है। इस तरह की ब्लीडिंग अपने आप बंद हो जाती है। लेकिन कुछ दिन या कुछ सप्ताह बाद फिर से शुरू हो जाती है।

डॉक्टर को कब दिखाएं?

अगर महिला को प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही (4 से 6 महीने) या तीसरी तिमाही ( 7 से 9 महीने) में कम या ज्यादा किसी भी प्रकार की ब्लीडिंग या रक्तस्राव हो रहा हो तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। और डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें।

प्लेसेंटा प्रीविया से होने वाली जटिलताएं

लो लाइंग प्लेसेंटा या प्लेसेंटा प्रीविया की स्थिति में गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं। इस दौरान गंभीर ब्लीडिंग के बाद महिला की जान को खतरा हो सकता है। और प्री-मेच्योर लेबर के दौरान या गर्भावस्था की तीसरी तिमाही में ज्यादा ब्लीडिंग होने की वजह से समय से पहले सी-सेक्शन यानी सर्जरी की आवश्यकता होती है। जिससे बच्चा पूरी तरह विकसित होने से पहले ही जन्म ले लेता है। इससे बच्चे के फेफड़े पूरी तरह विकसित आते नहीं हो पाते। कई बार पहले से पता होने पर मां को डॉक्टर कॉर्टिकोस्टेरॉइड देते हैं। जिससे बच्चे के फेफड़े पूरी तरह से विकसित हो सकें। फेफड़े विकसित नहीं होने से बच्चे को सांस संबंधी रोग होने की संभावना अधिक होती है।

जानिए क्या है इसके कारण

प्लेसेंटा प्रीविया होने के लिए कोई एक कारण नहीं है। इसकी कई वजहें हो सकतीं हैं। यदि गर्भवती महिला की उम्र 35 वर्ष है या ज्यादा है, तो प्लेसेंटा प्रीविया की समस्या हो सकती है। धूम्रपान या शराब का सेवन करने वाली महिला को यह समस्या हो सकती है। गर्भवती महिलाओं को जिनका पहले भी सीजेरियन ऑपरेशन हो चुका है। उन्हें भी कई बार ये समस्या होती है। यदि महिला ने पूर्व में गर्भाशय से जुड़ी कोई सर्जरी कराई है तो भी ऐसा हो सकता है। इसके अलावा, यदि गर्भ में जुड़वा या 2 से ज्यादा बच्चे हों तो भी ऐसा हो जाता है। सामान्य तौर पर 200 में से एक महिला को प्लेसेंटा प्रीविया की समस्या होती है।


बेवजह सर्जरी से बच्चे पैदा करना भी एक वजह

रिसर्च रिपोर्ट से पता चलता है कि आजकल युवतियां प्रसव पीड़ा के डर की वजह से जरूरत नहीं पड़ने पर भी सीजेरियन से डिलीवरी कराना पसंद करती हैं। इस वजह से भी कई बार उनकी दूसरी प्रेग्नेंसी में प्लेसेंटा प्रीविया की समस्या सामने आ सकती है। इसलिए जब तक अति आवश्यक ना हो और डॉक्टर आपको सी-सेक्शन कराने के लिए ना कहें, तब तक खुद सर्जरी यानी सी-सेक्शन से डिलीवरी ना कराएं। नॉर्मल डिलीवरी के लिए ही कोशिश करें।

क्या है इसका इलाज

प्लेसेंटा प्रीविया के लिए कोई इलाज का सर्जरी उपलब्ध नहीं है। लेकिन इसमें होने वाली ब्लीडिंग को रोकने के लिए उपाय है। ब्लीडिंग कम हो रही हो तो भी ब्लीडिंग शुरू होते ही डॉक्टर की सलाह लें। इसमें आमतौर पर एक्सरसाइज और सेक्स करने के लिए डॉक्टर मना करते हैं।

इसी तरह ज्यादा ब्लीडिंग होने पर खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसी स्थिति में प्रेग्नेंसी के 36 हफ्ते पूरे होते ही सी-सेक्शन के जरिए डिलीवरी करा दी जाती है। 37वें हफ्ते के पहले डिलीवरी कराने पर शिशु के फेफड़े अविकसित रह जाते हैं। इसलिए डिलीवरी की प्लानिंग से पहले डॉक्टर गर्भवती को कॉर्टिकोस्टेरॉइड देते हैं। यदि बिल्डिंग बंद ना हो तो शिशु पर दबाव पड़ने लगता है। और उसे नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है। ऐसी स्थिति में तुरंत सी-सेक्शन करना पड़ता है। ऐसे में बच्चा प्रीमेच्योर पैदा होता है।

क्या है बचाव और डॉक्टरी सलाह

ऐसे में डॉक्टर पूरी तरह से बेड रेस्ट की सलाह देते हैं। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि प्लेसेंटा पहले से ही नीचे है,उस पर और दबाव पड़ने से ब्लीडिंग हो सकती है। इसलिए बेड रेस्ट करने से बच्चे के विकास के साथ-साथ प्लेसेंटा ऊपर की ओर जा सके। यदि रक्तस्राव फिर भी होता है तो डॉक्टर हॉस्पिटलाइज होने की सलाह देते हैं। अधिक ब्लीडिंग होने पर डॉक्टर इससे जुड़ी दवाई और इंजेक्शन बढ़ा सकते हैं। इस दौरान दी जाने वाली दवाओं से गर्भवती महिला को मॉर्निंग सिकनेस (थकावट), बेचैनी, उदासी, अधिक जी मिचलाना, नींद न आना जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।

यही वजह है कि ऐसी स्थिति में डॉक्टर ट्रैवल ना करने की सलाह देते हैं। क्योंकि ट्रैवल करने में लंबे समय तक बैठना पड़ता और इस दौरान झटके भी लगते हैं। पूरी प्रेग्नेंसी के दौरान डॉक्टर दंपति को सेक्स करने के लिए मना भी करते हैं। डॉक्टर पैरों के नीचे तकिया लगाकर लेटने की सलाह देते हैं। ताकि प्लेसेंटा नीचे न आने पाए। इसके अलावा डॉक्टर गर्भवती को अधिक चलने फिरने के लिए मना करते हैं। खासतौर पर सीढ़ियां उतरने चढ़ने और पेट के बल लेटने के लिए डॉक्टर मना करते हैं।

ऐसे करें अपनी देखभाल

पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक भोजन खासकर आयरन से भरपूर भोजन जैसे लाल मांस, दाल, दलहन, हरी पत्तेदार सब्जियां और डॉक्टर द्वारा दिए गए आयरन सप्लीमेंट लें। इसमें कोई लापरवाही नहीं बरतें। ऐसा करने से शरीर में खून की कमी हो सकती है। डॉक्टर के बताए अनुसार चेकअप और स्कैन कराने से ना चूकें। शिशु के विकास और मूवमेंट पर नजर रखें। कोई परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। डॉक्टर के निर्देशों का सख्ती से पालन करें।

प्लेसेंटा प्रीविया से जुड़ी दूसरी समस्याएं

प्लेसेंटा अक्रीटा : यह प्लेसेंटा प्रीविया से जुड़ी दुर्लभ स्थिति है। इसमें प्लेसेंटा गर्भाशय की दीवार में काफी गहराई तक प्रत्यारोपित हो जाता है। बच्चे के जन्म के बाद बाहर न आकर गर्भाशय से जुडा रह जाता है। इसकी जांच डॉपलर स्कैन या मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग (MRI) द्वारा की जाती है। ऐसी स्थिति में c-सेक्शन के दौरान खून की कमी होने की काफी संभावना रहती है। ऐसे में कई बार गर्भवती की जान को खतरा हो जाता है।

वासा प्रीवीया : प्लेसेंटा गर्भनाल (umbilical cord) बच्चे और गर्भाशय दोनों से जुड़ा होता है। वासा प्रीवीया की स्थिति में गर्भनाल रक्त नलिकाएं ( ब्लड वेसल्स) गर्भाशय ग्रीवा या सर्विक्स को ढकने वाली झिल्लियों से होकर गुजरती है। ये झिल्लियां गर्भनाल या प्लेसेंटा द्वारा सुरक्षित नहीं रहती। इसलिए आसानी से फट सकती हैं। इस वजह से होने वाले रक्त स्राव से बच्चे की जान को खतरा होता है। कई बार इसका पता प्रसव के दौरान पानी की थैली फटने पर ही चलता है। इस स्थिति में आपातकालीन सी-सेक्शन करना पड़ता है।

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