रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने फेसबुक पर गलत तरीके से व्यापार का लगाया आरोप, दर्ज कराया मुकदमा
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने फेसबुक के खिलाफ गलत तरीके अपनाकर और जनता को गुमराह कर अपने कारोबार को बढाने का हवाला देते हुए फ्रांस में मुक़दमा दायर किया है। इस याचिका में कहा गया है कि फेसबुक लगातार लोगों को एक सुरक्षित और त्रुटिहीन ऑनलाइन प्लेटफोर्म होने का दिलासा देता है। फेसबुक यह भी दावा करता है कि इस भ्रामक, गैरकानूनी, भेदभाव को बढ़ावा देने वाले और गलत बयान वाले पोस्ट नहीं शेयर किये जा सकते, जबकि वास्तविकता इसके ठीक उलटी है।
आरोप लगाया गया है कि फेसबुक लगातार भेदभाव, घृणा, हिंसा वाले पोस्ट का प्रमुखता से प्रसार करता है, इसका खामियाजा सामान्य नागरिकों के साथ ही दुनिय्भर में बड़ी संख्या में पत्रकार भी भुगत रहे हैं। यह सीधा-सीधा गलत तरीके अपनाकर कारोबार करने का मामला है।
फ्रांस यूरोपीय संघ का सदस्य है, और यूरोपीय संघ के कानून के अनुसार ऐसे मामलों में दो वर्ष की कैद और 336000 डॉलर तक जुर्माना लगाया जा सकता है। पर फेसबुक जैसी बड़ी कंपनी पर जुर्माना वार्षिक औसत टर्नओवर का 10 प्रतिशत तक भी लगाया जा सकता है। वर्ष 2020 में फेसबुक ने 86 अरब डॉलर का कारोबार किया था, इस तरीके से दोषी पाए जाने पर फेसबुक पर 86 करोड़ डॉलर का जुर्माना लगाया जा सकता है। इस याचिका में रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने अपने याचिका के पक्ष में अनेक सबूत पेश किये हैं, जिसमें कोविड 19 के टीके से सम्बंधित भ्रामक प्रचार जो फेसबुक पर खूब किये गए, भी सम्मिलित है।
फेसबुक इस समय लगभग पूरी दुनिया में मुकदमों, प्रतिबंधों और शिकायतों से घिरा है। ऑस्ट्रेलिया में फेसबुक को पब्लिशर्स को समाचार की कीमत ऐडा करने का आदेश दिया गया है, बेल्जियम में एक मुकदमें में फेसबुक पर लोगों की निजी जानकारी साझा करने से सम्बंधित मुक़दमा चल रहा है और अमेरिका की विभिन्न अदालतों में फेसबुक के विरुद्ध दर्जनों मुकदमे किये गए हैं। पर, फेसबुक की नीतियाँ कहीं से बदलती नहीं दिखाई दे रहीं हैं, बल्कि अब यह पहले से भी अधिक हिंसक होने की तैयारी कर रहा है।
दिसम्बर 2020 में फेसबुक के नीतियों की व्यापक समीक्षा की गयी थी, जिसे इंटरनल मॉडरेटर गाइडलाइन का नाम दिया गया है। 300 पृष्ठों की यह आतंरिक और गोपनीय रिपोर्ट ब्रिटेन के प्रतिष्ठित समाचारपत्र गार्डियन के हाथ लग गयी।
इस समाचारपत्र में इससे सम्बंधित अनेक समाचार प्रकाशित किये गए हैं, जो फेसबुक समूह का कुरूप और हिंसक चेहरा उजागर करते हैं। अब तक जनप्रतिनिधियों पर भ्रामक जानकारी देना या अपशब्द कहने पर प्रतिबन्ध था, पर अब इनपर आप क्रूरता से निशाना लगा सकते हैं, और यहाँ तक की इन्हें जान से मारने की धमकी भी दे सकते हैं, बस शर्त यह है की ऐसे पोस्ट से आप सीधे-सीधे सम्बंधित व्यक्ति को टैग नहीं करेंगें। एक दूसरी नीति के तहत अब फेसबुक पर नरसंहार और गैर-राजनैतिक हिंसक समूहों का महिमामंडन करने के लिए आप स्वतंत्र हैं।
फेसबुक अनेक वर्षों से अपने यूजर्स की व्यक्तिगत जानकारी भी लीक करता रहा है। वर्ष 2018 के दौरान तो कैम्ब्रिज ऐनेलेटीका मामले की खूब चर्चा की गई थी, जब करोड़ों लोगों की जानकारियाँ बाजार में पहुँच गई थीं। इसके बाद भी, फेसबुक के कार्य प्रणाली में कोई अंतर नहीं आया। वर्ष 2019 में एक बार इंस्टाग्राम ने 5 करोड़, और फेसबुक ने 42 करोड़ यूजर्स के डेटा लीक किया था, यह मामला जबतक उजागर हुआ तबतक फेसबुक ने लगभग 27 करोड़ अन्य यूजर्स का डेटा बाजार में बेच दिया।
कैरोल कैडवलाद्र ने 5 जुलाई 2020 को द गार्डियन में फेसबुक के बारे में लिखा है, दुनिया की कोई ताकत फेसबुक को किसी भी चीज के लिए जिम्मेदार बनाने में असमर्थ है। अमेरिकी कांग्रेस कुछ नहीं कर सकी और ना ही यूरोपियन यूनियन इसपर लगाम लगा पाई। हालत यहाँ तक पहुँच गई है कि कैंब्रिज ऐनेलेटीका मामले में जब अमेरिका के फ़ेडरल ट्रेड कमीशन ने फेसबुक पर 5 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया तब फेसबुक के शेयरों के दाम आसमान छूने लगे।
फेसबुक के माध्यम से अमेरिका के 2016 के चुनावों में सारी विदेशी शक्तियां संलिप्त हो गयीं और इस कारण चुनाव के परिणाम प्रभावित हुए। फेसबुक ने तो अनेक बार नरसंहार के मामलों का भी सीधा प्रसारण किया है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक के माध्यम से म्यांमार में रोहिंग्या के लिए घृणा इस पैमाने पर फैलाई गई कि इसने हिंसा का स्वरुप ले लिया, सामूहिक नरसंहार किये गए और आज भी किये जा रहे हैं। इसके चलते हजारों रोहिंग्या मारे गए और लाखों को अपने घरबार छोड़ना पड़ा।
वर्ष 2020 में फिलीपींस में पत्रकार, मारिया रेसा, को 7 वर्ष के कैद के सजा सुनाई गई थी, उन्होंने भी समय-समय पर फेसबुक के संदिग्ध भूमिका के बाते में आगाह किया था। मानवाधिकार कार्यकर्ता मारिया रेसा की सजा को फेसबुक के प्रतिकार के तौर पर ही देखते हैं। ब्रिटेन के पूर्व उप-प्रधानमंत्री फेसबुक को समाज का आइना बताते हैं, पर अनेक बुद्धिजीवी फेसबुक को आइना नहीं बल्कि हथियार बताते हैं, वह भी बिना लाइसेंस वाला हथियार, जिससे आप किसी की हत्या कर दें तब भी पकडे नहीं जायेंगे।
कुल 2.6 अरब लोग फेसबुक से जुड़े हैं, इस मामले में यह संख्या चीन की आबादी से भी अधिक है। मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि इसकी तुलना चीन से नहीं की जा सकती, बल्कि इसे उत्तर कोरिया कहना ज्यादा उपयुक्त है, पर मार्क जुकरबर्ग तानाशाह किम जोंग से भी अधिक शक्तिशाली हैं। कुछ लोगों के अनुसार फेसबुक की यदि किसी हथियार से तुलना करनी हो तो वह हथियार बन्दूक, राइफल, तोप या टैंक नहीं होगा, बल्कि सीधा परमाणु बम ही होगा। यह केवल एक तानाशाह, मार्क जुकरबर्ग के अधिकार वाला वैश्विक साम्राज्य है।
जुकरबर्ग का एक ही सिद्धांत है, भले ही पूरी दुनिया में हिंसा फ़ैल जाए, नफरत फ़ैल जाए, कितने भी आरोप लगें – पर किसी आरोप का खंडन नहीं करना, किसी पर ध्यान नहीं देना – बस अपने साम्राज्य का विस्तार करते जाना, और अधिक से अधिक धन कमाना। यही कारण है कि फेसबुक का रवैया कभी नहीं बदलता। फेसबुक तो प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर मुख्य मीडिया को भी संचालित करता है।
दुनियाभर की वे शक्तियां, जिनका अस्तित्व दुष्प्रचार और अफवाहों पर ही टिका है, उनके लिए तो फेसबुक अनमोल माध्यम बन गया है। इन शक्तियों ने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि तेजी से वैश्विक होती दुनिया में अधिकतर लोग द्विविधा में हैं और ऐसे समय उनके विचारों को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है। दुनियाभर के देशों में पिछले कुछ वर्षों के भीतर ही एकाएक घुर दक्षिणपंथी दलों का सरकार पर काबिज होना महज एक इत्तेफाक नहीं है, यह सब सोशल मीडिया की ताकत है। आज स्थिति यह है की आप किसी घटना या फिर वक्तव्य की सत्यता को परखने का कितना भी प्रयास करें, दुष्प्रचार बढ़ता ही जाता है।
फेसबुक के फेक न्यूज़ या हिंसा को भड़काने वाले पोस्ट केवल एक रंग, नस्ल या देश को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि इसका असर सार्वभौमिक है, और दुनिया भर के लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा है। इसे केवल एक संयोग कहकर नहीं टाला जा सकता कि कोविड 19 से सबसे अधिक प्रभावित देशों में अमेरिका, ब्राज़ील, भारत और इंग्लैंड सम्मिलित हैं।
जनवरी 2020 से अगर गौर करें तो फेसबुक और इंस्टाग्राम के पोस्ट इन देशों में इस महामारी के खिलाफ झूठे और भ्रामक प्रचार में संलग्न थे। ये चारों ही देशों की सरकारें ऐसी हैं, जो ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर प्रचार के बलबूते ही सत्ता पर काबिज हैं। फेसबुक का हाल तो ऐसा है, जो केवल चीन से ही बड़ा नहीं है बल्कि पूरे पूंजीवाद से बड़ा है। आज के पूंजीवाद को टिके रहने के लिए फेसबुक सबसे बड़ा सहारा है।