ग्लेशियर में पानी के भण्डार का नया अनुमान | New Assessment of stored water in glaciers |
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
New Assessment of stored water in glaciers | तापमान बृद्धि के कारण अलास्का से यूरोप और अन्टार्कटिका से साइबेरिया तक बर्फ पिघल रही है और ग्लेशियर सिकुड़ रहे है| नासा की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2003 से 2010 के बीच अकेले अलास्का से प्रतिवर्ष 46 गिगाटन बर्फ पिघली| उत्तरी ध्रुव, दक्षिणी ध्रुव और ग्रीनलैंड के ग्लेशियर पिघलने के समाचार भी लगातार आते हैं| पर, अब हिमालय की चोटियों पर जमी बर्फ भी तेजी से पिघल रही है|
इन समाचारों के बीच फ्रांस के ग्रेनोब्ले आल्प्स यूनिवर्सिटी (Grenoble Alps University, France) के वैज्ञानिकों के एक दल ने अपने नए अध्ययन में बताया है कि दुनियाभर के पहाड़ों की चोटियों पर जमे ग्लेशियर में जमे पानी की मात्रा का सही आकलन नहीं किया गया है| इन वैज्ञानिकों के अनुसार अब तक ग्लेशियर में पानी की मात्रा के जितने भी आकलन किये गए हैं, दरअसल उससे 20 प्रतिशत कम पानी ही उनमें मौजूद है| इस अध्ययन को नेचर जियोसाइंस (Nature Geosciences) नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है|
वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के लिए दुनियाभर में पहाड़ों की चोटियों पर स्थित लगभग 200000 ग्लेशियर की गहराई, सतही क्षेत्र और पिघलने की दर (depth, surface area & rate of retreat) का आकलन किया है| दुनियाभर में पहाड़ों पर जितने ग्लेशियर हैं, यह संख्या कुल संख्या का लगभग 98 प्रतिशत है| इसके लिए उन्होंने अमेरिका और यूरोप के उपग्रहों से पिछले एक दशक के दौरान भेजे गए चित्रों की मदद ली है| इन वैज्ञानिकों के अनुसार अब तक ग्लेशियर के जितने भी अध्ययन किये गए थे, उनमें केवल सतही क्षेत्र के आधार पर ही पानी की मात्रा का निर्धारण किया गया था, जबकि इस नए अध्ययन में उनकी गहराई का भी आकलन शामिल है| एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस अध्ययन से पहले तक दुनिया के केवल 4000 से कुछ अधिक ग्लेशियर का ही विस्तृत अध्ययन किया जा सका था|
समय-समय पर वैज्ञानिक यह अनुमान लगाते रहे हैं कि जब दुनिया के सारे ग्लेशियर पिघल जायेंगें तब सागर तल (Mean Sea Level) कितना बढ़ जाएगा, और अधिकतर अनुमान इसे 33 से 35 सेंटीमीटर पर निर्धारित करते हैं| पर, नए अध्ययन के अनुसार ग्लेशियर में पानी का भण्डार पहले के अध्ययनों से कम है, तब निश्चित तौर पर सारे ग्लेशियर के पिघलने से सागर तल भी उतना नहीं बढेगा, जितना पहले के अध्ययन बताते रहे हैं| इस अध्ययन के मुख्य लेखक रोमेन मिलान (Romen Millan) के अनुसार यदि सारे ग्लेशियर पिघल जायेंगें तब सागर तक में 25 सेंटीमीटर की बढ़ोत्तरी होगी| अनुमान है कि दुनिया में जितने भी ग्लेशियर हैं, उनके पिघलने से सागर तल में जो बढ़ोत्तरी होगी, उसमें 25 से 30 प्रतिशत योगदान पहाड़ों की चोटियों पर जमे ग्लेशियर के पिघलने के कारण होगा| रोमन मिलान के अनुसार दुनिया की 10 प्रतिशत से अधिक आबादी जिन क्षेत्रों में रहती है उसकी ऊंचाई औसत सागर तक से 9 मीटर से भी कम है, और इस पूरी आबादी के लिए यह एक राहत की बात है कि ग्लेशियर के पिघलने के बाद सागर तल उतना नहीं बढेगा, जितना पहले के अनुमानों में बताया गया है| इस नए और विस्तृत अध्ययन के बाद जाहिर है ग्लेशियर के पिघलने से सागर तल की ऊंचाई और दुनिया की कुल जल उपलब्धता के आकलन पर भी असर पड़ेगा| इस अध्ययन में ग्रीनलैंड और अंटार्टिका के ग्लेशियर सम्मिलित नहीं हैं|
इस नए अध्ययन में बताया गया है कि दुनिया के ग्लेशियर में पानी की मात्रा पहले के अनुमानों की तुलना में औसतन 20 प्रतिशत कम है, पर क्षेत्रीय स्तर पर कुछ जगहों पर पानी की मात्रा पहले से अनुमानों से अधिक भी देखी गयी है| पहले के अनुमानों से ग्लेशियर में कम पानी वाले क्षेत्रों में सबसे आगे दक्षिण अमेरिका के कई देशों में स्थित एंडीज पर्वत श्रृंखला है| अनुमान है कि पहले के आकलन की तुलना में इसकी चोटियों पर स्थित ग्लेशियर में 27 प्रतिशत कम पानी है| दूसरी तरफ हिमालय पर्वत श्रृंखला के ग्लेशियर में पहले के अनुमानों की तुलना में 37 प्रतिशत अधिक पानी है| भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों के लिए यह भले ही राहत की बात हो, पर अध्ययन के अनुसार पहाड़ों की चोटियों पर स्थित ग्लेशियर में सबसे तेजी से पिघलने वाले ग्लेशियर हिमालय पर ही स्थित हैं|
जाहिर है, ग्लेशियर एक बहुत ही संवेदनशील भौगोलिक संरचना है, और इसके बारे में विज्ञान अभी तक बहुत कुछ जान भी नहीं पाया है| ग्लेशियर से पानी के बहाव पर दुनिया की बड़ी आबादी निर्भर करती है, और ऐसे में इसके बहाव को प्रभावित करने वाला हरेक कारक खतरनाक हो सकता है|