हाथरस सत्संग में 121 मौतों के लिए जिम्मेदार स्वयंभू बाबा नारायण साकार हरि है फरार-FIR में भी नहीं नाम, सवालों के घेरे में योगी सरकार !
पीजे जेम्स की टिप्पणी
Hathras Stampede: पिछले एक दशक में सबसे भयावह और दुखद, हाथरस भगदड़ में मरने वालों की संख्या 121 हो गई है, जिसमें एक पुरुष को छोड़कर, कथित तौर पर सभी पीड़ित महिलाएं और बच्चे हैं। योगी सरकार ने एफआईआर में स्वयंभू बाबा नारायण साकार हरि उर्फ 'भोले बाबा' उर्फ सूरज पाल सिंह को जो कि हिंदू 'सत्संग' (पंथ-सभा) का नेतृत्व करने वाला मुख्य दोषी है, से बाहर कर दिया है। और तो और सूरज पाल को इस त्रासदी के लिए "असामाजिक तत्वों" पर आरोप लगाते हुए सार्वजनिक बयान जारी करने की अनुमति दी गई है। लगे हाथों मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अपना अप्रत्यक्ष बयान, एक "साजिश" की संभावना की ओर इशारा करते हुए, यह बताता है कि मामला किस दिशा में आगे बढ़ रहा है।
पूरे मामले में स्थानीय प्रशासन सहित राज्य शासन की ओर से कर्तव्य की घोर लापरवाही पहले ही सामने आ चुकी है। जिस स्थान पर भगदड़ मची वह स्थान वहां एकत्रित भीड़ के लिए बहुत छोटा था। यह बताया गया है कि यद्यपि 80,000 लोगों के लिए अनुमति दी गई थी, वास्तविक उपस्थिति 2.5 लाख से अधिक थी, जिनमें से अधिकांश समाज के सबसे वंचित वर्गों से थे। पुलिस की पर्याप्त तैनाती नहीं थी, जबकि स्वयंभू भगवान की निजी सेना, जिन्हें 'सेवादार' कहा जाता था, ने आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में धूल इकट्ठा करने के लिए उनकी कार के पीछे भाग रहे 'भक्तों' को रोक दिया।
सूरज पाल के सेवादारों ने लोगों को आगे बढ़ने और फिर भगदड़ मचने पर वहां से भागने में भी बाधा डाली, और वे केवल स्वयंभू भगवान के सुरक्षित बाहर निकलने के बारे में चिंतित थे। सभा के बाहर सुरक्षा शासन की होनी चाहिए थी, जिसके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई थी। इसके लिए प्रशासन से जवाब-तलब किया जाना चाहिए।
बेशक डेरा सच्चा सौदा के गुरुमीत राम रहीम सिंह जैसे सभी पंथ/ डेरे/ आश्रम के नेताओं की तरह, जिन्हें बलात्कार के लिए दंडित किया गया था और जिन पर हत्या और जबरन बधियाकरण का आरोप था, सूरज पाल की भी कुख्यात पृष्ठभूमि बताई गई है। हालाँकि वह अक्सर इंटेलिजेंस ब्यूरो के पूर्व कर्मचारी होने का दावा करते रहे हैं, रिपोर्टों के अनुसार सूरज पाल लगभग 28 साल पहले इटावा में एक हेड कांस्टेबल के रूप में तैनात थे, लेकिन उनके खिलाफ बलात्कार के आरोप के बाद उन्हें सेवाओं से बर्खास्त कर दिया गया था और कथित तौर पर उसके खिलाफ आगरा, इटावा, कासगंज, फर्रुखाबाद और राजस्थान सहित विभिन्न न्यायालयों में कई मामले दर्ज किए गए हैं। इस प्रकार, उनकी अपनी टिप्पणी कि "असामाजिक तत्वों" ने भगदड़ मचाई, किसी अन्य की तुलना में उनके ऊपर अधिक उपयुक्त रूप से फिट बैठती है।
इस संदर्भ में यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि दुनियाभर के सभी फासीवादी शासनों की तरह भारतीय फासीवादी भी धार्मिक पंथों, अंधविश्वासों और कई रूढ़िवादी परंपराओं का उपयोग करके लोगों के व्यवहार को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करने में माहिर हैं। भविष्यवक्ताओं और भाग्यशाली ताबीज़ बांटने वालों की तरह पंथ नेता भी शासन के साथ दुर्भावनापूर्ण सांठगांठ में, लोगों की चेतना को हेरफेर करने और उन्हें अराजनीतिकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आसमान छूती कॉर्पोरेट-लूट की प्रक्रिया में मेहनतकश और उत्पीड़ित लोगों पर थोपी गई भयावहता से लोगों का ध्यान हटाने के लिए पंथों और अंधविश्वासों का प्रसार अपरिहार्य उपकरण है।
समकालीन भारत में इसका व्यापक राजनीतिक संदर्भ है। 2014 में फासीवादी मोदी शासन के उदय के बाद से, यूपी में फासीवादी "डबल इंजन" के आगमन के बाद से, छद्म विज्ञान के साथ मिलकर दकियानूसी सोच, हिंदुत्व प्रवचन का अभिन्न अंग बन गई है। 2000 साल पहले भारत में प्लास्टिक सर्जरी के प्रचलन पर मोदी की अपनी बयानबाजी में भगवान गणेश के हाथी के सिर का हवाला देते हुए छद्म विज्ञान का महिमामंडन, अन्य बातों के अलावा, सिर्फ एक उदाहरण है।
अन्य हिंदुत्व नेताओं का दावा है कि "हिंदुओं" के पास स्टेम सेल और टेस्ट-ट्यूब तकनीक, मिसाइलों के रूप में "विष्णु चक्र" है, हजारों साल पहले हवाई जहाज और हवाई अड्डों का प्रचलन था। यहां तक कि कैंसर के इलाज के रूप में गोमूत्र का दावा भी किया गया है। योग को सांप्रदायिक उद्देश्य के तहत महिमामंडित करना और ढोंगी भोग विलासी बाबाओं के पंथों/ डेरे को बढ़ावा देने सहित ऐसी अन्य मिथ्या बातें देश में बढ़ती रूढ़िवादिता के लिए उर्वर क्षेत्र प्रदान करती हैं।
आज हाथरस में जो हुआ वह सिर्फ एक उदाहरण है कि कैसे देशभर में सत्तारूढ़ शासन के संरक्षण में कई हिंदू धर्मगुरु अपने पंथों के साथ फल-फूल रहे हैं। इस प्रकार भोले बाबा की "सुरक्षित" फरारी और वर्तमान भयावह अपराध के लिए उन पर आपराधिक आरोप दायर करने में योगी शासन की अनिच्छा, हिंदुत्व पंथ / डेरे/ आश्रम के नेताओं और संघी मनुवादी/ ब्राम्हणवादी फासीवादी शासन के बीच अपवित्र सांठगांठ को उजागर करती है।