Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

हर वक्त चुनावी मोड में रहती है भाजपा, सरकार की मदद का आधा हिस्सा तो सरकार के खर्चे में ही रहता है शामिल

Janjwar Desk
3 July 2020 11:23 AM GMT
हर वक्त चुनावी मोड में रहती है भाजपा, सरकार की मदद का आधा हिस्सा तो सरकार के खर्चे में ही रहता है शामिल
x
एक व्यक्ति को महीने में 5 किलो चावल या गेहूं मिलाने का मतलब है, उसके हिस्से में एक समय केवल 85 ग्राम गेहूं या चावल आएगा, इसी तरह एक समय के खाने में उसे केवल 17 ग्राम चना मिलेगा....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

प्रधानमंत्री ने अपने प्रवचन जैसे संबोधन में 30 जून को बड़े जोर-शोर से बताया था कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अनाज योजना को नवम्बर तक बढ़ाया जा रहा है। संबोधन के ठीक बाद टीवी चैनलों पर इसकी खूब वाहवाही की गई, वैसे कुछ चैनलों ने इसे बिहार के चुनावों से भी जोड़ा। मानें या ना मानें, प्रधानमंत्री और बीजेपी साल के हरेक दिन चुनावी मोड में ही रहती है। छठ पर्व, जिसे बिहार में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, नवम्बर में आता है, इसलिए यह योजना नवम्बर तक ही बढ़ाई गई, वैसे तो आदर्श यह था कि इसे पूरे साल के लिए बढ़ा देते।

प्रधानमंत्री जी ने बताया कि त्योहारों का मौसम आ रहा है, इसलिए मदद की अवधि बढ़ाई गई है। यदि प्रधानमंत्री जी को त्योहारों के दौरान घरों के बढ़ते खर्च की सही में चिंता रहती तब उस दौरान मदद बिना त्यौहार वाले महीनों से अधिक करनी चाहिए थी या फिर अनाज के साथ-साथ सबको कुछ कैश की सुविधा भी देनी चाहिए थी। प्रधानमंत्री ने वैसे भी संयुक्त राष्ट्र में कहा है कि भारत यूनिवर्सल बेसिक इनकम पर विचार कर रहा है।

प्रधानमंत्री के अनुसार 80 करोड़ गरीबों को मार्च से नवम्बर तक प्रति व्यक्ति 5 किलो गेहूं या चावल और एक किलो चना देने पर डेढ़ लाख करोड़ का खर्चा होगा। इसका सीधा सा मतलब है कि हरेक गरीब व्यक्ति के लिए सरकार लगभग 2000 रुपये खर्च करेगी। प्रधानमंत्री के आंकड़ों के अनुसार इस योजना में हरेक व्यक्ति को हरेक महीने 5 किलो चावल या गेहूं और एक किलो चना मिलता है। इस अनुसार मार्च से नवम्बर तक हरेक व्यक्ति को 45 किलो गेहूं या चावल और 9 किलो चना मिलेगा।

एक व्यक्ति को महीने में 5 किलो चावल या गेहूं मिलाने का मतलब है, उसके हिस्से में एक समय केवल 85 ग्राम गेहूं या चावल आएगा, इसी तरह एक समय के खाने में उसे केवल 17 ग्राम चना मिलेगा। क्या सरकार को लगता है कि यह किसी भी व्यक्ति के पेट भरने के लिए पर्याप्त है? यदि, इससे किसी की भूख नहीं मिटती, तो फिर इसी मदद का औचित्य क्या है? सरकार तो भूख के नाम पर भी नहीं बल्कि अब तो त्योहारों के नाम पर इस योजना का विस्तार करने जा रही है, जो गरीबों के लिए ऊँट के मुँह में जीरा जैसा ही है।

दूसरी तरफ यदि गेहूं, चावल और चने का मूल्य यदि 20 रुपये प्रति किलो भी मान लें, तबभी हरेक व्यक्ति को इन 9 महीनों में लगभग 1100 रुपये का ही सामान मिलेगा। सरकार इस योजना के लिए भारी मात्र में अनाज खरीदेगी तो जाहिर है, कीमतें इससे भी कम होंगीं। यदि हरेक व्यक्ति को कुल 1100 रुपये का ही सामान मिलेगा, तो जाहिर है प्रति व्यक्ति शेष लगभग 900 रुपये सरकारी तंत्र में खपेंगें। इसका सीधा सा मतलब है कि सरकारी तंत्र प्रति व्यक्ति 900 रुपये खर्च कर, जनता को 1100 रुपये की सामग्री देगा। सरकार यदि चाहे तो अपने तंत्र का खर्चा घटा कर जनता को अधिक सुविधाएं दे सकती है।

प्रधानमंत्री ने किसी देश का नाम लिए बगैर, किसी प्रधानमंत्री पर नियमों की अवहेलना करने पर 13000 रुपये जुर्माना लगाने का उदाहरण देते हुए कहा कि चाहे प्रधानमंत्री ही क्यों न हो, क़ानून सबके लिए समान हैं। दरअसल, यह मामल बुल्गारिया का है, जहां एक चर्च के समारोह में प्रधानमंत्री बोय्को बोरिस्सोव द्वारा फेस मास्क न लगाए जाने के कारण स्वास्थ्य विभाग ने उनपर 300 लेव्स (स्थानीय मुद्रा), यानि लगभग 174 डॉलर का जुर्माना लगा दिया। केवल उनपर ही नहीं बल्कि, उनके पूरे दल के हरेक सदस्य पर, जिसमें पत्रकार, फोटोग्राफर इत्यादि भी सम्मिलित थे, जुर्माना लगाया गया।

एक दूसरे मामले में प्रधानमंत्री के राजनैतिक दल द्वारा आयोजित एक समारोह में सोशल डीस्टेंसिंग के नियमों की अनदेखी के कारण पार्टी पर लगभग 1740 डॉलर का जुर्माना थोपा गया। इतनी सख्ती बुल्गारिया में तब है, जब वहां केवल 4000 मामले हैं और कुल 200 मौतें दर्ज की गईं हैं।

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में इस जुर्माने और सबके लिए समान क़ानून की बात तो कर दी, पर क्या पहले मुख्यमंत्री के तौर पर और बाद में प्रधानमंत्री के तौर पर वे स्वयं, या उनके कोई मंत्री और यहाँ तक कि सांसद भी उसी क़ानून का पालन करते हैं, जिसका आम जनता करती है? उनके हेलीकाप्टर की चुनाव के दौर में तलाशी लेने वाला अपनी नौकरी भी खो बैठता है, उनके मंत्री के खिलाफ बोलने वाला न्यायाधीश भी मार दिया जाता है। प्रधानमंत्री और मंत्री तो दूर, बीजेपी का एक अदना चेहरा, कपिल मिश्र भी सामान्य क़ानून से अलग हैं। प्रधानमंत्री का संबोधन एक प्रवचन से अधिक कुछ नहीं था, जिसमें आदर्श स्थितियां बताई जाती हैं और वास्तविकता ब्बहुत अलग होती है।

Next Story

विविध