साल 2048 में 1.7 अरब होगी भारत की जनसंख्या लेकिन वर्ष 2100 में रह जाएगी 1.09 अरब- रिपोर्ट
India's Urban Population : भारत की शहरी आबादी 2035 तक 6.5 करोड़ होने की संभावना
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
दुनिया में हरेक समस्या का कारण लगातार निर्बाध गति से बढ़ती जनसंख्या को बताया जाता है। अब तक दुनिया पर कितना भी संकट आया है, आबादी बढ़ती रही है। इस कोविड 19 के दौर में भी, जब पूरी दुनिया इसकी चपेट में है और बड़ी संख्या में मौतें हो रहीं हैं, फिर भी दुनिया की आबादी बढ़ रही है। लेकिन प्रतिष्ठित जर्नल द लैंसेट के नवीनतम अंक में यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन के विशेषज्ञों द्वारा प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार संयुक्त राष्ट्र के पहले के आकलन के मुकाबले वर्ष 2100 तक विश्व की आबादी 2 अरब कम रहेगी।
वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र ने बताया था कि वर्ष 2050 तक दुनिया की आबादी 10 अरब और वर्ष 2100 तक आबादी 11 अरब हो जायेगी। इस शोधपत्र के अनुमान के अनुसार दुनिया की आबादी वर्ष 2064 तक 9.7 अरब तक बढेगी और फिर कम होने लगेगी, वर्ष 2100 तक दुनिया में 8.8 अरब लोग ही होंगे।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ वाशिंगटन के विशेषज्ञ क्रिस्टोफर मरे इस शोधपत्र के मुख्य लेखक हैं, इनके अनुसार अब तक भविष्य की जनसंख्या के आकलन में केवल प्रजनन दर को ही आधार बनाया जाता था, लेकिन इस नए अध्ययन में गर्भ निरोधक उपायों, महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के सुलभ होने के प्रभावों को भी शामिल किया गया है। ये सभी कारक जनसंख्या को निश्चित तौर पर प्रभावित करते हैं, और इसका असर नए आकलन में स्पष्ट है।
द लैंसेट में प्रकाशित शोधपत्र के आकलन के अनुसार भारत में वर्तमान की 1.38 अरब जनसंख्या वर्ष 2048 तक बढ़कर 1.7 अरब तक पहुँच जायेगी और फिर लगातार कम होकर वर्ष 2100 तक 1.09 अरब तक रह जायेगी। वर्तमान में प्रति दम्पति 2.14 बच्चे हैं, जबकि 2100 में यह 1.29 तक रह जाएगा।
यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि भले ही भारत की जनसंख्या कम होने का अनुमान हो, लेकिन इसके बाद भी सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स को पूरा करने लायक आबादी से अधिक रहेगी। सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स के अनुसार वर्ष 2100 तक अधिकतम आबादी 0.9 अरब और बच्चो की दर 1.24 होनी चाहिए।
जनसंख्या की कमी होने पर भविष्य में अनेक समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं, जिनपर आज के सन्दर्भ में कोई भी विचार नहीं करता। जापान, स्पेन, इटली और थाईलैंड जैसे देशों की जनसंख्या आधी से भी कम रह जायेगी। पर, ऐसा पूरी दुनिया में नहीं होगा। सहारा के आसपास के अफ्रीकी देशों में अगले 80 वर्षों में आबादी तीन गुनी बढ़ जायेगी।
विश्व के सन्दर्भ में वर्तमान में शिशु दर 4.6 प्रति दम्पति है, पर 2100 तक यह दर 1.7 रह जायेगी। पूरी दुनिया में जनसंख्या में उम्र-वर्ग का अनुपात पूरी तरह बदल जाएगा। वर्ष 2100 तक बुजुर्गों की संख्या किशोरों की तुलना में अधिक हो जायेगी। आकलन के अनुसार वर्ष 2100 तक 65 वर्ष या अधिक की आबादी 2.4 अरब होगी और 20 वर्ष से कम उम्र की आबादी 1.7 अरब रहेगी।
भारत और चीन जैसे देशों में श्रमिक आबादी (20 वर्ष से 60 वर्ष तक) के अनुपात में बहुत बड़ा अंतर आने वाला है। चीन में यह आबादी वर्तमान में 95 करोड़ है, पर 2100 तक यह आबादी 36 करोड़ तक सिमट जायेगी। भारत में वर्तमान श्रमिक आबादी 76 करोड़ है, पर अगले 80 वर्षों में घटकर 58 करोड़ रह जायेगी।
हरेक जगह यह आबादी कम होगी, ऐसा भी नहीं है। नाइजीरिया में वर्तमान श्रमिक आबादी 9 करोड़ है, जो 2100 तक बढ़कर 46 करोड़ तक पहुँच जायेगी। जाहिर है, इसका सीधा असर देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है।
द लैंसेट में प्रकाशित इस शोधपत्र के निष्कर्ष से इतना तो स्पष्ट है कि महामारी और प्राकृतिक आपदा से भले ही आबादी पर बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ता हो, पर महिलाओं को अपने शरीर और गर्भ धारण पर पूरा अधिकार देते ही बहुत सारी सामाजिक समस्याएं ख़त्म होने लगती हैं।
इसके बाद महिलायें गर्भ को रोकने के उपाय पर भी ध्यान देतीं हैं। महिलाओं की शिक्षा का स्तर भी आबादी को नियंत्रित करने में बहुत महत्वपूर्ण है। दूसरा बड़ा निष्कर्ष है, दुनिया के देशों को आप्रवासियों की नीतियाँ लचीली करनी पड़ेंगीं, क्योंकि किसी भी देश में श्रमिक आबादी में गिरावट का मुकाबला इसी के भरोसे किया जा सकता है।