Sri Lanka Economic Crisis Explained: श्रीलंका आर्थिक संकट के बुरे दौर में, हरी मिर्च भी 710 रुपये किलो तो दूध के छोटे-छोटे पैकेट से गुजारा करने लोग मजबूर
Sri Lanka Crisis : जानिए कैसा होता है दिवालिया हो चुके देश में रहना, श्रीलंका के लोगों की आर्थिक स्थिति बुरी तरह चरमराई
मोना सिंह की रिपोर्ट
Sri Lanka Economic Crisis Explained: लगभग 2.2 करोड़ की आबादी और तमिलनाडु से कम एरिया वाला भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका इस समय बेहद ही बुरे हालात से गुजर रहा है। यहां की आर्थिक संकट गहरे संकट में है। और महंगाई की मार के साथ ही श्रीलंका की सरकार पर कई अंतरराष्ट्रीय कर्ज भी है। जिन्हें चुकाने में फिलहाल असमर्थ श्रीलंका का अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडार अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है। यह श्रीलंका के पिछले 40 वर्षों के इतिहास का सबसे बड़ा आर्थिक संकट है।
श्रीलंका में पिछले 1 महीने में खाने पीने की चीजें 15% महंगी हो चुकी हैं। टमाटर तो 200 रुपये किलो मिल रहा है तो हरी मिर्च का हिसाब 710 रुपये किलो के करीब है। दूध तो इतना महंगा हो गया है कि 100-100 ग्राम के पैकेट बना कर बेचे जा रहे हैं। ताकि लोग उन्हें खरीद सके। चाय वाले भी दूध वाली चाय के लिए ज्यादा कीमत वसूल रहे हैं। देश में सब्जी दूध राशन के दाम बढ़ने से आम आदमी का जीवन दूभर हो चुका है। लोगों की थालियों से सब्जी और चाय से दूध गायब हो गया है। आइए जानते हैं कि क्या वजह है कि श्रीलंका आज के दौर में इस कठिन आर्थिक संकट से जूझ रहा है।
क्यों खाद्यान्न संकट से जूझ रहा है श्रीलंका
श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार नवंबर 2021 के अंत तक 1.6 बिलियन डॉलर तक गिर गया था। जो केवल कुछ हफ्तों के खाद्यान्न और जरूरी चीजों के आयात के भुगतान के लिए ही पर्याप्त था। इसलिए सरकार ने कई आवश्यक खाद्य वस्तुओं का आयात प्रतिबंधित कर दिया था। इस वजह से खाद्यान्न और जरूरी चीजों की किल्लत बढ़ने से चीजें काफी महंगी हो गई। पिछले 4 महीनों में रसोई गैस की कीमतों में 85% बढ़ोतरी हुई है। दूध का आयात कम होने से दूध की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। श्रीलंका बड़ी मात्रा में खाद्यान्न के आयात पर निर्भर है। आयात में कमी होने से खाद्यान्न की महंगाई दर में अचानक वृद्धि हुई।
किसानों को किया ऑर्गेनिक खेती के लिए मजबूर
बिना किसी तैयारी के राजपक्षे सरकार साल 2021 में सभी तरह के उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था। जिससे किसानों को ऑर्गेनिक खेती के लिए मजबूर होना पड़ा। उर्वरकों और कीटनाशकों के बगैर खेती से किसानों को काफी नुकसान हुआ और आगे और घाटे के डर से ज्यादातर किसानों ने खेती बंद कर दी। इस वजह से खाद्यान्न आपूर्ति प्रभावित हुई। इसके बाद अक्टूबर 2021 में राज्य सरकार ने यू-टर्न लेते हुए उर्वरकों और कीटनाशकों पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया, लेकिन उनकी कीमत ज्यादा बढ़ गई। किसानों का कहना है, कि सरकार के पास उर्वरक और कीटनाशक पर सब्सिडी देने के लिए पैसे नहीं है। इस वजह से किसान खेती करने से बच रहे हैं।
पर्यटन उद्योग पर असर
श्रीलंका की जीडीपी में पर्यटन उद्योग का 10 प्रतिशत से ज्यादा का योगदान है। कोरोना महामारी की वजह से देश के पर्यटन उद्योग पर बहुत प्रभाव पड़ा है। 2019 में जहां श्रीलंका ने पर्यटन से 4 बिलियन डालर की कमाई की थी, वहीं कोविड महामारी की वजह से पर्यटन उद्योग 90% प्रभावित हुआ है। पर्यटन उद्योग विदेशी मुद्रा का प्रमुख स्रोत था। पर्यटन के प्रभावित होने से दो लाख से ज्यादा लोगों की नौकरियां चली गई। कोविड महामारी के दौरान सरकारी खर्चे बढ़ गए, जबकि राजस्व में सरकार ने कटौती की इस वजह से सरकारी खजाना खाली हो गया। पर्यटन उद्योग में 90% की कमी की वजह से अर्थव्यवस्था 3.6 % सिकुड़ गई।
राजपक्षे परिवार के पास देश की सत्ता
श्रीलंका सरकार की कमान राजपक्षे परिवार के पास कई पीढ़ियों से है। गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति हैं और उनके भाई महिंद्रा राजपक्षे प्रधानमंत्री हैं, तीसरे भाई बासिल राजपक्षे वित्त मंत्री हैं, जो अमेरिकी नागरिक हैं। उन्हें श्रीलंका की संसद में विशेष बिल पास कर के विदेशी नागरिकों को भी संसद में शामिल होने की अनुमति के तहत वित्त मंत्री बनाया गया है, ताकि वे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को नई दिशा प्रदान कर सके। इस तरह से राजपक्षे परिवार के पास देश की सारी महत्वपूर्ण शक्तियां सीमित है। इसके अलावा राजपक्षे परिवार का चीन के साथ अत्यंत गहरा संबंध है।
कितना और किन-किन देशों का कर्ज है
जानकारों के मुताबिक, श्रीलंका में आर्थिक संकट की शुरुआत 2 वर्ष पहले ही हो गई थी। तब से महंगाई में बढ़ोतरी होनी शुरू हो गई थी और विदेशी मुद्रा पर भी दबाव बना हुआ था। कोविड महामारी के आने के बाद श्रीलंका में मध्यम वर्ग के लगभग 5लाख लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए।
श्रीलंका सरकार को आने वाले 12 महीनों में 7.3 बिलियन डॉलर का घरेलू और विदेशी कर्ज चुकाना है। इसमें 50 हजार डॉलर के सॉवरेन बॉन्ड भी हैं। श्रीलंका की सरकार पर 35 बिलियन डॉलर का कर्ज है जो मुख्य रूप से भारत चीन और जापान जैसे देशों का है। इसमें चीन का 10 परसेंट कर्ज है। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक, अगर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ बेलआउट पैकेज देता है तो श्रीलंका को कुछ राहत मिल सकती है।
चीन से लिया गया कर्ज
श्रीलंका पर चीन का 5अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज है। इसके अलावा आर्थिक संकट की वजह से श्रीलंका ने चीन से पिछले साल 1 अरब डॉलर का कर्ज और लिया था। श्रीलंका के विपक्षी सांसद और अर्थशास्त्री हर्ष डिसिल्वा ने हाल ही में संसद में कहा कि 1 जनवरी 2022 में श्रीलंका के पास कुल विदेशी मुद्रा 43.7 करोड डॉलर होगा। जबकि फरवरी में 4.8 अरब डॉलर की जरूरत टैक्स चुकाने के लिए होगी। ऐसे में श्रीलंका डिफॉल्टर दिवालिया साबित हो सकता है। मौजूदा समय में श्रीलंका के पास 1.58 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा बची है, जो 2019 में 7.5 अरब डॉलर थी। कर्ज नहीं चुका पाने के कारण श्रीलंका ने चीन को हंबनटोटा पोर्ट और इसके साथ 15000 एकड़ जमीन को 99 साल के लीज पर दिया है। हंबनटोटा पोर्ट भारत से 100 मील की दूरी पर है। यह सौदा भारत के लिए सामरिक खतरा साबित हो सकता है। वैसे भी चीन के बारे में प्रसिद्ध है कि वो आर्थिक रूप से कमजोर और मजबूर देशों को कर्ज के बोझ तले दबा कर उनकी महत्वपूर्ण संपत्तियों पर कब्जा जमा लेता है।
भारत ने की मदद
श्रीलंका के वित्त मंत्री बासिल राजपक्षे की दिसंबर 2021 में भारत यात्रा के दौरान भारत ने इस कठिन समय में उनके उनकी सहायता का आश्वासन दिया था। इस यात्रा के दौरान ही बासिल राजपक्षे ने खाद्यान्न दवाइयों और महत्वपूर्ण चीजों के आयात पर क्रेडिट लिमिट बढ़वा ली थी। इसके साथ ही साथ भारत ने अन्य सहायता का भी वादा किया था। 13 जनवरी को श्रीलंका स्थित भारतीय उच्चायोग ने श्रीलंका को एक बार 90 करोड़ डॉलर और दूसरी बार 50 करोड़ डॉलर की मदद की। इधर, इन सब के बीच अमेरिका की रेटिंग कंपनी फिच ने श्रीलंका की रेटिंग घटाकर सीसी कर दी है। यहां बता दें कि रेटिंग सीसी वो कैटिगरी है जो डिफॉल्ट होने से ठीक पहले की है। श्रीलंका के जाने-माने अर्थशास्त्री और केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर डब्लू ए विजयवर्धने ने भारत की मदद के लिए ट्वीट करते हुए कहा कि भारत की मदद से श्रीलंका को 2 महीने की राहत मिलेगी, लेकिन इन 2 महीनों में श्रीलंका को अपनी अर्थव्यवस्था को नई दिशा देनी चाहिए।
दिवालिया होने से बचने के लिए श्रीलंका ने सोना बेचा
श्रीलंका के केंद्रीय बैंक सेंट्रल बैंक ऑफ श्रीलंका ने पास रखे गोल्ड रिजर्व का आधे से अधिक हिस्सा विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूती देने के लिए बेच दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, गोल्ड रिजर्व का 54.1% हिस्सा इस्तेमाल किया जा चुका है।
भारत भी गुजर चुका है आर्थिक संकट के दौर से
भारत पर 1991 के आर्थिक संकट के दौरान भारत के पास मौजूद विदेशी मुद्रा भंडार 1 अरब डॉलर से भी कम था। और इससे सिर्फ 20 दिनों के तेल और खाद्यान्न का भुगतान किया जा सकता था। विदेशी कर्ज 72 अरब डालर था। उस समय भारत दुनिया का तीसरा बड़ा कर्जदार देश था। आईएमएफ ने भारत को 1.27 अरब डॉलर का कर्ज दिया था। साल 1991 के अंत में चंद्रशेखर सरकार को 20 टन सोना गिरवी रखना पड़ा था। जब 21 जून 1991 को पी वी नरसिंह राव की सरकार आई तो उस समय वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह ने कई सुधार और नीतियां लागू कीं जिनसे भारत की अर्थव्यवस्था सुधरी और भारत कर्ज से बाहर आ पाया था।