Begin typing your search above and press return to search.
विमर्श

लैंगिक समानता वाले वैज्ञानिक दल के शोधपत्र होते हैं अधिक प्रभावशाली और समाज से जुड़ते हैं सीधे तौर पर : रिसर्च में हुआ खुलासा

Janjwar Desk
5 Sep 2022 5:58 AM GMT
लैंगिक समानता वाले वैज्ञानिक दल के शोधपत्र होते हैं अधिक प्रभावशाली और समाज से जुड़ते हैं सीधे तौर पर : रिसर्च में हुआ खुलासा
x

file photo

महिला वैज्ञानिकों की शोधपत्रों के प्रकाशन में उपेक्षा के कारण इस क्षेत्र में महिलाओं से सम्बंधित बहुत सारे मामलों में कम ही शोध किया जाता है, और जितना भी शोध किया जाता है उसके परिणाम दुनिया को कभी पता नहीं चलते....

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

The research papers published by gender diverse team are more novel and exert higher impact on society. पिछले लगभग दो दशकों में विज्ञान के क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण बदलाव आये हैं – अब अधिकतर शोधपत्र सामूहिक तौर, यानि अनेक वैज्ञानिकों के नाम वाले, पर लिखे जाते हैं और दूसरा बदलाव यह है कि अब अहिलायें बड़े पैमाने पर विज्ञान में शोधकार्य कर रही हैं| सामूहिक तौर पर जब शोधपत्र लिखे जाते हैं तब लैंगिक सन्दर्भ में तीन स्थितियां हो सकती हैं – एक जिसमें सभी वैज्ञानिक पुरुष हों, दूसरा जिसमें सभी वैज्ञानिक महिलायें हों और तीसरा जिसमें वैज्ञानिक दल में पुरुष और महिलायें दोनों हों| अब तक किसी शोधपत्र के प्रभावी होने और अनेक जगह उद्धृत किये जाने से सम्बंधित अनेक अध्ययन किये गए हैं, पर इन अध्ययनों में यह नहीं बताया गया है कि किसी शोधपत्र के प्रभावी और समाज के लिए लाभदायक होने और वैज्ञानिक दल के लैंगिक विविधता में कोई सम्बन्ध है या नहीं।

हाल में ही प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकैडमी ऑफ़ साइंसेज में प्रकाशित एक विस्तृत अध्ययन में बताया गया है कि लैंगिक समानता वाले वैज्ञानिक दल के शोधपत्र अधिक प्रभावी और समाज से सीधे जुड़े होते हैं और इन्हें वैज्ञानिक समुदाय में अधिक उद्धृत किया जाता है। इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ नोट्रेडेम के सूचना प्रौद्योगिकी के वैज्ञानिक यांग यांग की अगुवाई में किया गया है। इस दल ने अपने अध्ययन के लिए वर्ष 2000 से 2019 के बीच स्वास्थ्य विज्ञान के 15000 जर्नलों में प्रकाशित 66 लाख शोधपत्रों का बारीकी से अध्ययन किया। इन शोधपत्रों के लेखकों में 32 लाख महिला वैज्ञानिकों के नाम थे, जबकि पुरुष वैज्ञानिकों की संख्या 44 लाख थी। इस अध्ययन के लिए प्रमुख लेखक और सह-लेखक, सभी वैज्ञानिकों के नाम शामिल किये गए थे, और जिन वैज्ञानिकों के नाम अनेक शोधपत्रों में थे, उनका नाम केवल एक बार ही शामिल किया गया था।

इस अध्ययन का निष्कर्ष यह है कि शोधपत्र प्रकाशित कराने वाले जिन वैज्ञानिक दलों में लैंगिक समानता अधिक थी, उनके शोधपत्र उतने ही अधिक प्रभावी और समाज की समस्याओं से सीधे जुड़े विषयों पर थे। यह निष्कर्ष वैज्ञानिकों के छोटे दलों पर जितने प्रभावी हैं, उतना ही बड़े दलों और अंतर्राष्ट्रीय दलों पर भी सटीक बैठता है। इस अध्ययन में स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान के सभी 45 उप-विषयों पर लिखे गए शोधपत्रों को शामिल किया गया था। प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकैडमी ऑफ़ साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि हालां कि यह अध्ययन केवल चिकित्सा विज्ञान से जुड़े शोधपत्रों पर ही आधारित है पर वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह निष्कर्ष विज्ञान के हरेक क्षेत्र में लागू किया जा सकता है। लैंगिक समानता वाले दल में निष्कर्ष पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि अध्ययन का नेतृत्व किसी महिला वैज्ञानिक ने किया है या पुरुष वैज्ञानिक ने।

कुछ वर्ष पहले एक अध्ययन में बताया गया था कि किसी वैज्ञानिक दल में महिलाओं को शामिल किये जाने के बाद से शोध से सम्बंधित सूचना सभी सदस्यों तक समय से पहुँचती है। केवल पुरुषों के वैज्ञानिक दल में भले ही एक ही विषय पर शोध किया जा रहा हो, पर कुछ सूचनाएं या अध्ययन के निष्कर्ष केवल कुछ सदस्यों तक ही सीमित रह जाते हैं, पर महिलायें इसका दायरा बढाती हैं। इसका फायदा यह होता है कि अध्ययन में तेजी आती है और किसी विषय से सम्बंधित सभी पहलू शामिल हो जाते हैं। प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकैडमी ऑफ़ साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार लैंगिक समानता वाले शोधपत्र प्रभावी होते हैं, पर इसका कारण ठीक-ठीक नहीं पता है। अधिकतर वैज्ञानिक मानते हैं कि लैंगिक समानता वाले दल जब सामाजिक सरोकारों वाले विषयों पर जब शोध करते हैं तब कुछ विषय जो महिलाओं से जुड़े होते हैं वे पुरुष वैज्ञानिकों से छूट जाते हैं, और इसे पूरा करने का काम महिलायें करती हैं – इसीलिए ऐसे शोधपत्र प्रभावी होते हैं और वैज्ञानिक समुदाय इन्हें लगातार उद्धृत करता है।

प्लोस वन नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में शोधपत्रों के सन्दर्भ में लैंगिक असमानता बहुत अधिक है। इस अध्ययन के लिए चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में सबसे प्रसिद्ध और ख्यातिप्राप्त तीन जर्नल – न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन, जर्नल ऑफ़ अमेरिकल मेडिकल एसोसिएशन और द लांसेट – में प्रकाशित 1000 से अधिक शोधपत्रों के साथ प्रकाशित सन्दर्भ का अध्ययन किया गया। इसमें जिन शोधपत्रों का हवाला दिया गया था, उसमें से महज 26.8 प्रतिशत शोधपत्रों की मुख्य लेखिका महिला वैज्ञानिक थीं। इस संख्या को इस सन्दर्भ में भी देखा जा सकता है कि अमेरिका में स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान में वरिष्ठ वैज्ञानिकों की कुल संख्या में से 37 प्रतिशत से अधिक पर महिलायें हैं। वर्ष 2017 के दिसम्बर महीने में द लांसेट के सम्पादक मंडल ने दावा किया था कि उनके जर्नल में प्रकाशित शोधपत्रों में लैंगिक असमानता को दूर किया जाएगा, पर इसके बाद भी स्थिति पहले जैसी ही है।

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार कोविड 19 से सम्बंधित प्रकाशित शोधपत्रों में से महज 29 प्रतिशत में मुख्य लेखिका कोई महिला वैज्ञानिक हैं, जबकि ऐसे सभी शोधपत्रों पर जितने वैज्ञानिकों के नाम थे उसमें से 34 प्रतिशत महिलायें थीं। विज्ञान के क्षेत्र में, विशेष तौर पर स्वास्थ्य विज्ञान के क्षेत्र में, महिला वैज्ञानिकों की शोधपत्रों के प्रकाशन में उपेक्षा के कारण इस क्षेत्र में महिलाओं से सम्बंधित बहुत सारे मामलों में कम ही शोध किया जाता है, और जितना भी शोध किया जाता है उसके परिणाम दुनिया को कभी पता नहीं चलते। ऐसे समय अब पूरी दुनिया में लैंगिक समानता पर चर्चा की जाती है, विज्ञान शोधपत्रों में महिलाओं की उपेक्षा आश्चर्य का विषय है और समाज के लिए चिंता का भी।

Next Story

विविध