IVF Failure Ke Karan: आईवीएफ फेल होने की यह है वजह जिससे नहीं मिल पाता संतान सुख
IVF Failure Ke Karan: आईवीएफ फेल होने की यह है वजह जिससे नहीं मिल पाता संतान सुख
मोना सिंह की रिपोर्ट
IVF Failure Ke Karan: आज के आधुनिक समय में बांझपन की समस्या से निपटने के लिए आईवीएफ (IVF) या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया निसंतान दंपतियों के लिए वरदान साबित हुई है। आईवीएफ की प्रक्रिया उन दंपतियों के लिए आशा की किरण है जो स्वाभाविक तरीके से गर्भधारण नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन आईवीएफ में भी जरूरी नहीं होता कि हमेशा या पहले प्रयास में ही सफलतापूर्वक गर्भधारण हो जाए। कई बार आईवीएफ की प्रक्रिया गर्भधारण कराने में असफल भी हो जाती है। पहली बार आईवीएफ के द्वारा भ्रूण को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है तो गर्भधारण की संभावना 40 से 50 % तक ही रहती है। दूसरे तीसरे प्रयास में गर्भधारण की संभावना 80 से 90% तक होती है। इसका मतलब यह है कि पहले प्रयास में अगर सफलता नहीं मिलती तो दूसरे या तीसरे प्रयास में आईवीएफ के द्वारा गर्भधारण के लिए इच्छुक कपल में से अधिकतर लगभग 80 से 90% को सफलतापूर्वक गर्भ धारण कर पाते हैं। लेकिन अगर आईवीएफ के द्वारा गर्भधारण के सभी तीन या चार प्रयास असफल हो जाते हैं तो गर्भधारण के लिए इच्छुक जोड़े का निराश होना स्वाभाविक ही है। इस असफलता के पीछे कई कारण हो सकते हैं। आइए जानते हैं कि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन द्वारा गर्भधारण करने में कौन से कारणों की वजह से असफलता हाथ लगती है।
अंडे या एग की गुणवत्ता अच्छी नहीं होना
मां बनने के लिए इच्छुक महिला के शरीर में हार्मोन का स्तर कम या ज्यादा होने या हार्मोन असंतुलन की वजह से अंडाशय के अंडों की क्वालिटी और अंडों की संख्या पर असर पड़ता है। महिला की ज्यादा उम्र की वजह से भी अंडों की क्वालिटी पर असर पड़ता है।
भागदौड़ की जिंदगी और टेंशन लेने पर भी इस पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। साथ ही लाइफस्टाइल बेवजह परेशान रहना अनियमित तरीके से खानपान और दिनचर्या का भी इस पर असर पड़ता है। मोटापे की वजह से अंडे की गुणवत्ता में कमी होना भी इसमें शामिल है।
गर्भाशय या बच्चेदानी से जुड़ी समस्याएं
- आईवीएफ करने से पहले गर्भाशय की अंदरूनी जांच (हिस्ट्रोस्कोपी)जरूरी होती है। कई बार हिस्ट्रोस्कोपी ना होने की वजह से गर्भाशय से जुड़ी समस्याओं का पता नहीं चल पाता, जैसे गर्भाशय का वह स्थान जहां भ्रूण स्थानांतरण के बाद चिपकता है सही है या नहीं। गर्भाशय की टी . बी. की जांच जरूरी है। गर्भाशय में सिस्ट होने पर उसे हटाना अनिवार्य होता है।
- गर्भाशय में जख्म होने से यह समस्या आती है। एंडोमेट्रियोसिस या पॉलिप्स का होना भी प्रजनन क्षमता और भ्रूण के प्रत्यारोपण दर को कम करता है।
- एंडोमेट्रियोसिस होने पर इसको दूरबीन विधि से ठीक करने के बाद ही आईवीएफ की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए ।
- गर्भाशय की परत का पतला होना भी इसमें एक समस्या है। इसके अलावा गर्भाशय की परत का स्थानांतरित भ्रूण के लिए ग्रहणशील ना होना भी एक प्रमुख कारण है।
- अधिक उम्र और खानपान के साथ ही कई बार अधिक उम्र होने से भी अंडे की गुणवत्ता और मात्रा में कमी आ जाती है। जिससे अच्छे भ्रूण नहीं बन पाते। ऐसी स्थिति में किसी स्वस्थ डोनर के अंडे का इस्तेमाल करके स्वास्थ्य भ्रूण प्राप्त किया जा सकता है। आईवीएफ की प्रक्रिया के बाद उचित खानपान और तनाव मुक्त रहना सफलता की दर को बढ़ाता है।
- यदि महिला या पुरुष के अंडे और शुक्राणुओं की क्वालिटी अच्छी नहीं होती तो भी आईवीएफ के फेल होने की संभावना ज्यादा होती है।
- यदि फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया पूर्ण तरीके से संपन्न नहीं हो पाती तो भी आईवीएफ असफल होता है। शरीर में एफएसएच हार्मोन का स्तर अधिक होने से गर्भधारण में समस्या हो सकती है।
- माता-पिता दोनों में से किसी को भी अस्थमा, एलर्जी ऑटोइन्फ्लेमेटरी या ऑटो इम्यून डिजीज या इम्यूनोलॉजिकल डिसऑर्डर होने की स्थिति में भी भ्रूण ठीक से प्रत्यारोपित नहीं हो पाता।
- यदि ट्रीटमेंट ले रहे महिला पुरुष धूम्रपान के आदी हैं तो यह आईवीएफ फेल होने का कारण हो सकता है। यदि इन सब वजहों से आईवीएफ ट्रीटमेंट में सफलता नहीं मिल पा रही है तो निराश ना हो। क्योंकि बहुत सारे उपाय ऐसे हैं जिसका प्रयोग करके आईवीएफ ट्रीटमेंट द्वारा सफलतापूर्वक गर्भधारण किया जा सकता है।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन द्वारा गर्भधारण को कैसे बनाएं सफल
फर्टिलिटी ट्रीटमेंट हेल्थ और फाइनेंस दोनो को बुरी तरह प्रभावित करता है। यदि तीन चार प्रयासों के बाद भी सफलता नहीं मिलती तो निराशा स्वाभाविक है। लेकिन कुछ उपाय हैं,जो मददगार साबित हो सकते हैं। इसके साथ ही अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक बनाए रखें। अपनी रूटीन लाइफ को नियमित करें। जीवन शैली में बदलाव करें।डॉक्टर द्वारा बताए गए डाइट प्लान और एक्सरसाइज का पालन करें।
गर्भाशय की जांच और इलाज
सर्वप्रथम गर्भाशय की जांच हिस्ट्रोस्कोपी द्वारा कराएं। यदि सिस्ट हो तो उसे हटवा दें। गर्भाशय के स्तर को स्टिमुलेट करने के लिए उत्तेजक दवाएं दी जाती हैं। जिससे एंडोमेट्रियम की रिसेप्टिविटी बढ़ जाती है ,और आईवीएफ की सफलता के चांसेस बढ़ जाते हैं।
ब्लास्टोसिस्ट प्रक्रिया से इलाज
इस प्रक्रिया में जब स्पर्म और एग को परखनली में मिलाकर भ्रूण बनाया जाता है, तो भ्रूण अगले 5 दिनों में ब्लास्टोसिस्ट में डिवेलप होता है। इसके बाद इसे गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है, इस स्टेज पर भ्रूण के प्रत्यारोपण से गर्भधारण की पूर्ण संभावना बन जाती है।
एंडोमेट्रियम की परत पतली होने की स्थिति में कुछ दवाइयां दी जाती हैं। जिससे एंडोमेट्रियम की पतली परत स्वस्थ हो सके। और एंडोमेट्रियम में रक्त प्रवाह अच्छी तरह से हो सके इसके लिए एस्प्रिन और वेजाइनल सिल्डेनाफिल जैसी मेडिसिन का प्रयोग किया जाता है। इन सभी उपायों के साथ कुछ एडवांस टेक्नोलॉजी की सहायता से भी आईवीएफ की सफलता दर को बढ़ाया जा सकता है।
आईवीएफ को सफल बनाने वाले ये हैं एडवांस टेक्नोलॉजी
1 आइसीएसआई (ICSI)
इसमें एक स्वस्थ स्पर्म को अंडे के साइटोप्लाज्म में डायरेक्ट इंजेक्ट किया जाता है। इस तकनीकी से सफलता पूर्वक भ्रूण बनता है।
2 डोनर आईवीएफ
स्पर्म और एग की क्वालिटी अच्छी ना होने पर एग या स्पर्म डोनर का इस्तेमाल करके स्वस्थ भ्रूण प्राप्त किया जाता है। इसे डोनर आईवीएफ कहते हैं।
3 असिस्टेंट हैचिंग
इसका प्रयोग एंब्रियो को सफलतापूर्वक गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने में किया जाता है। अंडे की बाहरी परत जिसे जोना पेलुसिडा कहते हैं। इसमें एक छोटा छिद्र केमिकल या लेजर की सहायता से किया जाता है। ऐसा करने पर एंब्रियो गर्भाशय में सही तरीके से स्थापित हो जाता है।
4 माइक्रोफ्लूईडिक्स या
स्पर्म सोर्टिंग टेक्नोलॉजी
इस टेक्नोलॉजी की मदद से खराब शुक्राणुओं को फिल्टर करके अलग कर दिया जाता है। और स्वस्थ शुक्राणु का प्रयोग आईवीएफ की प्रक्रिया के दौरान किया जाता है।
5 मैग्नेटिक एक्टिवेटेड सेल सोर्टिग
इस विधि में यदि स्पर्म काउंट कम हो तो शुक्राणुओं का घनत्व बढ़ाया जाता है। जिससे फर्टिलिटी की दर बढ़ती है।और संतान प्राप्ति की संभावना बढ़ती है।
6 सरोगेसी
यदि आईवीएफ प्रक्रिया द्वारा गर्भधारण के सभी प्रयास विफल हो जाए तो उस स्थिति में सेरोगेट मदर की सहायता से आईवीएफ प्रक्रिया द्वारा सफलतापूर्वक संतान प्राप्ति की जा सकती है। इसे आईवीएफ सेरोगेसी कहते हैं।