नोटबंदी के तीन साल बाद अर्थव्यस्था का बुरा हाल, पिछले 12 सालों मे बिजली की मांग में सबसे बड़ी गिरावट

Update: 2019-11-12 14:28 GMT

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले महीने महाराष्ट्र में बिजली की मांग में 22.4 फीसदी और गुजरात में 18.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी बिजली की मांग में गिरावट आई हैं।

जनज्वार, नई दिल्ली। भारत में बिजली की मांग में पिछले 12 सालों में सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली है। पिछले साल की तुलना में इस साल अक्टूबर माह में 13.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 12 सालों में ये सबसे बड़ी गिरावट है।

माचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, ये गिरावट एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले भारत में मंदी में गहराते संकट का सबूत देते है। भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए बिजली की जरूरत है लेकिन हाल के महीनों मे बिजली उद्योग में आई ये तीसरी मंदी है जो इस और इशारा करती है कि औद्योगिक रुप से भारत में मंदी बड़े स्तर पर है। ऐसे में केंद्र सरकार के 2024 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनामी के सपने को झटका लग सकता है।

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सुस्ती को लेकर यदि अर्थशास्त्रियों की राय मानी जाए तो बिजली की डिमांड देश की अर्थव्यस्था की रफ्तार पर भी सवाल उठाती है। दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के प्रोफेसर एन. आर भानूमति के मुताबिक बिजली की खपत खासतौर पर इंडस्ट्रियल सेक्टर में मंदी की वजह हो सकती है। बिजली की मांग में सबसे ज्यादा कमी जिन राज्यों में देखी गई है उनमें महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्य शामिल हैं। जहां बड़े पैमाने पर इंडस्ट्रियल सेक्टर मौजूद हैं।

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले महीने महाराष्ट्र में बिजली की मांग में 22.4 फीसदी और गुजरात में 18.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी बिजली की मांग में गिरावट आई हैं। वहीं भारत में ईंधन की मांग बीते छह साल के निचले स्तर पर है, जिसे भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक माना जा रहा है। इससे पहले सिंतबर में भारत के औद्योगिक उत्पादन मे लगभग 5.2 फ़ीसदी की कमी दर्ज की गई थी। जो लगभग 14 साल में सबसे बड़ी गिरावट थी। वही भारत में ईंधन की मांग बीते छह साल के निचले स्तर है।

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र्थशास्त्रियों का मानना है कि उपभोक्ता मांग और निवेश में कमी के चलते भारत की जीडीपी विकास दर 5.8 फीसदी रह सकती है। रिजर्व बैंक पिछले महीने ही मार्च में 2020 में समाप्त वित्त वर्ष के लिए अपने विकास अनुमान को 80 आधार अंक से घटाकर 6.1 फीसदी कर चुका है।

ये आर्थिक मंदी मोदी सरकार की नोटबंदी के फैसले के ऊपर सवाल खड़ी करती है जिसकी 8 नवंबर 2016 को घोषणा की गई थी। नोटबंदी के कारण अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी लेकिन पिछले 3 सालों में नोटबंदी का असर बुरा ही देखने को मिला है।

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