लॉकडाउन के बीच तिहाड़ जेल में बंद है गर्भवती महिला, दिल्ली पुलिस ने UAPA के तहत लगाया था आरोप
सफूरा जरगर नागरिकता संशोधन विधेयक विरोधी प्रदर्शनों के पीछे खड़ी रहती थीं, फरवरी 2020 में हुए दिल्ली दंगों के बाद पुलिस ने उनपर मुख्य 'साजिशकर्ता' होने का आरोप लगाया है....
जनज्वार ब्यूरो। जामिया मिलिया इस्लामिया (जेएमआई) यूनिवर्सिटी की रिसर्च स्कॉलर सफूरा जरगर ने रमजान का पहला दिन राजधानी नई दिल्ली की उच्च सुरक्षा वाली तिहाड़ जेल में बिताया।
27 वर्षीय महिला जरगर को 10 अप्रैल को तब गिरफ्तार किया गया था जब उसकी प्रेग्नेंसी की दूसरी तिमाही चल रही थी और बाद में उस पर दिल्ली पुलिस ने कड़े आतंकवाद विरोधी कानून गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 2019 (UAPA) के तहत आरोप लगाया था।
जरगर जामिया कॉर्डिनेशन कमिटी से जुड़ी थीं। उसने दिसंबर 2019 में पारित नागरिकता कानून के खिलाफ राजधानी में कई हफ्तों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन किया था। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि नागरिक संशोधन अधिनियम (CAA) देश के 180 मिलियन मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करता है और देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान के खिलाफ जाता है।
संबंधित खबर: 24 घंटों के भीतर इन 6 पत्रकार, लेखक और छात्रों के खिलाफ UAPA के तहत दर्ज किया गया केस
फरवरी में हिंदू राष्ट्रवादी सरकार के समर्थकों द्वारा शांति पूर्ण धरने पर हमले के बाद पूर्वोत्तर दिल्ली में हिंसा भड़क गई थी। पुलिस ने जरगर पर प्रमुख षड़यंत्रकारी होने का आरोप लगाया। इस हिंसा में 53 लोग मारे गए थे जिसमें अधिकांश मुस्लिम थे। 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद से राजधानी दिल्ली में यह सबसे भीषण हिंसा थी।
जामिया में आर्ट की स्टुडेंट कौसर जान ने अन्य लोगों के साथ यूनिवर्सिटी की दीवारों पर प्रदर्शन के रुप में पेंटिंग बनाई थी। वह बताती हैं कि वह जामिया कॉर्डिनेशन कमिटी की सबसे मजबूत महिला आवाज थी, वह सिर्फ खबरों में रहने के लिए कुछ अन्य लोगों के खिलाफ नहीं थी।
अल जज़ीरा से बात करते हुए ज़रगर के शिक्षकों में से एक ने उसे 'मुखर और मेहनती' बताया। नाम न बताने की शर्त पर उन्होंने कहा, मुझे वास्तव में उम्मीद है कि न्यायपालिका उसके अकादमिक रिकॉर्ड और उसके स्वास्थ्य की स्थि पर विचार करेगी और उसे जल्द ही रिहा करेगी।
जामिया कॉर्डिनेशन कमिटी के एक सदस्य ने नाम न बताने का अनुरोध करते हुए कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए कोरोना वायरस की महामारी के बीच गिरफ्तारी कर रहे हैं ताकि लॉकडाउन हटने के बाद नागरिकता संशोधन कानून विरोध आंदोलन की मौत हो जाए।
10 फरवरी को पुलिस और छात्रों के बीच हाथापाई में फंसने के बाद जरगर बेहोश हो गयी थी और उसे कुछ समय के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था।
जरगर के पति ने अल जजीरा को बताया, प्रेग्नेंसी की चिंता के कारण तब से उसने धीरे-धीरे अपने शारीरिक आंदोलन को प्रतिबंधित कर दिया था और कोविड 19 प्रकोप के बाद उसने जरुरी काम को छोड़कर बाहर जाना भी बंद कर दिया था। वह ज्यादातर काम घर से ही कर रहीं थीं।
नई दिल्ली में तिहाड़ जेल परिसर भारत की सबसे भीड़भाड़ वाली जेलों में से एक है जिसमें अपनी क्षमता से लगभग दोगुने कैदी रहते हैं।
कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते हुए भारतीय अदालतों ने उन लोगों की रिहाई के आदेश दिए हैं जिनका ट्रायल नहीं किया गया है लेकिन जरगर पर दंगा भड़काने, हत्या का प्रयास, हत्या और धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने समेत 18 अपराधों के आरोप थे जो जल्द रिहाई के योग्य नहीं हैं।
उनके वकील ने कहा, 'असल में हमने जाफराबाद मामले में जमानत हासिल की थी, जिसमें उनके खिलाफ महिलाओं और बच्चों के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने और यातायात को बाधित करने का आरोप था।'
लेकिन इससे पहले कि वह रिहा हो पाती, पुलिस ने उसे एक अन्य मामले में गिरफ्तार कर लिया। पहले उन्होंने इस बात का खुलासा करने से इनकार किया कि जरगर के खिलाफ सही आरोप क्या हैं या किस मैटरियल को उनकी गिरफ्तारी का आधार बनाया है। लेकिन बाद में अदालत की ओर से आदेश के बाद आरोपों का खुलासा किया गया कि पुलिस ने जरगर का यूएपीए के तहत आरोप लगाया है।
उनके वकील ने कहा, प्रेग्नेंसी के बावजूद उनके खिलाफ अस्पष्ट आरोप लगाना न्याय की एक गंभीर निष्फलता है।
अल जजीरा ने दिल्ली पुलिस के पीआरओ एमएस रंधावा को फोन किया। रंधावा ने पिछले सप्ताह दिल्ली पुलिस की ओर से जारी एक बयान का हवाला दिया। 20 अप्रैल को पुलिस ने ट्वीट किया था कि दिल्ली दंगों के संबंध में सभी गिरफ्तारियां कानून के अनुपालन और वैज्ञानिक सबूतों के आधार पर थीं। इसमें चेतावनी देते हुए कहा गया था कि वह झूठे प्रचार और अफवाहों से नहीं डरेगी।
कोरोनावायरस महामारी के दौरान न्याय तक सीमित पहुंच को लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं। वकीलों और परिवारों को जेलों में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। कई दिनों के बाद अदालत ने जरगर के वकील को फोन पर उससे बात करने की अनुमति दी।
उनके वकील ने कहा, मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूं कि क्वारंटीन के नाम पर सफोरा जरगर को एकांत में रखा जा रहा है या नहीं। उसने मुझे बताया कि उसने अपने पति को टेलीफोन पर बात करने के लिए पांच आवेदन किए थे, लेकिन हर बार कोविड 19 प्रोटोकॉल का हवाला देकर इनकार कर दिया गया। वकील ने चिंता जताई कि जरगर चिकित्सा और भोजन संबंधी लापरवाही से पीड़ित हैं।
सुप्रीम कोर्ट की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा, 'इस मामले से पता चलता है कि लॉकडाउन के दौरान न्याय तक पहुंच कम हो गई और शांतिपूर्ण सीएए विरोधी प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले छात्र कार्यकर्ताओं को फंसाने और कैद करने के लिए इसका (यूएपीए) इस्तेमाल किया जा रहा है।'
संबंधित खबर: कश्मीरी महिला पत्रकार के खिलाफ ‘राष्ट्रविरोधी’ पोस्ट करने पर UAPA के तहत मुकदमा दर्ज
ग्रोवर ने कहा, 'उसकी प्रेग्नेंसी की स्थिति को देखते हुए वह उच्च जोखिम में है और अदालत के आदेश से उसे जेल भेज दिया गया है, अदालत पूरी तरह से जिम्मेदार है।
जरगर के परिवार ने दुख और चिंता के साथ रमजान का पहला दिन बिताया। वह कहते हैं, 'यह एक बहुत ही खुशी का अवसर होता अगर उसका पहला बच्चा हमारे साथ होता। हम सभी ने उसकी जल्दी रिहाई की प्रार्थना की थी। ऐसी हालत में उसे देखभाल की जरूरत है, जेल की नहीं।'