देश की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस ने 20 लोगों को नौकरी से निकाला, 18 घंटे करवाते थे काम, छेड़खानी की शिकायत पर लड़कियों से सबूत मांगते थे अधिकारी
तेजस एक्सप्रेस ने बिना नोटिस दिए 20 कैबिन क्रू को नौकरी से निकाला, 18 घंटे करवाया जाता था काम, मैनेजर के सामने गिड़गिड़ाने पर ही मिलती थी सैलरी....
जनज्वार। भारतीय रेलवे की पहली प्राइवेट ट्रेन ‘तेजस’ अपनी स्पीड, लुक और सुविधाओं को लेकर चर्चा में आई थी लेकिन इसमें काम करने वाले केबिन क्रू और अटैंडेंट अब बेरोजगार हो गये हैं। एक दर्जन से अधिक केबिन क्रू व अटैंडेंट्स को बिना नोटिस के नौकरी से निकाल दिया गया है। अब ये युवा बेरोजगार हैं और ट्वीट करके रेलमंत्री और आईआरसीटीसी से मदद मांग रहे हैं। लेकिन उनकी कोई नहीं सुन रहा।
वहीं जिस निजी फर्म द्वारा उन्हें नियुक्त किया था वो भी नौकरी से निकालने का कारण नहीं बता रही है। इनसे रोजाना 18 घंटे नौकरी कराई जा रही थी। सैलरी के नाम पर केवल 10,000 हजार रुपये दिया जा रहा था। इन केबिन क्रू और अटैंडेंट को कभी वक्त पर वेतन नहीं मिला। दूसरी ओर लड़कियों के साथ छेड़खानी के मामले भी सामने आए। ये लड़कियां जब अपने साथ हुई छेड़खानी की शिकायत करती तो उन्हें काम से निकालने की धमकी मिलती थी। अधिकारी कहते थे ये आपके काम का हिस्सा है, आप को करना पड़ेगा।
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चार अक्टूबर 2019 से तेजस ट्रेन लखनऊ से दिल्ली के बीच चलना शुरू हुई। इसका परिचालन आईआरसीटीसी कर रहा है। लेकिन यात्रियों की सेवा (हॉस्पिटैलिटी) की जिम्मेदारी वृंदावन फूड प्रोडक्ट्स (आरके एसोसिएस)’ की है। आरके एसोसिएस प्राइवेट कॉन्ट्रेक्टर के तौर पर आईआरसीटीसी के साथ जुड़ा है। इस फर्म ने केबिन क्रू व अटैंडेंट के तौर पर 40 से अधिक लड़के-लड़कियों की हायरिंग की थी लेकिन एक महीने के भीतर ही 20 लोगों को घर बैठा दिया गया है, जिनमें लगभग एक दर्जन लड़कियां हैं। नौकरी से निकालने से पहले ना नोटिस दिया गया और ना ही सैलरी दी गई। हॉस्पिटैलिटी की दुनिया में ये युवा तेजस के जरिये अपना सपना पुरा करना चाहते थे लेकिन आईआरसीटीसी ने इनके सपनों को अधंकार में धकेल दिया है। इन्हें बताया भी नहीं जा रहा कि इनका गुनाह क्या है।
तेजस में कोच अटेंडेंट स्टाफ रहे जुहैब आलम ने जनज्वार से बातचीत में पूरी दास्तां को बयां किया है। जुहैब कहते हैं, 'मेरी हायरिंग फलाईवे अवेशन अकैडमी द्वारा एक महीने पहले हुई थी। तब मुझे कहा गया था कि एक दिन काम करना होगा दूसरे दिन छुट्टी मिलेगी, लेकिन ये सब कुछ दिन ही चला उसके बाद 18 घंटे काम कराते थे। सैलरी के नाम पर केवल 10,000 हजार ही मिलती थी। जिस दिन ट्रेन बंद होती थी यानी सिर्फ मंगलवार को ही छुट्टी मिलती थी।
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जुबैर आगे कहते हैं, 'काम करने के एक महीने बाद जुहैब और उनके साथियों का नाम दो दिन तक लगातार डयूटी रोस्टर में नहीं आया तो इस बारे में जुहैब ने मैनेजर से पूछा तो मैनेजर ने कहा कि आप लोग इस बारे में एचआर से बात करो।एचआर प्रदीप सिंह कहते हैं कि आप लोगों को निकाल दिया गया है अगर दूसरी ट्रेन आती है या इसी ट्रेन में बोगियां बढ़ाई गईं तो आप लोगों को काम पर बुलाया जायेगा। निकालने से पहले इन लोगों को नोटिस नहीं दिया गया। सैलरी बहुत गिड़गिडाने के बाद मिली वो भी पूरी नहीं दी गई।'
तेजस में मैनेजर के तौर पर रहीं अवंतिका बताती हैं कि वह तेजस एक्सप्रेस जबसे शुरु की गई तबसे मैं वहां काम कर रही थीं, मेरे साथ एक दर्जन से ज्यादा केबिन क्रू मेंबर्स काम कर रही थीं। अधिकतर को दिवाली के साथ ही नौकरी से हटा दिया गया। अवंतिका आगे कहती हैं, 'लड़कियों को यात्री जबरन गलत तरह से छूते थे जब वे इस बात की शिकायत अधिकारियों से करती तो अधिकारी छेड़खानी का सबूत मांगते।
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बता दें कि तेजस इस देश की पहली निजी ट्रेन है। तेजस शुरु होने से पहले चर्चा का विषय बन गई थी लेकिन इस ट्रेन में काम करने वाले क्रू मेंबर्स के साथ छेड़खानी और नौकरी से निकालने की घटनाएं हो रही हैं उस पर कोई खास चर्चा नहीं हो रही है।
आईआरसीटीसी के साथ जुड़े प्राइवेट कॉन्ट्रेक्टर वृंदावन फूड पहले भी विवादों में घिर चुका है। दरअसल पिछले दिनों इस फर्म ने 100 पुरुष उम्मीदवारों की भर्ती के लिए एक विज्ञापन निकाला था। सबसे हैरान करने वाली बात ये थी कि विज्ञापन में सिर्फ अग्रवाल और वैश्य समुदाय के उम्मीदवारों की भर्ती करने की बात कही गई थी। हालांकि सोशल मीडिया पर विरोध के बाद फर्म ने इस विज्ञापन वापस ले लिया था।