Begin typing your search above and press return to search.
कोविड -19

कोविड 19 से निपटने में सरकारों की लापरवाही के खिलाफ दुनियाभर में 50000 से ज्यादा जन आंदोलन

Janjwar Desk
10 Aug 2021 8:57 AM GMT
कोविड 19 से निपटने में सरकारों की लापरवाही के खिलाफ दुनियाभर में 50000 से ज्यादा जन आंदोलन
x

(लॉकडाउन के विरुद्ध कनाडा के टोरंटो और न्यूज़ीलैण्ड के वेलिंगटन में बड़े आन्दोलन किये गए थे।)

ग्लोबल पीस इंडेक्स के अनुसार मार्च 2020 से जुलाई 2021 तक दुनिया में कोविड 19 से जुड़े मसलों के विरोध में दुनियाभर में 50000 से अधिक जन-आन्दोलन हो चुके हैं....

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

जनज्वार। कोविड 19 की महामारी ने इतना तो साबित कर दिया है कि महामारी के नियंत्रण के मामले में लगभग सभी देशों का हाल एक जैसा है। पिछले वर्ष से लेकर आज तक कोई भी देश शायद ही इससे मुक्त हुआ हो। जिन अमीर देशों पर जरूरत से अधिक वैक्सीन भंडारण का आरोप लगा, उन देशों में भी एक तरफ तो वैक्सीन वाली आबादी बढ़ती जा रही है और दूसरी तरफ कोविड 19 के नए मरीजों की संख्या भी उसी तेजी से बढ़ रही है। अमेरिका में ही 8 अगस्त को एक लाख ने अधिक नए मामले दर्ज किये गए थे।

कोविड 19 ऐसी महामारी है जिसका असर स्वास्थ्य से अधिक दूसरी सामाजिक समस्याओं पर देखा जाने लगा है। इस वैश्विक महामारी ने सामाजिक असमानता को बढ़ाया, भूख और कुपोषण बढ़ाया, अर्थव्यवस्था को डुबोया, रोजगार छीना और सरकारों को जनता की समस्याओं से दूर कर दिया। यही कारण है कि पूरी दुनिया में लॉकडाउन की सख्ती के बाद भी कोविड 19 के नियंत्रण में सरकारी लापरवाही के कारण पनपी समस्याओं के विरोध में लगातार जन-आन्दोलन होते रहे हैं।

ग्लोबल पीस इंडेक्स के अनुसार मार्च 2020 से जुलाई 2021 तक दुनिया में कोविड 19 से जुड़े मसलों के विरोध में दुनियाभर में 50000 से अधिक जन-आन्दोलन हो चुके हैं, जिसमें से लगभग 5000 हिंसक रहे हैं। सभी आन्दोलन केवल सरकारों की लापरवाही के विरुद्ध हो रहे हो ऐसा नहीं है। कई देशों में लॉकडाउन और सरकारों द्वारा घोषित प्रतिबंधों के विरोध में भी आन्दोलन किये गए हैं। इन दिनों थाईलैंड में कोविड 19 से निपटने में सरकारी लापरवाही, चरमराती स्वास्थ्य सेवाओं और टीकाकरण की सुस्त रफ़्तार के विरोध में आन्दोलन आयोजित किये जा रहे हैं।

आंशिक लॉकडाउन और आन्दोलनों पर सरकारी प्रतिबन्ध के बाद भी लगभग हरेक शहर में आन्दोलन किये जा रहे हैं और प्रधानमंत्री प्रयुत चन-ओचा से इस्तीफे की मांग की जा रही है। इन आन्दोलनों का आयोजन फ्री यूथ नामक छात्र संगठन कर रहा है, पर इसमें भागीदारी आम जनता की है। थाईलैंड की दंगा-नियंत्रण पुलिस आन्दोलनकारियों पर पानी के बौछार के साथ, आंसू गैस के गोले भी दाग रही है और अनेक स्थानों पर रबर बुलेट्स भी दागे जा रहे हैं।

जुलाई के शुरू से अब तक हरेक रविवार को कोविड 19 के आम पर कगाये गए सरकारी प्रतिबंधों और टीकाकरण के विरुद्ध आन्दोलन किये जा रहे हैं। इन आन्दोलनों में लगभग 2 लाख नागरिक शरीक होते हैं। फ्रांस एक ऐसा देश है जहां के अधिकतर नागरिक किसी भी प्रकार के टीकाकरण पर भरोसा नहीं करते। ब्राज़ील में भी पिछले महीने से लगातार आन्दोलन किये जा रहे हैं। आन्दोलन और धरना-प्रदर्शन हरेक शहर में आयोजित किये जाते हैं और इसमें बड़ी संख्या में नागरिक हिस्सा लेते हैं।

ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेर बोल्सेनारो कोविड 19 के शुरुआती दौर से ही अमेरिका के पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नक़्शे-कदम पर चलते रहे है। अमेरिका तो ट्रम्प से मुक्त हो गया पर बोल्सेनारो का रवैय्या कोविड 19 के सन्दर्भ में बिलकुल ही नहीं बदला। बोल्सेनारो आज भी कोविड 19 को सामान्य फ्लू से अधिक कुछ नहीं समझते, जाहिर है उनकी सरकार इसके नियंत्रण के लिए कभी भी सचेत नहीं रही और इससे होने वाली मौतों के आंकड़ों को छुपाती रही।

बोल्सेनारो ने कोविड 19 के भयानक दौर में भी स्वयं बड़ी रैलियाँ आयोजित कीं और कभी भी मास्क नहीं लगाया। इस समय, जब दुनिया इसकी वैक्सीन लगवा रही है तब बोल्सेनारो सरकार वच्चिए के नाम पर घोटाला करने में व्यस्त है और वहां वैक्सीन की भयानक कमी है। कोविड 19 से निपटने में नाकामी और वैक्सीन लगाने की बेहद धीमी दर को लेकर ब्राज़ील में लगातार प्रदर्शन किये जा रहे हैं। आन्दोलनकारी अपनी सरकार को नरसंहारी बता रहे हैं।

क्यूबा में पिछले महीने कोविड 19 से और इससे जुडी समस्याओं से सम्बंधित व्यापक धरना-प्रदर्शन आयोजित किये गए थे। इसमें गरीबी, स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली, महंगाई और मानवाधिकार हनन का मुद्दा भी शामिल था। कहा जाता है कि क्यूबा में दशकों बाद इतने बड़े आन्दोलन किये गए। इस आन्दोलन के लिए वहां की सरकार बिलकुल ही तैयार नहीं थी, और जब सेना और पुलिस की बर्बर कार्यवाही के बाद भी आन्दोलन जारी रहे तब राष्ट्रपति मिगुएल डिअर कनेल ने अपने समर्थकों को आन्दोलनकारियों के विरुद्ध खड़ा कर दिया। समर्थकों ने शांतिपूर्ण आंदोलनों को हिंसक बना दिया, जिससे सेना को आन्दोलनकारियों से सख्ती से निपटने का बहाना मिल गया।

यूरोप में कई देशों में आन्दोलन किये गए। जर्मनी में कई आन्दोलन लॉकडाउन और सरकारी सख्ती के विरुद्ध आयोजित किये गए। जर्मनी के अतिरिक्त ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, चेक गणराज्य, डेनमार्क, जॉर्जिया, हंगरी, आयरलैंड, नीदरलैंड, स्पेन और यूनाइटेड किंगडम में भी जन-आन्दोलन आयोजित किये गए। नीदरलैंड में तो आन्दोलन हिंसक हो चला था। मध्य-पूर्व के लेबनान और लीबिया में लॉकडाउन के विरुद्ध हिंसक प्रदर्शन किये गए थे। इजराइल में अनेक धार्मिक संगठनों ने वैक्सीन के विरुद्ध आन्दोलन किया था।

लॉकडाउन के विरुद्ध कनाडा के टोरंटो और न्यूज़ीलैण्ड के वेलिंगटन में बड़े आन्दोलन किये गए थे। आश्चर्य यह है कि हमारे देश में कोविड 19 से निपटने में सरकारी लापरवाही मार्च 2020 से लगातार नजर आ रही है – बिना तैयारी के सख्त लॉकडाउन, ऑक्सीजन के अभाव में मरते लोग, नदियों में बहती लाशें और इन सबके बीच प्रधानमंत्री का लगातार सब ठीक है वाला अंदाज भी किसी व्यापक आन्दोलन को जन्म नहीं दे सका।

Next Story

विविध