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शिक्षा

लाखों शिक्षकों की छिन गई नौकरियों का सवाल सरकारों के एजेंडे से ओझल, शिक्षक दिवस पर भी नहीं आई इनकी याद

Janjwar Desk
5 Sep 2021 9:16 AM GMT
लाखों शिक्षकों की छिन गई नौकरियों का सवाल सरकारों के एजेंडे से ओझल, शिक्षक दिवस पर भी नहीं आई इनकी याद
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उत्तर प्रदेश में 50 हजार प्राइवेट विद्यालयों में 5 लाख के करीब प्राइवेट टीचर और कर्मचारी कार्य करते है, जो कोरोना महामारी के आने के बाद से ही बेरोजगार हो गए है....

जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट

जनज्वार। स्कूली शिक्षा का वक्त रहा हो या उच्च शिक्षा का। शिक्षक दिवस आते ही हम सबके सामने अपने गुरूजी की याद आ जाती है। जिन्होंने कुम्हार की भांति हम सबके जीवन को सजाने व संवारने में अपना वक्त लगाया। शिक्षक दिवस पर उन्हें याद कर शिक्षा जगत में उनके योगदान का स्मरण कर अपनी श्रद्वा व्यक्त कर रहे हैं। ऐसे वक्त में हम उन लाखों शिक्षकों की बात कर रहे हैं, जिनकी कोरोना ने रोटी तक छीन ली। हम सबके गांव व कस्बों से लेकर शहरों तक ऐसे बड़े तादाद में स्कूल हैं, जहां सरकार के इजाजत के बाद भी ताला लटका हुआ है, अर्थात अब स्कूल के रूप में इनका नाम व पहचान दोनों मिट चुका है। जिसका परिणाम है कि यहां कार्यरत शिक्षक व गैर शिक्षणकर्मी की वजूद भी समाप्त हो चुका है। उनके भविष्य को लेकर न हमारी सरकारें कभी चिंतित दिखी और न ही कोई जनप्रतिनिधि ने ही अपनी दरियादिली दिखाई। हालांकि कुछ संगठनों ने इनकी सुध लेने की वकालत अवश्य की। इसके बाद भी यह हमारे सरकारों के एजेंडे का हिस्सा नहीं बना सके।

शिक्षा के व्यवसायीकरण के बाद प्राइवेट स्कूलों की बढ़ी थी संख्या

हालात यह है कि प्राइवेट टीचर कोरोना काल में अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए मजदूरी और सब्जी बेचने का कार्य कर रहे है। सरकारी शिक्षकों को सरकार से वेतन मिल रहा है, लेकिन कोरोना काल में निजी शिक्षण संस्थानों में काम करने वाले लाखों शिक्षकों और कर्मचारियों का रोजगार छीन गया है। कोरोना महामारी की वजह से बेरोजगार हुए विभिन्न वर्गों में एक बड़ा तबका प्राइवेट टीचर्स का भी है। देश में शिक्षा के व्यवसायीकरण के बाद प्राइवेट स्कूलों की बाढ़ आ गई थी। गली-गली में स्कूल खुल गए।

इससे एक फायदा यह हुआ है कि शिक्षित बेरोजगारों के लिए कुछ आय कमाने का जरिया निजी शिक्षण संस्थान बन गए, लेकिन देश में कोरोना ने दस्तक दी, तो सबसे पहले शिक्षण संस्थाओं पर ही गाज गिरी। कोरोना की प्रथम लहर के ढलान पर आने के बाद लगा कि शिक्षण संस्था खुल जाएंगे और हालात सामान्य हो जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, कोरोना की दूसरी लहर ने देश और प्रदेश में तबाही मचा दी।

फीस न आने से बंद हो गए अधिकांश विद्यालय

उत्तर प्रदेश में 50 हजार प्राइवेट विद्यालयों में 5 लाख के करीब प्राइवेट टीचर और कर्मचारी कार्य करते है, जो कोरोना महामारी के आने के बाद से ही बेरोजगार हो गए है। प्राइवेट स्कूलों के संगठन से जुड़े प्रतिनिधि राकेश चंद्र तिवारी बताते हैं कि स्कूल का संचालन बंद होने से अभिभावकों ने फीस देना भी बंद कर दिया। तिवारी ने बताया कि फीस से ही स्कूल का संचालन होता है। शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन मिलता है, लेकिन जब स्कूल संचालक के पास फीस नहीं पहुंची, तो वह भी शिक्षकों और कर्मचारियों को फीस देने में असक्षम थे। इस कारण लाखों प्राइवेट टीचर बेरोजगार हो गए।

देवरिया जिला मुख्यालय में एक अनुमान के मुताबिक दो दर्जन स्कूल स्थाई रूप स अब बंद हो चुके हैं। इसमें अधिकांश ऐसे स्कूलों की संख्या है,जो किराये के भवन में चलते थे, या उन्होंने किसी भी शैक्षिक बोर्ड से मान्यता नहीं ली थी। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में तो बंद होनेवाले स्कूलों की भारी तादाद है।ऐसे ही हालात कमोबेश सभी जिलों की रही है।जहां शिक्षणकार्य में लगे लोगों की नौकरियां अब चली गई हैं।

झारखंड की राजधानी रांची की स्थिति यह रही कि कोविड-19 संक्रमण का असर स्कूलों में नामांकन से लेकर शिक्षकों पर भी पड़ा है। राज्य में जैक से संबद्ध सरकारी व निजी 45,461 स्कूल संचालित हैं। इनमें से 221 निजी स्कूल बंद हो गये। इसका खुलासा वर्ष 2020-21 के लिए स्कूलों से शिक्षा विभाग द्वारा मांगी गयी यू डायस रिपोर्ट से हुआ था इसमें 221 निजी स्कूलों ने कोई जानकारी नहीं दी। इस बाबत अधिकारियों ने कहा है कि ये स्कूल बंद हो गये हैं, इसलिए इनकी कोई रिपोर्ट नहीं आयी। धनबाद जिले में अब तक 19 निजी स्कूल बंद हो चुके हैं। कभी इन स्कूलों में हजारों बच्चे पढ़ा करते थे। आज यह स्कूल अस्तित्व में ही नहीं है। धनबाद प्रखंड में 8 तोपचाची में दो, झरिया में दो, बाघमारा में तीन, गोविंदपुर में एक, टुंडी में एक तथा पूर्वी टुंडी में एक स्कूल बंद हो गए हैं।

किराए के भवनों में संचालित अधिकांश स्कूल हुए बंद

छत्तीसगढ़ राज्य में ज्यादातर निजी स्कूल किराए के भवन में चल रहे थे। किराया नहीं दे पाने के कारण उनको स्कूल बंद करना पड़ा है। प्रदेश के 29 जिलों में कुल 57 हजार निजी-सरकारी स्कूलों में 60 लाख बच्चे अध्ययनरत हैं। फीस नहीं मिलने और छात्रों की संख्या घटने के कारण छत्तीसगढ़ में 500 निजी स्कूलों में ताले लग चुके हैं। प्रबंधकों ने शिक्षा विभाग को विधिवत स्कूलबंद करने की सूचना दी है। इसके कारण इन स्कूलों में पढ़ने वाले करीब एक लाख बच्चों की शिक्षा अधर लटक गई है। साथ ही शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निशुल्क पढ़ने वाले करीब 20 हजार बच्चे भी मुफ्त शिक्षा से वंचित हो गए हैं। अकेले राजधानी में 35 निजी स्कूलों के बंद होने का परिणाम यह रहा कि सरकारी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में 40 सीटों पर दाखिले के लिए डेढ़ हजार आवेदन पहुंचे हैं।

बिहार के विभिन्न जिले समेत पूरे देश में कराए गए सर्वे में यह बात सामने आई की कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए पाबंदियों की वजह से अधिकतर निजी स्कूलों में नामांकन में 20-50 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इसकी वजह से स्कूलों ने शिक्षकों के वेतन में कटौती करना शुरू कर दिया है। यह दावा गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा पर काम करने वाले संगठन सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन (सीएसएफ) की रिपोर्ट में किया गया है। यह रिपोर्ट बिहार समेत 20 राज्यों के अभिभावकों, स्कूल प्रशासक और शिक्षक के बातचीत के आधार पर किए गए अध्ययन पर आधारित है।

मुजफ्फरपुर में प्राइवेट स्कूलों के 55 फीसदी शिक्षकों के वेतन में कटौती की गई है। वहीं, 54 फीसदी शिक्षकों के पास आय का कोई अन्य माध्यम नहीं है। कोरोना महामारी में 50 फीसदी से अधिक प्राइवेट स्कूलों में नए नामांकन में कमी आयी है। स्कूली शिक्षा पर काम करने वाले सगंठन सीएसएसफ की रिपोर्ट के यह आंकड़े हैं। रिपोर्ट के अनुसार कम फीस वाले 65 फीसदी स्कूलों ने शिक्षकों का वेतन कोरोना काल में रोक दिया। अब स्कूलों को खोलने की जब अनुमति मिली तो इनके से ऐसी बडी संख्या है,जिसका ताला स्थाई रूप से बंद हो गया है। इसमें सबसे अधिक किराए पर चलने वाले स्कूलों की है।

शिक्षा के अधिकार को लेकर एक संचालित सामाजिक संगठन के प्रतिनिधि इंद्रेश सिंह कहते हैं कि कोरोना काल में समाज के विभिन्न वर्गों को राहत के लिए सरकारों ने कदम बढाए।लेकिन प्राइवेट स्कूलों में शिक्षण कार्य कर रहे लोगों की कभी चर्चा तक नहीं की। जिसका नतीजा है कि अधिकांश नौकरी चले जाने के चलते बेरोजगार हो गए।इनमें से कई ने सब्जी का ठेला लगाने से लेकर ईरिक्शा चलाने लगे। साथ ही ऐसे बडी संख्या है,जो कोई न कोई छोटा व्यवसाय व मजदूरी कर अब अपने घर का खर्च चलाने के प्रयास में लग गए हैं।इनके लिए हमारी सरकारों को कोई ठोस उपाय करना चाहिए।इनके हितों की अनदेखी करना कहीं से भी न्यायोचित नहीं है।

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