सिर्फ़ मोबाइल गेम ही नहीं खेलता, बकरी भी चराता है देश का भविष्य
इस तस्वीर में खुद को तपाते नवल का चेहरा दिखाना पत्रकारिता के मूल्यों से बाहर है
हिमांशु जोशी की टिप्पणी
जनज्वार। बात उत्तराखंड की है, पर सवाल भाजपा अध्यक्ष से पूछा जा रहा है। उत्तराखंड को करीब से न जानने वालों को ये बात जरूर खटकेगी, पर जो उत्तराखंड की राजनीति का तिलिस्म जानते हैं वो इस बात पर मंद-मंद मुस्कुरायेंगे।
उत्तराखंड की राजनीति राज्य गठन के बाद से ही दिल्ली से नियंत्रित की जा रही है। जागेश्वर मंदिर से कुछ दूरी पर हेलीकॉप्टर से उतरने के बाद जेपी नड्डा को शायद ही सड़क किनारे देश का भविष्य बकरी चराते दिखा हो।
पिछले कुछ समय से पूरे देश में उत्तराखंड के युवा गायक पवनदीप राजन की लोकप्रियता सर चढ़ कर बोल रही है। इंडियन आइडल जीतने के बाद पूरे प्रदेश का एक सकारात्मक चेहरा लोगों के सामने आया है, पर वास्तविकता ठीक इसके विपरीत है।
अल्मोड़ा से साठ किलोमीटर दूर स्थित झालडूंगरा गांव के नवल कुमार राजकीय माध्यमिक विद्यालय झालडूंगरा में कक्षा नौ के छात्र हैं। गांव की दूरी मुख्य मार्ग से एक किमी दूर है, सुबह ग्यारह बजे वह मुझे अपने सहपाठी झालडूंगरा गांव के ही प्रकाश राम के साथ हाथ में स्मार्टफोन लिए बकरी चराते मिले। प्रकाश तो कैमरे और मीडिया में आने के नाम पर पहाड़ियों में जाकर कहीं छिप गए पर नवल ने अपनी स्थिति पर खुलकर बात की।
नवल के पिता मिस्त्री हैं, पर आजकल काम ठप है और कोरोना काल के बाद से घर में खाने के लिए पैसे भी बड़ी मुश्किल से जुट पाते हैं। पिता को मनरेगा से कभी-कभार काम मिलने पर कुछ कमाई हो जाती है या नैनीताल में काम करने वाले नवल के चाचा द्वारा भेजे पैसों से घर का चूल्हा जल जाता है।
उनकी छह बकरियां, एक भैंस और तीन बैल हैं। बकरी बड़ी होने पर उसे बेच देते हैं, जिससे 2500 रुपए प्रति बकरी तक की कमाई हो जाती है, भैंस का दूध परिवार के पीने के काम आता है। प्रकाश के पिता घोड़े चराते हैं और किसी का घर बन रहा होता है तो उन्हीं घोड़ों पर मकान निर्माण के लिए पत्थर ढोते हैं।
नवल और प्रकाश सुबह नौ बजे बकरी को घास चराने घर से चले आते हैं और दिन में तीन बजे तक वापस जाते हैं। शाम को गांव के स्कूल में अन्य बच्चों के साथ खेलने जुटते हैं और रात थोड़ी बहुत पढ़ाई कर लेते हैं। पहले लॉकडाउन में तो नवल के परिवार में कोई स्मार्टफोन नही था, पर इस बार जैसे-तैसे पैसे जुटा उसकी पढ़ाई के लिए एक स्मार्टफोन खरीदा गया है। फोन में जियो सिम है और उस पर रिचार्ज नैनीताल से चाचा द्वारा या गांव में पिता द्वारा मज़दूरी के पैसों से कराया जाता है।
सरकारी नौकरी के नाम पर उनके गांव से अब तक 5 लोग फौज और एक पुलिस में भर्ती हुए हैं। नवल बताते हैं कि दसवीं के बाद उन्हें बारहवीं तक पढ़ने पैदल रास्ते गांव से पांच किलोमीटर दूर गुणादिटी जाना होगा, सड़क मार्ग से यह दूरी और भी ज्यादा होगी। कॉलेज के लिए गांव के अन्य युवाओं की तरह अल्मोड़ा में किराए का कमरा लेकर रहना होगा।
नवल बड़े होकर शिक्षक बनना चाहते हैं, पर हर तरह की सुविधाओं के अभाव में बकरियों को घास चरा वह शिक्षक कैसे बनेंगे, उन्हें नहीं पता और पिता के अकेले घर संभालने में समर्थ न होने पर घास चरा रहे उनके जैसे सैकड़ों अन्य बच्चों को भी इस बारे में कुछ पता नहीं है। शायद पहाड़ से सैकड़ों किलोमीटर दूर देहरादून बैठे प्रदेश के आकाओं को इन सब बातों की कोई ख़बर भी नहीं है या वो रखना ही नहीं चाहते।
शायद इस तस्वीर में खुद को तपाते नवल का चेहरा दिखाना पत्रकारिता के मूल्यों से बाहर है पर रियलिटी शोज़ की चमक-धमक के बीच रह रहे बच्चों की तस्वीर दिखाने की जगह पत्रकारिता का यह फ़र्ज़ भी है कि समाज की वास्तविक तस्वीर भी जनता के सामने लाई जाए।
सिर्फ़ इंस्टा रील बना रहे और स्पोर्ट्स स्टेडियम में खुद का भाग्य चमका रहे बच्चों के साथ ऐसे बच्चों को भी अपने भविष्य के बारे में सोचने का पूरा हक़ है तो वहीं नीति निर्माताओं की भी इनके भविष्य के बारे में सोचने की पूरी जिम्मेदारी है।
राजनीति में बढ़ता और विकास में पिछड़ता उत्तराखंड
हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में कोरोना काल से बेरोज़गारी का आलम यह है कि यहां बेरोज़गारी दर पिछले पांच सालों में छह गुना बढ़ गई है। आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में महामारी से पहले ही यह बेरोज़गारी दर तेज़ी से बढ़ने लगी थी और कोरोना की वज़ह से तो यह दोगुनी हो गई। सेंटर फ़ॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी के अनुसार वर्ष 2016-17 में बेरोज़गारी दर 1.61 थी जो अब 10.99 फ़ीसदी पहुंच गई है।
मई 2021 में आजतक की एक ख़बर बताती है कि प्रदेश में प्रवासियों के लौटने का सिलसिला भी जारी है। स्मार्ट सिटी पोर्टल के अनुसार 21 अप्रैल से 21 मई तक प्रदेश में 1,00,667 प्रवासियों ने उत्तराखंड में वापसी के लिए पंजीकरण कराया और उसमें सबसे अधिक 31,218 प्रवासी अल्मोड़ा में वापस लौटे।
वास्तविक मुद्दों को पहचानना है जरूरी
अपनी वास्तविक समस्याओं को समझ शिक्षा, रोज़गार, पलायन पर बात किए बिना मुफ़्त बिजली, भूकानून को मुद्दा बना उत्तराखंड की जनता को गुमराह कर रही राजनीतिक पार्टियों से सवाल उत्तराखंड की जनता को ही पूछना है, नहीं तो सालों से नवल जैसे बच्चे सड़कों पर दिखते रहे हैं और दिखते रहेंगे।