All Weather Road : हिमालय के लिए बड़ा खतरा बन रही ऑल वेदर रोड, 6000 देवदार के पेड़ों पर चलेगी आरी
ऑल वेदर रोड के लिए 6000 देवदार के पेड़ों पर अस्तित्व का संकट
सलीम मलिक की रिपोर्ट
All Weather Road : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) का ड्रीम प्रोजेक्ट कही जाने वाली 'ऑल वेदर रोड' (All Weather Road) के लाभ भले ही भविष्य के गर्भ में हों, इसके नुकसानों को पर्यावरणविद (Environmentalist) अब धरातल पर देखने लगे हैं। पहले से ही वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे पृथ्वी के तापमान में यह परियोजनाएं न केवल वृद्धि कर रहीं हैं बल्कि इन्हें हिमालय की आपदा (Disasters in Himalayas) तक बताया जा रहा है।
पर्यावरणविदों का कहना है कि मध्य हिमालय क्षेत्र के विकास का नया प्रारूप स्थानीय पर्यावरण परिस्थितिकी और जनजीवन (Local Environmental Ecology And Life) पर भारी पड़ रहा है क्योंकि सड़क चौड़ीकरण, बड़ी जल विद्युत परियोजना व सुरंगों का निर्माण हिमालय क्षेत्र की अस्थिरता को बढ़ा रहा है। पर्यावरण बचाने वाली तमाम संस्थाओं के शोर की आवाज को सरकार अनसुनी करते हुए इस परियोजना को हर हाल में पूरा करने की जिद्द पर है। ताजा मामला उत्तराखंड के उत्तरकाशी से लेकर गंगोत्री तक भागीरथी नदी घाटी के ईको सेंसिटिव जोन (Eco Sensitive Zone) में देवदार व सिल्वर ओक जैसी दुर्लभ प्रजातियों के पेड़ों को काटे जाने का है, जिसको लेकर पर्यावरणविद मुखर हो चले हैं।
बताते चलें कि प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट 'चारधाम ऑल वेदर रोड' में सात राष्ट्रीय राजमार्ग (National Highways) शामिल हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि परियोजना पूरी होने के बाद इन मार्गों पर किसी भी मौसम में यातायात थमने की नौबत नहीं आयेगी। उत्तराखंड के ऋषिकेश से शुरू होने वाली चारधाम रोड में एनएच-94 पर ऋषिकेश से धरासू और धरासू से यमुनोत्री, एनएच-108 पर धरासू से गंगोत्री, एनएच-58 पर ऋषिकेश से रूद्रप्रयाग और रूद्रप्रयाग से मना गांव (बद्रीनाथ), एनएच-109 पर रूद्रप्रयाग से गौरीकुंड (केदारनाथ) और एनएच-125 पर टनकपुर से पिथौरागढ़ तक का हिस्सा 'ऑल वेदर रोड' परियोजना के दायरे में आता है।
यूं तो ऑल वेदर रोड से नुकसान के प्रमाण ऋषिकेश से ही दिखाई देने लगते हैं। जिसमें जगह-जगह हो रहे भूस्खलन, पहाड़ी हिस्सों का धंसाव शामिल है। लेकिन परियोजना के बड़े व व्यापक नुकसान इससे आगे दिखाई देते हैं, जहां बिना किसी पर्यावरणीय नुकसान आकलन के लाखों पेड़ों की इस परियोजना के लिए बलि दी जा रही है। ऐसा नहीं है कि पर्यावरण की हो रही इस निर्मम हत्या के खिलाफ कोई बोल नहीं रहा है। कई संस्थाएं तथा व्यक्तिगत तौर पर लोग भी राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) व न्यायालयों में इस मामले को ले जा चुके हैं। जहां सरकार की ओर से इन परियोजनाओं के पक्ष में सबसे मजबूत दलील देश की सीमा तक सेना के सुगम आवागमन की देकर सबको चुप करा दिया जाता है।
सरकार की ओर से इन रोड को एक तरफ सेना की फौरी जरूरत के तौर पर पेश किया जाता है तो दूसरी ओर सरकार ने ऊपरी तौर पर एक दिखने वाली परियोजना को पर्यावरणवादियों के झंझट से ही बचने की चालाकी दिखाते हुए कई टुकड़ों में बांट रखा है जिससे पर्यावरण क्लीरेंस आसानी से मिल जाए और बड़ी परियोजना का छिपा हुआ खतरा सतह पर भी न आने पाए।
'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि चार धाम सड़क को चौड़ा करने के लिए काटे जाने वाले 6000 देवदार के पेड़ों को चिह्नित करने पर ग्रामीण और कार्यकर्ता, राज्य वन विभाग के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि पारस्थितिक रूप से कमजोर स्थानीय लोगों का कहना है कि पारिस्थितिक रूप से कमजोर भागीरथी इको-सेंसिटिव जोन (बीईएसजेड) में इन पेड़ों की कटाई से क्षेत्र में 'केदारनाथ जैसी आपदा' आ सकती है।
देहरादून के पर्यावरण वैज्ञानिक रवि चोपड़ा का कहना है कि 'आपको यह समझना होगा कि यह क्षे़त्र निचले हिमालय क्षेत्र का मुख्य केंद्र है। इसी जगह भारतीय टेक्टोनिक प्लेट युराएशीन टेक्टोनिक प्लेट के अंदर से जा रही हैं। यह बेहद संवेदनशील नाजुक क्षेत्र है। इस क्षेत्र के पारिस्थितिक तंत्र से छेड़छाड़ करना न केवल हिमालय के लिए घातक है बल्कि महाविनाश का निमंत्रण भी।'
लेकिन इतने के बाद भी सरकार इस परियोजना के खतरे की गंभीरता को नहीं समझ रही है। इस परियोजना के रास्ते में आ रहे हजारों दुर्लभ देवदार व सिल्वर ओक के पेड़ों को काटे जाने का रास्ता सरकार ने साफ कर दिया है। भागीरथी घाटी में गोमुख ग्लेशियर के ईको सेंसिटिव जोन में कटने वाले इन पेड़ों को बचाने का प्रयास करने वाले पर्यावरणविदो की माने तो देवदार के कटने वाले पेड़ों की जिस संख्या को हजारों में बताकर खतरे को कम से कम करके दिखाया जा रहा है, उसकी वास्तविक संख्या लाखों में है।
इस संबंध में पर्यावरणविद सुरेश भाई का कहना है कि 881 किलोमीटर लंबी चारधाम सड़क चौड़ीकरण परियोजना के अंतर्गत दो लाख से अधिक छोटे-बड़े पेड़ पौधों पर संकट आ हुआ है। मध्य हिमालय में स्थित उत्तराखंड के गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बदरीनाथ और पिथौरागढ़ तक पहुंचने वाली सड़कों का चौड़ीकरण जो कि केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी परियोजना है, का काम बीते छः साल से चल रहा है। इस चौड़ीकरण के दौरान मलबे को सीधे गंगा में बहाया जा रहा है। लगातार हो रहे विस्फोटों और बड़ी मशीनों से पहाड़ अस्थिर हो चले हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में कई जगह उपजाऊ मिट्टी बर्बाद हुई है, जिससे समूचे पहाड़ और मैदान में पर्यावरण खराब हुआ है।
सुरेश भाई के अनुसार गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर 15 किलोमीटर कार्य अभी शेष है। यहां पर देवदार व सिल्वर ओक जैसे दुर्लभ प्रजाति के पेड़ हैं जिनको काटा जाना है। सबसे अधिक पेड़ सुक्खी बैंड से और झाला नामक स्थान तक हैं। इस सड़क का मार्ग यदि रेखांकन के समय थोड़ा बदला जाता तो इन पेड़ों को बचाया जा सकता था।
सुरेश भाई का कहना है कि इतनी अधिक गर्मी और हिमनद पिघलने की घटनाएं पर्यावरणीय असंतुलन का ही परिणाम हैं। बीते दस सालों में ही गोमुख ग्लेशियर अपने स्थान से ढाई किमी. पीछे की ओर चला गया है। ग्लेशियर की मोटाई भी सौ मीटर से घटकर दस-पंद्रह मीटर तक रह गई है।
सुरेश भाई का कहना है कि देश में बीते सात-आठ सालों में करीब 25 लाख पेड़ काटे जा चुके हैं।ऑल वेदर रोड के नाम पर करीब 50 हजार पेड़ कट चुके हैं। चौड़ीकरण के नाम पर काटे गए वृक्षों के आसपास के छोटे पेड़ों को भी काट दिया गया। वन विभाग पेड़ों को काटने के लिए केवल बड़े पेड़ों को चिन्हित करता है। छोटे और भूस्खलन की चपेट में आकर नष्ट होने वाले पेड़ों को जानबूझकर इस गिनती में नहीं रखा जाता। जिससे पर्यावरण का नुकसान कम से कम दिखाया जा सके।
'अभी देहरादून से दिल्ली के रास्ते को चौड़ा करने के नाम पर ग्यारह हजार पेड़ों को केवल आधे घंटे का सफर कम करने के लिए काट दिया गया जबकि विधानसभा चुनाव के दौरान सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क निर्माण में आने वाले पेड़ों को काटने की बजाए उन्हें रिप्लांट करने की घोषणा की थी। जिसकी उस समय काफी वाहवाही हुई थी। लेकिन नतीजे के तौर पर अभी भी पेड़ों का अंधाधुंध कटान जारी है। दुख इस बात का भी है कि काटे गए पेड़ों का वन विभाग के पास कोई वास्तविक आंकड़ा भी मौजूद नहीं है। जिससे न तो इस नुकसान की भरपाई हो पाती है और न ही हिमालय की सेहत में कोई सुधार।'
कुल मिलाकर एक तरफ यह पर्यावरणवादी हैं जो चीख-चीखकर पर्यावरण बचाए जाने की गुहार लगा रहे हैं तो दूसरी तरफ सरकार है जो इन परियोजनाओं की बिना किसी अड़ंगे के जल्द से जल्द पूरा करना चाहती है। बीच में वह जनता है जो विकास के इस मॉडल की आड़ में छिपे विनाश से अनभिज्ञ है, जबकि भविष्य के विनाश का सर्वाधिक हिस्सा उसी के हिस्से में आने वाला है।