Begin typing your search above and press return to search.
पर्यावरण

PM मोदी के पर्यावरण संरक्षण के दावों के बीच उनकी सरकार दे रही जंगलों और हिमालय की बर्बादी की योजनाओं को अनुमति

Janjwar Desk
27 Nov 2020 5:01 PM IST
PM मोदी के पर्यावरण संरक्षण के दावों के बीच उनकी सरकार दे रही जंगलों और हिमालय की बर्बादी की योजनाओं को अनुमति
x
file photo
मोदी सरकार का पर्यावरण और वन मंत्रालय हरेक प्रदूषणकारी और उत्सर्जन बढाने वाली योजना को स्थापित करने की अनुमति दे रहा है, जंगलों को बर्बाद करने की स्वीकृति दे रहा है और हिमालय क्षेत्र की बर्बादी पर आँखें मूदे बैठा है...

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। कुछ दिनों पहले जी-20 समूह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने बताया था कि हमारा देश जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि को रोकने के लिए प्रतिबद्ध है और हमने जितना वादा किया था, उससे भी अधिक काम कर रहे हैं। इन सबके बीच पर्यावरण और वन मंत्रालय हरेक प्रदूषणकारी और उत्सर्जन बढाने वाली योजना को स्थापित करने की अनुमति दे रहा है, जंगलों को बर्बाद करने की स्वीकृति दे रहा है और हिमालय क्षेत्र की बर्बादी पर आँखें मूदे बैठा है।

जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार कोयले के खनन के लिए सरकार नए क्षेत्रों में जंगल बर्बाद करने की इजाजत दे रही है, पर प्रधानमंत्री जी दुनिया के सामने कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए प्रतिबद्ध हैं। लगभग ऐसी ही स्थिति में दुनिया के हरेक देश हैं – हरेक जगह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है पर हरेक देश दुनिया को इसे नियंत्रित करने की प्रतिबद्धता बता रहा है।

संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड मेटेरिओलोजिकल आर्गेनाईजेशन की ग्रीनहाउस गैसों से सम्बंधित नवीनतम बुलेटिन में बताया गया है कि कोविड 19 के कारण दुनियाभर में सभी गतिविधियों के रुकने के बाद भी इस वर्ष ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। इस वर्ष सितम्बर के दौरान वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की औसत सांद्रता लगभग 411 पीपीएम रही, जबकि सितम्बर 2019 में इसकी सांद्रता 408 पीपीएम थी।

किसी भी एक वर्ष के दौरान यह सबसे बड़ी वृद्धि है और यह वृद्धि तब है जबकि इस वर्ष दुनियाभर में लॉकडाउन के कारण उत्सर्जन में 4.2 से 7.4 प्रतिशत के बीच कमी आंकी गई है। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में इस बेतहाशा बढ़ोत्तरी के बीच वैज्ञानिकों का आकलन है कि यदि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकना है तो अगले दस वर्षों के भीतर इन गैसों के उत्सर्जन को आधा करना होगा।

पहली बार वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 410 पीपीएम के पार वर्ष 2015 में पहुँची थी। इससे पहले ऐसी स्थिति 30 से 50 लाख वर्ष पहले आई थी, तब औसत तापमान 2 से 3 डिग्री अधिक था और सागर ताल 10 से 20 मीटर अधिक था। पर, इस दौर में जो हो रहा है वह पहले से अधिक विनाशकारी होगा, क्योंकि 30 से 50 लाख वर्ष पहले पृथ्वी पर लगभग 8 अरब लोग नहीं थे। औद्योगिक युग के पहले यानी 1750 की तुलना में इस दौर में कार्बन डाइऑक्साइड की वायुमंडल में सांद्रता 50 प्रतिशत कम थी।

वर्ष 1750 की तुलना में मीथेन की सांद्रता वाय्मंडल में लगभग ढाई गुना बढ़ चुकी है, और यह गैस कुल तापमान बढ़ोत्तरी में से 17 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार है। नाइट्रस ऑक्साइड भी एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है और इसकी सांद्रता वायुमंडल में 23 प्रतिशत बढ़ चुकी है। जाहिर है कि सभी ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता वायुमंडल में निर्बाध गति से बढ़ती जा रही है और इसके परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

अमेरिका के मेटेरियोलोजी सोसाइटी के बुलेटिन में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार दुनिया में तापमान का जब से रिकॉर्ड रखा जा रहा है, उसके बाद से पिछला दशक (2010-2019) सबसे गर्म रहा है। नासा के अनुसार वर्ष 2019 इतिहास का दूसरा सबसे गर्म वर्ष और यूनाइटेड किंगडम के मौसम विभाग के अनुसार तीसरा सबसे गर्म वर्ष रहा है।

वर्ष 1980 के बाद से आने वाला हरेक दशक पिछले दशक से अधिक गर्म रहा है। वर्ष 1880 के बाद से हरेक अगला दशक पिछले दशक की तुलना में 0.07 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहा है, पर पिछले दशक में यह बृद्धि 0.39 डिग्री रही है। इसका सीधा सा मतलब है कि समय के साथ-साथ तापमान बढ़ने की दर भी बढ़ती जा रही है। इस शोधपत्र को दुनिया के 60 देशों के 520 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है।

वर्ष 2014 से वर्ष 2019 तक के वर्ष के बीच पृथ्वी का औसत तापमान हमारे इतिहास का सबसे गर्म दौर घोषित किया जा चुका है। इस दौरान अमेरिका, यूरोप और भारत में तापमान के सभी पिछले रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए। उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव पर सदियों से जमी बर्फ तेजी से पिघलती रही, बड़ी बाढ़ों और चक्रवातों की घटनाएँ बढ़ गयीं, प्रजातियों के विलुप्तीकरण की दर किसी भी दौर से अधिक हो गई। इस दौर में जंगलों और झाड़ियों में आग लगाने की दर ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ग्रीस और फिलीपींस में अत्यधिक रहीं।

वर्ष 2019 तक पृत्वी का औसत तापमान औद्योगिक काल से पहले के वर्षों की तुलना में 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है। पेन स्टेट यूनिवर्सिटी के जलवायु विशेषज्ञ माइकल मान के अनुसार यदि तापमान में बढ़ोत्तरी को 1।5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना है तब दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को आधा से भी कम करना पड़ेगा, पर इस सम्भावना नजर नहीं आती।

ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी की संभावना भले ही न नजर आ रही हो पर जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के सारे प्रभाव स्पष्ट हैं। महासागरों का तापमान भी बढ़ रहा है और वर्ष 2019 में यह तापमान वर्ष 2016 के बाद सबसे अधिक रहा। पिछले 30 वर्षों के दौरान सागर तल में औसतन 8.64 सेंटीमीटर की बढ़ोत्तरी हो गई है। वर्ष 2019 में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पिछले 8 लाख वर्षों में सर्वाधिक रहा है। यह आकलन दोनों ध्रुवों पर जमी बर्फ के बीच उपलब्ध हवा के विश्लेषण से किया गया है।

पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है, और ऐसी ही स्थितियां बनी रहीं तब वर्ष 2050 तक तापमान में बढ़ोत्तरी 1.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जायेगी और पेरिस समझौते के तहत जिस 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी का लक्ष्य रखा गया था, वह कहीं से पूरा नहीं होगा। इस बीच वैज्ञानिकों के अनुसार इस ला नीना के प्रभाव के बाद भी, यह सबसे गर्म वर्ष रहने की संभावना है।

Next Story

विविध