Sonam Wangchuk : थ्री इडियट्स के रेंचो -18 डिग्री तापमान में कर रहे हैं अनशन, वजह जानकर होगा ताज्जुब
Sonam Wangchuk : थ्री इडियट्स के रेंचो -18 डिग्री तापमान में कर रहे हैं अनशन, वजह जानकर होगा ताज्जुब
Sonam Wangchuk Faste : जब आप और हम पठान फिल्म के बॉयकोट का समर्थन या विरोध कर रहे हैं, बीबीसी की किसी डॉक्युमेंट्री की राजनीति समझ रहे हैं, या फिर रज़ाई लपेट कर बढ़ती सर्दी का रोना रो रहे हैं, ठीक तब, लद्दाख में एक शख़्स पिघलते ग्लेशियरों की तरफ हम सबका ध्यान खींचने के लिए खुले आसमान के नीचे अनशन कर रहा है।
जी हाँ, बात हो रही है थ्री इडियट्स वाले असल ज़िंदगी के रेंचो की. वैज्ञानिक, शिक्षाविद, और पर्यावरणविद सोनम वांगचुक पिछले कुछ दिनों से -18 डिग्री तापमान में, खुले आसमान के नीचे लेट कर अनशन कर रहे हैं. रेमोन मेगासेसे अवार्ड से सम्मानित सोनम ने इसे #climatefast या जलवायु उपवास का नाम दिया है.
दरअसल उन्होंने 26 जनवरी से पांच दिन के लिए, दुनिया की सबसे ऊंची सड़क के लिए मशहूर, 18 हजार फ़ीट से अधिक ऊंचाई पर, खारदुंगला पर, -40 डिग्री के तापमान में, अनशन शुरू करने का ऐलान किया था, मगर खराब मौसम और स्थानीय प्रशासन की मनाही के चलते उनका ऐसा करना संभव नहीं हो पाया.
नहीं मिली अनुमति
एक वीडियो संदेश के ज़रिये वो कहते हैं, "मुझे नज़रबंद कर दिया गया है. मैं तो शांति से अनशन करना चाह रहा था. प्रशासन शायद नहीं चाहता मैं अनशन करूँ. मैंने वकीलों से बात की तो उन्होनें कहा कि आप अनशन कर कोई कानून नहीं तोड़ रहे. "
वो आगे बताते हैं कि वो छत पर हैं क्योंकि सड़कों पर रास्ता रोक दिया गया है और उन्हें खारदुंगला तक जाने की अनुमति नहीं दी गई है. इन अड़चनों के चलते सोनम ने अपने संस्थान, हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ आल्टरनेटिव लद्दाख, या हियाल, के कैंपस में खुले में ही अनशन शुरू कर दिया है.
सोनम इस उपवास में अकेले नहीं हैं. उनके आवाहन पर स्थानीय समुदायों ने बढ़ चढ़कर उनकी हिमायत की और उनके समर्थन में बढ़ कर आगे आए. आस पास के तमाम मंदिरों, बौद्ध विहारों, मस्जिदों, और चर्चों आदि में स्थानीय जलवायु को बचाने के लिए सरकार की पहल और समर्थन जुटाने के लिए लद्दाख की यह जनता सोनम वांगचुक के साथ खड़ी है.
मुख्य मांग
अपनी मुख्य मांग रखते हुए सोनम कहते हैं, "लद्दाख को अगर बचाना है तो फ़ौरन कुछ करना होगा. पर्यावरण की दृष्टि से लद्दाख बेहद महत्वपूर्ण है और केंद्र शासित प्रदेश घोषित होने के तीन साल बाद आज लद्दाख में 'ऑल इज नॉट वेल'. प्रधान मंत्री जी से हमारी मांग है कि वो इसका संज्ञान लें और लद्दाख को बचाने के लिए इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए ज़रूरी फैसला लें."
खारदुगला दर्रे पर बनाए वीडियो में सोनम वांगचुक कहते हैं, "यहां के लोगों को विश्वास था कि सरकार उन्हें संरक्षण देगी और सरकार ने शुरू-शुरू में यह आश्वासन भी दिया. गृह मंत्रालय, कानून मंत्रालय या फिर जनजातीय मंत्रालय, हर जगह से खबरें आईं कि लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाएगा, लेकिन महीने बीत जाने के बाद भी इस बारे में कोई बातचीत नहीं हुई."
भाजपा सरकार के प्रति अपनी मायूसी जताते हुए सोनम अपने विडियो में कहते हैं कि भाजपा ने 2020 लद्दाख हिल काउंसिल चुनाव के लिए जारी घोषणापत्र में छठी अनुसूची लागू करने का वादा किया था मगर अब उस पर कोई चर्चा नहीं. वो कहते हैं, "भाजपा सरकार ने लोगों से एक बार नहीं, दो बार वादा किया कि हम आपको छठी अनुसूची देंगे. आप हमें चुनाव जीतने का अवसर दीजिए. वो लद्दाख ने दिया, बल्कि मैंने खुद अपना वोट भाजपा को दिया... अब लद्दाख के नेताओं को कहा गया कि छठी अनुसूची पर आप बात न करें."
समस्या की शुरुआत साल 2019 में अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद से हुई जब लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करके केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया. लेकिन तब से लद्दाख का प्रशासन नौकरशाहों के हाथों में ही रहा. सोनम कहते हैं, "यहाँ के विकास के लिए आया पैसा बिना खर्च हुए वापस चला जाता है. नहीं जाना चाहिए उसे वापस. स्थानीय जनता की राय भी नहीं ली जाता और बस लेफ्टिनेंट गवर्नर के हाथ में पूरी ताकत बस गयी है."
लद्दाख के लोग यहां की विशेष संस्कृति और भूमि अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए इसे छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं.
क्या है संविधान की छठी अनुसूची?
1949 में संविधान सभा की ओर से पारित छठी अनुसूची स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद और स्वायत्त जिला परिषदों के माध्यम से आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा का प्रावधान करती है.
यह विशेष प्रावधान हुआ संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के अंतर्गत. इसमें राज्यपाल को स्वायत्त जिलों को गठित करने और पुनर्गठित करने का अधिकार है.
यहाँ एक पेंच ये है कि संविधान में स्पष्ट है कि छठी अनुसूची पूर्वोत्तर के लिए है. ऐसे में लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करना मुश्किल है.
स्थिति कि गंभीरता बताते हुए वांगचुक कहते हैं कि लद्दाख और हिमालय के संरक्षण में ही भारत की सुरक्षा है. वो कहते हैं, "यहाँ के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. लद्दाख के कई गांव जल संकट से जूझ रहे हैं. यहां के लोग पानी की कमी की वजह से गांव छोड़ने को मजबूर हैं. अब आप सोचिए अगर यहां सैकड़ों उद्योग लगें, माइनिंग हो तो उसकी धूल और धुएं से हमारे ग्लेशियर तो जल्द ही खत्म हो जाएंगे."
ग्लेशियर खत्म हुए तो हमारी नदिया सूख जाएंगी. नदिया सूख जाएंगी तो न प्यास मिटेगी न भूख. और ऐसी ही किसी आपदा से देश को बचाने के लिए सोनम पाँच दिन के जलवायु उपवास पर हैं. ध्यान रहे भारत सरकार ने लगतार जलवायु को बचाने के लिए अपना दृण संकल्प और संवेदनशीलता दिखाई है. इस साल जी20 का अध्यक्ष भारत है और इसमें होने वाली चर्चाओं में जलवायु परिवर्तन से निपटना भारत की मुख्य प्राथमिकताओं में से है.
अब देखना यह है क्या रंग लाता है ये सोनम वांगचुक का यह उपवास जो जलवायु को बचाने के लिए किया जा रहा है.