Begin typing your search above and press return to search.
पर्यावरण

Climate Change News : दुनिया लगातार होती जा रही गर्म-वायु प्रदूषण बढ़ रहा निर्बाध गति से, मगर सरकारों के लिए नहीं यह कोई मुद्दा

Janjwar Desk
2 Sept 2022 10:53 PM IST
Climate Change News : जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है
x

Climate Change News : जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ता जा रहा है

Climate Change News : हमारा देश एक ही समय कुछ हिस्सों में सूखा और कुछ हिस्सों में बाढ़ की मार झेल रहा है, चीन और अमेरिका में भी ऐसा ही हो रहा है, पृथ्वी के दोनों ध्रुवों और हिमालय पर जमी बर्फ तेजी से पिघलती जा रही है...

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

Year 2021 was worst in respect of carbon dioxide concentration and rise in mean sea level. लगभग एक-तिहाई पाकिस्तान बाढ़ की चपेट में है, हमारा देश एक ही समय कुछ हिस्सों में सूखा और कुछ हिस्सों में बाढ़ की मार झेल रहा है, चीन और अमेरिका में भी ऐसा ही हो रहा है, पृथ्वी के दोनों ध्रुवों और हिमालय पर जमी बर्फ तेजी से पिघलती जा रही है, हमेशा ठन्डे रहने वाले यूरोपीय देश चरम गर्मी के मार झेल रहे हैं, दुनियाभर से पानी की कमी के किस्से आ रहे हैं, सालभर जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय चर्चा की जाती है – पर, तथ्य यह है कि हरेक वर्ष तापमान बृद्धि के, महासागरों के तल बढ़ने के और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के नए रिकॉर्ड स्थापित होते जा रहे हैं|

हाल में ही बुलेटिन ऑफ़ अमेरिकन मेट्रोलॉजिकल सोसाइटी में प्रकाशित "स्टेट ऑफ़ क्लाइमेट रिपोर्ट" में बताया गया है कि वर्ष 2021 में वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता के साथ ही महासागरों के सतह की ऊंचाई भी रिकॉर्ड स्तर तक पहुँच गयी| इस रिपोर्ट को अमेरिका के नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन के वैज्ञानिकों की अगुवाई में 60 देशों के 530 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है| इसके अनुसार जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि भविष्य की समस्या नहीं है, बल्कि यह वर्तमान की समस्या है और इसका घातक प्रभाव दुनिया के किसी एक हिस्से में नहीं बल्कि पूरी दुनिया पर ही स्पष्ट हो रहा है| इसका प्रभाव विश्वव्यापी है और यह असर लगातार बढ़ता जा रहा है| वैश्विक स्तर पर जितनी चर्चा इसके नियंत्रण की होती है, इसका प्रभाव उतना ही बढ़ता जाता है|

वर्ष 2021 में सबसे प्रमुख ग्रीनहाउस गैस की वायुमंडल में औसत सांद्रता 414.7 पार्ट्स पैर मिलियन, यानि पीपीएम तक पहुँच गयी जो एक रिकॉर्ड स्तर है| कार्बन डाइऑक्साइड की ऐसी सांद्रता वायुमंडल में कम से कम पिछले दस लाख वर्ष में नहीं देखी गयी थी| वर्ष 2021 में वायुमंडल में मीथेन की सांद्रता वर्ष 2020 की तुलना में 18 पार्ट्स पर बिलियन (पीपीबी) की बढ़ोत्तरी हुई, जो किसी भी एक वर्ष में मीथेन में बृद्धि का एक ने रिकॉर्ड है| ग्रीनहाउस प्रभाव के लिए जिम्मेदार एक अन्य गैस, नाइट्रस ऑक्साइड, में भी पिछले वर्ष 1.3 पीपीबी की बढ़ोत्तरी हुई और अब वायुमंडल में इसकी औसत सांद्रता 334.3 पीपीबी है|

पिछला वर्ष लगतार दसवां वर्ष था जब सागर तल में बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी| वर्ष 1993 से लगातार उपग्रहों द्वारा सागर तल की ऊंचाई को मापा जा रहा है, और तब से लेकर 2021 तक सागर तल की ऊंचाई 97 मिलिमीटर बढ़ चुकी है| वर्ष 2021 तापमान के लगातार रिकॉर्ड रखने के बाद से छठा सबसे गर्म वर्ष रहा है| पिछले 7 वर्ष सबसे गर्म सात वर्ष के तौर पर दर्ज किये गए हैं| यह सब तब दर्ज किया गया, जबकि वर्ष 2021 में वायुमंडल को ठंढी करने वाली प्राकृतिक जलवायु घटना, ला नीना, अपने चरम पर थी| जापान का क्योटो शहर चेरी के फूलों के लिए विश्वप्रसिद्द है, पर पिछले वर्ष जापान में चेरी के फूलों के खिलने का समय वर्ष 1409 के बाद से सबसे पहले का था|

वर्ष 2021 में अमेरिका के नासा और नेशनल ओसानोग्रफिक एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा संयुक्त तौर पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी के सूर्य की गर्मी को अवशोषित करने की दर वर्ष 2005 से अब तक दुगुनी से भी अधिक हो चुकी है| तापमान बृद्धि का मुख्य कारण पृथ्वी द्वारा गर्मी को अवशोषित करने की दर का बढ़ना ही है| सूर्य से जो किरणें पृथ्वी पर पहुँचती हैं, उनका एक हिस्सा पृथ्वी अवशोषित करती है और शेष किरणें परावर्तित होकर अंतरिक्ष में पहुँच जाती हैं| नए अध्ययन के अनुसार पृथ्वी में अवशोषित होने वाली किरणों का असर तो बढ़ रहा है, पर परावर्तन में कमी आ गयी है, और इस असमानता के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है|

वैज्ञानिकों के अनुसार यह एक गंभीर स्थिति है और इससे पृथ्वी पर ऊर्जा अन्संतुलन बढ़ता जा रहा है| इस दल ने यह अध्ययन अंतरिक्ष यानों से प्राप्त आंकड़ों और सागरों की सतह के वास्तविक तापमान में साल-दर-साल आने वाले अंतर के आधार पर किया है| सूर्य की जितनी किरणें पृथ्वी पर पहुँचती हैं, उनमें से लगभग 90 प्रतिशत महासागरों में अवशोषित होती हैं, इसलिए पृथ्वी के बढ़ते तापमान का सबसे अच्छा सूचक सागरों की सतह का तापमान है| नासा के वैज्ञानिक नार्मन लोएब के अनुसार पृथ्वी द्वारा पहले से अधिक ऊर्जा के अवशोषण का कारण वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन है, जो सूर्य की गर्मी को अवशोषित करते हैं|

तापमान बृद्धि भी एक बड़ा कारण है| इसके कारण महासागरों के पानी के वाष्पीकरण की दर बढ़ने लगी है, इससे वायुमंडल में वाष्प की सांद्रता बढ़ रही है| वाष्प भी ग्रीनहाउस गैसों जैसा असर दिखाता है, और सूर्य की ऊर्जा को अवशोषित कर पृथ्वी का तापमान बढाता है| तापमान बृद्धि के कारण पृथ्वी के दोनों ध्रुवों और पहाड़ों की चोटियों पर जमा ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, और पृथ्वी के बर्फीले आवरण का क्षेत्र कम होता जा रहा है| पृथ्वी पर जमा बर्फ सूर्य की ऊर्जा को अंतरिक्ष में परावर्तित करती है, पर अब यह क्षेत्र भी कम हो गया है|

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन, तापमान बृद्धि, जल और भूमि संसाधनों के अवैज्ञानिक प्रबंधन के कारण सूखे का क्षेत्र पूरी दुनिया में किसी महामारी की तरह फ़ैलाने लगा है, पर समस्या यह है की इसकी रोकथाम के लिए कोई टीका नहीं है| संयुक्त राष्ट्र ने सूखे को अगली महामारी के तौर पर प्रस्तुत किया है| सूखे का सामना पहले अफ्रीकी और भारत जैसे गरीब एशियाई देश करते थे, पर अब इसका विस्तार अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों में भी हो गया है| अनुमान है कि इस सदी में सूखे से अबतक 1.5 अरब से अधिक आबादी और दुनिया की अर्थव्यवस्था को 124 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान उठाना पड़ा है| अनुमान है की सूखे के चलते अमेरिका में प्रतिवर्ष 6 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान होता है, जबकि यूरोप में यह नुकसान 9 अरब यूरो का है|

सूखा से केवल फसलों की उत्पादकता ही कम नहीं होती, बल्कि इससे पूरी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है| यूरोप में 2850 किलोमीटर लम्बी नदी डेनुबे रूस की वोल्गा के बाद यूरोप की दूसरी सबसे लम्बी नदी है| यह जर्मनी, रोमानिया, हंगरी, ऑस्ट्रिया, सर्बिआ, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, उक्रेन और क्रोएशिया से गुजरती है| इस नदी के अवैज्ञानिक प्रबंधन के कारण अब इसके किनारे का एक बड़ा भूभाग सूखा से प्रभावित है| इससे इस क्षेत्र में फसलों की उपज में कमी तो आई ही, साथ ही आवागमन, पर्यटन, उद्योगों और ऊर्जा के क्षेत्र पर भी असर पड़ने लगा है| दुनिया की अधिकतर नदियों की हालत ऐसी ही है| हाल में ही एक अध्ययन के अनुसार दुनिया की आधी से अधिक नदियाँ अब पूरे साल नहीं बहतीं क्योंकि साल भर में कभी न कभी इनका कोई हिस्सा सूख जाता है|

दुनिया में तापमान का वैज्ञानिक परिमापन 142 वर्ष पूर्व शुरू किया गया था, और पिछले चार दशक लगातार अपने पिछले दशकों के तापमान का रिकॉर्ड तोड़ते रहे हैं| यह सब तापमान बृद्धि के प्रभावों के स्पष्ट उदाहरण हैं| पिछले वर्ष 25 देशों में - जिसमें कनाडा, अमेरिका, चीन, नाइजीरिया और ईरान सम्मिलित हैं – तापमान के रिकॉर्ड ध्वस्त होते रहे| पेरिस समझौते के तहत इस शताब्दी के अंत तक दुनिया के औसत तापमान की बृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोकनी है, पर नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार इस दशक में ही किसी वर्ष कुछ समय के लिए तापमान बृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाएगा और वर्ष 2030 से 2040 के बीच दुनिया का औसत तापमान पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक हो चुका होगा| जाहिर है दुनिया गर्म होती जा रही है, वायु प्रदूषण निर्बाध गति से बढ़ता जा रहा है – पर दुनिया की सरकारों के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है|

Next Story

विविध