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पर्यावरण

भोजन और सांस के साथ प्रतिवर्ष लगभग सवा लाख प्लास्टिक के टुकड़ों को अपने शरीर के अन्दर पहुंचा रहा मनुष्य

Janjwar Desk
22 March 2021 7:15 AM GMT
भोजन और सांस के साथ प्रतिवर्ष लगभग सवा लाख प्लास्टिक के टुकड़ों को अपने शरीर के अन्दर पहुंचा रहा मनुष्य
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file photo

एक अध्ययन के अनुसार विश्व में 20 नदियाँ ऐसी हैं जिनके माध्यम से महासागरों में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक जाता है। इसमें पहले स्थान पर चीन की यांग्तज़े नदी है, जिससे प्रतिवर्ष 333000 टन प्लास्टिक महासागरों तक पहुंचता है।

वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण

पर्यावरण वैज्ञानिक इस दौर को 'मानव युग' का नाम देते हैं, क्योंकि पृथ्वी पर हरेक जगह मानव के पदचिन्ह पहुँच चुके हैं। मनुष्य का जो उत्पाद सही मायने में सर्वव्यापी है, वह है प्लास्टिक का कचरा। इसका प्रभाव इस कदर बढ़ चुका है कि जिस तरह मनुष्य के विकास के क्रम को वैज्ञानिक ताम्बा युग और लौह युग में बाँटते हैं, उसी तरह आज का युग प्लास्टिक युग कहा जाने लगा है। प्लास्टिक पर सबसे अधिक चर्चा महासागरों के सन्दर्भ में की गयी है, पर अब तो यह दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर माउंट एवेरेस्ट पर, पृथ्वी के दोनों ध्रुवों पर, हवा में, पानी में और यहाँ तक की खाद्य पदार्थों में भी मिलने लगा है।

प्लास्टिक के 5 मिलीमीटर से छोटे आकार के टुकडे, जिन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है और 0.001 मिलीमीटर से छोटे टुकडे जिन्हें नैनोप्लास्टिक कहा जाता है – आज के दौर में पृथ्वी के हरेक हिस्से में मिलते हैं और इनकी सांद्रता वैज्ञानिकों के आंकलन से भी अधिक है।

पार्टिकल एंड फाइबर टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार गर्भवती चूहों के फेफड़े से गर्भ में पल रहे शिशु के ह्रदय, मस्तिष्क और दूसरे अंगों तक माइक्रोप्लास्टिक आसानी से पहुंच जाता है। इस अध्ययन को रुत्गेर्स यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर फोएबे स्ताप्लेतों की अगुवाई में किया गया है और इस अध्ययन के अनुसार जिन गर्भस्थ शिशुओं में माइक्रोप्लास्टिक या नैनोप्लास्टिक पहुंचता है, उन शिशुओं का वजन सामान्य शिशुओं से कम रहता है। अध्ययन के दौरान जब गर्भवती चूहे को माइक्रोप्लास्टिक के माहौल में रखा गया तब महज 90 मिनट के भीतर यह प्लास्टिक प्लेसेंटा तक पहुँच गया।

वर्ष 2019 और 2020 के दौरान किये गए अनेक अध्ययनों में गर्भवती महिलाओं के प्लेसेंटा में और पल रहे गर्भस्थ शिशुओं में नैनोप्लास्टिक पाए गए हैं। अक्टूबर, 2020 में डबलिन के ट्रिनिटी कॉलेज के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार जिन शिशुओं को प्लास्टिक की बोतल से दूध पिलाया जाता है, उनके शरीर में दूध के साथ लगातार नैनोप्लास्टिक जाता है। प्लास्टिक का कचरा महासागर के जीवों से लेकर गायों के पेट तक पहुँच रहा है। इन सबकी खूब चर्चा भी की जाती है। पर, वर्ष 2019 में प्रकाशित एक शोधपत्र यह बताता है कि एक औसत मनुष्य प्रतिवर्ष भोजन के साथ और सांस के साथ प्रतिवर्ष लगभग सवा लाख प्लास्टिक के टुकड़े को अपने शरीर के अन्दर पहुंचा रहा है। यह अनुसंधान एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया था।

इस शोधपत्र के मुख्य लेखक यूनिवर्सिटी ऑफ़ विक्टोरिया के वैज्ञानिक डॉ. किएरन कॉक्स हैं। इस दल ने खाद्य पदार्थों में मौजूद प्लास्टिक से सम्बंधित प्रकाशित अनेक शोधपत्रों के अध्ययन, वायु में मौजूद प्लास्टिक की सांद्रता और मनुष्य के प्रतिदिन के औसत खाद्य पदार्थ के आधार पर यह बताया कि उम्र और लिंग के आधार पर औसत मनुष्य प्रतिवर्ष 74000 से 121000 के बीच प्लास्टिक के टुकड़ों को ग्रहण करता है। कुल मिला कर हालत यह है कि प्रतिदिन एक सामान्य मनुष्य प्लास्टिक के 142 टुकड़े खाद्यपदार्थों के साथ और 170 टुकड़े सांस के साथ अपने शरीर के भीतर डालता है। इस शोधपत्र के अनुसार यदि कोई केवल बोतलबंद पानी ही पीता है, तब उसके शरीर में प्रतिवर्ष 90000 प्लास्टिक के अतिरिक्त टुकड़े जाते हैं।

प्लास्टिक के नुकसान यहीं तक सीमित नहीं हैं। नए अनुसंधान इसे तापमान बृद्धि और जलवायु परिवर्तन से भी जोड़ने लगे हैं। सेंटर फॉर इंटरनेशनल एनवायर्नमेंटल लॉ नामक संस्था द्वारा कराये गए एक अध्ययन के अनुसार केवल एक बार इस्तेमाल किया जा सकने वाला प्लास्टिक जलवायु परिवर्तन में बड़ी भूमिका निभा रहा है। अनुमान है कि वर्ष 2050 तक दुनिया में कुल कार्बन उत्सर्जन में से 13 प्रतिशत से अधिक का योगदान प्लास्टिक के उत्पादन, उपयोग और अपशिष्ट का होगा, जो लगभग 615 कोयले से चलने वाले ताप-बिजली घरों जितना होगा। इस संस्था के अनुसार प्लास्टिक के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की तो खूब चर्चा की जाते है पर इसके तापमान बृद्धि में योगदान को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

एक अध्ययन के अनुसार विश्व में 20 नदियाँ ऐसी हैं जिनके माध्यम से महासागरों में बड़ी मात्रा में प्लास्टिक जाता है। इसमें पहले स्थान पर चीन की यांग्तज़े नदी है, जिससे प्रतिवर्ष 333000 टन प्लास्टिक महासागरों तक पहुंचता है। दूसरे स्थान पर गंगा नदी है जिससे 115000 टन प्लास्टिक प्रतिवर्ष जाता है। तीसरे स्थान पर चीन की क्सी नदी, चौथे पर चीन की हुंग्पू नदी और पांचवे स्थान पर नाइजीरिया और कैमरून में बहने वाली क्रॉस नदी है।

इन बीस नदियों में से चीन में 6, इंडोनेशिया में 4, नाइजीरिया में 3 नदियाँ स्थित है। इसके अतिरिक्त भारत, ब्राज़ील, फिलीपींस, म्यांमार, थाईलैंड, कोलंबिया और ताइवान में एक-एक नदी स्थित है। स्पष्ट है की महासागरों तक प्लास्टिक पहुंचाने वाली अधिकतर नदियाँ एशिया में स्थित है। वर्ष 2014 में वैज्ञानिकों के एक दल ने अनुमान लगाया था कि महासागरों में 5.25 ट्रिलियन प्लास्टिक के टुकडे हैं, जिनका वजन 25 लाख टन है।

पर, नए आकलन बताते हैं की महासागरों में प्लास्टिक की मात्रा इससे लगभग 10 गुना अधिक है। वर्ष 2019 के आकलन के अनुसार महासागरों के प्लास्टिक केवल महासागरों में ही नहीं रहते, बल्कि इसमें से 136000 टन प्लास्टिक हरेक वर्ष वायुमंडल में मिल जाता है। माहासागारों में प्लास्टिक की सघनता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि कुछ जगहों पर प्लास्टिक का घनत्व 19 लाख टुकडे प्रति वर्ग मीटर है।

प्लास्टिक के छोटे टुकडे जो हवा में तैरते हैं और सांस के साथ हमारे अन्दर जाते हैं, उनपर खतरनाक रसायनों, हानिकारक बैक्टीरिया और वाइरस का जमावड़ा भी हो सकता है। कुछ मामलों में इसके असर से कैंसर भी हो सकता है। प्लास्टिक का मानव शरीर में आकलन कठिन काम है, शायद इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार बताता है की प्लास्टिक हरेक जगह है, मानव अंगों में भी है, पर इससे कोई नुकसान नहीं होता। वर्ष 2020 में एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने शरीर में प्लास्टिक की उपस्थिति को परखने का एक नया तरीका खोजा है।

वरुण कलाकार, इस दल की अगुवाई कर रहे हैं और इनके अनुसार अधिकतर प्लास्टिक उत्पादन में बिसफिनॉल ए नामक रसायन का उपयोग किया जाता है, यदि इस रसायन को मानव उत्तकों में मापा जाए तो इससे प्लास्टिक का पता किया जा सकता है। इस अध्ययन दल ने मानव उत्तकों के जितने भी नमूनों का परीक्षण किया है, सबमें बिसफिनॉल ए नामक रसायन की उपस्थिति पाई गयी है। अमेरिका के एनवायर्नमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी के अनुसार बिसफिनॉल ए के असर से वुकास और प्रजनन से सम्बंधित प्रक्रियाएं बाधित होती हैं। इस अध्ययन को अमेरिकन केमिकल सोसाइटी की अगस्त 2020 के बैठक में प्रस्तुत किया गया था।

वैज्ञानिक सीधे तौर पर तो नहीं बताते, पर यदि उनके अनुसार माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक पर वायरस और बैक्टेरिया पनप सकते हैं, तो जाहिर है कोविड 19 के वायरस भी इनके द्वारा फ़ैल सकते हैं। वैज्ञानिक पहले ही बता चुके हैं कि यह वायरस हवा में सक्रिय रहता है और प्लास्टिक की सतह पर 8 घंटे से अधिक समय तक सक्रिय रहते हैं।

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