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Morbi Bridge Accident : गुजरात सरकार को उच्च न्यायालय की फटकार, पूछा - टेंडर क्यों नहीं आमंत्रित किए गए

Janjwar Desk
15 Nov 2022 9:49 AM GMT
Morbi bridge collapse updates : मोरबी जैसा पुल बनता ही क्यों है कि हिलाने भर से टूट जाता है
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Morbi bridge collapse updates : मोरबी जैसा पुल बनता ही क्यों है कि हिलाने भर से टूट जाता है

Morbi Bridge Accident : मंगलवार को गुजरात हाईकोर्ट में मोरबी पुल हादसे पर सुनवाई हुई। अदालत ने गुजरात सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि होशियारी मत दिखाइए, बस सवालों के जवाब दीजिए।

Morbi Bridge Accident : दिवाली और भैया दूज के बाद गुजरात सहित देश के करोड़ों लोगों की खुशी उस समय मातम में बदल गई जब 30 अक्टूबर को दिल दहलाने वाली मोरबी ब्रिज हादसा ( Morbi bridge accident ) घटित हुई। इस हादसे में आधिकारिक रूप से अब तक 135 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई है। गुजरात हाईकोर्ट ( Gujrat high court ) द्वारा इस मामले में स्वत: संज्ञान लेने के बाद अब इस मामले की सुनवाई जारी है। मंगलवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने भाजपा सरकार ( BJP government ) को फटकार लगाते हुए कहा कि ज्यादा होशियारी दिखाने की जरूतर नहीं है।

गुजरात हाईकोर्ट ( Gujrat high court ) ने टेंडर जारी करने में पाई गईं खामियों को लेकर राज्य सरकार और मोरबी नगर निगम को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि मोरबी नगर पालिका को होशियारी दिखाने की जरूरत नहीं है। हाईकोर्ट ने पुल की मरम्मत के लिए ठेका देने के तरीकों पर भी सवाल खड़े किए हैं। हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को तलब कर पूछा है कि इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए टेंडर क्यों नहीं आमंत्रित किए गए थे?

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई के दौरान यह भी पूछा कि इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए समझौता मात्र डेढ़ पेज में कैसे पूरा हो गया? इसका जवाब सरकार को देना होगा। हम सरकार को मनमाने रवैये की वजह से निर्दोष लोगों की मौत पर चुप नहीं रह सकते। बिना टेंडर के एक व्यक्ति के प्रति राज्य की ओर से कितनी उदारता दिखाई गई? अदालत ने कहा कि राज्य को उन कारणों को बताना चाहिए कि आखिर क्यों नगर निकाय के मुख्य अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की गई?

हाईकोर्ट की बेंच ने राज्य सरकार से यह भी जानना चाहा कि क्या उन लोगों के परिवार के सदस्य को सहायता के तौर पर नौकरी दी जा सकती है, जो अपनी फैमिली में अकेले कमाने वाले थे लेकिन इस दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। वहीं, राज्य मानवाधिकार आयोग के वकील ने कोर्ट को बताया कि इसकी पुष्टि की जा रही है कि संबंधित परिवारों को मुआवजा दिया गया है या नहीं।

दूसरी तरफ मोरबी पुल हादसे पर 14 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। याचिकाकर्ता ने मोरबी पुल ढहने की घटना की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग के गठन की मांग की है ।मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले वकील विशाल तिवारी की इस दलील पर गौर किया कि मामले की तत्काल सुनवाई की जरूरत है। बेंच ने पूछा कि हमें कागजात देर से मिले। हम इसे सूचीबद्ध करेंगे। इतनी जल्दी क्या है? इसके जवाब में अधिवक्ता ने कहा कि देश में बहुत सारे पुराने ढांचे हैं। इस बात पर जोर देते हुए कि मामले को प्राथमिकता से सुना जाए।

Morbi Bridge Accident : याचिका में क्या है

गुजरात के मोरबी पुल हादसा सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और घोर विफलता को दर्शाती है। जनहित याचिका में कहा गया है कि पिछले एक दशक में हमारे देश में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहां कुप्रबंधन, कर्तव्य में चूक और रखरखाव की लापरवाही के कारण बड़ी संख्या में लोगों के हताहत होने के मामले सामने आए हैं जिन्हें टाला जा सकता था। राज्य की राजधानी गांधीनगर से लगभग 300 किमी दूर स्थित एक शताब्दी से अधिक पुराना पुल व्यापक मरम्मत और नवीनीकरण के बाद त्रासदी से पांच दिन पहले फिर से खुल गया था। 30 अक्टूबर की शाम करीब 6 बजकर 30 मिनट पर यह हादसा हो गया।

बता दें कि मोरबी पुल हादसे में 135 लोगों की जान चली गई थी। इसके बाद गुजरात हाईकोर्ट ने इस मामले को स्वत: संज्ञान लिया और छह विभागों से जवाब तलब किया था।

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