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RTI Act In Gujarat : गुजरात में भाजपा के 27 साल के राज में RTI कानून केवल कागजों पर, एक्टिविस्ट को अधिकारी कर देते हैं ब्लैकलिस्टेड

Janjwar Desk
1 Oct 2022 10:01 AM GMT
RTI Act In Gujarat : गुजरात में भाजपा के 27 साल के राज में RTI कानून केवल कागजों पर, एक्टिविस्ट को अधिकारी कर देते हैं ब्लैकलिस्टेड
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RTI Act In Gujarat : गुजरात में सूचना का अधिकार अधिनियम की यह हालत है कि अब 93 प्रतिशत सूचना मिलती ही नहीं है, जहां पर गवर्नमेंट का बड़ा घोटाला है, ऐसी एक भी इंफॉर्मेशन बाहर नहीं आती है, ये इंफॉर्मेशन छुपाते हैं...

RTI Act In Gujarat : राइट टू इनफार्मेशन यानी सूचना का अधिकार अधिनियम एक बहुत बड़ा हथियार था। इस कानून से कई बड़े-बड़े भ्रष्टाचार सामने आए। सरकारों की पोल खुली और बहुत ही लोगों ने इसका उपयोग करके जनता को होने वाले नुकसान से बचाया और सरकार के भ्रष्टाचार को बाहर लाएं। अब सूचना की गुजरात में कोई अहमियत नहीं रह गई है। यह अधिनियम गुजरात में कैसे खत्म किया गया, इस पर जंजवार ने आरटीआई कार्यकर्ता पंकज भट्ट और अधिवक्ता विनोद पांड्या से बातचीत की और जाना कि गुजरात में सूचना के अधिकार की क्या अहमियत और स्थिति रह रही है।

आम लोग नहीं कर पति RTI का उपयोग

गुजरात में भाजपा के 27 साल के शासन में सूचना के अधिकार की स्थिति पर बात करते हुए अधिवक्ता विनोद पांड्या ने बताया कि 'सूचना का अधिकार अधिनियम जब आया था तब जो गरीब इंसान या आम व्यक्ति थे, वह सिर्फ एक चिट्ठी लेकर खुद का एविडेंस ले सकते थे। अभी धीरे-धीरे करके उसको पूरी तरह कानून बना दिया गया है। इस अधिकार को इतनी कानूनी समस्या में बड़ा कर दिया गया है कि छोटे लोग, अनपढ़ लोग या जो गरीब लोग हैं, जिनके लिए यह कानून बना है। वह लोग इसका यूज ही नहीं कर पाते हैं, क्योंकि वहां पर जो कमिश्नर अधिकारी है वह लोग इसे इतनी ज्यादा टेक्निकल ऑब्जेक्शन में ले जाते हैं कि व्यक्ति उस कानून की टेक्निकल समस्या में पड़ जाता है और जो उसका मूल काम है वह छूट जाता है। अधिकारी देखते हैं कि आरटीआई डालने वालों ने सेकंड एप्लीकेशन कैसे की है। इनका फॉर्म कानून के हिसाब से सही है या नहीं है और आरटीआई एप्लीकेशन इसके हिसाब से है या नहीं। इतनी ज्यादा समस्या पहले नहीं थी। आरटीआई में इसकी जरूरत ही नहीं थी। पहले सिर्फ इतना था कि आरटीआई वाला एप्लीकेशन दें और अपने एविडेंस डॉक्यूमेंट ले लें।'

थर्ड पार्टी बोलकर रिजेक्ट करते हैं RTI

विनोद पंड्या ने आगे बताया कि 'गुजरात में सूचना का अधिकार अधिनियम की यह हालत है कि अब 93 प्रतिशत सूचना मिलती ही नहीं है। जहां पर गवर्नमेंट का बड़ा घोटाला है, ऐसी एक भी इंफॉर्मेशन बाहर नहीं आती है। ये इंफॉर्मेशन छुपाते हैं। इंफॉर्मेशन अधिकारी जानकारी नहीं देता है। इसके बाद अपील में भी दो-तीन महीना निकाल देते हैं। अपील की सुनवाई नहीं होती है। काफी सारी अपील थर्ड पार्टी बोल कर निकाल देते हैं जबकि सूचना मांगने वाला थर्ड पर्सन ही है। आम लोग मदद नहीं ले पाते हैं तो इस कारण बहुत सारी आरटीआई रिजेक्ट कर दी जाती है। कुछ अफसर की भी आरटीआई होती है लेकिन उन्हें भी वह थर्ड पार्टी करके निकाल देते हैं।'

अपील रिजेक्ट कर देने पर आम लोग नहीं वकील का सहारा ले पाते हैं और ना ही कोर्ट जा पाते हैं इसलिए उन्हें सही इंफॉर्मेशन नहीं मिल पाती है। कुछ लोग तो ज्यादा समझदार होते हैं और किस तरह से आरटीआई करते हैं तो अधिकारियों द्वारा उन्हें ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है। इसके अलावा आरटीआई कमिश्नर सुनवाई के दौरान बहुत से लोगों का अपमान करते हैं। न सुनवाई ठीक से करते हैं और ना ही पेपर की जांच ठीक तरह से होती है। यह एक बहुत बड़ी समस्या है। आरटीआई कानून गुजरात में पूरी तरह से खत्म हो चुका है। कहीं पर भी कोई बड़ा घोटाला या घपला है तो उसकी इंफॉर्मेशन ही लोग बाहर नहीं आने देते हैं।

गुजरात और गुजरात सरकार के हालात देखकर लगता है कि आज के समय में जो थोड़ा भ्रष्टाचार भी बाहर आता है। आने वाले दिनों में वह बिल्कुल बाहर नहीं आने देंगे।

न्याय के लिए लग जाते हैं 3 साल

गुजरात में भाजपा के 27 साल के दौरान आरटीआई कानून की क्या स्थिति है, इस पर आरटीआई एक्टिविस्ट पंकज भट्ट ने बात करते हुए कहा, गुजरात में 2005 के बाद RTI एक्ट आया। उसके बाद थोड़े समय के लिए आरटीआई का उपयोग हुआ, लेकिन अब परिस्थिति ऐसे है कि आरटीआई करने के लिए सोच भी नहीं सकते। आरटीआई को इतना खराब कर दिया गया है कि आदमी को न्याय लेने के लिए 30 दिन नहीं बल्कि 30 महीने या 3 साल लग जाते हैं। इतना समय लगने के बाद भी उन्हें जानकरी मिलती है या नहीं ये भी नहीं पता।

सरकार के ही अधिकारी ही बनते हैं कमिश्नर

आरटीआई एक्टिविस्ट पंकज भट्ट ने बताया कि RTI एक्ट को जानबूझ कर इतना खोखला कर दिया गया है कि सरकार का भ्रष्टाचार बाहर ना आए। 2005 से 2022 तक यहां गुजरात में जो भी इंफॉर्मेशन कमिश्नर बना तो उनमे से कुछ अधिकारी मुख्यमंत्री कार्यालय से भी आए थे। सरकार के कार्यालय में काम कर चुके अधिकारी यहां नियुक्त हुए, जिसके बाद उन्हें यहां कमिश्नर बनाया गया तो ऐसे में वह कैसे सरकार के भ्रष्टाचार की पोल खोल देंगे। सरकार द्वारा 2 ऐसे इंफॉर्मेशन कमिश्नर को नियुक्त किया गया तो जो योग्य ही नहीं थे। हालांकि हाई कोर्ट ने दोनों को निकाल दिया था।

गैरकानूनी तरीके से करते है RTI एक्टिविस्टों को ब्लैकलिस्टेड

गुजरात में कुछ आरटीआई एक्टिविस्टों को ब्लैकलिस्टेड किया गया है, जबकि एक्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इस पर पंकज भट्ट ने बताया कि एक्ट के अनुसार किसी भी आरटीआई एक्टिविस्ट को ब्लैकलिस्टेड करने का हक नहीं है लेकिन फिर भी कानून से बाहर जाकर उन्हें ब्लैकलिस्टेड किया जाता है। ऐसे कमिश्नर को हटाने की पावर सिर्फ गवर्नर या राष्ट्रपति के पास है लेकिन वो कोई एक्शन नहीं लेते हैं क्योंकि सरकार के ही अधिकारी यहां काम करते हैं। दूसरी ओर इस गैरकानूनी कार्रवाई के खिलाफ आवाज उठाने के लिए हाई कोर्ट जाना पड़ेगा लेकिन कोई जाता नहीं है क्योंकि पैसे ज्यादा लग जाते हैं, लाखों रुपए तक खर्च हो जाते हैं।

5 साल में बिलकुल खत्म हो जाएगा RTI अधिनियम

इस कानून का अब गुजरात में कोई मतलब नहीं रह गया है। गुजरात में सरकार का भ्रष्ट्राचार बाहर निकल कर तो आ रहा है लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। आरटीआई के द्वारा सरकार के जो भी भ्रष्ट्राचार बाहर आए, उनमे से केवल 2 प्रतिशत अधिकारीयों और कर्मचारियों पर कार्रवाई हुई है। आरटीआई कानून गुजरात में केवल कागजों पर बना हुआ है। जैसे उपभोक्ता कानून का हाल है कि उससे किसी भी अधिकारी या व्यक्ति को डर नहीं है, ठीक वैसे ही 5 साल बाद आरटीआई कानून का भी वही हाल होने वाला है।

गुजरात में RTI दाखिल करने वाले 10 लोगों पर प्रतिबंध

बात दें कि गुजरात सरकार ने पिछले 18 महीनों में सूचना के अधिकार के सवाल दायर करने से 10 लोगों पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया है। इन लोगों को कुछ मामलों पर आरटीआई प्रश्न दाखिल करने से प्रतिबंधित करने के अन्य कारणों में 'एकाधिक प्रश्न दर्ज करना' और 'सरकारी अधिकारियों को परेशान करने के लिए आरटीआई अधिनियम का उपयोग करना' शामिल हैं।

राज्य सरकार के गुजरात सूचना आयोग ने एक दंपति पर अपने समाज से संबंधित 13 आरटीआई प्रश्न दाखिल करने के लिए 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। यह आरटीआई कानून के इतिहास में इस तरह का पहला जुर्माना था। जीआईसी ने यह भी कहा था कि जीआईसी आयोग के समक्ष प्रस्तुत करने के नागरिक के अधिकार को वापस ले लेता है।'

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