Begin typing your search above and press return to search.
ग्राउंड रिपोर्ट

हर रोज धरती में धंसता जोशीमठ बना तयशुदा मौत की तरफ बढ़ता शहर, लोग दहशत में तो सरकार मस्ती में

Janjwar Desk
26 Dec 2022 9:48 PM IST
हर रोज धरती में धंसता जोशीमठ बना तयशुदा मौत की तरफ बढ़ता शहर, लोग दहशत में तो सरकार मस्ती में
x

जोशीमठ में घरों के अंदर का यह हाल आम हो चुका है 

लोगों ने मकान ढहने के डर से घरों के लिंटर को रोकने के लिए बल्लियां लगा रखी हैं, कई लोग अनहोनी के डर से लोग अपना मकान भी छोड़ रहे हैं, जोशीमठ के जिस क्षेत्र छावनी बाजार में सबसे पहले इस तरह की दरारें देखी गई तो यहां के लोगों ने संबंधित अधिकारियों को सूचना दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई...

सलीम मलिक की रिपोर्ट

देहरादून। भारत-चीन सीमा के निकट उत्तराखंड का सुदूर जोशीमठ शहर इन दिनों दहशत के साए में जीने को अभिशप्त है। समुद्र तल से करीब 1800 मीटर की ऊंचाई पर बसा बदरीनाथ धाम का प्रवेश द्वार भारत का स्विटजरलैंड कहे जाने वाले औली का भी मुख्य प्रवेशद्वार है। धार्मिक और मौज मस्ती पर्यटन का केंद्र बिंदु बना जोशीमठ देश दुनिया के पर्यटकों के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है तो चीन के निकट होने के कारण इसका सामरिक महत्व भी है। इस शहर में जिंदगी की रफ्तार देश के बाकी और शहरों के साथ ही कदम मिलाते हुए चल रही थी, लेकिन कुछ समय पहले से यहां के घरों में अचानक से कुछ दरारें दिखनी शुरू होती हैं।

देखते ही देखते घरों से बाहर सड़कों तक पर इन दरारों का उभरना शुरू हो जाता है। मामूली बात समझकर लोग इन दरारों की मरम्मत करते हैं, लेकिन कुछ ही दिन बाद यह दरारें इस बार कहीं और ज्यादा चौड़ी होकर नमूदार होने लगती हैं। पहले यह दरारें इक्का दुक्का घरों की समस्या के तौर पर सामने आती हैं। लेकिन हर दिन गुजरने के साथ में इसमें कुछ और घरों का ऐसा सिलसिला जुड़ता है कि आज यह पूरे जोशीमठ शहर की समस्या बन गई है।

भारत के सबसे ज़्यादा भूकंप प्रभावित इलाके ज़ोन 5 में शामिल जोशीमठ में भू स्खलन की समस्या यूं तो काफी पुरानी है, लेकिन पिछले साल अक्टूबर की बारिश के बाद से धीरे-धीरे यहां घरों में दरारें पड़नें लगीं। धीरे-धीरे करके दरारें बहुत चौड़ी होने लग गईं। यह शुरुआत एक मुहल्ले छावनी बाजार से हुई। तब क्षेत्र के प्रसिद्ध एक्टिविस्ट अतुल सती ने भविष्य के खतरे को भांपते हुए जोशीमठ के लोगों को आगाह करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें असफलता हाथ लगी। लोगों की उनकी अतिश्योक्तिपूर्ण लगीं।

जब एक के बाद एक कई घरों की हालत ऐसी होने लगी तो लोगों को इसकी गंभीरता समझ में आने लगी। वर्तमान में लोगो ने मकान ढहने के डर से घरों के लिंटर को रोकने के लिए बल्लियां लगा रखी हैं। कई लोग अनहोनी के डर से लोग अपना मकान भी छोड़ रहे हैं। जोशीमठ के जिस क्षेत्र छावनी बाजार में सबसे पहले इस तरह की दरारें देखी गई तो यहां के लोगों ने संबंधित अधिकारियों को सूचना दी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। राज्य के लगभग हर आंदोलन में शामिल होने वाले जोशीमठ के एक्टिविस्ट अतुल सती को पता चला तो वे प्रभावित लोगों को लेकर संबंधित अधिकारियों से मिले, ज्ञापन दिये गये, लेकिन अधिकारी तो दूर जोशीमठ के दूसरे हिस्सों में रहने वालों ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया।

कुछ महीने बीतते न बीतते जोशीमठ के दूसरे हिस्सों में भी इस तरह की दरारें आने लगी। घर ही नहीं सड़कें भी धंसने लगी और कई जगह सड़कों को गड्ढे होने लगे। इस गड्ढों को भरा गया तो फिर से गड्ढे होने लगे। ऐसा ही छावनी बाजार के घरों में पड़ रही दरारों में भी हुआ। लोग पत्थर मिट्टी डालकर इन दरारों को पाटते, लेकिन एक-दो दिन बार फिर से दरारें और चौड़ी होकर नजर आने लगती। कुछ जागरूक लोग लगातार इस मसले को लेकर सरकार, अधिकारियों और आम लोगों को आगाह करते रहे।


जोशीमठ में होटल का यह फोटो सोशल मीडिया पर हो रहा वायरल, जिसमें साफ नजर आ रहा है होटल की दीवार कैसे दूसरे घर पर कभी भी गिर सकती है

एक्टिविस्ट अतुल सती इस मसले में सबसे प्रमुखता के साथ सक्रिय रहे। वेे एक तरफ सोशल मीडिया पर जोशीमठ के धंसाव को लेकर लगातार लिखते रहे तो दूसरी तरफ देश-विदेश के मीडिया संस्थानों से संपर्क कर इस बारे में खबरें देश-दुनिया तक पहुंचाते रहे। सरकार ने भूवैज्ञानिकों से सर्वे करवाने की बात नहीं मानी तो अपने स्तर पर पर्यावरणविद् प्रो. रवि चोपड़ा, भूवैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल और डॉ. एसपी सती से भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण करवाया और यह रिपोर्ट सरकार तक पहुंचाई। बाद में एक सरकारी टीम ने भी सर्वेक्षण किया।

दोनों रिपोर्टों में यह बात साफ तौर पर कही गई कि जोशीमठ में अब और निर्माण कार्य नहीं किये जाने चाहिए। लेकिन, तब भी सरकार नहीं मानी। एक तरफ जोशीमठ के आसपास बन रही भारी-भरकम जल विद्युत परियोजनाओं का काम तो चल ही रहा है, जोशीमठ की जड़ को हेलंग-विष्णुप्रयाग बाइपास के नाम पर खोदने का काम शुरू कर दिया गया है। अब जबकि जोशीमठ का लगभग हर क्षेत्र धंसने लगा है। घरों और सड़कों पर हर जगह दरारें आने लगी हैं और लोग घरों को छोड़ने के लिए मजबूर होने लगे हैं तो जोशीमठ के लोग सड़कों पर निकले हैं। 24 दिसंबर को जोशीमठ के हजारों लोग सड़कों पर उतरे।

प्रदर्शन की अगुआई कर रहे अतुल सती की माने तो जोशीमठ की 20 से 25 हजार की आबादी में से 10 प्रतिशत लोग सड़कों पर उतरे। छोटे से जोशीमठ में सड़कों पर उतरने वाले लोगों की संख्या 2 से 3 हजार थी। सड़क जाम रही, बाजार पूरी तरह से बंद रहे। जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले किये गये इस प्रदर्शन में लोगों ने तपोवन-विष्णुगाड परियोजना बना नहीं एनटीपीसी कंपनी और राज्य सरकार के खिलाफ नारेबाजी की।

स्थानीय जनता कहती है, बिजली परियोजना की सुरंग जोशीमठ से नीचे से गुजर रही है और जोशीमठ के धंसाव को कारण यही सुरंग है। नारेबाजी करते हुए लोग तहसील पहुंचे और एसडीएम के माध्यम से सरकार के ज्ञापन भेजा। ज्ञापन में जोशीमठ के धंसने का कारण तपोवन-विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना और हेलंग विष्णुप्रयाग बाइपास को बताया गया है। इसे दोनों निर्माणों को तुरंत बंद करने की मांग की गई है। इस प्रदर्शन के तीन दिन बीत जाने के बाद भी अब तक राज्य सरकार चुप है।

जोशीमठ भूस्खलन के भयावह परिणाम इसी से समझे जा सकते हैं कि एक बहुमंजिला होटल गिरने की कगार पर पहुंच गया है। इस होटल से सटी आबादी हर रोज मौत के साए में जिंदगी गुजारने को मजबूर है। प्रशासन की निगाह इस पर है। पिछले कई हफ्तों से आशंका है कि यह कभी भी गिर सकता है। बहुत ज्यादा मिन्नते करने के बाद उपजिलाधिकारी ने खुद यहां का निरीक्षण किया है।

बताया जा रहा है कि देख होटल के ऊपर हजारों लीटर पानी का टैंक पानी से भरा है। जिससे पूरा होटल एक तरफ झुक गया है। लेकिन इसके बाद भी इसके 30 से 40 कमरे अभी तक ऑपरेशनल हैं। इस होटल के ठीक पीछे एक बड़ी कॉलोनी है। जो होटल के नीचे आकर धराशाई होने की आशंका में कई दिनों से सो नहीं पा रही है। कॉलोनी वालों ने थाना जोशीमठ में होटल के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का प्रार्थनापत्र दे दिया है। लेकिन होटल स्वामी अब भी बुनियाद खोद कर एक्स्ट्रा कॉलम बीम डलवा रहा है, जो होटल गिरने के खतरे को और भी बढ़ा रहा है।

एक्टिविस्ट अतुल सती कहते हैं, बढ़ती जनसंख्या और भवनों के बढ़ते निर्माण के दौरान 70 के दशक में भी लोगों की भूस्खलन की शिकायत के बाद बनी मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ प्राचीन भूस्खलन क्षेत्र पर बसा हुआ है। पूरा शहर पहाड़ से टूटे बड़े टुकड़ों और मिट्टी के अस्थिर ढेर पर बसा है। माना जाता है कि पिछले साल फ़रवरी को टूटे ग्लेशियर के मलबे ने इस भू स्खलन को टक्कर मारी जिस पर यह शहर बसा है। इस टक्कर से भूतल की अस्थिरता और बढ़ने की संभावना है। इसके अलावा निर्माण कार्य और जनसंख्या के बढ़ते बोझ, बरसात, ग्लेशियर या सीवेज के पानी का ज़मीन में जाकर मिट्टी को हटाना और उससे चट्टानों का हिलना, ड्रेनेज सिस्टम नहीं होने आदि से भी जोशीमठ का धंसाव बढ़ा है।

1976 की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ इलाके में प्राकृतिक जंगल को बेरहमी से तबाह किया है। पथरीली ढलान खाली और बिना पेड़ के हैं। पेड़ों की कमी के कारण कटाव और भूस्सखलन हुआ है। बड़े पत्थरों को रोकने के लिए कुछ नहीं है। इस रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई थी कि भवन निर्माण के भारी काम पर रोक लगे, रोड रिपेयर और दूसरे निर्माण काम के लिए बड़े पत्थरों को खोदकर या ब्लास्ट करके न हटाया जाए, पेड़ और घास लगाने के लिए बड़े अभियान की शुरुआत हो, पक्के ड्रेन सिस्टम का निर्माण हो, लेकिन रिपोर्ट के किसी भी सुझाव का पालन तो दूर सारे काम इसके उसके उलट ही किए गए। अतुल सती के मुताबिक सरकार तत्काल सर्वे करे कि कितने घरों में दरारे हैं, किन घरों की हालत ख़राब है, कौन से ऐसे घर हैं जहां से लोगों को तुरंत हटाए जाने की ज़रूरत है।

राज्य आपदा प्रबंधन सचिव डॉ. रंजीत कुमार सिन्हा ने प्रभावित परिवारों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था का भरोसा दिलाते हुए कहा है कि वैकल्पिक व्यवस्था के लिए ज़मीन की पहचान करने के लिए जिलाधिकारी को कहा है कि आसपास ऐसी उपयुक्त जगह तलाशी जाए जहां पर और ज़्यादा नुकसान और भू धंसाव न हो। राज्य के आपदा फंड में पैसे की कोई नहीं है। दो हजार करोड़ से ऊपर का फंड उपलब्ध है। भूमि का चिन्हीकरण होते ही तेजी से विस्थापन का काम शुरू हो सकता है। वैसे भू धंसाव की समस्या को उत्तराखंड और हिमालय से सटे सभी राज्यों की बताते हुए सिन्हा का यह भी कहना है कि सिक्किम में एक कॉन्क्लेव सारे हिमालयन स्टेट्स को लेकर हुआ था। उसमें पूरे गंगटोक में गंभीर भूस्सखलन और धंसाव का मसला सामने आया है। वह भी पूरा शहर धंस रहा है। इसलिए यह सिर्फ़ उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरे हिमालयन स्टेट्स की समस्या बन गई है।

कुल मिलाकर जोशीमठ शहर को बचाए रखने के लिए शहर में पानी की निकासी के लिए मजबूत ड्रेनेज सिस्टम, पूरे नगर क्षेत्र को सीवरेज के पानी को जमीन के अंदर जाने से रोकने के लिए कवर किए जाने, आवासीय भवनों से निकलने वाले पानी की निकासी का उचित प्रबंधन, नए बहुमंजिला भवनों की निर्माण पर सख्ती से रोक, भू कटाव पर रोक लगाने के लिए रीवर साइड पर व्यापक पौधरोपण किया जाना अत्यंत आवश्यक है। अगर समय रहते यह नहीं किया गया तो एक पूरे शहर को दफन होते देर नहीं लगेगी।

Next Story

विविध