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Ground Report : पानी के भयंकर संकट से जूझ रही खोड़ा की जनता, 3 दशक से हैं भाजपा के सांसद और विधायक
अजय प्रकाश की ग्राउंड रिपोर्ट
जनज्वार। एक तरफ जहां देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतवासियों को मेट्रो के ख्वाब दिखाते हैं, तो वहीं जमीनी हकीकत में लोगों को पीने का पानी तक मयस्सर नहीं है। पूरे एशिया में सबसे ज्यादा मजूदर और वर्कर्स देने को लेकर प्रख्यात उत्तर प्रदेश का खोड़ा कॉलोनी पानी के घोर संकट से जूझ रही है। क्या गर्मी और क्या ठंड, यहां के लोगों को साल के 365 दिन पीने का पानी का खरीद कर पीना पड़ता है। दिलचस्प बात यह है कि यहां के सांसद और विधायक दोनों ही भाजपा के हैं। पिछले 3 दशक से यहां भाजपा ही जनता का प्रतिनिधित्व कर रही है। राज्य में सरकार भी भाजपा के ही योगी जी की है। मगर यहां पानी के लिए तमाम परेशानियां झेल रहे लोगों की समस्या सुनने के लिए कोई नहीं है।
पानी की किल्लत झेलता खोड़ा कॉलोनी
राजधानी दिल्ली और यूपी के बॉर्डर पर बसा खोड़ा कॉलोनी की आबादी करीब 10 लाख है। तीन बड़े शहर, नोयडा, गाजियाबाद और दिल्ली से यह इलाका घिरा हुआ है। मगर तमाम सुख—सुविधाओं से भरपूर इस कॉलोनी में लोग पानी के किल्लत से जूझ रहे हैं। हैरानी की बात ये है कि इस कॉलोनी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ठिकाना महज 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्रधानमंत्री मोदी एक तरफ देश भर को नल जल योजना और स्वच्छ पानी देने का दावा करते हैं, तो वहीं, यूपी के इस कॉलोनी में पानी अब भी लोगों के पहुंच से बहुत दूर हैं।
लोग पीने का पानी खरीदने को मजबूर
करीब 4-5 लाख वोटरों की इस आबादी वाले खोड़ा कॉलोनी की तस्वीर को जन जन तक पहुंचाने जनज्वार की टीम स्थानीय लोगों के बीच गई। यहां के लोगों ने बताया कि उन्हें पीने का पानी खरीद कर पीना पड़ता है। एक महिला कहती है, 'गर्मी के दिनों में ठंडा पानी की एक बोतल के लिए 12 से 13 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। अलग अलग घर से सदस्यों के हिसाब से कोई एक बोतल लेता हैं तो कोई पानी की चार 4 बोतल लेता है। महिला ने बताया कि कपड़े धोने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। बिजली की समस्या अलग।
पानी के साथ बिजली भी बड़ी समस्या
स्थानीय महिला ने जनज्वार को बताया कि क्षेत्र में पानी का स्तर काफी नीचे जा चुका है। ऐसे में सामान्य मोटर पानी खींचने के लिए पर्याप्त नहीं है। इलाके के रसूखदार लोग ही अपने घर में बोरिंग करवाते हैं, जिसका खर्च करीब 3 से 4 लाख रुपये आता है। बोरिंग लग जाने से आस पड़ोस के घरों में पानी का स्तर और नीचे चला जाता है। इन सब के बीच गरीब परिवारों को सबसे ज्यादा जूझना पड़ता हैं। दिनभर मोटर चलने से बिजली का बिल भी काफी ज्यादा आता है, जिससे गरीब जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।
बोरिंग के लिए भी देते हैं रिश्वत
बोरिंग करवाने को लेकर जब जनज्वार टीम ने इलाके की जनता से बात की तो और भी चौंकाने वाले खुलासे हुए। उन्होंने बताया कि अपने घर में बोरिंग करवाने के लिए लोगों को रिश्वत देनी पड़ती है। नगर पालिका में बैठे अफसरों से इजाजत लेनी पड़ती है और कई बार तो उनके मान मनोव्वल के लिए रिश्वत भी देनी पड़ती है, तब जाकर बोरिंग लगवाने की इजाजत मिल पाती है।
चंदा इकट्ठा करके लगाया समर सेबल
घनी आबादी वाले इस कॉलोनी में हमें एक जगह 5-6 सार्वजनिक नल दिखाई पड़े। पूछताछ में पता चला कि पानी की समस्या से उब चुके स्थानीय लोगों ने ही चंदा इकट्ठा करके सड़क के किनारे समरसेबल मोटर लगवायी है। इस लगाने में करीब 3 से 4 लाख का खर्च पड़ा है। एक स्थानीय महिला ने बताया कि कपड़े धोने के लिए पास में नहर पर जाना पड़ता था। इसलिए थोड़े थोड़े पैसे जमा करके सभी ने मोटर लगवाया है। क्योंकि सरकार से यहां के लोगों को कोई उम्मीद नहीं बची है।
तो आखिर सवाल यह है कि क्या यूपी में भाजपा के लिए राम मंदिर और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर ही एकमात्र मुद्दा बचा है। एक तरफ जिस राज्य में गंगा सफाई अभियान के नाम पर सरकार करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा रही हैं, उसी प्रदेश न जाने कितने गली मोहल्ले में पानी और भोजन जैसी बुनियादी सुविधाओं से लोग आज भी वंचित हैं।
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