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स्वास्थ्य

जल संकट के दंश को झेलने को मजबूर महिलाएं, 20 करोड़ घंटे बीत जाते हैं सिर्फ पानी भरकर लाने में

Janjwar Desk
24 Jun 2023 4:17 PM GMT
जल संकट के दंश को झेलने को मजबूर महिलाएं, 20 करोड़ घंटे बीत जाते हैं सिर्फ पानी भरकर लाने में
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जल संकट के दंश को महिलाएं ही झेलने को मजबूर, 20 करोड़ घंटे बीत जाते हैं सिर्फ पानी भरकर लाने में 

भूजल की कमी से उन क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता कम हो रही है जो मीठे पानी के प्राथमिक स्रोत के रूप में भूमिगत भंडार पर निर्भर हैं। इससे दुर्लभ संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा में वृद्धि हो रही है और पहले से ही सूखे क्षेत्रों में पानी की कमी बढ़ रही है...

विशद कुमार की रिपोर्ट

जल संकट पर बात करें तो यह पूरी दुनिया में एक बहुत बड़ा मुद्दा बना हुआ है, जो वैश्विक स्तर पर चिन्ता का विषय बना हुआ है। जल संकट को लेकर यूनिसेफ की विश्वव्यापी एक रिपोर्ट बताती है कि दुनियाभर की महिलाएं बीस करोड़ घंटे सिर्फ पानी भरकर लाने में बिता देती हैं। इस संख्या को अगर सरलता के साथ देखें तो लगभग 83 लाख दिन या 22 हजार 800 साल होते हैं, जो आंकड़े सुनने में अजीब लगते हैं, लेकिन रिपोर्ट की सच्चाई यही बताती है।

वहीं पूरे विश्व के भूजल का करीब 25 प्रतिशत इस्तेमाल अकेले भारत में किया जाता है, लेकिन बारिश के पानी का इस्तेमाल सिर्फ 8 प्रतिशत ही भारत दोबारा कर पाता है। पानी के संकट को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने जो रिपोर्ट जारी किया है, उसके अनुसार 2050 में भारत के कई हिस्सों में पानी की कमी हो सकती है। यूएन की रिपोर्ट पर भरोसा करें तो दुनिया की लगभग 1.7 से 2.40 अरब की शहरी आबादी पानी के संकट से जूझेगी। इस संकट से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है।

संयुक्त राष्ट्र की तरफ से जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2016 में एशिया में 9.33 करोड़ यानी लगभग 13 फीसदी आबादी पानी के संकट से जूझ रही थी, जो आज करीब 80 फीसदी हो गई है। यह 'संयुक्त राष्ट्र विश्व जल रिपोर्ट 2023' के रिपोर्ट में सामने आया है। जो संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन 2023 से पहले UN ने 'संयुक्त राष्ट्र विश्व जल रिपोर्ट 2023' जारी की है।

रिपोर्ट के अनुसार पूर्वोत्तर चीन, भारत और पाकिस्तान पर ये संकट सबसे ज्यादा है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इस संकट से भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। रिपोर्ट यह बताती है कि दुनिया की 26 फीसदी आबादी को पीने के लिए साफ पानी नहीं मिल रहा है। जबकि 46 फीसदी आबादी को साफ पानी का लाभ मिल रहा है। यूएन की तरफ से यूनेस्को की जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के दो से तीन बिलियन लोग साल में कम से कम एक महीने पानी की कमी से जूझते हैं। यूएन ने कहा है कि ये संकट आने वाले समय में और भी ज्यादा बढ़ने वाली है।

उक्त संकट पर UNESCO (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization - संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन) के महानिदेशक आंड्रे एजोले ने कहा कि "इस वैश्विक संकट से बाहर निकलने से पहले तत्काल अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था से निकलने की जरुरत है।" यूएन रिपोर्ट के एडिटर इन चीफ ने कहा कि "जल मानवता के लिए खून की तरह है। यह लोगों के जीवन, स्वास्थ्य, लचीलेपन, विकास के लिए आवश्यक है। समय हमारे साथ नहीं है और करने को बहुत कुछ है। ये रिपोर्ट दर्शाता है कि हमारा उद्देश्य साथ आकर एक्शन लेने का है। बदलाव लाने का ये हमारा समय है।"

बता दें कि संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) संयुक्त राष्ट्र का एक घटक निकाय है। इसका कार्य शिक्षा, प्रकृति तथा समाज विज्ञान, संस्कृति तथा संचार के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देना है। संयुक्त राष्ट्र की इस विशेष संस्था का गठन 16 नवम्बर 1945 को हुआ था। केंद्रीय भूजल बोर्ड का अनुमान है कि देश के अधिकांश हिस्सों में भूजल के अतिदोहन के कारण भूजल के स्तर में प्रतिवर्ष गिरावट दर्ज की जा रही है।

बोर्ड का मानना है कि यदि भूजल में निरंतर गिरावट जारी रही तो देश की कृषि और पेयजल आवश्यकताओं को पूरा करना एक बड़ी चुनौती बन जाएगी, क्योंकि 85 फीसदी ग्रामीण जलापूर्ति, 45 फीसदी शहरी जलापूर्ति और 64 फीसदी से अधिक सिंचाई अब भूजल पर निर्भर है।

वर्तमान में प्रमुख और मध्यम सिंचाई बाँधों के जल भंडारण क्षेत्रों में तलछट के संचय के कारण उनकी कुल भंडारण क्षमता में काफी गिरावट आई है। केंद्रीय जल आयोग द्वारा 2020 में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि 'भारत में जलाशयों में गाद अवसादन का संग्रह '(Compendium on Silting of Reservoirs in India) में इस बात को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया गया है।

जल संकट पर अगर हम झारखंड की बात करें तो झारखंड केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने बताया है कि एक गैर-सरकारी संस्था स्विचन फाउंडेशन द्वारा किए गए एक अध्ययन ने भूजल के अत्यधिक निकासी और प्रबंधन की कमी के कारण झारखंड में भूजल की कमी की चिंताजनक स्थिति का संकेत दिया। स्विचन फाउंडेशन बंगाल की एक गैर-सरकारी संस्था है जिसके द्वारा हाल ही में झारखंड में भूजल की कमी शीर्षक वाली अध्ययन रिपोर्ट राजधानी रांची में जारी की गई थी।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भूजल की कमी से उन क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता कम हो रही है जो मीठे पानी के प्राथमिक स्रोत के रूप में भूमिगत भंडार पर निर्भर हैं। इससे दुर्लभ संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा में वृद्धि हो रही है और पहले से ही सूखे क्षेत्रों में पानी की कमी बढ़ रही है। अध्ययन के अनुसार, लगभग 80 प्रतिशत सतही जल और 74 प्रतिशत भूजल भौगोलिक संरचना के कारण राज्य के बाहर चला जाता है और झारखंड में 38 प्रतिशत सूखे का कारण बनता है।

रिपोर्ट में कहा गया है, "भूजल राज्य में गहरे स्तर पर स्थित फ्रैक्चर में अर्ध-सीमित जलभृतों (जलभर, जलभृत अथवा जलभरा धरातल की सतह के नीचे चट्टानों का एक ऐसा संस्तर है जहां भूजल एकत्रित होता है और मनुष्य द्वारा नलकूपों से निकालने योग्य अनुकूल दशाओं में होता है, के नीचे पाया जाता है) के नीचे पाया जाता है।"

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2022 के प्री-मानसून सीजन में राज्य के भूजल स्तर में दो मीटर की गिरावट आई थी। 2022 में प्राप्त मानसून की वर्षा 60 प्रतिशत से अधिक कम थी और लगभग 90 प्रतिशत जलाशय केवल 40 प्रतिशत ही भरे हुए थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि दामोदर, मयूराक्षी, बराकर, कोयल, शंख, सोन, औरंगा, मोर, करो, बांसलोई, दक्षिण कोयल, खरकई, स्वर्ण रेखा, गंगा, गुमानी, जैसी नदियों के अलावा झारखंड में तालाबों और धाराओं के रूप में कई ताजे पानी के संसाधन हैं। जो दुर्भाग्य से ज्यादातर अब पूरी तरह या आंशिक रूप से सूख चुके हैं।"

अध्ययन में बताया गया है कि नलकूपों की शुरुआत के बाद से ही पिछले दो दशकों में राज्य में भूजल स्तर में गिरावट आई है। विशेष रूप से रांची के शहरी क्षेत्रों में। पूर्वी सिंहभूम (जमशेदपुर सहित), रांची और सरायकेला-खरसावाँ (आदित्यपुर के सहायक हब सहित) के अधिकांश क्षेत्रों में, भूजल घट रहा है।

यह सबसे बड़ा कारण है झारखंड में लोगों को आए दिन पीने के पानी के अलावा अन्य उपयोग में लाए जाने के लिए पानी के संकट का। राज्य में पानी के लिए परेशान लोगों की खबरें, चाहे गांव हो या शहरी क्षेत्र, आए दिन हमें देखने को मिल रही हैं।

राज्य की राजधानी रांची की बात करें तो लोग गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं। शहरी इलाकों में ही 1200 से अधिक बोरिंग फेल हो गयी है। कई स्थानों पर सरकारी बोरिंग (एचवाइडीटी) भी फेल हो गयी है। नगर निगम के टैंकर से पानी की आपूर्ति की जा रही है, बावजूद वह पर्याप्त नहीं है। कई इलाकों में लोग पानी के लिए रात से ही लाइन में लगाकर सप्लाई पानी का इंतजार कर रहे हैं। कई इलाकों में भूजल स्तर दो से पांच मीटर तक नीचे चला गया है। जिसकी वजह से पुरानी बोरिंग फेल हो रही है।

एक दर्जन से ज्यादा इलाके ड्राइजोन में तब्दील हो गये हैं। हर इलाके में कम से कम 400 से 500 फीट की बोरिंग कराने पर ही पानी मिल रहा है। दो वर्ष पहले तक यह स्थिति नहीं थी। पहले 300 से 400 फीट गहराई में पानी मिल जाता था। मोरहाबादी, रातू रोड, कांके रोड, अपर बाजार, हरमू, विद्यानगर, चूना भट्ठा, न्यू मधुकम, इरगु टोली, किशोरगंज, तुपुदाना, बरियातू रोड की बायीं तरफ का इलाका, हिनू में वीर कुंवर सिंह कॉलोनी समेत कई इलाकों में स्थिति खराब है। इन इलाकों में सामान्य बोरिंग से पानी नहीं मिल रहा है। अब यहां 600 से 700 तक की डीप बोरिंग से ही पानी मिलता है।

कांके रोड, बरियातू, तुपुदाना समेत कई इलाकों में 1000 फीट बोरिंग कराने पर पानी मिल रहा है। राजधानी में बोरिंग करने वाली एजेंसी के संचालकों की माने तो पिछले कुछ दिनों से प्रतिदिन सैंकड़ों लोग बोरिंग के लिए संपर्क कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सौ नयी बोरिंग में 20 फेल हो जा रहे हैं।

समस्या इतनी विकराल हो गई है कि लोग सुबह से ही पानी के जुगाड़ में लग जाते हैं। धनबाद जिला में जल संकट का आलम यह है कि पूरे वर्ष यहां की अधिकांश आबादी पानी के लिए जद्दोजहद करती रहती है। गर्मी के दिनों में स्थिति और विकराल हो जाती है। गांव-गांव में लोग पानी के लिए त्राहि-त्राहि करते रहते हैं।

यहां जिला खनिज विकास निधि (डीएमएफटी), हर घर नल से जल, बलियापुर, निरसा मेगा जलापूर्ति योजना सहित 15 बड़ी जलापूर्ति योजनाएं चल रही हैं. इन योजनाओं पर लगभग चार हजार करोड़ रुपये स्वीकृत है. कुछ योजनाएं ही पूर्ण हो सकी है. बाकी अपूर्ण है. यहां ग्रामीण क्षेत्रों में जलापूर्ति का काम पेयजल एवं स्वच्छता विभाग करती है. जिला परिषद से भी कुछ क्षेत्रों में टैंकरों से जलापूर्ति करायी जा रही है. मॉनसून चंद दिनों में दस्तक देने वाला है. लेकिन, अब भी ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश चापाकलों की मरम्मत नहीं हो पायी है.

जिले के विभिन्न प्रखंडों में जलापूर्ति योजनाओं एवं जल संकट पर बात करें तो बलियापुर प्रखंड में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है। तालाब, जोरिया (छोटी नदी का छोटा स्वरूप जो नाला से थोड़ा चौड़ा होता है) सूख चुके हैं। मनरेगा योजना के तहत बनाए गए क्षेत्र के दो दर्जन से अधिक डोभा में पानी नहीं है। लोगों को नहाना धोना तो दूर की बात, पेयजल के लिए भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। क्षेत्र में अधिकांश सोलर पानी टंकी काम करना बंद कर दिया है। अधिकांश चापाकल मरम्मत के अभाव में बेकार पड़े हुए हैं। नल-जल योजना बेकार साबित हो रही है।

बता दें कि बलियापुर प्रखंड में 68 गांवो में जलापूर्ति के लिए 74 करोड़ 53 लाख रुपए की वृहद जलापूर्ति योजना 29 फरवरी 2016 को शुरू हुई थी, जिसे 3 फरवरी 2018 तक पूरा कराने का लक्ष्य था, बावजूद अभी तक कार्य पूरा नहीं हुआ है। बलियापुर के ग्रामीणों का कहना है कि विभागीय कार्य की लापरवाही के कारण आम जनता को घर घर-घर नल-जल योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। दूरदराज इलाकों से पानी लाकर प्यास बुझानी पड़ती है।

जिला परिषद सदस्य संजय कुमार महतो, उषा महतो, प्रखंड प्रमुख पिंकी देवी, उप प्रमुख आशा देवी का कहना है कि इस भीषण गर्मी में जलापूर्ति बहाल करने को लेकर वरीय अधिकारियों को अवगत कराया गया है। बावजूद धरातल पर ठीक ढंग से काम नहीं होने से पानी के लिए लोग परेशान हैं।

जिले के बाघमारा पंचायत के सरैयाभीठा की आबादी तकरीबन एक हजार है। लोगों को एक चापाकल के भरोसे निर्भर रहना पड़ता है। यहां भी तालाब व जोरयां के सूख जाने की वजह से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा रहा है।

सरैयाभीठा गांव के नियोति देवी, छुनपुकी देवी, साधू चरण महतो, संजीत कुमार महतो का कहना है कि गांव में नल-जल योजना के तहत दो साल पूर्व पाइप लगाया गया है,जिसकी अभी तक टेस्टिंग भी नहीं हुई है। सिंदूरपुर पंचायत के चौकटांड़ का भी यही हाल है। ग्रामीणों को अभी तक नल-जल योजना का लाभ नहीं मिला है।

बाघमारा मुस्लिम टोला के मंसूर उर्फ छोटू अंसारी का कहना है कि टोला में भीषण जल संकट है। नल-जल योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। आमझर मस्जिद टोला व मंडल टोला का हाल बेहाल है। दोनों टोला में अभी तक पानी का टेस्टिंग तक नहीं हुआ है। लोगों का कहना है कि विभाग के अधिकारियों को कहने पर उनके द्वारा कई बहाने बनाकर टाल मटोल किया जाता है।

आईआईटी (आईएसएम) धनबाद के पर्यावरण विज्ञान से पीएचडी के छात्र एवं शोधार्थी स्वयं विद कहते हैं - जलवायु परिवर्तन के कारण कम वर्षा होने से जल संकट बढ़ा है। औद्योगिकीकरण ने भी साफ-सुथरे जल स्रोतों को प्रदूषित किया है। साथ ही कंक्रीट का फर्श होने की कारण जल पृथ्वी के अंदर नहीं पहुंच पाता और वर्षा का जल बह जाता है जिसके कारण भूमिगत जल स्तर नहीं बढ़ रहा है। वहीं दूसरी तरफ पहले जहां लंबे समय तक धीरे धीरे जो बारिश हुआ करती थी, अब जलवायु परिवर्तन की वजह से उसका टाइम कम तो हो ही गया है, साथ ही बारिश काफी तेज होती है। ऐसे में जहां लंबे समय तक होने वाली बारिश से जमीन में पानी धीरे धीरे समाता चला जाता था, वह अब तेज बारिश की वजह से बह जाता है।

वे आगे कहते हैं - प्रकृति अब तक हमें निरंतर आवश्यकतानुसार जल उपलब्ध कराती रही है किंतु उसके अंधाधुंध दोहन के कारण स्वच्छ जल की उपलब्धता कम से कमतर होती जा रही है। विश्व के लगभग डेढ़ अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नहीं मिल रहा है। पानी की कमी के चलते वातावरण एवं जलवायु चक्र निरंतर प्रभावित हो रहा है। फलस्वरूप जलवायु परिवर्तन की समस्या भी नित्य प्रति सामने आ रही है। जल एवं जलवायु का अनन्यतम संबंध है। दोनों एक दूसरे के सहयोगी एवं पूरक हैं, दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है। आज पूरा विश्व "वाटर इज क्लाइमेट एंड क्लाइमेट इज वाटर" की बात पूरी तरह से स्वीकार कर रहा है। इनमें से किसी में भी परिवर्तन होने से दूसरे का प्रभावित होना अवश्यंभावी है।

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