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स्वास्थ्य

5 वर्षों में प्रदूषण के कारण 4.5 करोड़ लोगों की समय से पहले मौत, तापमान बढ़ोतरी से मरने वालों में सबसे ज्यादा खेतिहर मजदूर

Janjwar Desk
11 Dec 2022 3:44 AM GMT
5 वर्षों में प्रदूषण के कारण 4.5 करोड़ लोगों की समय से पहले मौत, तापमान बढ़ोतरी से मरने वालों में सबसे ज्यादा खेतिहर मजदूर
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5 वर्षों में प्रदूषण के कारण 4.5 करोड़ लोगों की समय से पहले मौत, तापमान बढ़ोतरी से मरने वालों में सबसे ज्यादा खेतिहर मजदूर

Premature death : तापमान बढ़ने पर गर्भवती महिलाओं में पसीना ज्यादा होने के कारण शरीर में पानी की कमी होने लगती है। ऐसे में प्लेसेंटा से ऑक्सीजन और रक्त का प्रवाह महिलाओं की त्वचा पर होने लगता है।

Premature death : दुनियाभर में प्रदूषण ( Pollution ) और तापमान ( Temperature ) में बढ़ोतरी के घातक दुष्परिणाम पहले से ज्यादा संख्या में सामने आने लगे हैं। लैंसेट सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में सालाना 9 मिलियन मौतों के लिए प्रदूषण जिम्मेदार है। सड़क दुर्घटनाओं, एचआईवी, एड्स, मलेरिया और टीबी के कारण होने वाली संयुक्त वार्षिक मौतों से अधिक है। जितने लोग कुपोषण से मरते हैं या नशीले पदार्थों और शराब के अत्यधिक सेवन से मरने वालों की संख्या से कहीं अधिक प्रदूषण से मरने वालों की संख्या होती है। प्रदूषण की वजह से दुनिया को हर साल 4.6 ट्रिलियन डॉलर यानी करीब 90 लाख डॉलर प्रति मिनट का नुकसान उठाना पड़ता है।

लैंसेट ने पहली बार प्रदूषण पर इस तरह का व्यापक अध्ययन वर्ष 2017 में प्रकाशित किया था। अब लैंसेट की ओर से 2022 का रिपोर्ट जारी किया गया है। तब से अब तक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कुछ खास नहीं किया गया है और इस वजह से पिछले 5 वर्षों के दौरान प्रदूषण के कारण 4.5 करोड़ लोगों की समय से पहले मौत हो चुकी है।

प्रदूषण और तापमान में बढ़ोतरी ( increase in temperature ) से होने वाली अमसय मौतों ( Premature death ) के मामले में चीन और भारत दुनिया में सबसे आगे हैं। भारत में सालाना लगभग 2.4 लाख लोगों की तो चीन में लगभग 2.2 लाख लोगों की मौत प्रदूषण के कारण होती हैं, लेकिन दोनों देशों में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी भी है।

ज्यादा तापमान से मरने वालों में खेतिहर मजदूर ज्यादा

लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन को जलवायु वैज्ञानिकों के एक अन्तराष्ट्रीय दल ने किया है। भारत समेत दुनिया के 43 देशों में 750 स्थानों से प्राप्त जलवायु के आंकड़ों का और मृत्यु दर का विश्लेषण किया गया है। अध्ययन का निष्कर्ष है कि हरेक वर्ष अत्यधिक सर्दी या अत्यधिक गर्मी के कारण दुनिया में 50 लाख से अधिक व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु हो जाती है। यह संख्या दुनिया में कुल मृत्यु का 9.4 प्रतिशत है। अत्यधिक गर्मी से मरने वालों में सबसे अधिक खेतिहर श्रमिक होते हैं। खेतिहर श्रमिकों के तौर पर बड़ी संख्या में महिलायें भी दिनभर तेज धूप और बढे तापमान में काम करती हैं। गर्भवती महिलायें भी अंत तक खेतों में काम करती हैं और बढे तापमान का असर गर्भ में पल रहे शिशु पर भी पड़ता है।

गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी होता घातक प्रभाव

लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन की वैज्ञानिक डॉ ऐना बोनेल ने जाम्बिया में ग्रामीण इलाकों में 92 गर्भवती महिला खेतिहर श्रमिकों का 7 महीने तक गहन अध्ययन किया। अपना अध्ययन लांसेट प्लेनेटरी हेल्थ नामक जर्नल में प्रकाशित किया है। सर्वे के दौरान तापमान, आर्द्रता, गर्भ और मां के दिल की धड़कन दर का लगातार अध्ययन किया गया। अध्ययन के मुताबिक तापमान बढ़ने पर गर्भवती महिलाओं में पसीना ज्यादा होने के कारण शरीर में पानी की कमी होने लगती है। ऐसी अवस्था में प्लेसेंटा से ऑक्सीजन और रक्त का प्रवाह महिलाओं की त्वचा पर होने लगता है। गर्भ में इनकी कमी हो जाती है। इस पूरे अध्ययन के दौरान खेतों का औसत तापमान 35 डिग्री सेल्सियस रहा पर 34 प्रतिशत समय तापमान इससे अधिक बना रहा।

ये है क्लाइमेट चेंज से उत्पन्न नई समस्याएं

सर्वेक्षण टीम ने सुझाव दिया है कि खेतों में जहां भी संभव हो वहां पेड़ों को लगाना चाहिए जिससे अत्यधिक गर्मी से श्रमिक बचे रहे। हीट स्ट्रेन इंडेक्स में जब तापमान और दिल की धड़कन में 1 प्वाइंट की वृद्धि होती है, तब गर्भ पर खतरा 20 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। सामान्य तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी से गर्भ में पल रहे शिशु पर खतरा 17 प्रतिशत तक बढ़ जाता है और दिल की धड़कन प्रति मिनट 160 बीट पार कर जाती है। इस अध्ययन में शरीक होने वाली महिला खेतिहर श्रमिकों में से 60 प्रतिशत से अधिक में अत्यधिक तापमान के कारण पनपने वाले लक्षणों सरदर्द, नींद आना, कमजोरी, मांस-पेशियों में दर्द, उल्टी और गला सूखना में से एक या अनेक लक्षण सामान्य थे।

बता दें कि दुनियाभर में खेतिहर श्रमिकों के लिए तापमान वृद्धि घातक होता जा रहा है। लगातार बढ़ते तापमान में श्रमिकों को लगातार धूप में काम करना होता है और इस कारण उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है। तापमान वृद्धि पर पिछले 20 वर्षों से किये जा रहे अध्ययन के मुताबिक पृथ्वी का तापमान वर्ष 1990 के बाद से हरेक दशक में औसतन 0.26 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है।

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