जनज्वार विशेष

विदेशों से श्रमिकों की वापसी ने बांग्लादेश में बेरोजगारी का संकट कर दिया है विकराल : शेख हसीना

Janjwar Desk
24 Sep 2020 5:14 PM GMT
Bangladesh : पीएम शेख हसीना बोलीं - ड्रग्स और महिला तस्करी में शामिल हैं रोहिंग्या मुसलमान, कब तक सह पाएंगे बोझ
x

Bangladesh : पीएम शेख हसीना बोलीं - ड्रग्स और महिला तस्करी में शामिल हैं रोहिंग्या मुसलमान, कब तक सह पाएंगे बोझ

बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना क्यों कह रही हैं, सहायता की गुहार नहीं बल्कि चेतावनी है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश की प्रधानमंत्री ने प्रतिष्ठित ब्रिटिश समाचारपत्र द गार्डियन में हाल में ही एक लेख लिखा है, "हमारा एक-तिहाई देश बाढ़ में डूबा है, दुनिया को जलवायु परिवर्तन रोकने के प्रयासों में गंभीर होना पड़ेगा।"

यह लेख जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, अमीर देशों के उत्सर्जन का गरीब देशों पर असर, और इस सन्दर्भ में वैश्विक अकर्मण्यता का एक दस्तावेज है। बांग्लादेश उन चन्द देशों में शामिल है, जहां जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक प्रभाव पड़ने का अनुमान है, इसलिए यह लेख और भी प्रासंगिक हो जाता है।

शेख हसीना लिखती हैं, 'पिछले महीने मेरे देश का एक-तिहाई से अधिक भूभाग बाढ़ में डूबा था। इस वर्ष पिछले दस वर्षों में सबसे भारी बारिश दर्ज की गए, और अभी तक थमी नहीं है। इसके चलते 15 लाख से भी अधिक लोगों को अपना घरबार छोड़कर विस्थापित होना पड़ा और हजारों हेक्टेयर में खादी धान की फसल बाढ़ में डूब गई। जाहिर है, ऐसे में करोड़ों लोगों को खाद्यान्न राहत की आवश्यकता होगी।'

शेख हसीना आगे लिखती हैं, समस्या यह है कि आपदा कभी अकेली नहीं आती। बाढ़ से पहले मई में अम्फन चक्रवात ने भारी तबाही मचाई थी। इन सबके कारण कोरोनावायरस के संक्रमण से निपटने में बाधा आ रही है। हालांकि संक्रमण और मृत्यु दर को नियंत्रित रखने में हम अबतक सफल रहे हैं, पर इन सबसे निपटने के लिए एक प्रभावी सुरक्षा की सख्त जरूरत है। विश्वव्यापी आर्थिक बंदी का भयानक असर हमारे वस्त्र उद्योग और निर्यात पर पड़ा है। बड़ी संख्या में विदेशों से प्रवासी श्रमिकों की वापसी ने बेरोजगारी का संकट विकराल कर दिया है।"

शेख हसीना लिखती हैं, "दुनिया में जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित अनेक देशों की तरह बांग्लादेश भी लोगों का जीवन बचाने, स्वास्थ्य व्यवस्था को सुद्रढ़ करने और करोड़ों लोगों के आर्थिक स्तर को सुधारने का प्रयास कर रहा है। यह किसी सहायता के लिए गुहार नहीं है, बल्कि एक चेतावनी है। जिन देशों में जलवायु परिवर्तन का असर वर्तमान में कम देखने को मिल रहा है, ऐसे देश भी इसके घातक प्रभाव में जल्दी ही आयेंगें। ऐसे देशों को हमारे देश की समस्याओं से सबक लेना चाहिए। नए अनुसंधानों के अनुसार इस शताब्दी के मध्य तक सागर तटों के आसपास रहने वाले करोड़ों लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा। क्या, विश्व समुदाय समय रहते ऐसी समस्याओं को दूर करने का प्रयास करेगा?"

शेख हसीना के अनुसार, "जलवायु परिवर्तन और कोविड 19 दोनों वैश्विक समस्याएं हैं, और दोनों के लिए वैज्ञानिकों ने दुनिया को पहले ही आगाह किया था। यदि इन चेतावनियों पर समय रहते ही ध्यान दिया जाता तो इससे होने वाले नुकसाल को काफी हद तक कम किया जा सकता था। अब हम इन समस्याओं से पूरी तरह से घिर चुके हैं, और इनसे निपटने का एकमात्र समाधान गंभीर अंतर्राष्ट्रीय पहल है। दोनों समस्याएं जटिल हैं, और इनके दूरगामी परिणाम हैं। कोई भी देश अकेले इनका समाधान नहीं कर सकता। उअदी कोई एक देश कोविड 19 का टीका बना कर अपने सभी नागरिकों को दे भी दे तब भी वह कोविड 19 से सुरक्षित नहीं होगा, क्योंकि दुनिया के बाकी देशों में इसका प्रसार होता रहेगा। इसी तरह कुछ देश अपने कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती करने के बाद भी जलवायु परिवर्तन के असर को नहीं रोक सकते क्योंकि औद्योगिक देशों से उत्सर्जन लगातार बढ़ता जा रहा है।"

शेख हसीना लिखती हैं, 'जी-20 समूह के देशों से होने वाला उत्सर्जन दुनिया में होने वाले उत्सर्जन का 80 प्रतिशत से भी अधिक है, जबकि सबसे गरीब 100 देशों का सम्मिलित उत्सर्जन पूरे उत्सर्जन का 3.5 प्रतिशत से भी कम है। इसलिए जलवायु परिवर्तन का समाधान सारे देशों को गंभीरता से खोजना पड़ेगा। वर्तमान में इसके समाधान के लिए वर्ष 2015 के पेरिस समझौते पर अमल ही एकमात्र रास्ता है।'

शेख हसीना के मुताबिक, इसके तहत अब तक कुल 189 देशों ने कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में कटौती कर पृथ्वी के तापमान को पूर्व औद्योगिक काल से 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देने का संकल्प लिया है। संकल्प में यह भी कहा गया है कि यदि संभव हो सके तो तापमान की बढ़ोत्तरी 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित राखी जाए, जिसका सुझाव मेरी अध्यक्षता वाले क्लाइमेट वल्नरेबल फोरम ने दिया था। यह फोरम बांग्लादेश समेत 48 देशों का समूह है, जहां जलवायु परिवर्तन का असर सबसे अधिक पड़ने की आशंका है। ये सभी देश अपनी तरफ से जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों को रोकने में पूरी तरह संलग्न हैं।"

लेख में आगे कहा गया है, "दुनिया के अधिकतर गरीब देश, जहां जलवायु परिवर्तन का व्यापक प्रभाव पड़ रहा है, ने जलवायु परिवर्तन रोकने के अपने से सम्बंधित लक्ष्य को हासिल कर लिया है। संयुक्त राष्ट्र की सस्टेनेबल डेवलपमेंट रिपोर्ट 2020 के अनुसार अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के 43 देशों ने जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित लक्ष्यों को पूरा कर लिया है। किसी भी औद्योगिक देश ने ऐसा नहीं किया है। यहाँ तक कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए गरीब देशों की सहायता के लिए जिस ग्लोबल फण्ड पर हामी भरी गई थी, वह भी अपने लक्ष्य से बहुत पीछे है। यह सब वैश्विक स्तर पर प्रखर नेतृत्व, उन्नत प्रोद्योगिकी और गहन अनुसंधान के बिना असंभव है।"

शेख हसीना अंत में लिखती हैं, "यदि वैश्विक स्तर पर हम जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अधिक महत्वाकांक्षी नहीं होते हैं, तो निश्चित तौर पर पूरी दुनिया की हार होगी। इस समय न्यूनतम कार्बन वाले प्रोद्यिगिकी और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जिसका लाभ पूरी दुनिया को मिलेगा। पर, अफ़सोस यह है कि औद्योगिक देश अपनी परम्परागत अर्थव्यवस्था में कोई परिवर्तन करने को तैयार नहीं हैं। जलवायु परिवर्तन, कोविड 19 और अर्थव्यवस्था में भूचाल से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व और सहयोग की जरूरत है, पर इस समय वैश्विक परिदृश्य से दोनों नदारद हैं।'

बकौल शेख हसीना इस समय कोई भी देश वैश्विक समस्याओं से मुँह नहीं मोड़ सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित अगले कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज की बैठक में सभी देश इस समस्या से निपटने के लिए पहले से अधिक गंभीरता दिखाएंगे और सामूहिक अस्तित्व से सम्बंधित समस्याओं का बेहतर हल खोजेंगें।'

शेख हसीना का यह लेख वैश्विक समस्याओं पर औद्योगिक देशों की प्रतिक्रिया और अकर्मण्यता को दर्शाने वाला अच्छा दस्तावेज है। भले ही उन्होंने, अपने लेख का आरम्भ अपने देश की समस्याओं से किया हो, पर पूरे लेख के बाद जलवायु परिवर्तन का वैश्विक परिदृश्य पूरी तरह से उजागर हो जाता है।

Next Story

विविध