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'राम रहीम जैसे घोषित अपराधी रिहा और जनता की आवाज उठाने वाले मेरे पति जीएन साईबाबा जेल की अंडासेल में बंद?' : वसंता
file photo
Delhi news : जब देश में अपराधियों के लिए ऐसा स्वर्णकाल चल रहा हो कि हत्या और बलात्कार के दोषियों को जेल से रिहा करते हुए उनका माल्यार्पण किया जा रहा हो तो जनता के पक्ष में आवाज उठाने के जुर्म में पिछले आठ साल से महाराष्ट्र के नागपुर की अंडा सेल में बंद शारीरिक रूप से 90 प्रतिशत विकलांग जीएन साईबाबा की कैद अपराधियों के इस स्वर्णकाल को चिढ़ाती महसूस होती है।
हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में तबाही मचाने वाले हत्या और बलात्कार के आरोपी बाबा राम रहीम जैसे लोगों को मिलता कई बार का पैरोल और मां के अंतिम संस्कार के लिए भी बाहर न आने की छूट हासिल करने वाले साईबाबा की पत्नी वसंता कुमारी से जनज्वार के संपादक अजय प्रकाश ने मिलकर उनकी तकलीफ को जानने की कोशिश की तो उन्होंने लोकतांत्रिक देश की न्यायिक व्यवस्था पर इस हाल में भी संतोष व्यक्त करते हुए उम्मीद जताई है कि जेल में बंद जीएन साईबाबा सहित जनता की आवाज उठाने वालों को देर सवेर न्याय मिल ही जाएगा।
जनज्वार को दिए साक्षात्कार में माओवादियों से संबंध होने के आरोप में पिछले लंबे समय से जेल की सजा काट रहे जीएन साईबाबा की पत्नी वसंता ने अपने पति की खतरनाक बीमारियों की चर्चा करते हुए कहा कि उनकी किडनी में भी प्रॉब्लम है। कार्डियेक अटैक के भी वह शिकार हैं। हाथ पैरालाइज्ड है। बैक पेन की लगातार समस्या बनी रहती है। ऐसे में उन्हें अंडा सेल में रखना अमानवीयता ही है। सर्दियों में उनकी हालत और ज्यादा खराब हो जाती है। घर में ही लगाने के बाद भी उनकी स्थिति ठीक नहीं रहती है। ऐसे में जेल जैसी परिस्थिति में उनके साथ कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। दो महीने पहले दिन के समय उनकी तबियत खराब हुई थी तो दिन की वजह से जल्दी कंट्रोल किया गया। यदि तबियत रात को खराब होती तो कुछ भी हो सकता था। सरकारी डॉक्टर्स जो इलाज बता रहे हैं, वह केवल दिल्ली के एम्स में ही उपलब्ध है। इलाज के लिए उन्हें एम्स शिफ्ट किए जाने की याचिका लगाई हुई है, जिसका फैसला नहीं हुआ है।
उनके साथ ही जेल में बंद एक और साथी की मौत के बाद से बेहद घबराई वसंता का कहना है कि नागपुर से किसी भी लॉयर का फोन आने पर हर समय किसी भी अनहोनी की खबर की आशंका बनी रहती है। महाराष्ट्र में आजकल स्वाइन फ्लू का प्रकोप चल रहा है। कई मौतें इससे हो चुकी हैं। ऐसे में फोन की हर घंटी उनके लिए बेहद डरावनी होती है।
90 फीसदी विकलांग व्यक्ति को जेल की अंडा सेल में रखने के सवाल पर उनका कहना था कि राम रहीम जैसे लोगों को बार बार पैरोल मिल जाती है, लेकिन साईबाबा जैसे जनपक्षधर लोगों को जेल में ठूंसकर रखा जाता है। मां की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार का समय हो या मेडिकल ग्राउंड पर, किसी भी रूप में उन्हें पैरोल नहीं दिया जाता है। अभी तक उनकी तीन पैरोल याचिकाएं रद्द हो चुकी हैं, जबकि घोषित अपराधियों की न केवल सजाएं माफ हो रही हैं बल्कि जेल से निकलकर उनके स्वागत में समारोह तक आयोजित हो रहे हैं। सत्ता से उनका सीधा सवाल था कि जनता के पक्ष में आवाज उठाने वालों को जेल में क्यों रखा जा रहा हैं। आखिर इंसाफ उनसे इतनी दूरी पर क्यों है, कि वह उन तक पहुंच ही नहीं पा रहा है।
जीएन साईबाबा समेत भारत की अन्य जेलों में बंद तमाम जनपक्षधर लोगों व आदिवासियों के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए उनका कहना था कि तमाम लोग ऐसे भी जेलों में बंद हैं कि जब से वह जेल आए हैं, उनके किसी परिजन से उनकी मुलाकात तक नहीं हो सकी है। सालों से जेलों में सड़ रहे इन आदिवासी लोगों का परिवार ही इतना गरीब है कि एक वक्त की रोटी जुटाने में ही उनका पूरा दिन खत्म हो जाता है। शहरों की चकाचौंध भरी दुनियां में आकर जेल में अपने परिवार के सदस्य से मिलना उनके लिए विदेश यात्रा से कम नहीं है। ऐसे तमाम आदिवासी लोग हैं, जो जंगल, पेड़, जमीन बचाने की लड़ाई तो अपने क्षेत्र में लड़ सकते हैं। लेकिन शहरी चकाचौंध में आकर जेल में बंद अपने परिजनों की पैरवी नहीं कर सकते। हमें ऐसे लोगों के लिए भी सोचना है।
बता दें कि बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने बीते 14 अक्टूबर को डीयू के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा समेत छह लोगों की जमानत के बाद रिहाई का आदेश दिया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने डीयू के पूर्व प्रोफेसर समेत सभी छह आरोपियों की रिहाई पर रोक लगा दी थी। साई बाबा फिलहाल नागपुर सेंट्रल जेल में बंद हैं। उन्हें मई 2014 में नक्सलियों के साथ कथित संबंध के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। व्हीलचेयर से चलने वाले प्रोफेसर साई बाबा दिल्ली विश्वविद्यालय के राम लाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाते थे।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र हेम मिश्रा की गिरफ्तारी के बाद जीएन साईबाबा पर शिकंजा कसा गया था। हेम ने जांच एजेंसियों के सामने दावा किया था कि वह छत्तीसगढ़ के अबुजमाड़ के जंगलों में छिपे हुए नक्सलियों और प्रोफेसर के बीच एक कूरियर के रूप में काम कर रहे थे।
जीएन साईंबाबा 90 प्रतिशत शारीरिक रूप से अक्षम हैं। उन्हें गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। इस मामले में पांच अन्य को भी सजा सुनाई गई थी। उन्होंने भी हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। इन दोषियों में से पांडु नरोटे का हाल ही में निधन हो गया, जबकि विजय तिर्की, महेश तिर्की, हेम मिश्रा, प्रशांत राही को भी हाईकोर्ट ने बरी करने का फैसला दिया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।